अनुक्रम
श्रम कल्याण की परिभाषा
कैली – ‘‘श्रम-कल्याण कार्य का अर्थ किसी फर्म द्वारा श्रमिकों के व्यवहार और कार्य के लिए अपनायें जाने वाले कुछ सिद्धान्तों से है।’’
सामाजिक विज्ञान का विश्वकोष – ‘‘श्रम-कल्याण से अर्थ, कानून, औद्योगिक व्यवस्था और बाजार की आवश्यकताओं के अतिरिक्त मालिकों द्वारा वर्तमान औद्योगिक व्यवस्था के अन्तर्गत श्रमिकों के काम करने और कभी-कभी जीवन निर्वाह और सांस्कृतिक दशाओं के उपलब्ध करने के ऐच्छिक प्रयासों से हैं।’’
पेन्टन – ‘‘श्रम-कल्याण कार्यो से अर्थ श्रम से सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपलब्ध की जाने वाली दशाओं से है।’’
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन – ‘‘श्रम-कल्याण से ऐसी सेवाओं और सुविधाओं को समझा जाना चाहिए जो कारखाने के अन्दर या निकटवर्ती स्थानों में स्थापित की गई हो ताकि उनमें काम करने वाले श्रमिक स्वस्थ और शान्तिपूर्ण परिस्थितियों में अपना काम कर सकें तथा अपने स्वास्थ्य और नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।’’
ग्राउण्ड – ‘‘श्रम-कल्याण से तात्पर्य विद्यमान औद्योगिक प्रणाली तथा अपनी फैक्ट्रियों में रोजगार की दशाओं का उन्नत करने के लिए मालिकों द्वारा किये जाने वाले ऐच्छिक प्रयासों से है।’’
आर्थर जेम्स टोड ने इस सम्बन्ध में उचित ही कहा है, ‘‘औद्योगिक कल्याण के सम्बन्ध में कार्य की प्रेरणा एवं औचित्य सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराओं की श्रंृखला ही उपलब्ध है।’’ कुछ लोग श्रम-कल्याण कार्य को कारखानों के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यो तक सीमित बताते है।, यद्यपि यह परिभाषा बहुत ही संकुचित है। श्रमिक कल्याण की प्रगति के लिए सुविधाओं की व्यवस्था पर।
श्रम अन्वेषण समिति, 1943 के अनुसार, ‘‘अपनी दिशा में, हम श्रम-कार्यो के अन्तर्गत श्रमिकों के बौद्धिक, शारीरिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति के लिए किए गए किसी भी कार्य को सम्मिलित करने को प्राथमिकता देते हैं। चाहे यह मालिकों अथवा सरकार अथवा किसी अन्य संस्था द्वारा किए गए हों। इसके अतिरिक्त जो कानून द्वारा निश्चित कर दिया गया है अथवा वह सब जिसे श्रमिकों के संविद्-जनित लाभों के अंश के रूप में, जिसके लिए श्रमिक स्वयं सादै ा कर सकते है।, साधारणतया अपेक्षित समझा जाता ह ै वह भी श्रम-कल्याण के अन्तर्गत माना जाता है।
श्रम कल्याण की विशेषताएं
- श्रम-कल्याण कार्य का अर्थ कुछ विशेष सुविधाओं से है जो श्रमिकों को प्रदान की जाती है,
- इन विशेष सुविधाओं का सम्बन्ध कार्य करने की उन्नत दशाओं से है।
- विशेष सुविधाओं का उद्देश्य श्रमिकों के शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक जीवन की उन्नति है,
- इससे श्रमिकों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है और उनका दृष्टिकोण विस्तृत होता है,
- श्रम-कल्याण कार्य सिर्फ मालिकों से ही सम्बन्धित न होकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन से भी सम्बन्धित है,
- इन कार्यों का उद्देश्य सामाजिक असन्तोष और क्रान्ति को समाप्त करना है,
- ये कल्याण कार्य ऐच्छिक संस्थाओं द्वारा भी किये जा सकते हैं।
श्रम कल्याण कार्य का उद्देश्य
- श्रमिकों को कार्य की मानवीय दशाएं उपलब्ध करना,
- कार्यक्षमता में वृद्धि करना,
- नागरिकता की भावना का ज्ञान कराना,
- श्रमिकों, मालिकों और सरकार के बीच स्वस्थ सम्बन्धों का निर्माण करना,
- राष्ट्रीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना, तथा
- अनुकूल सामाजिक परिस्थितियां निर्मित करना।
श्रम कल्याण कार्य के अंग
श्रम-कल्याण कार्य के प्रमुख अंग क्या हैं? श्रम-कल्याण कार्यो के अन्तर्गत कौन-कौन से तत्वों का समावेश होता है। संक्षेप में श्रम-कल्याण कार्यक्रम के अंग होते हैं –
- श्रमिकों की भर्ती के वैज्ञानिक तरीके,
- वातावरण जहां श्रमिक काम करते हैं – की समुचित व्यवस्था। वहां स्वच्छता, वायु और प्रकाश का उचित प्रबंन्ध,
- प्रौद्योगिकी तथा सामान्य शिक्षा की व्यवस्था,
- दुर्घटनाओं की रोक-थाम की उचित व्यवस्था,
- साफ-सुधरे मकानों का निर्माण,
- चिकित्सा, स्वास्थ्य और पोषण की पर्याप्त सुविधाएं,
- मनोरंजन की व्यवस्थाएं
- भोजन की उचित व्यवस्था,
- काम के सन्तोषजनक और वैज्ञानिक घण्टे,
- पर्याप्त मजदूरी की दरें,
- उत्तम मजदूरी और यन्त्र,
- मितव्ययी जीवन की शिक्षा,
- श्रमिक केन्द्रों को आकर्शक बनाना।
श्रम कल्याण कार्य की आवश्यकता
श्रमिकों के कल्याण, अधिक उत्पादन तथा राष्ट्रीय आर्थिक प्रगति के लिए श्रमिकों के लिए कल्याण कार्यो की आवश्यकता है। भारत में श्रम-कल्याण कार्य की आवश्यकता के सम्बन्ध में तर्क दिए जा सकते हैं –
श्रम कल्याण कार्य का वर्गीकरण
भारत में श्रम-कल्याण कार्यो में अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का योग है। भारत में श्रमिकों के कल्याण-कार्य से सम्बन्धित भावना का विकास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था। अनियोजित नगरीकरण और औद्योगीकरण का परिणाम यह हुआ कि अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हुआ। इन समस्याओं के कारण श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी आने लगी और उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ने लगा। ऐसी परिस्थिति में उद्योगपति, सरकार तथा अन्य संस्थाओं ने श्रमिकों के कल्याण कार्यो की ओर ध्यान दिया। भारत में निम्न संस्थाओं ने श्रम-कल्याण सम्बन्धी कार्यो का सम्पादन किया है –
- केन्द्र सरकार,
- राज्य सरकारें,
- उद्योगपति,
- श्रमिक संघ,
- समाज सेवी संस्थाएं, और
- नगरपालिकाएं।
- मीटर परिवहन कर्मचारी अधिनियम 1961
- अभ्रक खान श्रम-कल्याण निधि
- कोयला खान श्रम-कल्याण निधि
- बागान श्रमिक अधिनियम, 1951
- लोहा खान श्रम-कल्याण सेस अधिनियम, 1961
- खानों में सुरक्षात्मक उपाय
- श्रम-कल्याण केन्द्र
- राष्ट्रीय सुरक्षा पुरस्कार योजना
- श्रम दशाओं का सर्वेक्षण
- श्रम-कल्याण निधियाँ
2. राज्य सरकार – केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी इस सम्बन्ध में अधिनियमों का निर्माण किया है। ये अधिनियम राज्य की परिस्थितियों के अनुसार होते हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रम-कल्याण विभाग की स्थापना भी की है।
- चिकित्सा की व्यवस्था,
- शिक्षा की व्यवस्था,
- जलपान-गृहों की स्थापना,
- सरकारी समितियों की स्थापना,
- मनोरंजन गृह और वाचनालयों की व्यवस्था,
- प्राविडेण्ट फण्ड आदि की व्यवस्था।
4. श्रमिक संघ – श्रमिक संघों का गठन जिस उद्देश्य से किया जाता है वह श्रमिक कल्याण है। भारत में श्रमिकों के कल्याण की दृष्टि से जो श्रमिक संघ स्थापित है उनमें से कुछ के नाम हैं –
- अहमदाबाद टैक्साटाइल श्रम संघ,
- कानपुर मजदूर सभा,
- इन्दौर मिल संघ,
- रेल कर्मचारी संघ।
5. समाज-सेवी संस्थाएँ – श्रम-कल्याण के क्षेत्र में बहुत-सी स्वयंसेवी संस्थाएँ कार्य कर रही है।। उदाहरण के लिए –
- मुम्बई समाज सेवा लोग,
- सेवा सदन समिति,
- मुम्बई प्रेसीडेन्सी महिला मण्डल।
6. नगरपालिकाएँ – अनेक नगरनिगमों और नगरपालिकाओं ने भी श्रम-कल्याण के सम्बन्ध में अनेक कार्य किए है। इन नगरपालिकाओं में दिल्ली, मुम्बई, अजमेर, कानपुर, चेन्नई है।। इन नगरपालिकाओं ने श्रमिकों के कल्याण के लिए जो कार्यक्रम किये, उनमें से कुछ निम्न है। –
- निवास की व्यवस्था,
- प्राथमिक स्कूल एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना,
- रात्रि पाठशालाएँ,
- प्राविडेण्ट फण्ड, आदि।
- शिक्षा की व्यवस्था,
- जलपान-गृहों की स्थापना,
- सरकारी समितियों की स्थापना,
श्रम कल्याण कार्य का महत्व
श्रमिकों के लिए कल्याण-कार्य के महत्त्व पर बल देने की कोई आवश्यकता विशेषकर भारत में नहीं प्रतीत होती। यदि हम अपने देश में श्रमिक वर्ग की दशा को ध्यान से देखें तो हमें मालूम होगा कि उन्हें अस्वस्थ वातावरण में बहुत लम्बे समय तक काम करना पड़ता है और अपने खाली समय में अपने जीवन की परेषानियों को दूर करने के लिए उसके पास कोई साधन नहीं है। ग्रामीण समुदाय से दूर हटाए जाने के कारण तथा एक अनजान एवं अस्वस्थ शहरी समुदाय के शिकार बन जाते हैं जो उन्हें अनैतिकता और विनाश की ओर उन्मुख कर देती है। भारतीय श्रमिक औद्योगिक रोजगार को एक बुराई की दृष्टि से देखते हैं, जिससे वे यथासम्भव शीघ्र से शीघ्र बच निकलने का प्रयास करते हैं। अत: औद्योगिक केन्द्रों में श्रमिकों के जीवन तथा काम करने की दशाओं में सुधार किए बिना सन्तुष्ट, स्थायी और कुशल श्रम-शक्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। इसलिए कल्याण-कार्य का महत्त्व पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में अधिक है। कल्याण-कार्य से होने वाले लाभदायक प्रभावों के सम्बन्ध में श्रम अन्वेषण समिति ने तीन आवश्यक लाभों की ओर विचार किया है –