अनुक्रम
रूपिम की परिभाषा
विभिन्न भाषा वैज्ञानिकों ने रूपिम को भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ द्रष्टव्य हैं-
रूपिम का स्वरूप
रूपिम के स्वरूप को उसकी अर्थ-भेदक संरचना के आधार पर निर्धारित कर सकते हैं। प्रत्येक भाषा में रूपिम व्यवस्था उसकी अर्थ-प्रवति के आधार पर होती है। इसलिए भिन्न-भिन्न भाषाओं के रूपिमों में भिन्नता होना स्वभाविक है। मानक हिन्दी में प्रयुक्त ‘पढ़वाऊँगा’ शब्द या पद पर विचार किया जाए तो इसमें निम्नलिखित लघुतम अर्थवान इकाइयाँ दृष्टिगोचर होती हैं –
वा (प्रेरणार्थक रूपिम)
ऊँ (उत्तम पुरुष एकवचन सूचक रूपिम)
ग (भविष्यत् कालसूचक रूपिम)
आ (पुल्लिंग सूचक रूपिम)
इस प्रकार ‘पढ़वाऊँगा’ शब्द में पाँच रूपिमों का अस्तित्व है, इन्हीं रूपिमों के माध्यम से अन्य शब्दों की रचना होती है; यथा-
वा > चलवाता, मरवाना, लिखवाएगा आदि।
ऊँ > मिलवाऊँ, पढ़ाऊँ, आऊँ आदि।
ग > जाएगी, हँसेगा, दौड़ाएगा आदि।
आ > पढ़ता, पढ़ा, पढ़ेगा आदि।
इन अर्थपूर्ण खण्डों के विवेचन से यह तथ्य सुस्पष्ट होता है। रूपिम-विवेचन के लघुतम खण्डों में अर्थ सुरक्षित होना अनिवार्य है और खण्डों में अन्य शब्द-रचना की शक्ति होती है। ‘फूलों की सुन्दरता किसका मन हर नहीं लेती’’ वाक्य का रूपिम विश्लेषण होगा-
(3) /की/कारण प्रत्यय (4) /सुन्दर/
(5) /ता/भाववाचक प्रत्यय (6) /किस/
(7) /का/कारक प्रत्यय (8) /मन/
(9) /हर/ (10) /नहीं/
(11) /लेत्/ (12) / ी (ई) /स्त्री प्रत्यय
उक्त वाक्य में रूपिमों की संख्या बारह है।
रूपिम की संरचना एक अथवा एक से अधिक स्वनिम के आधार पर होती है; यथा-’’तू आ’’ वाक्य में ‘‘तू’’ और ‘‘आ’’ दो रूपिम हैं। जिनमें ‘‘तू’’ की संरचना ‘‘तू’’ और ‘‘ऊ’’ स्वनिम से हुई है, तो ‘‘आ’’ एक स्वनिम आधारित रूपिम है। रूपिम में विभिन्न स्वनिमों का प्रयोग पूर्ण व्यवस्थित रूप में होता है; यथा – ‘‘नहर’’ रूपिम में ‘‘न’’, ‘‘ह’’ और ‘‘र’’ तीनों स्वनिमों की क्रमिक व्यवस्था है। इसके विपरीत कोई भी व्यवस्था अनुपयोगी सिद्ध होगी। ‘‘हरन’’, ‘‘नहर’’, ‘‘रहन’’ आदि संरचनाओं में वह क्रमिक व्यवस्था नहीं है। रूपिम भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई है। अत: इसके अर्थयुक्त खण्ड सम्भव नहीं है; यथा-’’नहर’’ रूपिम का न + हर अथवा न + ह + र में कोई खण्ड सम्भव नहीं है। एक रूपिम में एक अथवा एक से अधिक अक्षर हो सकते हैं; यथा – एक अक्षरीय रूपिम-मन्, राम, आ आदि। एकाधिक अक्षरीय रूपिम-मकान्, ताला, काला आदि। इस प्रकार रूपिम भाषा के अर्थ – संदर्भ की लघुतम इकाई है। इसके खण्ड कर देने पर अर्थ अभिव्यक्ति की सम्भावना समाप्त हो जाती है।
रूपिम का वर्गीकरण
भाषा अथवा वाक्य में प्रयुक्त रूपिमों के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए उनको कई आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं –
भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई रूपिम के विभिन्न रूपों में मुक्त रूपिम का सर्वाधिक महत्त्व है क्योंकि अन्य रूपिम भी इसी पर आधारित होकर प्रयुक्त होते हैं।
बहुरूपिमिक शब्दों के सभी रूपिम मुक्त वर्ग के हो सकते हैं; यथा-डाकघर, /डाक/घर, जलपान /जल/पान हिन्दी में मुक्त रूपिम का प्रयोग स्वतंत्र शिरोरेखा में भी होता है; यथा-राजीव घर जा रहा है। उस ने कहा है। भाषा के अर्थ तत्त्व प्राय: मुक्त रूपिम होते हैं।
ए – लड़का लड़के
घोड़ा घोड़े
ओं- बालक बालकों
वृक्ष वृक्षों
इयाँ लड़की लड़कियाँ
धोती धोतियाँ
इर् – काला काली
लड़का लड़की
अ ा – बाल बाला
अनुज अनुजा
इन- धोबी धोबिन
नाई नाइन
पा – बूढ़ा बुढ़ापा
पन- बाल बालपन
ता – मनुष्य मनुष्यता
ऊपर संकेत किए गए, ओं, इयाँ, ई, आ, इन, ने, को, से, पा, पन, ता आदि विभिन्न कारक प्रत्यय आधारित बद्ध रूपिमों का एकाकी प्रयोग सम्भव नहीं है। ऐसे रूपिम सदा ही किसी अन्य रूपिम के साथ प्रयुक्त होते हैं।
मनु > मनु ने
का – उन > उन को/उनको
नीलम > नीलम को
राजीव > राजीव से
मैं > मुझसे/मुझसे
यहाँ यह द्रष्टव्य है कि सर्वनाम रूपिमों के साथ ऐसे रूपिम मुक्त और बद्ध दोनों ही रूपों में प्रयुक्त होते हैं, यथा – उसने-उसे ने, उनको-उन को आदि।
- मूल रूपिम – रूपिमों की रचना मात्रा अर्थतत्त्व के माध्यम से होती है, उसे मूल रूपिम कहते हैं। ऐसे रूपिमों में सम्बन्ध तत्त्व की कोई भूमिका नहीं होती है; यथा-गाय, दिन, घड़ी आदि। ऐसे रूपिम के साथ उपसर्ग या प्रत्यय का भी योग नहीं होता है।
- संयुक्त रूपिम – जब दो या दो से अधिक रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों और उनमें एक अर्थतत्त्व आधारित हो शेष रूपिम उपसर्ग या प्रत्यय आधारित हों, तो उसे संयुक्त रूपिम कहते हैं। ऐसे रूपिमों की संरचना व्याकरणिक कोटियाँ पर आधारित होती है; यथा-लड़कियाँ और गाएँगी। इन दोनों की संरचना को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं; लड़कियाँ > लड़की (मूल रूपिम) + इयाँ (बहुवचन सूचन प्रत्यय आधारित रूपिम) गाएँगी > गा (मूल, अर्थतत्त्व आधारित रूपिम) + एँ (बहुवचन सूचन प्रत्यय आधारित रूपिम) + (स्त्रीलिंग प्रत्यय आधारित रूपिम)
- मिश्रित रूपम – जब दो या दो से अधिक मूल अथवा अर्थ तत्त्व आधारित रूपिम एक साथ प्रयुक्त हों, तो मिश्रित रूपिम की संज्ञा दी जाती है; यथा – मालगाड़ी, वायुसेनाध्यक्ष आदि। इन रूपिमों का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है – मालगाड़ी > माल (अर्थतत्त्व आधारित रूपिम) + गाड़ी (अर्थतत्त्व आधारित रूपिम) वायुसेनाध्यक्ष > वायु (अर्थतत्त्व आधारित रूपिम) + सेना (अर्थतत्त्व आधारित रूपिम) + अध्यक्ष (अर्थतत्त्व आधारित रूपिम)
6. अर्थ एवं कार्य व्यापार-आधार – जब रूपिम में अर्थतत्त्व अथवा सम्बन्धपरक के माध्यम से भावाभिव्यक्ति सम्भव हो, तो उक्त आधार पर रूपिमों को मुख्य दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं –
- अर्थदश्री रूपिम – जब वाक्य में रूपिम मात्रा अर्थतत्त्व पर आधारित होता है, तो उसे अर्थदश्री रूपिम कहते हैं। भाषा-भवन की संरचना में ऐसे रूपिम का सर्वाधिक महत्त्व है। ऐसे रूपिमों की विविधता और उनकी संख्या भावाभिव्यक्ति में विशेष भूमिका निभाती है। संख्या रूपिम – सीता, मनु, कलम। विशेषण रूपिम – मधुर, अच्छा, काला। क्रिया रूपिम – जाना, हँसना, चलना।
- सम्बन्धदश्री रूपिम – जब वाक्य में रूपिम मात्रा सम्बन्ध-तत्त्व पर आधारित होता है, तो उसे सम्बन्धदश्री रूपिम कहते हैं। इन रूपिमों को भाषा का प्रकार्यात्मक पक्ष कह सकते हैं। सम्बन्धदश्री रूपिमों से भाषा में व्याकरणिक कोटियों का बोध होता है। इसके अन्तर्गत वचन, लिंग, काल, पुरुष और कारण आदि से सम्बोधित रूपिम आते हैं। वचन आधारित रूपिम : ए – लड़के, घोड़े, मोटे। ओं – लड़कों, घोड़ों, मोटों। इयाँ – लड़कियाँ, धोतियाँ, रोटियाँ। लिंग आधारित रूपिम : आ – बाला, अनुजा, आत्मजा। ई – लड़की, भोली, काली। कारक आधारित रूपिम : ने – गुलशन ने, उसने, आपने। को – भोला का, मुझको, किसको। का – गाँधी का, आपका, जिसका। काल आधारित रूपिम : गा – जाएगा, मारेगा, गिरेगा। या – गया, खाया, पाया।
7. खण्ड आधार – कुछ रूपिमों के खण्ड किए जा सकते हैं तो कुछ अखण्ड्य होते हैं। इस आधार पर रूपिम को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं –
- खण्ड्य्य रूपिम – जिन रूपिमों के दो या दो से अधिक खण्ड किये जा सकते हैं, उन्हें खण्ड्य रूपिम कहते हैं; यथा – डाकघरझ /डाक/घर/, जाएगी/जा/,/ए/,गी/ आदि।
- अखण्ड्य्य्य रूपिम – जिन रूपिमों के सार्थक खण्ड न किए जा सकें; यथा-बलाघात (stress), सुर (tone), सुरलहरी (intonation)।