सामाजिक विज्ञानों की एन्साइक्लोपीडिया के अनुसार, ‘‘श्रमिक शिक्षा दूसरी तरह की प्रौढ़ शिक्षा के विपरीत, श्रमिक को अपने सामाजिक वर्ग के एक सदस्य के रूप में न कि एक व्यिक्क्त के रूप में अपनी समस्याओं को हल करने में सहायता देती है।’’ पूरी तरह से श्रमिक-शिक्षा श्रमिक की शैक्षिक आवश्यकताओं को विचार में लेती है, जैसे व्यक्तिगत विकास के लिए व्यक्ति के रूप में कुशलता एवं उन्नति के लिए श्रमिक के रूप में, एक सुखी एवं समन्वित सामाजिक जीवन के लिए एक नागरिक के रूप में तथा श्रमिक वर्ग के एक सदस्य के नाते उसके हितों की रक्षा करने के लिए किसी श्रमिक संघ के एक सदस्य के रूप में शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएं। दिसम्बर 1957 में जिनेवा में अन्तर्राश्ट्ीय श्रम संगठन ने श्रमिक शिक्षा के विशेषज्ञों की एक सभा की जिसने बदलती हुई सामाजिक, आर्थिक एवं तकनीकी प्रगति के सन्दर्भ में यह महसूस किया कि श्रमिक शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य, जहां कहीं भी और जिस दशा या स्थिति में श्रमिक रहते हों, उनका सुधार करना है।
बहुत से अल्प-विकसित देशों में यह महसूस किया जाता है कि एक वास्तविक श्रमिक आन्दोलन के लिए सजग, शिक्षित एवं आत्मनिर्भर श्रमिक संघवादियों का विकास करने तथा बाहरी नेताओं का चुनाव करने के बजाय श्रमिकों में से ही नेता तैयार करने की दृष्टि से श्रमिकों के लिए खास तरह के शिक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
श्रमिक की परिभाषा
भारत में श्रमिक शिक्षा के उद्देश्य
सामान्य रूप से श्रमिक-शिक्षा योजना के उद्देश्य एवं लक्ष्य इस प्रकार है। :
- बेहतर प्िर शक्षण पाये हुए एवं ज्यादा प्रबुद्ध सदस्यों द्वारा ज्यादा मजबूत व प्रभावशाली श्रमिक-संघों का विकास करना
- श्रमिक वर्ग में से ही नेताओं को तैयार करना तथा श्रमिक-संघों के संगठन और प्रशासन में जनतन्त्रीय तरीकों और परम्पराओं को बढ़ाना
- संगठित श्रमिकों को एक जनतन्त्रीय समाज में अपना ठीक स्थान पाने तथा अपने सामाजिक एवं आर्थिक कार्यो और जिम्मेदारियों को प्रभावपूर्ण ढंग से पूरा करने में समर्थ बनाना; तथा
- श्रमिकों को अपने आर्थिक वातावरण की समस्याओं तथा संघों के सदस्य एवं कर्मचारियों के रूप में नागरिकों के रूप में अपने विशेषाधिकारों एवं जिम्मेदारियों की ज्यादा जानकारी कराना।
इस प्रकार आज के प्रमुख उद्देश्यों में राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में श्रमिकों के सब वर्गो को विवेकपूर्ण सहयोग के लिए तैयार करना, उनके अपने बीच में विस्तृत समझ का विकास करना तथा श्रमिकों के बीच नेतृत्व को प्रोत्साहन देना, आदि महत्वपूर्ण है।
एक विकासशील देश में इन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों का बहुत महत्व होता है। कोई भी श्रमिक जो अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों दोनों को समझता है, उद्योग और राष्ट्र दोनों के लिए उपयोगी हो सकता है। इस प्रकार की शिक्षा से विकसित होने वाला दृष्टिकोण उत्पादकता बढ़ाने, अनुपस्थिति कम करने, मजबूत एवं स्वस्थ श्रमिक संघ तैयार करने तथा अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का क्षेत्र बढ़ाने में बहुत सहायक होगा।