भारत की 6 ऋतुओं के नाम और जानकारी

भारत की 6 ऋतुओं का वर्णन
हमारी पृथ्वी एक गोल अण्डे के समान आकृति वाली रचना है जो अपने अक्ष पर घूर्णन गति करती रहती है। यह पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करने के साथ साथ सौर मण्डल के आधार अर्थात सूर्य के चारों और बहुत तेज गति से परिक्रमा करती रहती है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के परिणाम स्वरूप दिन और रात उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी के घूर्णन करने से पृथ्वी का एक उत्तरार्द्ध सूर्य के सामने होता है, इस भाग में सीधा सूर्य का प्रकाश पडता है। 
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति के कारण इस उत्तरार्द्ध में दिन रहता है जबकि इसके विपरीत इस स्थिति में पृथ्वी का दूसरा भाग अर्थात दक्षिणार्द्ध सूर्य से विपरीत दिशा में जाता है। सूर्य से पीछे चले जाने के कारण इस दक्षिणार्द्ध में सूर्य का प्रकाश अनुपस्थित रहता है।

    भारत की 6 ऋतुएं और उनका वर्णन

    हमारे भारत देश में परम्परागत रूप में 6 ऋतुएं मानी जाती हैं ऋतु के नाम और जानकारी इस प्रकार हैं-

    1. बसंत ऋतु (चैत्र-बैशाख या मार्च-अप्रैल)
    2. ग्रीष्म ऋतु (ज्येष्ठ-आषाढ़ या म-जून)
    3. वर्षा ऋतु (श्रावण-भाद्रपद या जुला-अगस्त)
    4. शरद ऋतु (आश्विन- कार्तिक या सितम्बर-अक्टूबर)
    5. हेंमत ऋतु (अगहन-पौष या नवम्बर-दिसम्बर)
    6. शिशिर ऋतु (माघ-फाल्गुन या जनवरी-फरवरी)

    1. बसंत ऋतु – इसका समय चैमास से लेकर बैसाख मास तक माना जाता है। बसंत ऋतु समस्त ऋतुओं में प्रधान है। इसके अन्तर्गत होली पर्व के समय बासंती शोभा, नव पल्लव एवं सुखद समीर आदि का वर्णन मिलता है। इस ऋतु के समय कृशि में अच्छी उपज एवं लहलहाती फसलों के आनन्द में नर-नारी प्रफुल्लित रहते हैं। 

    बसंत ऋतु से ही भारतीय नव संवत्सर का प्रारम्भ भी माना जाता है। वसंतोत्सव इस ऋतु का विषेश पर्व है जो अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस ऋतु के अन्य पर्व भी हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, जैसे- होलिका विभूति धारण, धुरड्डी, रंग पंचमी, शीतलाष्टमी आदि। इस ऋतु में पीले वस्त्र पहनने की प्रथा है। 
    इस ऋतु में प्रकृति का सौन्दर्य चतुर्दिक अपनी आभा बिखेरे रहता है। पलाष, मकरंद, नील-कमल, कचनार, अशोक के फूल, आम्र एवं आम्र बौर की सुगंध आदि के द्वारा मादक वातावरण की उपस्थिति रहती है। 
    बसंत ऋतु में पक्षियों की जो विशेषताएँ हैं, वे हैं- कोकिल की काकली और भ्रंमर की गुंजार। पुष्पों, पल्लवों एवं पक्षियों के संयोग से प्रकृति का वातावरण और अधिक सुन्दर हो जाता है।

    2. ग्रीष्म ऋतु – ज्येष्ठ और आषाढ़ मास को ‘शट्ऋतु वर्णन’ में ग्रीष्म ऋतु के नाम से जाना जाता है। बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। ग्रीष्म ऋतु में सूखा, जलती दोपहरी, धधकता सूर्य, झुलसाती लू एवं धूल धूसरित वातावरण के कारण प्यास, गर्मी तथा वियोगजन्य पीड़ा दायक वातावरण पैदा हो जाता है।

    3. पावस ऋतु – पावस ऋतु का आरम्भ ग्रीष्म ऋतु के अनन्तर होता है। पावस ऋतु के अन्तर्गत श्रावण तथा भाद्रपद मास आते हैं। ग्रीष्म ऋतु से जली धरती पावस की बूँदें पाकर तृप्त होने लगती है। बादलों की उमड़-घमड़, बिजली की कौंध, जल-वृष्टि, इन्द्रधनुश आदि का सौन्दर्य पावस ऋतु का वैषिश्ट्य है।

    4. शरद ऋतु – इसमें आश्विन एवं कार्तिक दो मास आते हैं। शरद ऋतु में आर्द्रतापूर्ण शीतल वायु बहने लगती है तथा स्निग्ध चाँदनी रात्रि दिवस के रूप में प्रतीत होती है। चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण चाँदनी को प्रकट करते हुए सोलहों कलाओं से युक्त हो जाता है। उसकी कलाओं के सापेक्ष अगस्त नक्षत्र का भी आकाशीय अवतरण वातावरणी शोभा का प्रमुख कारक बनता है।

    5. हेमन्त ऋतु – शरद ऋतु के पश्चात हेमन्त ऋतु का आगमन होता है। मार्गशीर्ष तथा पौश माह हेमन्त ऋतु के अन्तर्गत आते हैं। इस ऋतु में पर्वतीय जलवायु अत्यधिक शीत हो जाती है। होंठों पर पपड़ियाँ पड़ जाती हैं। हेमन्त ऋतु में उपलवृश्टि भी होती है। पाला, तुषार तथा धुँधलका इस ऋतु के विशिष्ट लक्षण हैं।

    6. शिशिर ऋतु  – हेमन्त के पश्चात शिशिर ऋतु का आरम्भ होता है। शिशिर ऋतु में माघ और फाल्गुन दो मास आते हैं। 

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