अनुक्रम
विवाह की परिभाषा
हिंदू विवाह के प्रकार
1. ब्राह्म विवाह
यह विवाह सभी प्रकार के विवाह में श्रेष्ठ माना गया है। ब्राह्म विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है, वेदों के ज्ञाता शीलवान वर को स्वयं बुलाकर, वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुसज्जित कर पूजा एवं धार्मिक विधि से कन्या दान कराना ही ब्राह्म विवाह है।
2. दैव विवाह
गौतम एवं याज्ञवल्क्य ने दैव विवाह के लक्षण का उल्लेख इस प्रकार किया है-वेदों में दक्षिणा देने के समय पर यज्ञ कराने वाले पुरोहित को अलंकारों से सुसज्जित कन्या दान ही ‘दैव’ विवाह है। इसद्कर्म में लगे पुरोहित को जब वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित कन्या दी जाती है तो इसे दैव विवाह कहते हैं।
3. आर्ष विवाह
इस प्रकार के विवाह में विवाह का इच्छुक वर कन्या के पिता को एक गाय और एक बैल अथवा इनके दो जोड़े प्रदान करके विवाह करता है। गौतम ने धर्मसूत्र में लिखा है, आर्ष विवाह में वह कन्या के पिता को एक गाय और एक बैल प्रदान करता है। याज्ञवल्क्य लिखते हैं कि दो गाय लेकर जब कन्यादान किया जाय तब उसे आर्ष विवाह कहते हैं। गाय और बैल का एक युग्म वर के द्वारा धर्म कार्य हेतु कन्या के लिए देकर विधिवत् कन्यादान करना आर्ष विवाह कहा जाता है। आर्ष का सम्बन्ध ऋषि शब्द से है। जब कोई ऋषि किसी कन्या के पिता को गाय और बैल भेंट के रूप में देता है तो यह समझ लिया जाता था कि अब उसने विवाह करने का निश्चय कर लिया है।
4. प्रजापत्य विवाह
प्रजापत्य विवाह भी ब्राह्म विवाह के समान होता है। इसमें लड़की का पिता आदेश देते हुए कहता है तुम दोनों एक साथ रहकर आजीवन धर्म का आचरण करो। याज्ञवल्क्य कहते हैं कि इस प्रकार के विवाह से उत्पन्न सन्तान अपने वंश की तरह पीढ़ियों को पवित्र करने वाली होती है। वशिष्ठ और आपस्तम्ब ने प्रजापत्य विवाह का कहीं उल्लेख नहीं किया है।
5. असुर विवाह
कन्या के परिवार वालों एवं कन्या को अपनी शक्ति के अनुसार धन देकर अपनी इच्छा से कन्या को ग्रहण करना असुर विवाह कहा जाता है। याज्ञवल्क्य एवं गौतम का मत है कि अधिक धन देकर कन्या को ग्रहण करना असुर विवाह कहलाता है। कन्या मूल्य देकर सम्पन्न किये जाने वाले सभी विवाह असुर विवाह की श्रेणी में आते हैं। कन्या मूल्य देना कन्या का सम्मान करना है साथ ही कन्या के परिवार की उसके चले जाने की क्षतिपूर्ति भी है। कन्या मूल्य की प्रथा विशेषत: निम्न जातियों में प्रचलित है, उच्च जातियाँ इसे घृणा की दृष्टि से देखती हैं।
6. गान्धर्व विवाह
कन्या और वर की इच्छा से पारस्परिक स्नेह द्वारा काम और मैथुन युक्त भावों से जो विवाह किया जाता है, उसे गान्धर्व विवाह कहते हैं। याज्ञवल्क्य पारस्परिक स्नेह द्वारा होने वाले विवाह को गान्धर्व विवाह कहते हैं। गौतम कहते हैं, इच्छा रखती हुई कन्या के साथ अपनी इच्छा से सम्बन्ध स्थापित करना गान्धर्व विवाह कहलाता है। प्राचीन समय में गान्धर्व नामक जाति द्वारा इस प्रकार के विवाह किये जाने के कारण ही ऐसे विवाहों का नाम गान्धर्व विवाह रखा गया है।
7. राक्षस विवाह
मारकर, अंग-छेदन करके, घर को तोड़कर, हल्ला करती हुई, रोती हुई कन्या को बलात् अपहरण करके लाना ‘राक्षस’ विवाह कहा जाता है। याज्ञवल्क्य लिखते हैं, ‘राक्षसो युद्ध हरणात्’ अर्थात् युद्ध में कन्या का अपहरण करके उसके साथ विवाह करना ही राक्षस विवाह है। इस प्रकार के विवाह उस समय अधिक होते थे जब युद्धों का महत्त्व था और स्त्री को युद्ध का पुरस्कार माना जाता था।
8. पैशाच विवाह
सोयी हुई उन्मत्त, घबराई हुई, मदिरापान की हुई अथवा राह में जाती हुई लड़की के साथ बलपूर्वक कुकृत्य करने के बाद उससे विवाह करना पैशाच विवाह है। इस प्रकार के विवाह को सबसे निकृष्ट कोटि का माना गया है। वशिष्ठ एवं आपस्तम्ब ने इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं दी है, किन्तु इस प्रकार के विवाह को लड़की का दोष न होने के कारण कौमार्य भंग हो जाने के बाद उसे सामाजिक बहिष्कार से बचाने एवं उसका सामाजिक सम्मान बनाये रखने के लिए ही स्वीकृति प्रदान की गयी है।
विवाह के प्रकार
विवाह के प्रकारों को पति और पत्नी की संख्या के आधार पर निश्चित करते हैं। दुनियाभर के समाजों में विवाह के दो प्रकार प्रचलित हैं –
- एक विवाह और
- बहु विवाह ।
1. एक विवाह
एक विवाह से तात्पर्य है, एक समय में एक व्यक्ति एक ही स्त्री के विवाह करता है। वे विवाह भी आते हैं जिनमें एक पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद या विवाह विच्छेद की स्थिति में दूसरी स्त्री से विवाह किया जाता है। एक विवाह या बहुविवाह का सम्बन्ध व्यक्ति से न होकर समाज से होता है।