अनुक्रम
दूसरे शब्दों में श्रमिकों व नियोक्ताओं के मध्य श्रमिकों को रोजगार या उनकी बेरोजगारी की दशाओं से संबंधित असहमति को निर्देशित करता है। अधिकांश रूप से उत्पन्न होने वाले संघर्ष, मंहगाई भत्ता, बोनस, श्रमिकों की पदच्युति अथवा सेवामुक्ति, अवकाश एवं छुट्टियों, सेवानिवृत्ति लाभों और मकान किराया एवं अन्य भत्तों से संबद्ध हो सकते हैं।
संघर्ष प्रबंधन की विशेषताएँ
- औद्योगिक संघर्ष में विभिन्न पक्षकारों के बीच होते हैं : जैसे – मालिकों के मध्य मालिकों एवं श्रमिकों के मध्य, श्रमिकों एवं श्रमिकों के मध्य
- इन विभिन्न पक्षकारों के मध्य उत्पन्न संघर्ष तब औद्योगिक संघर्ष कहलाता है। जबकि संघर्ष का संबंध निम्न में से किसी विषय में होता है। : (अ) किसी कर्मचारी की नियुक्ति या सेवामुक्ति से सम्बन्धित हो, (ब) किसी कर्मचारी की सेवा शर्तों से सम्बन्धित हों, (स) किसी कर्मचारी की कर्य दशाओं से सम्बिन्ध् ात हो।
- औद्योगिक संघर्ष को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती।
- जिन पक्षकारों के द्वारा संघर्ष की दशायें पैदा की जाती है, उनका संघर्ष में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित जुड़ा होता है।
- संघर्ष की पक्षकारों के मध्य वास्तविक रूप से होना आवश्यक होता है।
- औद्योगिक संघर्ष के अंतर्गत संघर्ष एवं उनके पक्षकार स्पष्ट होने आवश्यक हैं।
- औद्योगिक संघर्ष को भूतपूर्व श्रमिक द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
- औद्योगिक संघर्ष उद्योग में अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं।
संघर्ष के प्रकार
जब संघर्ष व्यापक रूप धारण कर लेता है तब इसकी परिणिति हड़ताल प्रदर्शन, धरना आदि के रूप में सामने आती हैं। इसी प्रकार उपर्युक्त सभी अवधारणा, औद्योगिक संघर्ष के अंग हैं। आइये अध्ययन की सुविधा हेतु इनका क्रमवार अध्ययन करें :-
- हड़ताल
- तालाबन्दी
1. हड़ताल – हड़ताल का तात्पर्य अस्थायी रूप से श्रमिकों द्वारा कार्य में विध्न डालना है। यह श्रमिक द्वारा स्वत: कार्यमुक्ति है। औद्योगिक संघर्ष अधिनियम की धारा 2 (क्यू) के अनुसार व्यक्तियों के समूह द्वारा, जो मिलकर कार्य करते हैं सामूहिकता से कार्य नहीं करना अथवा एकमत होकर कार्य करने से मना करना, हड़ताल कहलाता है।’इसी प्रकार हड़ताल का तात्पर्य श्रमिकों द्वारा कार्य को चालू रखने से इन्कार या दूसरे शब्दों में श्रमिकों के किसी समूह द्वारा अपने परिवाद का प्रकट करने या कार्य से संबंधित अपनी मांगों को मनवाने हेतु दबाव डालने के लिए अस्थाई रूप से कार्य बद करना, हड़ताल है।
- हड़ताल सदैव असंतुष्ट श्रमिकों द्वारा की जाती है।
- इसमें श्रमिक कार्य करना बंद कर देते हैं।
- हड़ताल श्रमिकों द्वारा अपने विवादों को प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम है।
- हड़ताल अनिश्चित समय के लिए की जाती है तथा हड़ताल समाप्ति के पश्चात प्राय: श्रमिक अपना कार्य करना आरंभ कर देते हैं।
- हड़ताल किन्हीं मांगों को लागू करवाने के लिए दबाव डालने का साधन है।
- हड़ताल श्रमिकों के किसी भी एक समूह द्वारा की जा सकती है।
- हड़ताल अन्याय तथा असंतोष का गम्भीर लक्षण है।
- हड़तालें वैध या अवैध हो सकती हैं।
- हड़तालें अनेक रूपों में यथा – भूख हड़ताल, सांकेतिक हड़तालें,धीरे कार्य करो हड़ताल आदि के रूप में हो सकती है।
- समुचित ढंग से नोटिस दे कर हड़ताल करने का श्रमिकों का अधिकार है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज हड़ताल अपनी न्यायोचित मांगों को मनवाने का एक सशक्त माध्यम बनती जा रही है। प्राय: हड़तालों के निम्न स्वरूप दृष्टिगत होते हैं :-
- जब कर्मचारी जान बूझ कर अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं करते। अत: सेवायोजकों को उनकी मांगों के विषय में विवश होकर सोचना पड़ता है तब इस हड़ताल धीरे काम करो हड़ताल के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
- जब विभिन्न श्रम संगठनों द्वारा क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सामूहिक शक्ति प्रदर्शन दूसरे का समर्थन हेतु किया जाता है तब इसे सहानुभूति हड़ताल कहा जाता है।
- नियमानुसार कार्य की नीति के अंतर्गत जिसे उड्डयन विभाग के विमान चालकों ने भारत में अपनाया था जिसमें अतिरिक्त समय काम करने या अधिक माल ले जाने से मना कर देते हैं।
- भूख हड़ताल यह हड़ताल सबसे प्रचलित विधि है।सामान्यत: यह नेताओं, विद्यार्थियों अथवा श्रमिकों द्वारा अपनी मांगें मनवाने हेतु की जाती हैं। भूख हड़ताल का प्रारम्भ हड़ताल के समय, हड़ताल के उपरांत कभी भी किया जा सकता है। इसमें श्रमिकों का सहयोग प्राप्त किया जाता है। किसी विरोधी निर्णय को वापस लेने, श्रमिकों के विरूद्ध लगाये गये किसी अभियोग को वापस लेने के उद्देश्य से भूख हड़तालें आयोजित की जाती हैं।
- ‘घेराव’ में कर्मचारी प्रबंधकों को तब तक घेरे रहते हैं जब तक कि उनकी मांग मान नहीं ली जाती या आश्वासन नहीं दे दिया जाता।
- सांकेतिक हड़ताल नियोक्ता का ध्यान किसी समस्या के प्रति आकृष्ट करने के लिए सांकेलित हड़तालें भी की जाती है। इस क्रिया का असर नहीं होने पर विधिवत नोटिस दे कर लंबी हड़ताल प्रारम्भ कर दी जाती है।
2. तालाबन्दी – तालाबंदी सेवायोजकों के हाथ में एक महत्वपूर्ण हथियार है। जिससे यह श्रमिकों को तितर बितर करने का असफल प्रयत्न करता है। यह श्रमिकों की चेतना को नष्ट करने का अस्त्र है। औद्योगिक संघर्ष अधिनियम की धारा 1 के अनुसार तालाबंदी की परिभाषा इस प्रकार है, सेवायोजकों द्वारा कर्मचारियों से कार्य नहीं लेना, अथवा कार्य स्थल पर ताला लगा देना अथवा कार्य स्थगित यकर देना आदि क्रियायें तालाबंदी के अन्तर्गत आती हैं। इस प्रकार जब सेवायोजक श्रमिकों के मानवीय अधिकारों पर शासन करना चाहता है तथा उन पर संपत्ति अधिकार प्रयोग करती है, तो वह उन्हें अपने व्यवसाय क्षेंत्र से बाहर निकाल देता है एवं उन्हें कार्य करने से रोकता है जिसे तालाबन्दी की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार तालाबन्दी में निम्न तत्व सम्मिलित होते हैं :-
- तालाबन्दी सेवायोजकों द्वारा की जाती है।
- तालाबंदी के अन्तर्गत सेवायोजक संस्था में कार्यरत सभी या कुछ श्रमिकों को अनिश्चित समय के लिए रखने से इनकार करता है।
- तालाबंदी में कारखाने या कार्यस्थल को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है।
- तालाबंदी किसी औद्योगिक संघर्षों के उत्पन्न हो जाने तथा संघर्षों का निपटारा करने के सभी प्रयासों के असफल हो जाने का परिणाम होती है।
- तालाबंदी श्रमिकों की मांगों को मानने में असमर्थता प्रकट करने के लिए की जाती है।
- किसी व्यक्ति विशेष को कार्य देने से इनकार करना तालाबंदी नहीं होती।
- कुछ श्रमिकों को एक साथ सेवामुक्त करना या पदच्युत करना भी तालाबंदी नहीं है।
- छंटनी के कारण किन्हीं श्रमिकों को कार्य देने से इनकार करना भी तालाबंदी नहीं है।
संघर्ष से लाभ तथा हानि – एक विमर्श
औद्योगिक संघर्ष के परिणाम के सम्बन्ध में दो प्रकार के मत हैं।कुछ विद्वानों का ऐसा मत है कि इसके परिणाम अच्छे होते हैं, इससे श्रमिकों की कार्यदशाओं में सुधार होता है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का कहना है कि औद्योगिक विवादों के कारण उत्पादन मात्रा में कमी आ जाती है और इससे लाभों में हानि होती है। औद्योगिक संघर्ष के सम्बन्ध में दोनों प्रकार के विचारकों के मत एकांगी है। इससे लाभ भी होता है और हानियॉं भी होती हैं। यहॉं हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभ और हानि दोनों मतों के सम्बन्ध में क्रमश: विमर्श करेंगे :-
प्रथम विमर्श से हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभों के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे –
औद्योगिक श्रमिक जिन कारखानों में कार्य करते है उनकी दशाएं अत्यन्त खराब होती हैं और इनसे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।वहॉं अत्यन्त गन्दगी, रोशनी और प्रकाश की समुचित व्यवस्था का अभाव, खाद्य पदार्थों का अभाव और अस्वाथ्यकार खाद्यपदार्थ, विश्रामगृह की बुरी हालत, मूत्रालय और शौचालय आदि की अव्यवस्था रहती है। हड़तालों की सहायता से इन बुरी अवस्थाओं में सुधार लाया जाता है। और श्रमिकों के लिए काम करने की स्वास्थ दशाओं का सृजन किया जाता है।औद्योगिक संघर्षों के कारण श्रमिकों को आर्थिक लाभ होता है। इससे उनकी मजदूरी तथा मॅंहगाई भत्ते में वृद्धि होती है और बोनस की उपयुक्त सुविधा प्रदान की जाती है।
औद्योगिक संघर्षों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कार्य की दशाओं में सुधार आता है। उनको आर्थिक लाभ होता है, उनका जीवन-स्तर उन्नत होता है तथा काम के घण्टों में कमी होती है। इस सब का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों की कुशलता और कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।
औद्योगिक संघर्षों का सबसे अच्छा परिणाम यह होता है कि इससे श्रमिकों में पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास होता है। जिससे इनमें एकता की भावना का विकास होता है। इस एकता का परिचय वे श्रम संघ के माध्यम से देते हैं।इससे श्रम सघ आंदोलन को भी प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही, श्रमिक संघों में अधिक दृढ़ता का विकास होता है। इसके कारण श्रमिकों के प्रतिनिधियों को उद्योगों के प्रबन्ध में भागीदार का अधिकार मिल जाता है। इससे श्रमिकों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वे प्रबन्ध् ा में होने के कारण अपनी समस्याओं को स्वयं ही सुलझा लेते है।। इसमें इनके शोषण का अन्त तो नहीं होता किन्तु श्रमिकों के शोषण में कमी आ जाती है। इन्हें अनेक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं तथा इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि उद्योगों के प्रबन्धकों में जागरूकता का विकास हुआ है। आज वे श्रमिकों के साथ दुव्र्यवहार और उनका अनावश्यक शोषण नहीं कर सकते। वे श्रमिकों की समस्याओं को उपेक्षा और उदासीनता की दृष्टि से नहीं देख सकते हैं।
जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार जहॉं एक ओर लाभ है तो दूसरी ओर हानि। औद्योगिक संघर्षों के कारण प्रमुख रूप से जो हानियॉ हैं वे अग्रलिखित हैं –
औद्योगिक संघर्षों के कारण हड़ताल और तालाबन्दी होती है इससे श्रमिकों को गम्भीर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संघर्ष के कारण मजदूरों तथा उनके परिवार को निम्न हानियॉं उठानी पड़ सकती हैं।
- इसके परिणाम स्वरूप श्रमिकों की आय में कमी आती है, जिसके कारण उसका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है वह अपने को आर्थिक संकट से घिरा हुआ पाता है। इससे उसके जीवन यापन के स्तर में गिरावट तो आती ही है साथ ही उसका और पूरे परिवार का स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है।
- हड़ताल के समय का पारिश्रमिक व्यर्थ में ही चला जाता है। जिस समय में श्रमिक हड़ताल करता है वहसमय दुबारा लौटकर नहीं आता। बेकार बैठे रहने से श्रमिकों की कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- हड़ताल और मांगों के प्रदर्शन में श्रमिकों को लाठी और गोली खानी पड़ती है तथा कभी कभी उन्हें अपनी बलि भी चढ़ानी पड़ती है।
- हड़ताल के कारण श्रमिक को णग्रस्तता का भी शिकार होना पड़ता है क्योंकि हड़ताल के समय मजदूरी नहीं मिलती इसलिए अपने स्वयं के और परिवार के भरण पोषण के लिए उसे उधार लेना पड़ता है।
- पारिवारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है । भोजन के अभाव में परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है और वे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
- अनेक हड़तालें असफल हो जाती हैं हड़तालों की इस असफलता से श्रमिकों का नैतिक पतन होता है। साथ ही उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
- श्रमिक श्रम संघों के प्रति अपना विश्वास समाप्त कर देते हैं।
- श्रमिकों में एकता की भावना में कमी आती है, श्रमिकों की छॅटनी हो जाती है तथा इससे बेकारी की समस्या और भी उग्र हो जाती है।
- संघर्षों के कारण सबसे ज्यादा हानि उद्योगपतियों को चुकानी पड़ती है। उद्योगपतियों को जो कीमत चुकानी पड़ती है उसमें उत्पादन में कमी, बिक्री में कमी, बिक्री कम हो जाने से बाजार छिन्न भिन्न हो जाना, इस प्रकार श्रम संघों के प्रति जनता विश्वास व्यक्त करती है और उत्पादकों के प्रति विश्वास में कमी आती है।
- अत: मालिकों के नैतिक प्रतिष्ठा में कमी हो जाती है। औद्योगिक अशान्ति का जन्म होता है, जिससे सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
- हड़ताल और तालाबन्दी के परिणामस्वरूप अनुशासनहीनता में वृद्धि होती है, और श्रम तथा पूंजी के बीच घृणा का वातावरण पैदा हो जाता है जिससे वर्ग संघषो को प्रोत्साहन मिलता है।
संघर्षों के कारण श्रमिक और उद्योगपति को ही हानि नहीं होती अपितु इससे सर्व समाज को हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार संघर्ष के परिणामस्वरूप समाज को निम्न हानि उठानी पड़ती है।
- इससे समाज में विद्वेष और विषमता का वातावरण उत्पन्न होता है।
- समाज में अनिश्चितता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है।
- प्राथमिक सुविधाएं जैसे – परिवहन, जल, बिजली, आदि में हड़ताल होने से जनता को अनेक प्रकार की कठिनाइयॉं होती हैं।
- हड़ताल के कारण समाज में वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है जिससे समाज को हानि उठानी पड़ती है।
- हड़ताल के कारण उत्पादन कम हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि राष्ट्रीय आय की हानि होती है।
इस प्रकार जब किसी उद्योग में पूंजी और साधन पूर्णरूप से हड़ताल या तालाबन्दी से निष्क्रिय कर दिये जाते हैं तब इसका प्रभाव राष्ट्रीय लाभांश पर पड़ता है। जिससे अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाती है और देश का विकास रूक जाता है।
संघर्ष के रोकथाम हेतु सुझाव
इस सम्बन्ध में निम्न सुझावों की सहायता से संघर्षों को कम करने में मदद सहायता मिल सकती है :-
उ़द्योगपति तो शक्तिशाली है ही साथ ही श्रम संघों की स्थापना से श्रमिकों में शक्ति का संचार हो जायेगा। इस शक्ति सन्तुलन के परिणामस्वरूप मालिकों और श्रमिकों के बीच में समझौता होगा और भविष्य में यदि किसी भी प्रकार का मतभेद होगा तो श्रम संघ और उद्योगपति मिलकर समस्याओं का समाधान कर लेंगे। इससे भविष्य में किसी प्रकार के संघर्ष की गुंजाइश नहीं रहेगी। इस प्रकार शक्तिशाली श्रम संघों की सहायता से संघर्ष को निपटाने में मदद मिलेगी।
- औद्योगिक विवादों और संघर्ष को समाप्त करना।
- श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच असहयोगात्मक वातावरण समाप्त करना, और
- उद्योगों में नियमों का पालन करना।
इस प्रकार मालिक-मज़दूर समितियॉं, औद्योगिक विवादों के सुलझाने में जो प्रमुख कार्य करेंगे, वे इस प्रकार हैं –
- मान्यता प्राप्त मालिकों के संघ और श्रमिकों के संघ के बीच समझौते की शर्तों को लागू करना।
- श्रमिकों और मालिकों के बीच जो गलतफहमियों हो जाती है, उन्हें दूर करना।
- श्रमिकों में उनकी दशाओं और कार्य के प्रति रूचि तथा उत्तरदायित्व की भावना का प्रसार करना।
- मालिकों और श्रमिकों के बीच पारस्परिक सहयोग को बनाए रखना साथ ही दिन प्रतिदिन जो समस्याएं आये उन पर विचार विनिमय करना।
- श्रमिकों और मालिकों के बीच अनुशासन और उचित व्यवहार बनाए रखना।
- श्रमिकों के जीवन स्तर को उन्नतिशील बनाना।
- श्रमिकों को विचार विनिमय करना – काम करने की दशाएॅं, रहन सहन की दशाएॅं, कल्याण की दशाएॅं, मजदूरी भत्ता और बोनस, छुट्टियॉं और अवकाश आदि।
- श्रमिकों की कार्यक्षमता को बनाए रखना और कार्य क्षमता को घटाने वाले कारकों का विश्लेषण करना।
- औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के प्रयास करना।
- हड़ताल और तालाबन्दी की घटनाओं को न होने देना और यदि हो जाती है तो शीघ्र ही इनको समाप्त करने सम्बन्धी प्रयास करना।
- श्रमिकों की इन समस्याओं की जानकारी उद्योगपतियों को देना और समस्याओं के समाधान का प्रयास करना।
- ऐसी व्यवस्था करना जिससे कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की गारन्टी दी जा सके।
- मिल में सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम को अपनाना।
- श्रम न्यायालय के निर्णय, सरकारी आदेश, विज्ञप्ति आदि के विषय में प्रबन्धकों से विचार विमर्श करना।
- यदि कोई कर्मचारी कारखाने के दैनिक जीवन और सुख सुविधाओं के सम्बन्ध में अपने सुझाव दे तो उन सुझावों पर विचार विनिमय करना।
- प्रबन्धकों अथवा श्रमिकों द्वारा प्रस्तुत किसी भी मामले पर विचार विमर्श करना। वस्तुत: यदि उनको उचित स्थान प्रदान किया जाता है और भूतकाल की गलतियों को दूर करने दिया जाता है जो मालिक मजदूर समितियां औद्योगिक प्रणाली में बहुत प्रभावी व उपयोगी कार्य कर सकती है।
3. संयुक्त औद्योगिक परिषदें – सयुंक्त औद्योगिक परिषदो की स्थापना द्वारा भी औद्योगिक संघर्षों को कम किया जा सकता है। ये परिषदें निम्न प्रकार की हो सकती हैं –
- राष्ट्रीय स्तर पर
- राज्य स्तर पर
- भिन्न भिन्न उद्योगों की भिन्न भिन्न परिषदें, और
- एक ही उद्योग में विभिन्न विभागों के लिए अलग अलग परिषदें।
इन परिषदों में श्रमिक और मालिक दोनों के ही समान प्रतिनिधि होंगे। इनके माध्यम से श्रमिकों और मालिकों के बीच ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिससे औद्योगिक विकास में दोनों बराबर सहयोग दें। इन परिषदों के माध्यम से मालिक और श्रमिक दोनों के हितों की रक्षा का प्रयास किया जाता है। इन समितियों के समक्ष जिन विषयों पर विचार विमर्श किया जा सकता है, वे अग्रलिखित हो सकते हैं –
- नित्य प्रति काम करने की दशाएं और श्रमिकों की मजदूरी
- उद्योगों से सम्बन्धित उत्पादन
- श्रम की कुशलता
- ऑकड़े इकट्ठे करना।
- औद्योगिक अनुसंधान को प्रोत्साहन, और
- प्रबन्ध सम्बन्धी समस्याओं पर विचार करना, आदि।
- प्रबन्ध में श्रमिकों को सहभागिता प्रदान करके,
- अनुशासन – संहिता का निर्माण करके
- आचार संहिता का निर्माण करके
- शिकायत निवारण क्रियाविधि
- मूल्यांकन तथा कार्यान्वयन समितियॉं तथा
- त्रिदलीय श्रम व्यवस्था।