समाज कल्याण प्रशासन के सिद्धांत व प्रकृति | principal or nature social welfare administration

समाज कल्याण प्रशासन समाज कार्य की एक प्रणाली के रूप में कार्यकताओं को प्रभावकारी सेवाओं हेतु ज्ञान एवं कौशल प्रदान करता है। यद्यपि समाज कल्याण प्रशासन , समाज कार्य की द्वितीयक प्रणाली मानी जाती है परन्तु प्रथम तीनों प्राथमिक प्रणालियों, वैयक्तिक सेवा कार्य, सामूहिक सेवा कार्य, तथा सामुदायिक संगठन की सेवाओं में सेवाथ्र्ाी को सेवा प्रदान …

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समाज का अर्थ, परिभाषा, वर्गीकरण

‘समाज’ शब्द की उत्पत्ति लॅटिन भाषा के ‘Societies’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ समाज, संगति, मंडल, संस्था है । ” समाज एक स्थान पर रहने वाला अथवा एक ही प्रकार के कार्य करने वाले लोगों का दल, किसी विशिष्ट उद्देश्य से स्थापित समूह”” आदि भिन्न अर्थ प्रचलित हैं। अतः इन अर्थो को समाजशास्त्र ने वैज्ञानिक …

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बच्चों में कुपोषण के लक्षण, कारण व रोकथाम के उपाय

कुपोषण पोषण वह स्थिति है जिसमें भोज्य पदार्थ के गुण और परिणाम में अपर्याप्त होती है। आवश्यकता से अधिक उपयोग द्वारा हानिकारक प्रभाव शरीर में उत्पन्न होने लगता है तथा बाहृा रूप से भी उसका कुप्रभाव प्रदर्शित हो जाता है। जब व्यक्ति का शारीरिक मानसिक विकास असामान्य हो तथा वह अस्वस्थ महसूस करें या न भी …

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मानव संसाधन प्रबंधन के कार्य और उद्देश्य

मानव संसाधन प्रबंधन की अवधारणा प्रबंधन के क्षेत्र की एक नूतन अवधारणा है और यह आज सर्वाधिक प्रचलित अवधारणा के रूप में देखी जाती है। आरम्भ में यह अवधारणा रोजगार प्रबंधन, कार्मिक प्रबंधन, औद्योगिक सम्बन्ध, श्रम कल्याण प्रबंधन, श्रम अधिकारी, श्रम प्रबंधक के रूप में थी और 1960 और उसके बाद में मुख्य शब्द कार्मिक प्रबंधक …

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साम्प्रदायिकता का अर्थ, परिभाषा, सम्प्रदाय एवं साम्प्रदायिकता में अंतर

साम्प्रदायिक शब्द की उत्पत्ति समूह अथवा समुदाय से हुई है, जिसका अर्थ होता है व्यक्तियों का ऐसा समूह जो अपने समुदाय को विशेषरूप से महत्व देता है या अपने धर्म या नस्लीय समूह को शेष समाज से अलग हटकर पहचान देता है। एक सम्प्रदाय के दूसरे सम्प्रदाय के विरुद्ध संयुक्त विरोध को साम्प्रदायिकता कहते हैं।  साम्प्रदायिकता …

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ग्राम पंचायत किसे कहते हैं तथा उसके क्या क्या कार्य हैं?

ग्राम सभा एक ऐसी अवधारणा है जो सामान्य जन की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करती है और जाति, धर्म, लिंग, वर्ग, राजनीतिक प्रतिबद्धता पर विचार किए बिना ग्रामीण समुदाय को सन्दर्भित करती है। यह आमजन की सर्वोच्चता को स्थापित करती है। ग्राम सभा स्थानीय स्तर पर गांव के प्रत्येक मतदाता को निर्णय-निर्माण, योजना निर्माण, क्रियान्वयन …

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अनुसूचित जाति की परिभाषा, जाति के उत्पत्ति के कारक

हिन्दू जाति व्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है। यह वर्ण व्यवस्था का परिवर्तित रूप है। वर्ण चार थे और इनका आधार श्रम विभाजन था। प्रथम तीन वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य द्विज कहलाते थे तथा चौथा वर्ण शूद्र था। शूद्रों का कार्य द्विजों की सेवा करना था। प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है …

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जजमानी व्यवस्था क्या है इसके पतन के कारण

‘जजमानी’ वैदिक शब्द है जिसका इस्तेमाल उस संरक्षक के लिए होता है जो समुदाय के लिए कोई यज्ञ संपन्न कराने के निमित्त से किसी ब्राह्मण को नियुक्त करता है। अपने मूल अर्थ में जजमानी आर्थिक संबंध का मतलब सेवाओं के बदले उपहारों का विनिमय था या भविष्य में हो सकता था। यह अर्थ आज भी नहीं …

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प्रजाति क्या है इसका वर्गीकरण

प्रजाति शब्द को अनेक अर्थो में प्रयुक्त किया जाता है। यूनानियों ने संपूर्ण मानव जाति को ग्रीक अथवा यवनों में वर्गीकृत किया था, परन्तु इनमें से किसी भी समूह को प्रजाति नहीं कहा जा सकता। ‘प्रजाति’ शब्द को कभी-कभी राष्टींयता (nationality) का समानार्थक समझकर प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरणतया, फ्रेंच, चीनी एवं जर्मनी को प्रजाति कहा …

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जाति व्यवस्था के गुण और जाति व्यवस्था के दोषों की विवेचना

समय-समय पर भारतीय जाति-व्यवस्था की विभिन्न लेखकों द्वारा आलोचना की गई है। समाज में जितनी बुराइयां हैं, उन सबके लिए जाति-व्यवस्था को दोषी ठहराया गया है। परन्तु एक मात्र यही तथ्य कि इतने आक्षेपों के बावजूद भी यह पहले की भांति अभी तक चल रही है, इस बात का प्रमाण है कि यह व्यवस्था इतनी बुरी …

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