अनुक्रम
संघनन की प्रक्रिया
वायु का तापमान दो स्थितियों में कम होता है। एक तो तब जब स्वतंत्र रूप से बहती वायु किसी अधिक ठंडी वस्तु के संपर्क में आती है। दूसरी स्थिति में जब वायु ऊँचाई की ओर उठती है। संघनन धुआँ, नमक तथा धूलकणों के चारों ओर होता है; क्योंकि ये कण जलवाष्प को अपने चारों ओर संघनित होने के लिए आकर्षित करते हैं। इन कणों को आर्द्रता ग्राही केन्द्रक कहते हैं। जब किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है, तो थोड़ी सी ठंड होने पर ही तापमान ओसांक से नीचे आ जाता है। लेकिन, जब किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रताकम होती है तथा वायु का तापमान अधिक होता है तो उस वायु के तापमान को ओसांक से नीचे अधिक ठण्ड होने पर ही लाया जा सकता है। इस प्रकार संघनन की गति व मात्रा वायु की सापेक्ष आर्द्रतातथा उसके ठण्डा होने की दर पर निर्भर करती है।
- संघनन जलवाष्प के छोटे-छोटे जलकणों या हिमकणों में बदलने की प्रक्रिया है।
- संघनन तब होता है जब किसी वायु का तापमान ओसांक से कम होता है या नीचे गिरता है तथा यह वायु की सापेक्ष आर्द्रता तथा ठण्डे होने की दर पर निर्भर करता है।
संघनन के रूप
संघनन दो परिस्थितियों में होता है: प्रथम, जब ओसांक हिमांक बिन्दु या 00 से. से कम होता है तथा दूसरी स्थिति में तब जब यह हिमांक बिन्दु से अधिक होता है।
- ओसांक के हिमांक बिन्दु से नीचे तापमान होने पर बनते हैं- पाला, हिम तथा कुछ प्रकार के बादल।
- ओस, धुन्ध, कोहरा, कुहासा तथा कुछ प्रकार के बादल ओसांक के हिमांक बिन्दु से ऊँचे तापमान पर बनने वाले रूप हैं।
संघनन के रूपों को स्थान के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए धरातल पर या प्राकृतिक पदार्थों जैसे घास व पेड़-पौधों की पत्तियों पर, भूतल के पास वाली वायु में अथवा क्षोभमण्डल में कुछ ऊँचाइयों पर।
1. ओस –
2. पाला –
3. धुंध और कोहरा –
धूम-कोहरा : धूम-कोहरा एक विशेष प्रकार का कोहरा है जो धुँआ, धूल, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और अन्य धुओं द्वारा प्रदूषित कर दिया जाता है। धूम-कोहरा बड़े-बड़े नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में अक्सर पाया जाता है। इसका लोगों की आँखों तथा श्वसन क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
4. बादल –
- निम्न मेघ : ये बादल धरातल से 2000 मीटर की ऊँचाई तक बनते हैं। स्तरीय मेघ इस परिवार का प्राथमिक मेघ हैं जो निम्न परन्तु धरातल से ऊपर कुहरे के समान पर्तों की आकृति वाला होता है। स्तरीय कपासी मेघ निम्न भूरी पर्तों वाला गोलाकार होता है। यह पक्तियों, झुंड या लहरदार रूप में व्यवस्थित होता है। वे बादल जो ऊध्र्व रूप में विकसित होते हैं इनको दो भागों में विभाजित कर सकते हैं:- कपासी और कपासी वर्षा मेघ कपासी मेघ सघन, गुम्बदाकार एवं सपाट आधार वाले होते हैं। ये ही बढ़कर कपासी वर्षा वाले मेघ बन जाते हैं। इनका ऊध्र्व मुखी विकास बादल के नीचे स्थित ऊध्र्व तरंग की शक्ति एवं बादल बनते समय छोड़ी गई गुप्त उष्मा की मात्रा के ऊपर निर्भर करता है। कपासी वर्षा मेघ से ठीक नीचे से देखने पर पूरा आकाश बादल से भरा दिखाई देता है तथा वर्षा स्तरीय (Nimbo stratus) मेघ की तरह दिखता है। निम्बस (Nimbus/Nimbo) शब्द का अर्थ उस मेघ से होता है जिससे तेज वर्षा होती है। यह लेटिन की भाषा से लिया गया है।
- मध्यम मेघ- ये बादल 2000 से 6000 मीटर की ऊँचाई के मध्य बनते हैं। इस वर्ग में उच्च कपासी मेघ (Alto-cumulus) एवं उच्च स्तरी मेघ (Alto-stratus) शामिल हैं।
- उच्च मेघ- इन बादलों का निर्माण 6000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर होता है। इनमें पक्षाभ (Cirrus), पक्षाभ स्तरी (Cirro-stratus) व पक्षाभ कपासी (Cirro-cumulus) मेघ शामिल हैं।