व्यास का जीवन परिचय

भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि में मानव जीव का बड़ा महत्व है इसलिए प्रत्येक जीव का अपना इतिहास होता है इसी प्रकार पुराण के रचयिता व्यास का जीवन इतिहास अत्यन्त अद्भुत है। द्वापर-युग के राजा उपचीर वसु के वीर्य से मत्स्यगन्धा नाम की एक सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई, जो सत्यवती नाम से पुराणों में प्रसिद्ध है। उनका पालन-पोषण किसने किया, यह बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती। इतना ही कहा जा सकता है कि उसे किसी निषाद राजा ने पालन-पोषण किया था। युवा अवस्था प्राप्त होने पर उस कन्या का संगम ऋषि पराशर से हुआ, और फलतः विष्णु के वंश रूप व्यास अथवा कृष्णद्वैपायन का जन्म हुआ।

यमुना नदी में बदरीयक्त द्वीप में उत्पन्न होने के कारण उनका नाम वादनारायण और द्वैपायन तथा कृष्ण वर्ण होने के कारण उन्हें कृष्णद्वैपायन नाम से जाना जाता है। वेदों के विस्तारकर्त्ता होने के कारण उन्हें वेदव्यास के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।’ महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास की वंशावली का विवरण पुराणों में भीं उल्लेखित है। पुराण में लिखा मिलता है कि ब्रह्मा के मानस पुत्र वशिष्ठ ऋषि थे, वशिष्ठ के पुत्र शक्ति, शक्ति के पुत्र पराशर और पराशर के पुत्र विष्णु अंश रूप कृष्णद्वैपायन व्यास हुए, आगे चलकर व्यास से शुकदेव मुनि का जन्म हुआ बतलाया गया है।

पुराणों में कृष्णद्वैपायन व्यास के अतिरिक्त 27 अन्य व्यासों का भी उल्लेख मिलता है, सम्भवतः ये कृष्णद्वैपायन के पूर्व हो चुके थे। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ‘व्यास’ शब्द किसी व्यक्ति विशेष का नाम न होकर एक प्रतिष्ठित स्थान का द्योतक था।

कुछ आधुनिक विद्वान कृष्णद्वैपायन व्यास और वादरायण को भिन्न-भिन्न व्यक्ति मानते हैं, किन्तु उन्होंने अपने विचारों की पुष्टि में कोई ठोस प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया है। इस सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय अभिलेखः उपलब्ध न होने के कारण इनको भिन्न नही माना जा सकता अतः निष्कर्ष यही निकलता है कि ये वादनारायण नाम कृष्णद्वैपायन का ही था। उनके इस नाम का कारण उनका यमुना नदी बदरीयक्त द्वीप में उत्पन्न होना ही रहा होगा।

कृष्णद्वैपायन व्यास का जन्म कब हुआ था, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। कुछ विद्वानों ने यह मत व्यक्त किया है कि उनका जन्म त्रेता युग की समाप्ति और द्वापर युग के प्रारम्भ में हुआ था।

श्रीमद्भागवत, देवीभागवत तथा अन्य पुराणों में भी व्यास को विष्णु का अंश स्वीकार किया गया है। 

कृष्णद्वैपायन व्यास के जन्म समय, के विषय में जिस प्रकार विद्वान मतैक्य नही हैं, उसी प्रकार से ‘उनके जन्म स्थान के विषय में भी एक तरह की बात देखने को मिलती है। भागवत पुराण में उनका जन्म स्थान वदरिकाश्रम को बताया गया है। परन्तु पुराणों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि व्यास का जन्म स्थान यमुना नदी के तट पर किसी वदरीयुक्त द्वीप में हुआ था। महाभारत में यह संकेत मिलता है कि व्यास का जन्म यमुना नदी के तट पर हुआ था, वो चतुर्थावस्था में वे साधना के लिए वदरिकाश्रम चले गये थे, और वहीं पर उनको ज्ञान प्राप्त हुआ था।

व्यास की शिक्षा दीक्षा कहां हुई, इस सम्बन्ध में विद्वान अब तक कोई निर्णायात्मक मत नहीं व्यक्त कर सके हैं। पुराणों में इस सम्बन्ध में जो भी उल्लेख प्राप्त अथवा उपलब्ध है, उन्हीं के आधार पर उनकी शिक्षा दीक्षा के सम्बन्ध में कुछ कहना सम्भव है। वंश ब्राह्मण और कुछ पुराणों में उनके गुरु का नाम जातुकर्ण्य मिलता है।

श्रीमद्भावगत आदि पुराणों में व्यास को विष्णु का अंश और जन्मसिद्ध ज्ञानी बताया गया है। भागवत ने व्यास का आश्रम सरस्वती नदी के किनारे बताया है। सरस्वती नदी का अस्तित्व कई स्थानों पर मिलता है सम्भवतः वदरिकाश्रम के पास भी कोई सरस्वती नदी रही होगी। वर्तमान अलकनन्दा नदी का ही नाम सरस्वती नदी रहा होगा। परन्तु सरस्वती नदी का अस्तित्व वर्तमान में कुरुक्षेत्र के पास बताया जाता है, यह नदी पश्चिमोत्तर में कुरुक्षेत्र के समीप रही होगी। इससे प्रगट होता है कि व्यास का आश्रम कुरुक्षेत्र के समीप रहा होगा। सम्भवतः यहां पर उनके गुरू जातुकर्ण्य का आश्रम रहा हो और व्यास भी अपने गुरु के साथ तथा उनके मरणोपरान्त भी कुछ समय तक यहाँ रहे हों। व्यास सम्पूर्ण भारत में भ्रमण करते थे। इस भ्रमण काल में वे जहाँ-जहाँ ठहरते थे, वहाँ वहाँ उनका आश्रम मान लिया गया। इसलिए पुराणों में ‘व्यास के आश्रम के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न मत है।

एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि महाभारत के अनुसार व्यास के हस्तिनापुर और कुरूक्षेत्र के युद्ध स्थल में अनेक बार जाने का उल्लेख है। इससे प्रतीत होता है कि व्यास के जीवन का अधिकांश भाग इसी क्षेत्र में बीता होगा और इसी स्थान पर इनकी शिक्षा दीक्षा हुई होगी । कृष्णद्वैपायन व्यास ने वेदों को चार भागों में विभक्त कर उनकी रक्षा का भार अपने शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु को सौपा था। पुराणों की रक्षा का दायित्व उन्होंने अपने शिष्य रोमहषर्ण या लोमहषर्ण को दिया था। लोम हषर्ण ने अपने छः शिष्यों न्यायरूणि, काश्यप, सर्वाणि, अकृत्त्रण, वैशम्पायन और हारीत को पढ़ाया। !

Leave a Comment