अनुक्रम
वायुमंडलीय दाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने वाले बल के रूप में मापा जाता है। वायुदाब के मापने की इकाई को मिलीबार कहते हैं। इसका छोटा रूप ‘mb’ या ‘मिबा’ है। एक मिलीबार प्रति वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र पर पड़ने वाले लगभग एक ग्राम बल के बराबर होता है। 1000 मिलीबार वायुदाब का भार समुद्र तल पर 1.053 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। यह भार 76 सेंटीमीटर ऊँचे पारे के स्तम्भ के बराबर होता है।
- एक निश्चित स्थान एवं निश्चित समय पर वायु के एक स्तम्भ का भार वायुदाब कहलाता है।
- वायुमंडलीय दाब को वायुदाब मापी यंत्रा या बेरोमीटर में मापते हैं।
- वायुमंडलीय दाब की माप की इकाई मिलीबार (किलोपास्कल) है।
- एक मिलीबार प्रति वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र पर पड़ने वाले लगभग एक ग्राम बल के बराबर होता है।
वायुमंडलीय दाब का वितरण
वायुमंडलीय दाब का धरातल पर वितरण सब जगह समान नहीं है। इसमें क्षैतिज एवं ऊध्र्वाधर दोनों प्रकार के वितरण में भिन्नता मिलती है।
1. वायुदाब का ऊध्र्वाधर वितरण
आप जानते हैं कि वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है। इसे अधिकाधिक दबाकर घनीभूत किया जा सकता है। दबी हुई या घनीभूत वायु का घनत्व अधिक होता है। वायु का घनत्व जितना अधिक होगा उसका दाब भी उतना अधिक होगा। इसके विपरीत कम घनत्व वाली वायु का दाब भी कम होगा। वायु के स्तम्भ में ऊपर की वायु नीचे वाली वायु पर दाब डालती है। इस कारण नीचे की वायु ऊपर की वायु की अपेक्षा अधिक घनी अर्थात अधिक घनत्व वाली हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप वायुमंडल की निचली परतें अधिक घनत्व वाली हो जाती है और इसलिये वे अधिक दाब डालती हैं। इसके विपरीत वायुमंडल की ऊपरी परतें कम दबी हुई हैं। अत: उनका घनत्व कम होता है और वे कम दाब डालती हैं। वायुमंडलीय दाब का स्तम्भीय वितरण वायुदाब का ऊध्र्वाधर वितरण कहलाता है।
2. वायुदाब का क्षैतिज वितरण
वायुमंडलीय दाब का सारे संसार में वितरण क्षैतिज वितरण कहलाता है। इसे मानचित्र में समदाब रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। वे रेखा जो सभी समान वायुदाब वाले स्थानों को एक साथ जोड़ती है, समदाब रेखा कहलाती है। समदाब रेखाएं उच्चावच मानचित्र पर समोच्च रेखाओं जैसी होती हैं। समदाब रेखाओं के बीच की दूरी वायुदाब में आने वाले परिवर्तन की दर तथा उसकी दिशा को बताती है। वायुदाब की दर में इस परिवर्तन को वायुदाब की प्रवणता कहते हैं। वायुदाब की प्रवणता दो स्थानों के वायुदाब में भिन्नता तथा उनके बीच क्षैतिज दूरी का अनुपात होता है। समदाब रेखायें जब पास-पास होती हैं तो वे वायुदाब की तीव्र प्रवणता को बताती हैं और जब वे दूर-दूर होती है तो वायुदाब की मंद प्रवणता का बोध कराती हैं।
वायुदाब का क्षैतिज वितरण सारे संसार में समान नहीं है। एक ऋतु से दूसरी ऋतु में एक ही स्थान पर भी वायुदाब बदल जाता है। इसमें बदलाव एक स्थान से दूसरे स्थान पर एक छोटी दूरी के बाद भी देखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक हैं-
- वायु का तापमान,
- पृथ्वी का घूर्णन और
- वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा।
(i) वायु का तापमान : पृथ्वी पर तापमान का वितरण सब जगह एक समान नहीं है; क्योंकि सूर्यातप हर स्थान पर समान रूप से नहीं मिलता, साथ ही स्थल भाग और जल भाग के गर्म और ठंडा होने की दर अलग-अलग है। सामान्यतया तापमान और वायुदाब में उल्टा संबंध है। वायु का तापमान जितना अधिक होगा उतना ही उसका वायुदाब कम होगा। हर गैस का यह नियम है कि जब उसे गर्म किया जाता है तो उसका घनत्व कम हो जाता है और वह फैलती है। इस प्रक्रिया में वायु ऊपर उठती है और धरातल पर उसका दाब कम हो जाता है। विषुवतीय प्रदेशों में निम्नवायुदाब पट्टी पायी जाती है जिसे विषुवतीय निम्नवायुदाब या डोलड्रम कहा जाता है। यही कारण है कि विषुवतीय प्रदेशों में वायुदाब निम्न होता है और ध्रुवीय प्रदेशों में वायुदाब उच्च होता है।
(ii) पृथ्वी का घूर्णन- पृथ्वी का घूर्णन से केन्द्र विमुख बल पैदा होता है इसके परिणाम स्वरूप वायु अपने मूल स्थान से हट जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि अधोध्रुवी प्रदेशों का निम्न वायुदाब और उपोष्ण प्रदेशों का उच्च वायुदाब का निर्माण मुख्यतया पृथ्वी के घूर्णन के कारण हुआ है। वायु के अभिसरण क्षेत्र (जहां विभिन्न दिशाओं से आकर वायु मिलती है) में निम्न वायुदाब पाया जाता है और वायु के अपसरण क्षेत्र (जहां से वायु विभिन्न दशाओं को जाती है) में उच्च वायुदाब पाया जाता है।
(iii) वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा : वायु जिसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है उसका दाब कम होता है और जिस वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती है उसका दाब अधिक होता है। सर्दी में महाद्वीप अपेक्षाकृत ठंड़े होते हैं तथा उच्च वायुदाब केन्द्र के रूप में विकसित होते हैं। गर्मी में ये समुद्र की तुलना में गर्म हो जाते हैं तथा यहाँ पर निम्न वायुदाब क्षेत्र कायम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र पर सर्दी में निम्नदाब तथा गर्मी में उच्च दाब होता है।
- वह रेखा जो सभी समान वायुदाब वाले स्थानों को एक साथ जोड़ती है, समदाब रेखा कहलाती है।
- वायुदाब की प्रवणता दो स्थानों के बीच वायुदाब की भिन्नता और उन स्थानों के बीच क्षैतिज दूरी का अनुपात होता हैं
- ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब में औसतन कमी की दर प्रति 300 मीटर ऊँचाई पर 34 मिलीबार है।
वायुदाब की पेटियाँ
धरातल पर वायुदाब का क्षैतिज वितरण मुख्य-मुख्य अक्षांश वृत्तों के साथ पट्टियों के रूप में पाया जाता है। इन्हीं को वायुदाब पेटियाँ कहा जाता है। वायुदाब का पेटियों के रूप में वितरण केवल सैद्धान्तिक नमूना है। वास्तव में वायुदाब की ऐसी पेटियाँ धरातल पर हमेशा इस प्रकार नहीं मिलती। इस बात की चर्चा हम आगे करेंगे कि वास्तविक वायुदाब की पेटियां आदर्श वायुदाब पेटियों से भिन्न क्यों हैं।
- विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी,
- उपोष्ण उच्च दाब पेटी,
- अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी और
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी ।
1. विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी – विषुवत वृत्त पर सूर्य की किरणें लगभग वर्षभर लम्बवत् पड़ती हैं। इस कारण विषुवतीय क्षेत्रों में वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है, जिससे यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस वायुदाब की पेटी का विस्तार 100 उत्तरी और 100 दक्षिणी अक्षांश के बीच है। । बहुत अधिक गर्मी पड़ने के कारण यहां वायु की गति संवहन धाराओं के रूप में मुख्यतया ऊध्र्वाधर होती है और क्षैतिज गति प्राय: नहीं होती। इसीलिये इन पेटियों को पवनों के अभाव में शान्त पेटियाँ (डोलड्रम) भी कहा जाता है। ये पेटियाँ पवनों के अभिसरण क्षेत्र हैं; क्योंकि उपोष्ण उच्च दाब से पवनें यहां आकर मिलती हैं। इस पेटी को अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटी. सी. जेड.) भी कहते हैं।
वायुदाब पेटियों की प्रस्तुत व्यवस्था एक सामान्य तस्वीर प्रदर्शित करती है। वास्तव में वायुदाब पेटियों की यह स्थिति स्थायी नहीं है। सूर्य की आभासी गति कर्क वृत्त और मकर वृत्त की ओर होने के परिणाम स्वरूप ये पेटियाँ जुलाई में उत्तर की ओर, और जनवरी में दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं। तापीय विषुवत रेखा जो सर्वाधिक तापमान की पेटी है, वह भी विषुवत वृत्त से उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती है। तापीय विषुवत रेखा के ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर और शीत ऋतु में दक्षिण की ओर खिसकने के परिणाम स्वरूप सभी वायुदाब पेटियाँ भी अपनी औसत स्थिति से थोड़ा उत्तर या थोड़ा दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं।
- उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी को ‘घोड़े का अक्षांश’ (अश्व अक्षांश) भी कहा जाता है।
- उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में वायु के नीचे उतरने और उसके इकट्ठा होने के कारण यहां उच्च वायुदाब बनता हैं।
- अधोधु्रवीय क्षेत्रों में धु्रवीय क्षेत्रों और उपोष्ण क्षेत्रों से आने वाली पवनों के मिलने से यहाँ चक्रवातीय दशायें विकसित होती हैं।
- उच्च वायुदाब पेटियाँ शुष्क हैं और निम्न वायुदाब पेटियाँ नम।
- सूर्य की आभासी गति उत्तर और दक्षिण की ओर होने के कारण तापीय विषुवत रेखा भी उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती है।
- तापीय विषुवत रेखा के खिसकने के कारण वायुदाब पेटियाँ भी उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं।