अनुक्रम
वास्तविक विलयन, कोलाइडी विलयन और निलंबन के बीच भिन्नता
आप जानते है। कि पानी में शर्करा का विलयन समागं होता है, पर दूध में नहीं। दूध को ध्यान से देखने पर उसमें तेल की बूंदें तैरती दिखेगी। इसलिए, यघपि वह समांग लगता है पर वास्तव में वह विशमांग होता है। सभी प्रकार के विलयनों का स्वभाव विलेय कणों के आमाप पर निर्भर करता है। यदि आमाप 1 से 100 nm के बीच हो तो कोलाइडी विलयन बनता है, जब विलेय कणों का आमाप 100 nm से अधिक हो तो वह निलंबन के रूप में पाया जाता है। इस प्रकार कोलाइडी विलयन वास्तविक विलयन और निलंबन के बीच की अवस्था होती है।
कोलाइडी विलयन की प्रावस्थाएँ
कोलाइडी विलयन विशमांग होते हैं और उनमें कम से कम दो प्रावस्थाएँ होती हैं परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम।
ऊपर दिए गए विभिन्न प्रकार के कोलाइडी विलयनों में विलय (द्रव में ठोस), जैल (ठोस में जल), और पायस (द्रव में द्रव) प्रमुख है। उल्लेखनीय है कि यदि परिक्षेपण माध् यम जल हो तो विलेय को जल विलेय कहते हैं और यदि परिक्षेपण माध्यम ऐल्कोहॉल हो तो विलेय को ऐल्को विलेय कहते है।
कोलाइडी विलयनों का वर्गीकरण
कोलॉइडों विलयनों का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है-
- प्रावस्थाओं के बीच अन्योन्य क्रिया के आधार पर
- आण्विक आमाप के आधार पर
1. अन्योन्य क्रिया के आधार पर कोलॉइडों विलयनों वर्गीकरण – परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के बीच अन्योय क्रिया के आधार पर कोलाइडी विलयनों को दो वर्गो में विभाजित किया जाता है।
- द्रवरागी कोलॉइड – द्रवरागी शब्द का अर्थ है विलायक के प्रति बंधुता। गोंद, जिलेटिन, स्टार्च आदि पदार्थो को जब उचित विलायक के साथ मिलाया जाता है तो वे सीधे कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित होकर कोलाइडी विलयन बना लेते है। इस प्रकार प्राप्त विलयों को द्रवरागी विलय कहते है। इन विलयों का एक महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि यदि परिक्षिप्त प्रावस्था को परिक्षेपण माध्यम से पृथक कर दिया जाए तो उसमे परिक्षेपण माध्यम पुन: मिलाकर विलय को दुबारा बनाया जा सकता है, यही कारण है कि इन विलयों को उत्क्रमणीय विलय कहते है। ये विलय पर्याप्त स्थाई होते है।
- द्रवविरागी कोलॉइड – द्रव विरागी शब्द का अर्थ है-विलायक के प्रति कम बंधुता ह और न जैसी धातुओं, उनके हाइड्रोक्साइडों अथवा सल्फाइडों आदि को जब परिक्षेपण माध्यम में मिलाया जाता है तो वे सीधे कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित नहीं होते हैं। उन्हें विशेष विधियों द्वारा बनाया जाता है। ये विलय शीघ्र अवक्षेपित हो जाते हैं और इस प्रकार बहुत स्थाई नहीं होते हैं। उन्हें कोलाइडी रूप में बने रहने के लिए स्थायीकारक की आवश्यकता होती है। ये अनुत्क्रमणीय विलय होते हैं, क्योंकि अवक्षेपित होने पर ये विलायक के साथ मिलकर कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं। यदि परिक्षेपण माध्यम पानी हो तो उसे जलविरागी कोलॉइड कहते हैं।
2. आण्विक आमाप के आधार पर कोलॉइडों विलयनों वर्गीकरण – आण्विक आमाप के आधार पर कोलॉइडों का वर्गीकरण इस प्रकार है: –
- बृहदाणुक कोलॉइड : इस प्रकार के कोलॉइड में परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का आमाप कोलॉइड कणों के आमाप के बराबर बड़ा होता है। (यानि 100 nm) प्रकृतिक वृहदाणुक कोलॉइडों के उदाहरण हैं : स्टार्च, सेल्यूलोस, प्रोटीन आदि।
- बहु अणुक कोलॉइड : इसमें प्रत्येक परमाणु कोलॉइड के आमाप का नहीं होता पर वे आपस में पुंज बनाकर (जुड़कर) कोलॉइड़ो के नाप के अणु बनाते है। उदाहरणार्थ : सल्फर विलय में अणुओं के पुंज कोलॉइडों के नाप के होते हैं।
- संघटित कोलॉइड : ये पदार्थ कम सांद्रण में सामान्य विघुत अपघट्यों की तरह कार्य करते है, परन्तु अधिक सांद्रण में संघटित होकर मिसेल बनाते हैं जो कि कोलॉइड विलयन की तरह कार्य करते है। साबुन इसका उदाहरण है। साबुन लम्बी श्रृंखला वाले वसीय अम्ल R COONa का सोडियम लवण है। पानी में डालने पर साबुन RCOO- और छंदेता है। ये RCOO- आयन मलै के कण के चारों ओर संघटित होकर मिसेल बनाते है, इसे चित्र में दिखया गया है।
कोलाइडी विलयनों का विरचन
जैसा पहले बताया जा चुका है द्रवरागी विलय बनाने के लिए पदार्थो को सीधे परिक्षेपण माध्यम के साथ मिलाया जाता है। उदाहरण के लिए स्टार्च, जिलेटिन, गोंद आदि के कोलाइडी विलयन बनाने के लिए उन्हें केवल गर्म पानी पें घोला जाता है। उसी प्रकार सेलूलोस नाइट्रेट का कोलाइडी विलय बनाने के लिए उसे ऐल्कोहॉल में घोला जाता है। प्राप्त विलयन को कोलोडियन कहते है। किन्तु द्रवविरागी कोलॉइडों को प्रत्यक्ष विधि द्वारा नहीं बनाया जा सकता है। उसे बनाने के लिए दो प्रकार की विधियाँ काम में लाई जाती हैं। ये है: –
- भौतिक विधि
- रासायनिक विधि
1. भैतिक विधि : ब्रेडिग आर्क विधि – इस विधि का इस्तेमाल स्वर्ण, रजत, प्लेटिनम आदि धातुओं के कोलाइडी विलयनों को बनाने के लिए किया जाता है (चित्र )।
इसमें पानी के पात्र में रखे दो धात्विक इलेक्ट्रोडों के बीच विघुत आर्क आरम्भ किया जाता है। आर्क की उच्च ऊश्मा धातु को वाष्प में परिवर्तित कर देती है। यह वाष्प ठंडे जल में शीघ्र संघनित हो जाती है। इसके फलस्वरूप कोलाइडी आमाप के कण बन जाते है। इसे स्वर्ण विलय कहा जाता है।
पेप्टाइजीकरण: ताजा बने अवक्षेप में उपयुक्त विघुत अपघट्य मिला कर उसे कोलॉइड में बदलने के प्रक्रम को पेप्टाइजीकरण कहते है। उदाहरणार्थ, फेरिक हाइड्रॉक्साइड के अवक्षेप में फेरिक क्लोरॉइड मिलाने पर फेरिक हाइड्रॉक्साइड भूरे लाल रंग की कोलाइडी विलयन में बदल जाता है। ऐसा अवक्षेप द्वारा विद्युत अपघ्य के धनायन के अधिशोषण के कारण होता है। Fe(OH)3 में FeCl3 डालने पर, Fe(OH)3 के कण FeCl3 के Fe3+ आयनों को अवशोषित कर लेते हैं। अत: Fe(OH)3 के कण धनावेशित हो जाते हैं और वे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करके कोलाइडी विलयन बनाते हैं।
Br2 + H2S
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S+2HBr 2 HNO3 + H2S
2 H2O + 2NO2 + S
रासायनिक विधि द्वारा Fe(OH)3 विलय, As2S3 विलय भी बनाए जा सकते हैं।
कोलाइडी विलयनों का शोधन
जब कोलाइडी विलयन बनाया जाता है तो बहुधा उसमें विघुत अपघट्य अपद्रव्य के रूप में मौजूद रहता है, जो उसे अस्थायीकृत कर देता है। अत: कोलाइडी विलयन के शोधन के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है:-
- अपोहन (Dialysis)
- विघुत अपोहन (Electric Dialysis)
1. अपोहन – अपोहन का प्रक्रम इस तथ्य पर आधारित है कि पार्चमेंट पत्र या सेलोफेन झिल्ली में से कोलाइडी कण नहीं निकल पाते है। लेकिन विघुत अपघट्य के आयन निकल सकते है। कोलाइडी विलयन को एक डायलसिस (सेलोफेन) थैली में लेकर स्वच्छ जल से भरे पात्र में लटका दिया जाता है। अपद्रव्य धीरे-धीरे बाहर विसरित हो जाता है और थैली में शुद्ध कोलाइडी विलयन रह जाता है (चित्र) विसरण द्वारा कोलाइडी कणों को अपद्रव्यों से उपयुक्त झिल्ली से अलग करने के प्रक्रम को अपोहन कहते हैं।
कोलाइडी के गुण धर्म
कोलॉइडों के गुणधर्मो की नीचे चर्चा की गई है:-
- कोलाइडी कणों द्वारा धनायनों अथवा ऋणायनों का अधिषोषण
- मिसेल आवेशित होते हैं
- कोलॉइडों के विरचन के दौरान, मुख्यता ब्रेडिग आर्क विधि में कोलॉइड कण इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर आवेशित हो जाते है। कोलाइडी कणों पर आवेश की उपस्थिति को वैघुत कण संचलन प्रक्रम द्वारा दिखाया जा सकता है। वैघुत कण संचलन प्रक्रम में कोलाइडी कण विघुत प्रवाह के प्रभाव से कैथोड अथवा एनोड की तरफ गतिशील होते हैं।
कोलाइडी विलयन के अनुप्रयोग
कोलॉइडों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। उनके कुछ अनुप्रयोगों की यहाँ चर्चा की गई है।
पायस और जैल
पायस के अनुप्रयोग – पायस हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कुछ अनुप्रयोग नीचे दिए जा रहे है:
- कपड़ों और शरीर पर से मैल धोने की साबुन और संश्लेशित अपमार्जक की प्रक्रिया, तेल और पानी के पायस बनने पर ही आधारित है।
- दूध, पानी और वसा का पायस हैं। मक्खन और क्रीम भी पायस है।
- विभिन्न प्रकार की चेहरे की क्रीम और लोशन भी पायस है।
- कॉड लिवर तेल जैसी तलीय औशधि जल्दी और बेहतर अवशोषण के लिए पायस के रूप में दी जाती है। कुछ मरहम भी पायसीकरण द्वारा होता है।
- आंतों में वसा का पायन भी पायसीकरण द्वारा होता है।
- सल्फाइड अयस्क के शोधन के लिए प्रयुक्त फेन प्लवन प्रक्रम में उसका तेल का पायस के साथ उपचा किया जाता है। मिश्रण को संपीडित वायु से प्रक्षेपित करने पर अयस्क कण पृष्ठ पर आ जाते हैं, तब उन्हें अलग कर लिया जाता है।
जैल – जिन कोलॉइडों में परिक्षिप्त प्रावस्था द्रव और परिक्षेपण माध्यम ठोस होता है उन्हें जैल कहते है। पनीर, जैल, बूट, पॉलिश, जैल के उदाहरण है। अधिकतर उपयोग होनेवाले जैल जलरागी कोलाइडी विलयन होते है, जिनका तनु विलयन उचित परिस्थितियों में लचीले अर्धठोस पदार्थ में बदल जाता है। उदाहरण के लिए जिलेटिन का पानी में 5 प्रतिशत जलीय विलयन ठंडा करने पर जैली का ब्लाक बन जाता है। रखने पर जैल उसमें उपस्थित कुछ द्रव खो देते हैं और सिकुड जाते है। इसे संकोच पार्थक्य या रखने पर जमना कहते है।