साख नियंत्रण का अर्थ, आवश्यकता एवं महत्व

वर्तमान युग में साख मुद्रा का इतना अधिक महत्व है कि अर्थशास्त्रियों ने वर्तमान अर्थव्यवस्था को साख मुद्रा अर्थव्यवस्था का नाम दिया है । यद्यपि मुद्रा अर्थव्यवस्था में साख मुद्रा का आधार है परन्तु फिर भी अधिकांश वर्तमान आर्थिक कियायें साख द्रव्य के द्वारा ही पूरी की जाती हैं तथा साख मुद्रा सम्पूर्ण वर्तमान वित्तीय प्रणाली आधारित है । कुछ अन्य अर्थशास्त्रियों के अनुसार साख मुद्रा वर्तमान युग में पूँजी के अन्तराल का साधन है ।

कोल के अनुसार, “साख द्रव्य उस कय शक्ति को कहते हैं जो वित्तीय संस्थाओं द्वारा उस जमा का जो उनके पास रखी होती है, प्रयोग करने के उद्देश्य से उत्पन्न की जाती है ।

थामस के अनुसार, “साख वह विश्वास है जो एक व्यक्ति दूसरे अन्य व्यक्ति में रखकर अपनी कुछ वस्तुएं उस दूसरे व्यक्ति को देता है, भले ही वे वस्तुएं मुद्रा, सेवा या साख द्रव्य क्यों न हो ।'”

वर्तमान समय में साख मुद्रा व्यावसायिक संगठन का प्रमाण कहा जाता है । वर्तमान स्थायी समाज में अधिकांश आर्थिक क्रियाएं साख मुद्रा पत्रों के द्वारा पूर्ण की जाती हैं । बड़ी मात्रा के सभी लेन-देन मुद्रा के द्वारा न होकर साख मुद्रा चेक, ड्राफ्ट, हुण्डियों द्वारा पूरे किये जाते हैं । इसी कारण साख मुद्रा को वाणिज्य रूपी शरीर का जीवन रक्त कहा जाता है । साख मुद्रा प्रणाली जिसमें सभी के साख मुद्रा पत्र साख मुद्य संस्थाएं तथा साख मुद्रा अधिनियम सम्मिलित हैं । गत 100 वर्षों में समाज की आर्थिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण तथा आवश्यक बन गयी है । प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जान स्टुअर्ट मिल ने साख मुद्रा के महत्व के सम्बन्ध में लिखा है कि “यद्यपि साख मुद्रा पूँजी का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को किया गया अन्तरण है परन्तु यह अन्तरण उन व्यक्तियों को किया जाता है जो पूँजी का उत्पादक उपयोग करने के योग्य होते हैं । यदि समाज में साख मुद्रा का उपयोग न हुआ होता तो जिन ऐसे व्यक्तियों के पास पूँजी हुई होती जो अयोग्य होने अथवा पूँजी का उत्पादक प्रयोग करने के सम्बन्ध में पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण इसका निवेश करने की सामर्थ्य नहीं रखते थे, वह पूँजी व्यर्थ रहती । ब्याज पर उद्यमकर्ताओं को पूँजी को उधार दिये जाने के परिणामस्वरूप इसका व्यापक उपयोग करना संभव हो जाता है । यद्यपि साख मुद्रा का व्यापक प्रयोग होने से समाप्त पूँजी मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है परन्तु उत्पादन क्षमता का उपयोग होने के हेतु इष्टतम् उत्पादन संभव हो जाता है ।”

साख मुद्रा समाज में मुद्रा की पूरक बनकर विनिमय को सरल तथा मितव्ययी बनाती है । साख मुद्रा वर्तमान समय में विनिमय माध्यम का एक अति सरल तथा मितव्ययी साधन है । धातु के सिक्कों के मुद्रण से जो परिश्रम तथा व्यय होता है, साख मुद्रा के उपयोग द्वारा उसमें भारी कमी हो जाती है । बहुमूल्य धातुओं के सिक्के चलन में रहने से उसमें से घिसावट के कारण काफी धातु नष्ट हो जाती है। साख मुद्रा के चलन से समाज इस अपव्यय से मुक्त हो जाता है, अतः साख विनिमय के माध्यम के कार्य को सरल व मितव्ययी बनाती है ।

साख मुद्रा वर्तमान बड़े पैमाने के उत्पादन तथा विनिमय प्रणालियों का विकास करती है । यह ईमानदार तथा व्यापार में निपुण उन व्यक्तियों को जिनके पास अपनी कोई पूँजी नहीं होती है, व्यापार करने के योग्य बनाती है । साख मुद्रा कुशल व्यापारियों को पूँजी में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने का सुअवसर प्रदान करती है। यह देश की सरकार को उसकी आय की तुलना में अधिक व्यय करने के योग्य बना कर देश में बेरोजगारी का निवारण करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। साख मुद्रा देश में वस्तुओं तथा सेवाओं की विकी के क्षेत्र को व्यापकता प्रदान करके अर्थव्यवस्था में अधिक उपभोग संभव बनाती है तथा इसके साथ देश में संगठित बाजारों के विकास व उत्पादन क्षमता में वृद्धि को वास्तविक रूप प्रदान करती है ।

साख मुद्रा उपभोग में वृद्धि करके उच्च जीवन स्तर को संभव बनाती है। अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों में जहाँ। उपभोक्ता साख मुद्रा की प्रथा प्रचलित है, उपभोक्ता सभी प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं का अधिक मात्रा में उपभोग करते हैं । इस प्रकार साख मुद्रा की सुविधा प्राप्त होने से वस्तुओं की मांग तथा बाजार का क्षेत्र बढ़ जाता है तथा उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लग जाता है तथा लोगों की आय तथा जीवन स्तर में वृद्धि हो जाती है। साख मुद्रा के द्वारा बचतकर्ताओं की बचत का निवेश संभव हो जाता है तथा ऐसा होने से लोगो में बचत प्रवृत्ति को प्रोत्साहन प्राप्त होता है। इस प्रकार लोगों में बचत करने की शक्ति व इच्छा को प्रोत्साहित करके साख मुद्रा देश में पूँजी संचय को प्रोत्साहित करती है।

साख व्यक्ति विशेष एवं राष्ट्र दोनो के आर्थिक संकटों में मदद करती है । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से ऋण लेकर तथा सरकार जनता से ऋण लेकर अपने आर्थिक संकटों का सामना कर सकती है। साख का अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान के क्षेत्र में भी काफी महत्व है । साख मुद्रा की सहायता से जैसे चेक, बैंक ड्राफ्ट, विनिमय बिल आदि की सहायता उसे हम आसानी से विदेशों के व्यक्तियों को भुगतान कर सकते हैं क्योंकि इसके अन्तर्गत विदेशी मुद्रा एवं बहुमूल्य धातुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान को हस्तान्तरण करने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार साख आधुनिक औद्योगिक जगत में एक महत्वपूर्ण भाग अदा करती है ।

साख मुद्रा आधुनिक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और यह भी मुद्रा की पूर्ति में शामिल होती है । हम जानते हैं कि थोड़ी सी कानूनी मुद्रा जो बैंकों के पास प्रारंभिक जमा के रूप में होती है उससे कई गुना बैंक साख मुद्रा का सृजन कर देता है । इसलिए मुद्रा पूर्ति की अधिकता तथा कमी स्फीति और अवस्फीति की स्थितियां उत्पन्न कर देती हैं जिसका प्रभाव समाज के विभिन्न वर्गों एवं अर्थव्यवस्था पर विशेष रूप से पड़ता है । इसलिए साख मुद्रा को सरकार द्वारा नियंत्रित करने की किया को महत्वपूर्ण माना गया है। देश की सामाजिक एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार साख की मात्रा को समायोजित करना ही साख नियंत्रण कहलाता है ।’ देश की अर्थव्यवस्था एवं मूल्य स्तर में स्थायित्व लाने के लिए यह आवश्यक है कि साख मुद्रा पर उचित नियंत्रण रखा जाय, अर्थात् साख मुद्रा की मात्रा देश की आवश्यकताओं के अनुरूप हो । यदि देश में साख मुद्रा की मांग अधिक होगी तो मूल्यस्तर में वृद्धि हो जायेगी । इसके विपरीत दशा में, मूल्य स्तर कम होगा । अतः साख मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण लगाना आवश्यक होता है जिससे कि वांछित दशा में अर्थव्यवस्था को ले जाया जा सके ।

साख की मात्रा का नियमन एवं नियंत्रण केन्द्रीय बैंक का प्रधान कार्य है । आधुनिक समय में साख मुद्रा का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण साख की मात्रा में होने वाले परिवर्तनो का देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है । यहाँ तक कि मुद्रा की मात्रा का नियमन बहुत कुछ साख के नियंत्रण से ही सम्बन्धित है, क्योंकि मुद्रा में चलन तथा साख दोनों ही सम्मिलित रहते हैं । इसलिए केन्द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति तथा साख नियंत्रण नीति में प्रायः कोई विशेष अन्तर नहीं किया जाता। वास्तव में मुद्रा नीति के संचालन में सबसे कठिन समस्या साख के नियंत्रण की होती है, चलन की मात्रा को तो आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है । साख नियंत्रण की जिम्मेंदारी केन्द्रीय बैंक की होती है क्योंकि सम्पूर्ण मुद्रा बाजार पर अधिकार होने के कारण यह अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मांग का अनुमान लगा सकता है । आर्थिक संतुलन बनाये रखने के लिए मुद्रा की पूर्ति को इसकी मांग के साथ समायोजित करना होता है । इसी से कीमतों में स्थिरता आती है जिसके परिणामस्वरूप व्यवसाय, उत्पादन तथा रोजगार की स्थिति में भी स्थिरता बनी रहती है । नोट-निर्गमन का एकाधिकार तथा देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक को मौद्रिक प्रबन्धन एवं साख नियंत्रण के लिए एक शक्तिशाली और प्रभावपूर्ण संस्था का रूप देते हैं।

साख नियंत्रण की आवश्यकता

बहुत पहले से ही आधुनिक आर्थिक व्यवस्था में साख के सृजन एव वितरण के नियंत्रण की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है । इसका प्रधान कारण यह हे कि आधुनिक समय में देश के अधिकांश मौद्रिक एवं व्यावसायिक भुगतान में साख काबहुत बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है, अतएव साख का देश की आर्थिक स्थिति पर अच्छा तथा बुरा दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि आधुनिक आर्थिक व्यवस्था मुद्रा पर नहीं आधारित होकर मुख्य रूप से साख पर ही आधारित है ।’ साख की मात्रा में परिवर्तन के फलस्वरूप मुद्रा के कय शक्ति एवं व्यावसायिक क्रियाशीलता में परिवर्तन होता है और चूंकि मुद्रा की कय शक्ति एवं व्यावसायिक कियाशीलता में परिवर्तन का आर्थिक जीवन के विभिन्न अंगों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है अतएव साख का नियंत्रण देश के आर्थिक कल्याण के लिए आवश्यक समझा जाता है। वास्तव में गत वर्षों में मुद्रा की कय शक्ति एवं व्यावसायिक क्रियाशीलता में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न आर्थिक एवं सामाजिक अव्यवस्था ने साख के नियमन एवं नियंत्रण के महत्व की ओर भी बढ़ा दिया है । यही कारण है कि विश्व के प्रायः सभी देशों मेकेन्द्रीय बैंक कादेश की साख व्यवस्था पर किसी न किसी प्रकार का नियंत्रण अवश्य पाया जाता है ।

आधुनिक समय में चलन की मात्रा का नियमन भी बहुत हद तक साख के नियंत्रण से ही सम्बन्धित है । अधिकांश केन्द्रीय बैंकों के विधान में तो इस प्रकार की व्यवस्था पायी जाती है । उदारणार्थ- बैंक ऑफ कनाडा के विधान में बैंक का प्रमुख कार्य साख एवं चलन का नियंत्रण तथा रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के विधान में चलन एवं साखप्रणाली कादेश के आर्थिक हितों के अनुसार नियमन आदि की व्यवस्था की गयी है ।

साख नियंत्रण का महत्व

बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और अन्य विनिवेश संस्थाओं द्वारा साख का विस्तार विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों में व्यापार संभावनाओं द्वारा नियंत्रित होता है । आर्थिक व्यवस्था में साख का विस्तार या उसका संकुचन विभिन्न व्यक्तिगत निर्णयों और प्रबन्धनों के कारण होता है जो कि अर्थव्यवस्था के किसी भाग में विस्तार और अन्य में संकुचन का कारण बनता है।’ सामूहिक रूप से गलत निर्णयों के विरूद्ध सावधानियां जबकि साख के विस्तार या संकुचन की आवश्यकता अर्थव्यवस्था में होती है, सरकार को शक्तियां ब्याज दर के नियंत्रण करने तथा आरक्षित उधार अनुपात अपने में निहित रखती है । विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों में साख के प्रवाह का नियमन विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक होता है।

लोकतांत्रिक देश में भौतिक स्रोतों के विभिन्न क्षेत्रों को बंटवारे की नियोजन की तकनीक स्वीकार की जाती है। इस व्यवस्था में नीति उद्यम को पर्याप्त स्वतंत्रता होती है। कियाओं और उनकी कियाओं को नियंत्रित एवं निर्देशित उपायों की उद्देश्यों के विषय में, जैसे पूँजी प्रवाह का नियंत्रण, उद्योगो एवं व्यापार के लिए लाइसेन्सी व्यवस्था तथा भौतिक नियंत्रण एवं दिशा-निर्देशन मौद्रिक साख नीतियों द्वारा होती है ।’

अन्य कारकों में आर्थिक प्रगति पूँजी निर्माण्ध की दर पर निर्भर करती है । पूँजी निमार्ण एक मन्द कमिक प्रकिया है । समुदाय की वार्षिक आय एवं बचत के बड़े भाग को निवेश में बदलना इसमें सम्मिलित होता है । पूँजी निर्माण, उपलब्ध घरेलू बचतों को आर्थिक विकास में गतिशीलता लाने के उद्यम से सम्बन्धित है ।

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