संत तुकाराम महाराज का जीवन चरित्र
संत तुकाराम महाराज विट्ठल के भक्त थे। उनके जन्म काल के बारे में मतभेद है। डॉ. अशोक का मत ने उनका जन्म सन् 1568, प्रभाकर सदाशिव पंडित ने सन् 1597, प्रसिद्ध इतिहासविद् राजवाडे़ ने उनका जन्म शके 1490, श्री भारदे ने उनका जन्म शके 1520, श्री पांगारकर व महीपति बुवा उनका जन्म सन् 1530, जनार्दन ने शके 1510 ई. स. 1528 माना है। इनका जन्म पूना के करीब देहू गाँव में हुआ है। वे जाति से शूद्र और व्यवसाय से वैश्य थे।
संत तुकाराम महाराज की प्रमुख रचनाएँ
संत तुकाराम महाराज की रचनाएँ इस प्रकार हैं – मराठी में ‘अस्सल गाथा’ इनकी अभंग रचना है। ‘अस्सल गाथा’ग्रंथ को कुछ दुष्ट ब्राह्मणों ने इंद्रायणी नदी में फेंका था। संत तुकाराम महाराज जब अनशन करने भगवान विट्ठल का नामस्मरण करते हुए इंद्रायणी के पास बैठे थे तब भगवान ने उन्हें अपने हाथों से उनकी ‘अस्सलगाथा’ 7 दिनों के बाद दे दी। इस गाथा में आत्मचरित्रात्मक, निवेदनात्मक, उपदेशात्मक, पौराणिक कथात्मक, संत चरित्रात्मक, भगवान विट्ठल की व पंढरपुर की स्तुति पर उपदेशात्मक अभंग हैं।
‘‘लोभी के चित धन बैठे, कामिन के चित्त काम।
माता के चित्त पुत बैठे, तुका के चित्त राम।।’’
इनकी टूटी-फूटी सधुक्कड़ी हिंदी भाषा है। इनकी ब्रज भाषा में कृष्ण के गीत मिलते हैं। इनके आत्म-चरित्रपरक अभंग में इनके जीवन की घटनाएँ व तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाएँ मिलती हैं। अध्यात्मपरक अभंग में उनके साधनावस्था के अनुभव, प्रभु दर्शन (विट्ठल) के लिए अंत:करण की उद्विग्नता, नामस्मरण, कीर्तन माहात्म्य, सगुण-निर्गण का महत्व, भगवत प्रेम आदि मिलता है। सामाजिक अभंग में जाति – पाँति, वर्णाभिमान का, संत निंदा का त्याग, परद्रव्य व परकांतादि से बचना, गृहस्थ धर्म में आनंद व काम-क्रोध से दूर रहकर साधना में लीन रहना आदि आता है। इनमें अभिव्यक्ति की निभ्र्ाीकता मिलती है।
- विष्णु परशुराम पंडित व शंकर पांडुरंग पंडित ने ‘तुकाराम अभंग ‘प्रकाशित किए हैं।
- पुरुषोत्तम मंगेश लाड़ कृत ‘तुकाराम अभंग’ सन् 1950 ई.स.।
- अंग्रेज़ मिशनरी मिचेल एवं सर ग्रेट ने अंग्रेज़ी में ‘तुकाराम के पदो।’ का अनुवाद किया है।
- डॉ. विनयमोहन शर्मा कृत ‘हिंदी को मराठी संतों की देन ‘‘में 16 साखियाँ और 24 हिंदी पद मिलते हैं।
- दिनकर महादेव भागवत कृत पदरत्नमहादधि में हिंदी का पद मिलता है।
संत तुकाराम महाराज फाल्गुन कृष्णा द्वितीया के दिन संवत् 1571 (विक्रम संवत् 1706 या सन् 1649 ई.) में विट्ठल रूप में लीन हो गए।