- गैर सरकारी संगठन लाभ अर्जित न करने वाला स्वयंसेवी, सेवा भाव वाला/विकास प्रवृत्ति वाला एक ऐसा संगठन है, जो अपने संगठन के मूल सदस्यों या जन समुदाय के अन्य सदस्यों के हितों के लिए काम करता है।
- यह निजी व्यक्तियों द्वारा बनाया गया एक ऐसा संगठन है जो कुछ मूलभूत सामाजिक सिद्धान्तों पर विश्वास करता है, और अपनी गतिविधियों का गठन समुदाय के एक ऐसे वर्ग के विकास के लिए करता है जिसको वह अपनी सेवाएं प्रदान करना चाहता है।
- यह एक समाज विकास प्रेरित संगठन है जो समाज को सशक्त और समर्थ बनाने में सहयोग देता है।
- यह एक ऐसा संगठन या जनता का एक ऐसा समूह है, जो स्वतंत्र रुप से कार्य करता है और इस पर किसी तरह का कोई बाहरी नियंत्रण नहीं होता। प्रत्येक (एन.जी.ओ.) गैर सरकारी संगठन के अपने कुछ खास उद्देश्य और लक्ष्य होते हैं, जिनके आधार पर वे किसी समुदाय, इलाके या परिस्थिति विशेष में उपयुक्त बदलाव लाने के लिए अपने निर्दिष्ट कार्यो को पूरा करते हैं।
- यह स्वतंत्र लोकतांत्रिक और गैर-सम्प्रदायिक व्यक्तियों का एक ऐसा संगठन है जो आर्थिक और सामाजिक स्तर से नीचे के स्तर के लोगों के समूहों को सशक्त-समर्थ बनाने का काम करता है।
- यह एक ऐसा संगठन है जो किसी भी राजनीतिक समूह से जुड़ा नहीं होता और आम तौर पर जनसमुदाय को मदद देने, उनके विकास और कल्याण के कार्यो में जुड़ा रहता है।
- यह एक ऐसा संगठन है जो जन समुदाय द्वारा बनाए जाते हैं या जन समुदाय के लिए बनाए जाते हैं, और जिनमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता या बहुत ही कम होता है। ये धर्मार्थ संगठन ही नहीं होते बल्कि, ये सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का भी आयोजन करते हैं।
गैर सरकारी संगठनों को इन नामों से भी जाना जाता है,
- स्वयं सेवी संगठन (VOs)
- स्वयं सेवी एजेन्सियां (VAs)
- स्वयं सेवी विकास संगठन (VDOs)
- गैर सरकारी विकास संगठन (NGDOs)
गैर सरकारी संगठन तथा स्वयं सेवी संगठन में अन्तर
गैर सरकारी संगठन (NGO) | स्वयं सेवी संगठन (VO) | |
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1. | मानदेय/पारिश्रमिक सहित कार्य करता है | किसी मानदेय की आशा नहीं करता। |
2. | मन के अनुरुप कार्यो का सुनिश्चित किन्तु अवधि, आरंभ, समापन सम्बन्धी नियंत्रण वित्त प्रदाता संस्था | मन के अनुरुप कार्यों का चुनाव किन्तु अवधि, आरंभ, समापन सम्बंधी स्वनियंत्रण का |
3. | निश्चित संविधान, पंजीयन, पदाधिकारी और कार्य पद्धति | अनिवार्यता नहीं। |
4. | नियमित कार्यकाल एवं कार्यावधि होती है | आवश्यकता नहीं। |
5. | चाहे तो स्वयंसेवी संगठन की तरह पारिश्रमिकविहीन कार्य भी कर सकता है। | चाहे तो गैर सरकारी संगठन की तरह कार्य कर सकता है। शर्ते पूरी करनी होगी’-ऐच्छिक रुपेण। |
6. | दस्तावेजों का संधारण करने की अनिवार्यता होती है। |
- वयस्क व्यक्तियों का ऐसा संगठन, जो स्वतंत्र रुप से गठित किया गया हो।
- संगठन की वैधानिकता कानूनों और सरकार की नीतियों के परिप्रेक्ष्य में प्रमाणित हो।
- शासन के किसी विभाग के व्यक्तियों की सेवा के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यों के क्रियान्वयन हेतु उसे गठित न किया गया हो।
- प्रजातांत्रिक मूल्यों व पद्धतियों पर विश्वास अभिव्यक्त होता हो।
आवश्यकता को जन्म देने में जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकार चलाते हुए, नौकरशाहों को यह सिखाने में असफल ही रहे हैं कि उनका कत्तर्व्य भारत के बहुसंख्यक समाज का जिसमें गरीब, शोशित, पीड़ित और पिछड़ो की तादाद भरी पड़ी है, कल्याण करना और उन्हें मुसीबतों के दुश्चक्र से निजात दिलाना ही है। उलटे नौकरशाहों और बाजारीकरण की नयी दवा ने सरकारों को जल्दी से जल्दी कल्याणकारी मानसिकता से अपना पिंड छुड़ा लेना चाहिए। सरकारों ने इसमें इतना आकर्षण देखा कि उन्होंने इस पर अमल करने में जरा भी देर नहीं लगाई। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक-विकास के क्षेत्रों में इसके दुष्परिणामों की झलक भी दिखाई देने लगी है। सरकारी कार्यालयों के अधिकारी और कर्मचारी एक ऐसी ‘‘सरकारी संस्कृति’’ में ढल गए हैं, जो उन्हें आम-नागरिकों से अलगांव रखने के लिए दुश्प्रेरित करती है। उनके कक्ष के बाहर पीड़ित आरै फरियादी लोगों की भीड़ लगी रहती है और वे अंदर बेहद इत्मीनान से फाइलों पर या तो झुके रहते हैं या फोन पर बातें करते हैं, कोई जरुरतमंद पहुंच जाए तो उसकी सुनवाई नहीं होती और उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। अत्एव जन संस्कृति के ज्ञान के लिए पिछड़ों के लिए, गरीबों, किसानों, महिलाओं, बच्चों, शहरी मलिन-बस्तियों तथा पहाड़ी और घुमंतु जातियों का अनौपचारिक अध्ययन गैरसरकारी संगठनों के लिए अनिवार्य हो जाता है और यही इन संगठनों की आवश्यकता की जननी भी मानी जा सकती है।
- एक धमार्थ ट्रस्ट के रुप में;
- सोसाईटी पंजीकरण अधिनियम के तहत एक सोसाइटी के रुप में,
- कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के अन्तर्गत एक लाईसेंस प्राप्त कम्पनी के रुप में पंजीकृत हो।
गैर सरकारी संगठन के प्रकार्य
- वृद्धों का संरक्षण
- कृषि
- पशुकल्याण
- कला व दस्तकारी
- शिशु कल्याण
- शहर और नगर
- संस्कृति और धरोहर
- विकलांगता
- शिक्षा
- पर्यावरण
- स्वास्थ्य
- मानव संसाधन
- ग्रामीण विकास
- जनजातीय लोग
- कूडे़ -कर्कट का नियंत्रण
- महिला विकास
अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां और भी कई अन्य क्षेत्र ऐसे हैं जो कि एन.जी.ओ को कार्यों के तहत आते हैं। वस्तुत: समाज के कल्याण हेतु हर एक क्षेत्र ही गैरसरकारी संगठनों के कार्यों व उद्देश्यों के तहत आते हैं।
- जन-संस्कृति के साथ तालमेल को तत्पर रहते हैं।
- खुद को जनता का हिस्सा मानते हैं व जन-मनोविज्ञान को समझने की चेष्टा करते हैं।
- अपने कार्यकाल से उनका उतना ही सरोकार होता है, जितना रिकार्ड – रजिस्टर आदि के संधारण के लिए आवश्यक होता है।
- वे किसी कार्यविधि के अधीन नहीं होते।
- विकास की समग्रता व निरंतरता ही उनका सबसे बड़ा मुद्दा होता है।
- मशीनी-प्रक्रिया और लक्ष्य पर आधारित कार्य उनके लिये अस्प्रष्य होते हैं।
- उनके मन में सामाजिक मूल्य तथा विशेष अवधारणाएं होती है। इन्हीं की स्थापनाओं के लिए वे कार्य करते हैं।
- वे उन्ही परियोजनाओं का चुनाव करते हैं जो उनके मूल उद्देश्यों और अवधारणाओं के अनुकूल हों।
- अपने कार्यों में लोकतांत्रिक पद्धति तो अपनाते ही हैं, संगठन में उसे वरीयता देते हैं।
- सामूहिक चर्चाओं और विचार-विमर्श से निष्पादित निर्णयों को ही अंगीकृत करते हैं।
- पारदर्शिता और सुचिता उनकी कसौटी होते हैं।
- वे लोकप्रियता की बजाय जन आस्था से भरपूर होते हैं।
- वे राष्ट्रीय नीतियों और अंतरराष्ट्रीय रुझानों को भी ध्यान में रखते हैं।
- नैसर्गिक न्याय समतामूलक समाज के निर्माण में आस्था रखते हैं।
- धर्म, लिंग जातिगत भेदभाव से दूर होते हैं।
- जन अधिकारों के प्रति सजग रहना उनका प्रकार्य व दायित्व होता है।
- अपने ज्ञान व कोषल को सदैव परिभाषित करते रहते हैं।
- सतत् अध्ययन और सहचिंतन जीवन का अभिन्न अंग होता है।