अनुक्रम
छायावाद के कवियों में महादेवी वर्मा का नाम भी अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ की संज्ञा दी गई है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि काव्य क्षेत्र में उनका स्थान कितना ऊँचा है। श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई. में फरुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। महादेवी वर्मा ने संस्कृत में एम.ए. किया और फिर जीवन-पर्यन्त प्राचार्य के रूप में शिक्षा के अवदान का कार्य किया।
11 सितम्बर, 1987 को उनका देहांत हो गया। 1983 में उन्हे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। महादेवी वर्मा ने कविताओं के अतिरिक्त रेखाचित्र और संस्मरण भी लिखे थे। कविताओं की तरह उनके रेखाचित्र और संस्मरण भी अत्यंत उच्च-कोटि के हैं।
महादेवी जी की प्रमुख काव्य पुस्तकें हैं ‘निहार (1930), ‘रश्मि‘ (1932), ‘नीरजा‘ (1934), ‘साध्य गीत‘ (1936) और ‘दीपशिखा‘ (1942), ‘प्रथम आयाम‘ (1984), ‘यामा‘ (1936) में उनके आरंभिक संग्रहों की कविताएँ हैं। गद्य कृतियों में ‘अतीत के चलचित्र‘, ‘शृंखला की कडि़याँ‘, ‘स्मृति की रेखाएँ‘, ‘क्षणदा‘ आदि प्रमुख हैं।
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
महादेवी वर्मा की रचनाएं
महादेवी वर्मा के प्रमुख काव्य संग्रह हैं-
- नीहार, (1930)
- रश्मि (1932)
- नीरजा (1935)
- सांध्यगीत (1936),
- यामा (1940)
- दीपशिखा (1942)
- अग्निरेखा (1960)
- सन्धिनी
- हिमालय
- आधुनिक कवि
- प्रथम आयाम (1984)
- सीकर
- गीतपर्व
- परिक्रमा
- सप्तपर्ण।
1. नीहार – महादेवी वर्मा जी के गीतों का सबसे पहला संग्रह ‘नीहार’ है, जिसका प्रकाशन सन् 1930 ई. में हुआ था। ‘नीहार’ में 1924 से 1928 तक की रचनाएँ संग्रहीत है। ‘नीहार’ वेदना प्रधान काव्य है। इसके प्रत्येक गीतों में प्रणयानुभूति की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। ‘नीहार’ में कवयित्री के निराशापूर्ण जीवन का दर्शन होता है। अधिकांश रचनाएँ रहस्य भावना को लेकर लिखी गई हैं, कहीं-कहीं प्रकृति के सुकुमार सौन्दर्य पर चित्रण किया गया है।
महादेवी वर्मा कवयित्री के साथ-साथ सफल गद्यकार भी है। इन्होंने ‘अतीत के चलचित्र‘, ‘स्मृति की रेखायें’, ‘पथ के साथी’ और ‘मेरा परिवार’ नामक संस्मरण एवं रेखाचित्र की रचना की।
महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएं
- महादेवी वर्मा के काव्य की मुख्य स्वरधारा-वेदना है। उनकी समस्त रचनाएं इसी धारा से सिंचित है।
- उन्हें पीड़ा में भी आनन्द का अनुभव होता है। वे पीड़ा को प्रियतम का वरदान मानती है।
- महादेवी वर्मा अपनी पीड़ा को लोकव्यापी बना देती हैं। उनकी वेदना विश्व करूणा का रूप ले लेती है।
- महादेवी वर्मा के काव्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता दु:खवाद है। यह दु:ख कभी आराध्य के सुन्दर समागम का साधन बनता है तो कभी स्वयं साध्य बन जाता है।
- दु:ख वाद उनकी रचनाओं में अथ से लेकर इति तक समाहित है।
- महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्यवाद एवं छायावाद दोनों काव्य धाराओं की प्रवृत्तियां देखने को मिलती हैं।
- उनका रहस्यवाद, वेदना की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति है।
- प्रकृति के प्रति उनका विशेष अनुराग है।
आत्मा और परमात्मा के मध्य प्रकृति ही तादात्मय, स्थापित करती है।
महादेवी वर्मा का भाव पक्ष
महादेवी वर्मा की कविताएँ छायावाद के अन्य कवियों से इस अर्थ में भिन्न हैं कि उनमें उनका निजी संसार ही ज्यादा व्यक्त हुआ है। महादेवी जी के काव्य में वस्तुगत संसार बहुत सीमित है। वे प्रायः अपने मन की पीड़ा और वेदना को ही विभिन्न रूपों में व्यक्त करती हैं। इसके लिए वे प्रकृति का सहारा लेती हैं और उन्हें प्रतीक रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति के विभिन्न चित्र मिलते हैं, लेकिन वे उनके हृदय के मनोभावों की अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। प्रकृति चित्र को वह एक दार्शनिक आवरण कभी दे देती हैं। वह लौकिक भावनाओं को ऐसी शब्दावली में प्रस्तुत करती हैं, जिनसे उनमें आध्यात्मिकता का आभास होने लगता है। इससे उनकी कविता में रहस्य भावना का समावेश हो गया है।
महादेवी वर्मा का कलापक्ष
- महादेवी वर्मा की छायावाद से प्रभावित कविताओं में प्रकृति प्रेम, सामाजिकता, प्रतीक योजना और मानवीकरण आदि छायावाद की सभी विशेषताएं परिभाषित होती हैं।
- गीतात्मकता की ओर महादेवी वर्मा का विशेष रूझान है। उनके गीत मीराबा के गीत जैसे मीठे और टीस भरे हैं। गेयता, संगीतात्मकता तथा सुन्दर टेक विधान इनके गीतों के प्राण हैं।
- महादेवी वर्मा का रहस्यवाद कबीर के समान नीरस नहीं है। उनकी सभी रचनाओं में परमेश्वर के प्रति आस्था के दर्शन होते हैं।
महादेवी वर्मा की भाषा शैली
महादेवी वर्मा की भाषा संस्कृत गर्भित खड़ीबोली है। प्रारम्भ में उन्होंने ब्रजभाषा में भी रचनाएं की पर बाद में खड़ी बोली को ही रचनाओं का माध्यम बनाया। उनकी भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता होने के बावजूद भी वह अत्यन्त शुद्ध, मधुर और कोमल है। कहीं-कहीं वे उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग करती हैं। उनकी शैली अमूर्त भावों को मूर्त रूप प्रदान करने में सक्षम है। कहीं-कहीं दार्शनिक विचारों के आ जाने के कारण भाषा और शैली दोनों ही कठिन और दुरूह हो जाती है।
महादेवी वर्मा का साहित्य में स्थान
महादेवी वर्मा की गणना प्रसाद, पंत एवं निराला जी की तरह छायावाद के आधार स्तम्भों में भी की जाती है। पर उनका छायावाद उनका स्वयं अनुभूत हैं। उन्होंने आधुनिक युग की कविता को स्वयं अधिक प्रभावित किया है। उन्हें भाव और संगीत की साम्राज्ञी कहा जा सकता है। शब्द चयन, पदविन्यास, प्रतीकात्मकता, बिम्ब विधान तथा आध्यात्मिक सौन्दर्य में निष्शांत इस कवियित्री को आधुनिक मीरा की उपाधि देना, उचित ही है।
महादेवी वर्मा का केन्द्रीय भाव
महादेवी वर्मा की रचनाओं में वैयक्तिक भावनाओं-प्रेम, विरह, पीड़ा आदि की अभिव्यिक्त् हुई है। बदली के उमड़ने घिरने बरसने के माध्यम से कवयित्री अपने मन में वेदना के उमड़ने ओर बरसने को संकेतित करती है। कवयित्री अपनी वैयक्तिक भावनाओं का आरोप प्रकृति के क्रिया व्यापारों में करती है। आपकी कविता में छायावादी काव्य की प्राय: सभी विशेषताएं लक्षित होती है।