श्रमिक शिक्षा क्या है भारत में श्रमिक शिक्षा के उद्देश्य ?

श्रमिक शिक्षा पर विचार देश में प्रचलित शिक्षा के सन्दर्भ में किया जाता है, किन्तु स्कूल व कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा और श्रमिक शिक्षा में एक आवश्यक अन्तर यह है कि जब पहले की तरह शिक्षा शैक्षिक सिद्धान्तों और व्यवहारों से जो हमें आज तक विरासत में मिले हैं, सम्बन्धित है, श्रमिक शिक्षा श्रमिकों की आवश्यकताओं के अनुसार होती है। इन आवश्यकताओं में स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले कुछ पाठ्यक्रम शामिल हो सकते हैं तथा सफेदपोष श्रमिकों को तो कुछ परीक्षाओं को पास करना भी आवश्यक होता है, किन्तु व्यापक रूप से सामान्य शिक्षा और श्रमिक शिक्षा में एक अन्तर रेखा खींची जा सकती है।

सामाजिक विज्ञानों की एन्साइक्लोपीडिया के अनुसार, ‘‘श्रमिक शिक्षा दूसरी तरह की प्रौढ़ शिक्षा के विपरीत, श्रमिक को अपने सामाजिक वर्ग के एक सदस्य के रूप में न कि एक व्यिक्क्त के रूप में अपनी समस्याओं को हल करने में सहायता देती है।’’ पूरी तरह से श्रमिक-शिक्षा श्रमिक की शैक्षिक आवश्यकताओं को विचार में लेती है, जैसे व्यक्तिगत विकास के लिए व्यक्ति के रूप में कुशलता एवं उन्नति के लिए श्रमिक के रूप में, एक सुखी एवं समन्वित सामाजिक जीवन के लिए एक नागरिक के रूप में तथा श्रमिक वर्ग के एक सदस्य के नाते उसके हितों की रक्षा करने के लिए किसी श्रमिक संघ के एक सदस्य के रूप में शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएं। दिसम्बर 1957 में जिनेवा में अन्तर्राश्ट्ीय श्रम संगठन ने श्रमिक शिक्षा के विशेषज्ञों की एक सभा की जिसने बदलती हुई सामाजिक, आर्थिक एवं तकनीकी प्रगति के सन्दर्भ में यह महसूस किया कि श्रमिक शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य, जहां कहीं भी और जिस दशा या स्थिति में श्रमिक रहते हों, उनका सुधार करना है।

बहुत से अल्प-विकसित देशों में यह महसूस किया जाता है कि एक वास्तविक श्रमिक आन्दोलन के लिए सजग, शिक्षित एवं आत्मनिर्भर श्रमिक संघवादियों का विकास करने तथा बाहरी नेताओं का चुनाव करने के बजाय श्रमिकों में से ही नेता तैयार करने की दृष्टि से श्रमिकों के लिए खास तरह के शिक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है। 

भारत में श्रमिक शिक्षा कार्यक्रम में दूसरी बातों या गुणों के साथ-साथ यह बातें भी होनी चाहिए : 
(अ) श्रमिक संघ के पदाधिकारियों, सदस्यों एवं प्रतिनिधियों को संगठन के उद्देश्य बनावट एवं ढंगों में, उनके कानूनी अधिकारों एवं जिम्मेदारियों से सम्बन्धित सामाजिक कानूनों एवं व्यवहार में, तथा उनके हितों पर असर डालने वाली बुनियादी एवं सामाजिक समस्याओं में प्रशिक्षित करना, 
(ब) सभाओं एवं दूसरी श्रमिक संघीय कार्यवाहियों में हिस्सा लेने की सुविधा के लिए श्रमिकों को लिखित एवं मौखिक विचार व्यक्त करने की शिक्षा देना और (स) लगातार अध्ययन के लिए उन्हें प्रशिक्षित करना।

श्रमिक की परिभाषा

भारतीय कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 2(ल) में श्रमिक की परिभाषा इस प्रकार दी गई है। “श्रमिक का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो प्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी एजेंसी के मार्फत नियुक्त किया जाता है। उसे कारखाने में निर्माण प्रक्रिया करने अथवा निर्माण प्रक्रिया के लिए प्रयुक्त भवन या यंत्र के किसी भाग को साफ करने के लिए अथवा निर्माण प्रक्रिया से संबंधित अन्य कोई भी कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाता है।”

भारत में श्रमिक शिक्षा के उद्देश्य 

सामान्य रूप से श्रमिक-शिक्षा योजना के उद्देश्य एवं लक्ष्य इस प्रकार है। : 

  1. बेहतर प्िर शक्षण पाये हुए एवं ज्यादा प्रबुद्ध सदस्यों द्वारा ज्यादा मजबूत व प्रभावशाली श्रमिक-संघों का विकास करना
  2. श्रमिक वर्ग में से ही नेताओं को तैयार करना तथा श्रमिक-संघों के संगठन और प्रशासन में जनतन्त्रीय तरीकों और परम्पराओं को बढ़ाना
  3. संगठित श्रमिकों को एक जनतन्त्रीय समाज में अपना ठीक स्थान पाने तथा अपने सामाजिक एवं आर्थिक कार्यो और जिम्मेदारियों को प्रभावपूर्ण ढंग से पूरा करने में समर्थ बनाना; तथा
  4. श्रमिकों को अपने आर्थिक वातावरण की समस्याओं तथा संघों के सदस्य एवं कर्मचारियों के रूप में नागरिकों के रूप में अपने विशेषाधिकारों एवं जिम्मेदारियों की ज्यादा जानकारी कराना। 

इस प्रकार आज के प्रमुख उद्देश्यों में राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में श्रमिकों के सब वर्गो को विवेकपूर्ण सहयोग के लिए तैयार करना, उनके अपने बीच में विस्तृत समझ का विकास करना तथा श्रमिकों के बीच नेतृत्व को प्रोत्साहन देना, आदि महत्वपूर्ण है।

एक विकासशील देश में इन उद्देश्यों एवं लक्ष्यों का बहुत महत्व होता है। कोई भी श्रमिक जो अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों दोनों को समझता है, उद्योग और राष्ट्र दोनों के लिए उपयोगी हो सकता है। इस प्रकार की शिक्षा से विकसित होने वाला दृष्टिकोण उत्पादकता बढ़ाने, अनुपस्थिति कम करने, मजबूत एवं स्वस्थ श्रमिक संघ तैयार करने तथा अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का क्षेत्र बढ़ाने में बहुत सहायक होगा। 

इस तरह शिक्षा की यह योजना एक आत्म निर्भर एवं उचित जानकारी रखने वाला श्रमिक वर्ग, जो अपने हित के विषय में सोचने में समर्थ हो तथा अपने आर्थिक तथा सामाजिक वातावरण के प्रति सजग हो, तैयार कर सकेगी।

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