अनुक्रम
ध्वनि संरचना
दो या दो से अधिक वस्तुओं के आपस में टकराने से वायु में कम्पन होता है। जब यह कम्पन कानों तक पहुँचता है, तो इसे ध्वनि कहते हैं। ध्वनि भाषा की लघुतम, स्वतंत्र और महत्त्वपूर्ण इकाई है। यदि सभी भाषा की ध्वनियों में सैद्धान्तिक रूप से कुछ समानताएँ होती हैं तो प्रत्येक भाषा की ध्वनियों में कुछ अपनी विशेषताएँ होती हैं। भाषा-ध्वनियों का अध्ययन करते हैं, तो दो मुख्य वर्ग सामने आते हैं – स्वर और व्यंजन।
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। अंग्रेजी में स्वरों की संख्या पाँच है – a, e, i, o, u.।
2. व्यंजन : जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वर ध्वनियों का सहयोग अनिवार्य हो और जिनके उच्चारण में फेफड़े से आनेवाली वायु मुख के किसी भाग में अल्पाधिक रूप से अवरुद्ध होने के कारण घर्षण के साथ बाहर आए, उन्हें व्यंजन ध्वनि कहते हैं। हिन्दी में व्यंजन ध्वनियों को स्वर के बाद स्थान दिया गया है जबकि अंग्रेजी में स्वर ध्वनि के साथ मिश्रित रूप में। हिन्दी में कुछ व्यंजन ध्वनियों का प्रयोग स्वर के रूप में भी होता है। इन्हें अर्ध स्वर कहते हैं : यथा – य्, व्। हिन्दी में महाप्राण ध्वनियों के लिए स्वतन्त्र चिन्हों की व्यवस्था है; यथा – प्रत्येक वर्ग की दूसरी और चौथी ध्वनियाँ –
- कवर्ग – ख, घ
- चवर्ग – छ, झ
- टवर्ग – ठ, द
- तवर्ग – थ, ध
- पवर्ग – फ, भ
हिन्दी ध्वनियों में बलाघात के विषय में यह ध्यातव्य है कि यह प्रभाव सदा स्वर पर ही होता है। जब एक वाक्य में किसी शब्द की सभी ध्वनियाँ अन्य शब्दों की ध्वनियों की अपेक्षा अधिक सशक्त रूप से प्रयुक्त होती हैं, तो उसे शब्द बलाघात कहते हैं; यथा –
- मुझे एक रंगवाली कलम चाहिए।
- मुझे एक रंगवाली कलम चाहिए।
यहाँ ‘क’ वाक्य में ‘एक’ शब्द की ध्वनियों पर बलाघात है, तो ‘ख’ वाक्य में ‘रंगवाली’ शब्द की ध्वनियों पर। इस प्रकार दोनों वाक्यों के अर्थ में भिन्नता आ गई है।
- आप + ना (अ > अ) = अपना
- आधा + खिला (आ > अ) = अधखिला
- भीख + आरी (ई > इ) = भिखारी
- मुख्य + अर्थ (अ + अ = आ) = मुख्यार्थ
- कवि + इन्द्र (इ + इ = ई) = कवीन्द्र
- डाक + घर (क > घ) = डाकघर
- धूप + बत्ती (प > ब) = धूपबत्ती
- घोड़ा + दौड़ (आ लोप) = घुड़दौड़
- पानी + घाट (ई और आ लोप) = पनघट
- मूसल + धार (आ आगम) = मूसलाधार
- दीन + नाथ (आ आगम) = दीनानाथ
- विश्व + मित्र (आ आगम) = विश्वामित्र
शब्द-संरचना
शब्द-संरचना का अध्ययन उपसर्ग, प्रत्यय, समास तथा पुनरुक्ति आदि रूपों से करते हैं।
उपसर्ग –
- अ – धर्म झ अधर्म, दुर – दिन झ दुर्दिन
- स – जीव झ सजीव, सु – गंध झ सुगंध
- बे – बेकाम (फा. + हि.)
- बे – बेसिर (फा. + हि.)।
- कार = नाटककार, साहित्यकार, स्वर्णकार
- आनी = सेठानी, जेठानी, देवरानी
- ता = सफलता, असफलता, सुन्दरता
- ई = डाक्टरी [ डॉक्टर (अंग्रेजी) + ई (हिन्दी प्रत्यय)]
- दारी = वफादारी [वफा (अ.) + दार (फा.) ]
- ची = संदूकची [संदूक (अ.) + ची (तु.) ]
- दार= जड़दार [जड़ (हिन्दी) + दार (फा.) ]
समास –
- माता और पिता = माता-पिता,
- राजा और रानी = राजा-रानी।
- जल और वायु = जलवायु
पद संरचना
जब शब्द वाक्य निर्माणार्थ निर्धारित व्याकरणिक क्षमता प्राप्त कर लेता है, तो उसे पद की संज्ञा दी जाती है। पद संरचना में शब्दों के विभिन्न व्याकरणिक रूपों का अध्ययन किया जाता है। रूप संरचना, संज्ञा, सर्वमान, क्रिया आदि विभिन्न धरातलों पर करते हैं। संज्ञा के रूप संरचना में मुख्यत: वचन पर चिन्तन करते हैं; जैसे-
- लड़का > लड़के, लड़कों
- गुड़िया > गुड़ियाँ, गुड़ियो, गुड़ियों।
- तुम > तुमने, तुमसे, तुममें, तुमको आदि।
- आप > आपने, आपसे, आपमें, आपको आदि।
- क्रिया पद की संरचना में भी प्रत्यय की विशेष भूमिका होती है; यथा –
- चलना > चलें, चलो, चलूँगा, चलिएगा, चलोगी आदि।
- दौड़ना > दौड़े, दौड़ो, दौडूँगा, दौड़िएगा, दौड़ोगी आदि।
- आना > आ जाओ
- मारना > मार डाला, मार दिया
- खाना > खा लिया, खा डाला
- कांपना > काँप उठा, काँप गया
वाक्य संरचना
भाषा की स्वतंत्र, पूर्ण सार्थक सहज इकाई को वाक्य कहते हैं। वाक्य में प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से कम से कम एक क्रिया का होना अनिवार्य है। वाक्य संरचना में मुख्यतः उद्देश्य तथा विधेय दो भाग होते हैं; जैसे- “उदित जा रहा है” में “उदित” उद्देश्य और “जा रहा है” विधेय है। वाक्य में उद्देश्य छिपा भी हो सकता है; जैसे-
- जाओ > (तुम) जाओ।
- खाइए > (आप) खाइए।
- वह योग्य है > वह अयोग्य नहीं।
- तुम यहाँ से जाओ > तुम यहाँ न रुको।
प्रोक्ति-संरचना
भाषा की महत्तम इकाई प्रोक्ति है। ध्वनि यदि भाषा की लघुत्तम इकाई है, तो प्रोक्ति महत्तम और पूर्ण अभिव्यक्ति करनेवाली इकाई है। वाक्य के द्वारा प्रोक्ति के समकक्ष अभिव्यक्ति सम्भव नहीं है; जैसे-
- रमेश अच्छा लड़का है।
- रमेश एम.ए. का छात्र है।
- रमेश नियमित परिश्रम करता है।
- रमेश को परीक्षा में प्रथम स्थान मिला
यहाँ रमेश के विषय में चार वाक्य दिए गए हैं। आपसी सम्बन्धों के अभाव में यहाँ पूर्ण, स्पष्ट और सहज अभिव्यक्ति नहीं है। प्रोक्ति का रूप आते ही भावाभिव्यक्ति स्पष्ट हो जाती है – “रमेश अच्छा लड़का है। नियमित परिश्रम करने के कारण उसे एम.ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान मिला।” यह एक लघु प्रोक्ति है। प्रोक्ति का स्वरूप तो उपन्यास या महाकाव्य के प्रथम शब्द से अन्तिम शब्द तक विस्तृत हा े सकता है। वाक्यों का उच्चय (उव् + चय) एक-दूसरे के ऊपर सदा रूप महाकाव्य है। इस प्रकार विभिन्न वाक्यों के एक-दूसरे के साथ समाहित होने के स्वरूप को वाक्य कहते हैं।
प्रोक्ति की संरचना, आन्तरिक अर्थ-संदर्भ और अभिव्यक्ति को ध्यान में रखकर इसे इन तत्त्व-रूपों में देख सकते हैं –
- एकाधिकवाक्य।
- आन्तरिक सुसंबद्धता या संबद्धता।
- तत्त्व-सरणि: वक्ता, श्रोता, वक्तव्य, संदर्भ, शैली प्रकार।
- संप्रेषणीयता।
- संरचना और संप्रेषणीयता में एक इकाई स्वरूप।
अर्थ -संरचना
ध्वनि, शब्द, पद और वाक्य आदि भाषा की शारीरिक इकाइयाँ हैं, तो अर्थ भाषा की आत्मा है। अर्थ को मुख्यत: सात वर्गों में विभक्त कर सकते हैं –
- मुख्यार्थ – पानी, गाय, विद्यालय आदि।
- लक्ष्यार्थ – वह तो गधा है।
- व्यंजनार्थ – यहाँ परम्परा से अर्थ जोड़ते हैं, जैसे- गंगा जल (पवित्रता का प्रतीक)
- सामाजिक – “VYou”B शब्द के लिए हिन्दी में विभिन्न संदर्भों के लिए तू, तुम और आपका प्रयोग करते हैं।
- तू – (छोटे के लिए, गुस्से में) तू जा, तू खा।
- तुम – (बराबर के लिए) तुम चलो, तुम लिखो।
- आप – (आदर सूचक, बड़ों के लिए) आप चलिए, आप लिखिए।
- बलात्मक – प्रमोद रोटी खाएगा, रोटी खाएगा प्रमोद।
- शैलीय अर्थ – (हिन्दुस्तानी, उर्दू, हिन्दी शैली) आप बैठिए, आप तशरीफ रखिए, आप विराजिए।
पर्यायता : कुछ शब्दों को पर्यायी या समानाथ्र्ाी शब्द कहते हैं। वास्तव में पर्यायी शब्दों के दो वर्ग हैं –
- पूर्ण पर्यायी : Dog > कुत्ता, Man > आदमी।
- आंंशिक पर्यायी : भीगा-गीला, छोटा-नाटा, सुन्दर-अच्छा, बढ़िया-स्वादिष्ट।
विलोम : विलोम अर्थ अभिव्यक्ति हेतु मूल यौगिक रूपों में शब्दों का निर्माण करता है।
मूल: जड़-चेतन, सुख-दु:ख, दिन-रात आदि।