स्वाधीनता का अर्थ
प्रो0 लास्की के शब्दों में, ‘‘स्वतंत्रता से मेरा अभिप्राय यह है कि उस सामाजिक परिस्थितियों के अस्तित्व पर प्रतिबन्ध न हो, जो आधुनिक सभ्यता में मनुष्य के सुख के लिए नितान्त आवश्यक है।’’ तथा ‘‘स्वतंत्रता उस वातावरण को बनाये रखना है जिसमें व्यक्ति का जीवन की सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो।’’
माक्र्सवादी दर्शन कोश के अन्तर्गत ‘स्वतंत्रता’ को सामान्य अर्थ में लेते हुए उसके पांच स्वरूपों की चर्चा की गयी है-
- प्रत्ययवादियों के अनुसार स्वतंत्रता मानव जाति का मुक्त संकल्प है, यह (संकल्प) कार्य करने की सम्भावनाओं से उपजता है।
- अस्तित्ववादियों के अनुसार अतिआत्मवादी अवधारणा है अर्थात् जिसका सम्बन्ध नितान्त अपनेपन से है। क्योंकि बाह्य परिस्थितियों के कारण उन पर उनका कोई असर नही पड़ता है।
- मनुष्य का निर्णय परिस्थितियाँ निर्धारित करती हैं- और उसका विवेक उन्हÈ परिस्थितियों की उपज है।
- हीगेल के अनुसार आवश्यकता तथा स्वतंत्रता की द्वन्द्वात्मक एकता से मुक्ति के निर्णय निर्धारित होते हैं और वे परस्पर एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं।
- साम्यवादी चिन्तन-स्वतंत्रता का अपना भिé अर्थ लेता है। उसके अनुसार जीवन की विविध अवस्थाएँ जो अन्ध-प्राकृतिक शक्तियों के रूप में हावी रहती हैं- वे सभी मनुष्य के नियन्त्रण में आ जाती हैं और फिर उन पर नियन्त्रण डालकर आवश्यकता के क्षेत्र में छलांग लगायी जा सकती हैं इसको और भी स्पष्ट करते हुए साम्यवादी चिन्तकों ने बताया कि- ‘‘यह सब लोगों को, वस्तुगत नियमों को, अपने कार्यकलापों को अपने वस्तुगत नियमों को अपने व्यावहारिक क्रियाकलापों में लाने की, समाज विकास विवेकसंगत तथा व्यवस्थित ढंग से निर्देशित करने को- समाज तथा प्रत्येक व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास के लिए यानी कम्युनिस्ट समाज के आदर्शों के रूप में सच्ची स्वतंत्रता को मूर्त रूप देने के लिए सारे आवश्यक भौतिक और आत्मिक पूर्वाधारों (साम्यवादी व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थित) का निर्माण करने की सम्भावना प्रदान करता है।
पश्चिम के विचारकों में स्वतंत्रता के विषय में प्रो0 लास्की का मत विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने बताया कि- ‘‘स्वतंत्रता से मेरा अभिप्राय है कि व्यक्ति समाज में उस वातावरण को स्थापित कर सके जिसके अन्तर्गत सारे समाज के मनुष्य अपनी पूर्णता का अवसर प्राप्त कर सके।’’ “By liberty I mean the eager maintenance of that atmosphere in which men have the opportunity to be there best selves.” सामान्य रूप से स्वाधीनता के अंतर्गत वैयक्तिक तथा सामाजिक व्यवस्था के क्रम में अधोलिखित संदर्भ आते हैं-
- वैयक्तिक स्वाधीनता
- सामाजिक स्वाधीनता
- आर्थिक स्वतंत्रता
- नागरिक स्वतंत्रता
सामाजिक स्वाधीनता का दायरा बहुत बड़ा व्यापक और विविधआयामी है, क्योंकि समाज रचना के सम्पूर्ण आदर्श इसमें वैयक्तिक स्वाधीनता के रूप में स्वयं समाहित होते हैं, जो इसके वृत्त को लगातार बड़ा बनाते रहते हैं। नागरिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता मूलत: सामाजिक स्वतंत्रता के अन्तर्गत अन्तर्मुक्त किये जा सकते हैं। सामाजिक स्वाधीनता के अंतर्गत ये बातें आती हैं-
- पूर्वाग्रहों एवं पुरातन रूढ़ियों से मुक्ति।
- भौतिक, व्यावहारिक एवं बौद्धिक अवरोधों के विरूद्ध मुक्ति के वातावरण का निर्माण।
- नैतिक स्वतंत्रता
- नागरिक स्वतंत्रता
- आर्थिक स्वतंत्रता
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता
- अन्तरराष्ट्रीय स्वतंत्रता
वैयक्तिक स्वाधीनता का सन्दर्भ इस प्रकार है-
- निर्भयता
- निर्णय लेने की सामर्थ्य
- अभिव्यक्ति की स्वाधीनता
- आजीविका चयन एवं निर्वाह की स्वतंत्रता अर्थात् आर्थिक स्वतंत्रता
- रूढ़िवादी परम्परा और संस्कारिकता से मुक्ति
- स्वार्थ के दबाव का अभाव
स्वाधीनता की अवधारणा
वैयक्तिकता तथा सामाजिक स्वाधीनता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष मुक्ति की चेतना है क्योंकि स्वाधीनता का स्वरूप मुक्ति से इंगित होता है पर इस मुक्ति के पीछे ‘निर्णायक’ की इच्छा शक्ति के स्वरूप को देखना अत्यन्त आवश्यक होता है। स्वविवेकानुसार निर्णय की इच्छा शक्ति और लिया गया निर्णय का सम्बन्ध स्वाधीनता अथवा मुक्ति से है। इस निर्णय में नैतिक शक्ति बहुत आवश्यक है। मुक्ति के स्वरूप में यदि नैतिक नियन्त्रण शक्ति तथा सद्-असद् का विवेक नही होगा तो वह स्वाधीनता उच्छृंखला की श्रेणी में पहुँच जाती है। इसलिए स्वाधीनता को परिभाषित करते हुए कुछ चिन्तकों ने मुक्ति के स्वरूप पक्ष पर भी गहरा विचार किया है। स्वतंत्रता के विख्यात विचारक प्रो0 मैकेन्जी कहते हैं कि- “Freedom is not the absence of all restrains but rather the substantial of rational ones for irrational.”
इस प्रकार, स्वाधीनता अविवेकपूर्ण प्रतिबन्धों पर विवेकपूर्ण मुक्ति है। सामान्यत: मुक्ति का सन्दर्भ व्यापक, उदार तथा मानवीय समाज रचना के अनुकूल व्यक्ति के विवेकपूर्ण निर्णय की अवधारणा से सम्बन्धित है तथा यहाँ स्वाधीनता के साथ जिस मुक्ति की चर्चा की जाती है, वह जड़ीभूत, संस्कारग्रस्त, पुरातन, अविवेकपूर्ण, साम्प्रदायिक तथा जर्जर मान्यताओं से सम्बद्ध है और ग्रसित है।
इस प्रकार, स्वाधीनता की अवधारणा किसी देश, राष्ट्र की भौगोलिक सीमा, सम्प्रदायवाद तथा अधिनायकवाद से ही संदर्भित नही है। स्वाधीनता इन सबसे ऊपर मानवीय समाज रचना की वृहत्तर आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक, साम्प्रदायिक तथा बौद्धिक संकीर्णताओं से स्वयं को तथा सम्पूर्ण समाज व देश को मुक्ति दिलाने की अति संकल्पबद्ध निर्णयात्मक प्रतिबद्धता है। इस प्रतिबद्धता में समाज तथा व्यक्ति विशेष दोनों का समवेत् तथा सम्मिलित योगदान है।
मुक्ति का अर्थ मनमानीपन तथा नियंत्रणविहीन स्वच्छन्दता से नही है। इस स्वच्छन्दता से मुक्ति पाने के लिए ही तो रूसो ने कहा है- उन विधियों को मानना जिनकी हमने स्वयं व्यवस्था की है- स्वतंत्रता है।’’20 सम्पूर्ण मानव जाति को स्वविवेक के अनुसार उचित निर्णय लेने और आचरण करने की स्वतंत्रता है तथा यही स्वतंत्रता की कामना एक प्रकार से मानव जाति देश तथा विश्व के लिए मुक्ति की आकांक्षा से भी सम्बद्ध है।
निष्कर्ष रूप से इस प्रकार जब हम स्वाधीनता की चेतना की चर्चा करते हैं तो उसका संदर्भ उस मुक्ति चेतना से है, जो परम्परित, सांस्कारिक और रूढ़िवादी व्यवस्थाओं से स्वयं को मुक्ति पाने तथा समाज को मुक्ति दिलाने की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह एक प्रकार से, वैयक्तिक तथा सामाजिक आकांक्षाओं का एक आवश्यक संकल्प है, जो इसे वृहत्तर मानवहितों तथा उसके समुचित विकास के महान संकल्पों से जोड़े रहता है।
- स्वतंत्रता तथा आवश्यकता, दर्शन कोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, पृ0 751-752
- उपरिवत्, पृ0 752
- ए ग्रेमर ऑफ़ पालिटिक्स, ए0जे0 लास्की, पृ0 50-80
- स्टेट एण्ड द इण्डविजुअल, डब्ल्यू0 एस0 मैकेन्जी, पृ0 61
- लोकतन्त्र स्वरूप ओर समस्यायें, श्री रघुकुल तिलक, पृ0 63