अनुक्रम
सामाजिक समस्या का अर्थ
सामाजिक समस्या की परिभाषा
सामाजिक समस्या के प्रकार एवं वर्गीकरण
- अपराध,
- तलाक,
- वैश्यावृत्ति,
- अवैध यौन-सम्बन्ध,
- अस्पृश्यता,
- सम्प्रदायवाद,
- बंधुआ-श्रमिक,
- मद्यपान,
- नशीले पदार्थों का सेवन,
- भिक्षावृत्ति,
- आत्महत्या,
- निर्धनता,
- बेरोजगारी,
- बाल-श्रम,
- आर्थिक शोषण,
- जनसंख्या-वृद्धि,
- जातिवाद,
- प्रजातिवाद,
- श्वेतवसन-अपराध,
- क्षेत्रवाद,
- दहेज प्रथा,
- परम्परावादिता,
- सम्प्रदायवाद,
- जाति-संघर्ष,
- धार्मिक-अन्धविश्वासों,
- आतंकवाद,
- निर्धनता,
- युवा-तनाव,
- असन्तुलित-औद्योगीकरण और
- भ्रष्टाचार
सामाजिक समस्या की प्रमुख विशेषताएं
- सामाजिक समस्या की प्रकृति सामूहिक होती है। एक या एक से अधिक व्यक्तियों के आपसी दोषारोपण में उत्पन्न होने वाली बाधा को सामाजिक समस्या नहीं कह सकते।
- सामाजिक समस्या वह स्थिति है जिसे दूर करने में भलाई है।
- सामाजिक समस्या एक ऐसी स्थिति है जो समुदाय में बहुत से व्यक्तियों के विचलित व्यवहारों अथवा समाज के आदर्श नियमों के उल्लंधन के रूप मे देखने को मिलती है।
- सामाजिक समस्या की अवधारणा का सम्बन्ध समाज के मूल्यों से है। मूल्यों में परिवर्तन होने के साथ सामाजिक समस्या के रूप में भी परिर्वतन हो जाता है। जिस प्रकार ‘बाल विवाह’ को पहले एक सामाजिक समस्या नहीं मानते थे परन्तु वर्तमान समय में मूल्य बदल जाने के कारण अब इसे उचित नहीं समझा जाता है।
- प्राकृतिक अथवा जैविकीय क्षेत्र की समस्याओं को सामाजिक समस्या नहीं कह सकते हैं।
भारत की सामाजिक समस्याएँ
1. जाति व्यवस्था
जाति-आधारित भेदभाव ने बहुत बार हिंसा को भी भड़काया। जातिव्यवस्था हमारे देश में प्रजातंत्र की कार्यप्रणाली में भी बाधा डालती है।
2. लिंग भेद
भारत में महिलाओं के साथ अनेक क्षेत्रों में जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, नियुक्ति आदि में भेदभाव किया जाता है। लड़कियों के सिर पर दहेज का भारी बोझ होता है और उन्हें विवाह के बाद अपने माता-पिता के घर को छोड़कर जाना पड़ता है। बहुत से गर्भस्थ बालिका शिशु का गर्भपात करवा दिया जाता है, त्याग दिया जाता है, जान-बूझकर उनकी परवाह नहीं की जाती और उन्हें पूरा भोजन भी नहीं दिया जाता क्योंकि वे बालिकाएं हैं।
अधिकतर देशों में पुरुष के मुकाबले स्त्री की साक्षरता दर बहुत कम है। 66 देशों में, पुरुष एवं स्त्री की साक्षरता दर का अंतर 10 प्रतिशत बिंदु से भी अधिक है।
3. दहेज व्यवस्था
हमारे समाज की सबसे बड़ी कुप्रथा दहेज प्रथा है जिसने हमारी संस्कृति को प्रभावित किया है। ‘स्वतंत्र भारत’ में दहेज प्रथा के विरुद्ध भारत सरकार ने ‘दहेज प्रतिबंध अधिनियम 1961’ कानूनी धारा बनाई। दहेज का लेना और देना दोनों ही कानून द्वारा निषिद्ध हैं और यह दण्डनीय अपराध माने जाते हैं। यह प्रथा हमारी संस्कृति में इस प्रकार घर कर गई है कि यह खुलेआम चल रही है। ग्रामीण या शहरी लोग खुलेआम इसका उल्लंघन करते हैं। इससे न केवल दहेज हत्याएं की जाती हैं बल्कि ज्यादातर इसी के कारण मारपीट आदि भी की जाती है तथा महिलाओं को मानसिक एवं शारीरिक यंत्रणा दी जाती है। इस बुराई से समाज को मुक्त करना भी आज की अत्यंत आवश्यकता है।
4. मादक द्रव्यों का दुष्प्रयोग/व्यसन/लत
नियमित रूप से हानिकारक द्रव्य जैसे शराब, नशीले पेय, तंबाकू, बीड़ी या सिगरेट, डंग्स आदि का सेवन (निर्धरित चिकित्सा के उद्देश्यों के अतिरिक्त) व्यसन कहलाता है। जैसे-जैसे मादक पदार्थो की संख्या बढ़ती जाती है, अधिक से अधिक लोग विशेषकर युवा वर्ग व्यसनी होते चले जाते हैं। युवा तथा प्रौढ़ों को इस नशीले द्रव्य के सेवन के जाल में फंसाने वाले और भी तथ्य हैं जो इसके लिए उनरदायी हैं। शराब और सिगरेट, मादक द्रव्यो में से सबसे ज्यादा प्रचलित और हानिकारक पदार्थ हैं।
शराब पीने के बाद ज्यादातर समय वे अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ दुर्व्यवहार भी करते हैं। धूम्रपान बुरी आदत है जो स्वास्थ्य के लिए शराब से भी ज्यादा हानिकारक है। इससे धूम्रपान करने वालों को ही केवल नुकसान नहीं होता बल्कि उनके आस-पास के लोगों को भी वातावरण में धुएँ! से हानि होती है। यदि हम दूसरों के अधिकारों का मान करते हैं तो हमें बस, रेलगाड़ी, बाजार, ऑफिस आदि सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान नहीं करना चाहिए। धूम्रपान, प्रदूषण का बड़ा कारण है और इससे गंभीर बीमारिया! जैसे कैंसर, ह्रदय रोग, श्वास समस्या आदि हो जाती हैं।
5. साम्प्रदायिकता
भारत विभिन्न धर्मिक आस्थाओं वाला देश है। भारत में हिंदु, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी आदि विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति आक्रमक व्यवहार तनाव पैदा करता है और दो धार्मिक समुदायों में टकराव उत्पन्न हो जाता है। सैंकड़ों लोग इन सांप्रदायिक झगड़ों में मारे जाते हैं। यह घृणा और परस्पर संदेह को जन्म देता है। देश की एक मुख्य सामाजिक समस्या साम्प्रदायिकता है, जिसको सुलझाना और दूर करना आवश्यक है। यह हमारी उन्नति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। हमें सभी धर्मो का आदर करना चाहिए। हमारा देश धर्म-निरपेक्ष है, जिसका अभिप्राय है कि सभी धर्मो के साथ समान व्यवहार किया जाता है और हर व्यक्ति को अपना धर्म पालन करने में पूरी स्वतंत्रता है।
6. वृद्धजनों की समस्याएँ
संसार की आबादी बूढ़ी हो रही है। विश्वस्तर पर 1950 में 8% बूढ़े थे, 2000 में 10% तथा 2050 में बढ़कर यह संख्या 21% होने का अनुमान है। भारत में सन् 1961 में 5.8% (25-5 मिलियन) वृद्धजन थे 1991 में 6.7% (56-6 मिलियन) तथा 2011 में बढ़कर 8. 1% (96 मिलियन) होने का अनुमान है। अब 2021 में इसके 137 मिलियन हो जाने की आशा है। भारतीय वृद्धजनों (60 वर्ष एवं इससे ज्यादा वाले) की संख्या आगामी कुछ दशकों में तिगुना होने की उम्मीद है। इन वृद्धजनों को सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सहारा देना सामाजिक विकास की मूलभूत समस्या बनकर उभर रही है। वृद्धो के लिए सामुदायिक सहायता की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। हमारी वृद्धजनों के सम्मान की संस्कृति को युवा वर्ग में पुन: जागृत करना होगा जिससे वृद्धजन आत्मसम्मान से जी सकें। याद रखिए, वृणें का अवश्य सम्मान करना चाहिए। आपको अपने वृद्ध दादा-दादी की देखभाल और सेवा करनी चाहिए।
7. गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या
बेरोजगारी वह स्थिति है जब एक सुयोग्य स्वस्थ मनुष्य जो काम करना चाहता है परन्तु जीविकोपार्जन के लिए काम नहीं ढूंढ पाता। क्षेत्रफल में भारत एक बड़ा देश है। यह विश्व के संपूर्ण क्षेत्रफल का प्राय: 2.4% है पर क्या आप जानते हैं कि विश्व की कितने प्रतिशत जनसंख्या यहाँ निवास करती है? जी हाँ। यह प्राय: 16.7% है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है। इतनी बड़ी जनसंख्या के साथ निश्चित ही कुछ आर्थिक समस्याएं भी विकसित हो जाएंगी। ये समस्याएं हैं बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और कीमतों में वृद्धि हमारी जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग गरीबी रेखा से नीचे रह रहा है। भयानक बेरोजगारी है। महंगाई और कीमतों में वृद्धि ने इस समस्या को ओर भी गंभीर बना दिया है।
8. भीख मांगना
बाजार में, रेलवे स्टेशन, हास्पिटल, मंदिर यहां तक कि चौराहों पर भी आप कुछ लोगों को अपनी खुली हथेली फैलाए आपके पास आते हुए दिखाई देंगे। वे खाना या पैसा मांगते हैं। हम गलियों में कई बच्चों को भी भीख मांगते देखते हैं। भारत में भीख मांगना एक प्रमुख सामाजिक समस्या है। भीख का प्रधान कारण गरीबी और बेरोजगारी है।आजकल हमारे समाज में कुछ लोग गिरोह बनाकर सुनियोजित ढंग से भीख मंगवाने का धंधा कर रहे हैं। फिर भी भीख मांगना एक सामाजिक अभिशाप है जिसे देश से समाप्त करना आवश्यक है। यदि आपको सड़क पर या कहीं भी भिखारी दिखें तो उनको बताएं कि यह कानूनन दण्डनीय अपराध है और यह नियम भीख लेने वाले तथा भीख देने वाले दोनों पर ही लागू होता है।