अनुक्रम
स्वास्थ्य का अर्थ
स्वास्थ्य की परिभाषा
अनेक विचारकों ने समय-समय पर स्वास्थ्य की परिभाषा दी हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा निम्न प्रकार हैं।
1. वेब्सटर – शरीर, मन तथा चेतना की ओजस्वी अवस्था, जिसमें समस्त शारीरिक बीमारी और दर्द का अभाव हो, की स्थिति को स्वास्थ्य कहते है।
2. पर्किन्स – शरीर की रचना और क्रिया की ऐसी सापेक्ष साम्यावस्था जो किसी भी प्रतिकूल स्थिति में शरीर को सफलतापूर्वक, संतुलित एवं जीवन्त रखती है, स्वास्थ्य कहलाती है। स्वास्थ्य शरीर के आन्तरिक अवयवों और इन्हें आहत करने वाले कारकों के बीच निष्क्रिय प्रक्रिया न होकर इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की सक्रिय प्रक्रिया है।
3. ऑक्सफोर्ड इंग्लिश कोष – शरीर और मन की तेजपूर्ण स्थिति, ऐसी अवस्था जिसमें समस्त शारीरिक और मानसिक कार्य समय से और पूरी क्षमता से सम्पादित हो रहे हों, ऐसी अवस्था को स्वास्थ्य कहते है।
4. जे.एफ. विलियम्स – स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जो व्यक्ति को अधिक सुखी ढंग से जीवित रहने तथा सर्वोत्तम रूप से सेवा करने के योग्य बनाता है।
5. विश्व स्वास्थ्य संगठन (नं. 137) 1957 – किसी आनुवांशिक और पर्यावरणीय स्थिति में मनुष्य के जीवन चर्या का ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्तर, जिसमें उसके द्वारा सारे कार्य यथोचित समय और सुचारू रूप से सम्पादित किये जा रहे हों, स्वाथ्य कहलाता है।
6. टैबर मेडिकल इंसाइक्लोपीडिया – स्वास्थ्य वह दशा है, जिससे शरीर और मस्तिष्क के समस्त कार्य सामान्य रूप से सक्रियतापूर्वक सम्पन्न होते है।
7. डयूवोस, आर., 1968 – जीवन का ऐसा उपक्रम, जो व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों और अपूर्व विश्व में सुखपूर्वक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करता है, स्वास्थ्य कहलाता है।
8. आयुर्वेद – समदोष: समानिश्य समधातुमल क्रिया। प्रसन्नत्येन्द्रियमना: स्वस्था इत्ययिधीयते।। अर्थ-वात, पित्त एवं कफ-ये त्रिदोष सम हों, जठराग्नि, भूताग्नि आदि अग्नि सम हो, धातु एवं मल, मूत्र आदि की क्रिया विकार रहित हो तथा जिसकी आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न हों, वही स्वस्थ है।
9. संस्कृत व्युत्पत्ति के अनुसार-’’स्वस्मिन् तिष्ठति इति स्वस्था:’’ जो स्व में रहता है, वह स्वस्थ है।
10. विश्व स्वास्थ्य संगठन, 1948 – स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक संतुलन की अवस्था है, केवल रोग या अपंगता का अभाव नहीं।
11. महर्षि चरक के अनुसारः- स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ है ‘‘ शरीर एवं मस्तिष्क का ऐसी अवस्था में होना जिससे वह सभी कार्य सुचारू रूप से कर सके।
12. प्रैक्लीन पी.. एडम्ज के अनुसार- स्वास्थ्य वह वस्तु है जिससे मनुष्य संसार के सुख भोगते हुए सदैव आनन्दित रहता है।
13. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं कि ‘‘जिस काम के करने में किसी प्रकार की तकलीफ न हो, मन में काम करने के प्रति उत्साह बना रहे, और मन प्रसन्न रहे और मुख पर आशा की झलक हो तो यही शरीर के स्वाभाविक स्वास्थ्य की पहचान है।’’
14. आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य – जिस पुरुष के दोष, धातु मल तथा अग्नि व्यापार सम हों अर्थात् समान (विकार रहित) हों तथा जिसकी इन्द्रियाँ, मन तथा आत्मा प्रसन्न हों वही स्वस्थ है। जिस मनुष्य के तीनों दोष वात-पित-कफ सम हो, अग्नियाँ सम हों, अग्नियाँ तेरह प्रकार की कही गयी है, सात धात्वाग्नि, पाँच भूताग्नि और एक जठराग्नि। इनमें भोजन पाचन के लिये जठराग्नि प्रमुख है, जठराग्नि सम हो। सात धातु – रस, रक्ता, मांस, मेद्, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र। ये सम अपनी साम्यास्थिति में हो, एवं मल जिसमें पुरुष, मूत्र एवं स्वेद ये तीनों प्रमुख मल हैं, यह भी अपने साम्यावस्था में हो, क्योंकि इनके कम या अधिक होने से रोग की उत्पत्ति मानी जाती है, अतः ये भी साम्यावस्था में हो, तथा आत्मा इन्द्रियाँ और मन (मानसिक स्वास्थ्य) ठीक हो, उसी को स्वस्थ पुरुष कहा जा सकता है और उसी का स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक माना जायेगा।
स्वास्थ्य के प्रकार
- शारीरिक स्वास्थ्य
- मानसिक स्वास्थ्य
- सामाजिक स्वास्थ्य
- आध्यात्मिक स्वास्थ्य
1. शारीरिक स्वास्थ्य – यदि सामान्य रूप से शरीर के बाह्य तथा आन्तरिक अंग कार्य करते रहते हैं, तो शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा माना जाता है।
- दूसरों के साथ उचित व्यवहार करना।
- दूसरों का मान-सम्मान करना।
- समाज कल्याण की भावना रखना।
- पारिवारिक समायोजन का होना।
- सामुदायिक समायोजन की क्षमता रखना।
- नेतृत्व की भावना का होना।
- उत्तरदायित्वो की पूर्ति करना।
- प्रभावकारी जीवन जीना।
- दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा, दया, सहानुभूति, त्याग व संवेदन की भावना रखना।
- कटुता पूर्ण अपमानपूर्ण बातें न करना।
- आवेशग्रस्त न होना।
- विनम्र भाव दूसरों के प्रति सदैव बनाये रखना।
- अभावग्रस्तों व दुःखियों के प्रति उदार भाव रखना।
- दान की प्रवृति रखना।
- भाईचारा का व्यवहार बनाये रखना।
- असीम सत्ता, प्रकृति, आत्मा व परमात्मा में विश्वास ।
- कर्म ही पूजा है, में विश्वास अर्थात् एकाग्रचित्त होकर अपने कार्यों का निर्वाह।
- निष्काम भाव अर्थात् आसक्तिरहित होकर अपने कर्मों को निरन्तर करते रहना।
- सभी जीवों पर दया करना।
- कुकर्मों से बचना और ईश्वर के दण्ड से भय रखना।
- सत्य तथा अहिंसा में विश्वास रखना।
- अस्तेय का पालन करना अर्थात् चोरी न करना।
- इन्द्रियों पर संयम रखना अर्थात् नियंत्रण रखना।
- शरीर, मन एवं अन्तःकरण को सदैव शुद्ध रखना।
- संतोष रखना।
- सद्विचार, सद्इच्छा एवं शुभ संकल्पों को सदैव अपनाएँ रखना।
स्वास्थ्य की विशेषताएं
- स्वस्थ व्यक्ति रोग से रहित होता है।
- स्वस्थ स्थिति दशायें स्वस्थ व्यक्ति का निर्माण करती हैं।
- स्वस्थ व्यक्ति के व्यक्तित्व में समरूपता तथा सामंजस्यता होती है।
- स्वास्थ्य के अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक सभी क्षमातायें सम्मिलित होती है।
- स्वस्थ व्यक्ति में जैविकीय, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक क्षमताओं का समुचित समन्वय होता है।
- वैयक्तिक स्वास्थ्य पर पारिवारिक तथा सामुदायिक स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है तथा वैयक्तिक स्वास्थ्य का पारिवारिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
- स्वास्थ्य का तात्पर्य शरीर तथा मन दोनों से है, अर्थात् दोनों ही स्वस्थ रहने आवश्यक है।
- यह एक ऐसी दशा है जो स्थिर नहीं रहती है। परन्तु व्यक्ति की अन्तर्हित एवं बाह्य शक्तियों में संतुलन बना रहता है, यदि व्यक्ति अनावश्यक रूप से बाधा न उत्पन्न करें।
- शरीर में आरोग्य रहने तथा क्षतिपूर्ति करने की अभूतपूर्व क्षमता होती है।
- स्वास्थ्य का तात्पर्य भौतिक तथा सामाजिक पर्यावरण से पूर्ण समंजन है।
- स्वास्थ्य का तात्पर्य दीर्घायु से है। अर्थात् आजीवन व्यक्ति उचित आहार-विहार द्वारा स्वस्थ जीवन सुखपूर्वक जी सकता है।
स्वास्थ्य की आवश्यकता
अच्छे स्वास्थ्य के संकेत
1. शारीरिक स्वास्थ्य के संकेत
- आप स्वस्थ तथा सजग रहेंगे।
- आपका वज़न आपकी आयु और कद के अनुसार सामान्य होगा।
- आपकी आँखें चमकदार होंगी।
- आपके शरीर के सभी अंग सामान्य रूप से कार्य कर रहे होंगे और आप कम ही अस्वस्थ होंगे।
- आपकी त्वचा स्वच्छ होगी।
- आपके बालों का रंग प्राकृतिक होगा और बनावट भी प्राकृतिक होगी।
- सांस भी दुर्गंधपूर्ण नहीं होगी।
- आपको भूख भी ठीक लगेगी।
- आपको नींद भी ठीक आएगी।
स्वस्थ व्यक्ति क्रियाशील, संवेदनशील और प्रसन्नचित होते हैं और कड़ी मेहनत कर सकते हैं तथा अपने कार्य को भली भांति संपन्न कर सकते हैं।
2. मानसिक स्वास्थ्य के संकेत
- आप अपने मनोभावों पर नियंत्रण रख सकते हैं।
- आपकी संवेदनाएँ, इच्छाएँ, महत्वाकांक्षाएँ और धारणाऐं संतुलित हो सकती है।
- जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकार करने की और उनका सामना करने की क्षमता हो सकती है।
- अपने आप में आत्मविश्वास हो सकता है।
- जीवन के सामान्य तनावों से निपटने की क्षमता हो सकती है।
- दूसरों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है।
- आवश्यकता पड़ने पर सहायता प्राप्त भी कर सकते हैं और दे भी सकते हैं।
- विरोध और असहमति की स्थिति होने पर उनका सामना कर सकते हैं।
3. सामाजिक स्वास्थ्य के संकेत
- आप जीवन के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति रखते हैं।
- दूसरों के साथ मिलजुलकर कार्य कर सकते हैं।
- आपका व्यक्तित्व प्रीतिकर होगा।
- दूसरों के प्रति आप अपने उत्तरदायित्वों/कर्तव्यों को पूरा कर सकेंगे।
- आपके अंतरव्यक्तिगत संबंध स्वस्थ होंगे।
- असहमति की स्थिति में भी आपकी अभिव्यक्ति सकारात्मक होगी।