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भारत एक विशाल क्षेत्र वाला देश है। जिसमें 1 अरब से अधिक जनसंख्या निवास करती है। इस जनसंख्या के कुछ प्रतिशत लोग किसी-न -किसी विकलांगता से ग्रसित हैं। देखा जाये तो देश की स्वतंत्रता के बाद भी विकलांगता के क्षेत्र में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं। जनगणना 1931 के अनुसार मूक बधिर व्यक्तियों की जनसंख्या 2,31,000 थी। देश की भौगोलिक संरचना के आधार राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन 1991 के आंकड़ों के आधार पर लगभग 32,42,000 व्यक्ति श्रवण अक्षमता से ग्रसित पाये गये।
श्रवण बाधित की परिभाषा
श्रवण क्षतिगस्तता को विभिन्न संगठनों द्वारा समय-समय पर परिभाषित किया गया है –
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति सुनने में असक्षम हो तथा दूसरों की सहायता लेता है, उससे यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति को श्रवण दोष है। श्रवण दोष एक अदृश्य एवं छुपी हुई विकलांगता है, जो देखने से नहीं दिखाई देती है। कोई व्यक्ति हाथ या पैर से विकलांग है तो वह बैसाखी, व्हील चेयर, ट्राईसाइकिल आदि का प्रयोग करता है। जिससे उसकी शारीरिक विकलांगता का पता चलता है तथा एक मानसिक विकलांग बच्चा अपने हाव-भाव, क्रिया-कलापों तथा व्यवहार यह साबित करता है कि वह मानसिक मन्द है।
श्रवण बाधित की विशेषताएं
श्रवण बाधिक बालकों में अनेक विशेषताएं पायी जाती हैं ।
- भाषा संबंधी विशेषताएं
- शैक्षिक विशेषताएं
- बौद्धिक योग्यता संबंधी विशेषताएं
- सामाजिक व व्यावसायिक विशेषताएं
- अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं।
1. भाषा संबंधी विशेषताएं
- श्रवण बाधित बालकों की भाषा भी अत्यंत प्रभावित होती है।
- इनको प्रशिक्षण के द्वारा उचित शिक्षा प्रदान की जाती है।
- गंभीर बाधितों में यह सबसे बड़ी कठिनाई होती है कि वह बालक का सामान्य विकास नहीं कर पाते।
- यह भाषा का कम प्रयोग करते हैं।
- इनके गहन प्रशिक्षण के द्वारा भाषा का सामान्य विकास हो जाता है।
- इन बालकों की अभिवृत्ति ऐसी होती है कि वो अपने को बोलने में अयोग्य समझते हैं, परंतु वह वैज्ञानिक आधार नहीं होता है।
2. शैक्षिक विशेषताएं
- इन बालकों में शिक्षा संबंधी अनेक विशेषताएं होती है।
- इनका बौद्धिक स्तर तो ऊंचा होता है, परंतु फिर भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि ऊंची नहीं होती।
- इन बालकों की शैक्षिक निष्पत्ति के हालात ज्यादा उच्च नहीं होते, क्योंकि शैक्षिक निष्पत्ति में शाब्दिक योग्यता की भूमिका उच्च होती है।
- इन बालकों को पढ़ने में कठिनाई होती है, क्योंकि इनकी भाषा का सही विकास नहीं होता है।
3. बौद्धिक योग्यता संबंधी विशेषताएं
- श्रवण बाधित बालकों का मानसिक विकास सामान्य बालकों के समान ही होता है।
- इन बालकों में बौद्धिक कार्य सामान्य बालकों के जैसे ही होते हैं।
- इनकी चिन्तन शक्ति सामान्य बालकों जैसी होती है।
- यह बालक अशाब्दिक भाषा से बौद्धिक कार्य करने में सक्षम होते हैं।
- इन बालकों की बौद्धिक अशाब्दिक परीक्षा (Non-verbal intelligent test) में इनकी बुद्धि-लाब्धि उच्च होती है।
4. सामाजिक व व्यावसायिक विशेषताएं
- श्रवण बाधित बालक अपने ही समूह में रहना पसंद करते हैं तथा उनसे संबंध बनाते हैं उनकी रूचियां भी समान होती हैं।
- सम्प्रेषण की समस्याओं के कारण समाज में इनकी अन्त:प्रक्रिया नहीं हो पाती हैं।
- इन बालकों की इच्छाएं तो अधिक होती हैं कि इन्हें सामाजिक मान्यता मिले व सामाजिक अन्त: प्रक्रिया हो तथा इस इच्छा पूर्ति के न होने से उनमें हीन भावना अधिक हो जाती है।
- श्रवण बाधित बालकों के सामाजिक व व्यक्तित्व संबंधी विशेषताएं सामान्य बालकों से अलग होती है।
- श्रवण बाधित बालकों में भावात्मक समायोजन में सामान्य बालकों के समान होते हैं। सामान्य बालकों की तरह वातावरण के घटक उनके भावनात्मक पक्ष को प्रभावित करते हैं।
5. अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं
कुछ शोध अध्ययनों के फलस्वरूप यह पता चला है कि श्रवण बाधित बालकों की मानसिक योग्यता कम होती है तथा इनकी शैक्षिक योग्यता एवं समायोजन भी उत्तम नहीं होता है।
सामान्य श्रवण विकास
श्रवण बाधित के प्रकार
जिन बालकों को सुनने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित कहलाते हैं। इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता से 1 से 130 डेसीवल्स (Desibles) तक होती है। यदि वह 130 डी.बी. से ऊपर आये, तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बांटा जाता है –
श्रवण प्रक्रिया
व्यक्ति विशेष की वैसी अक्षमता जो उस व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। श्रवण अक्षमता कहलाती है। इसमें श्रवण-बाधित व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति को अंशत: या पूर्णत: गंवा देता है तथा उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। श्रवण अक्षमता को सही तरीके से समझने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम श्रवण प्रक्रिया (Hearing procedure) को समझने का प्रयास किया जाये कि वास्तव में श्रवण प्रक्रिया किस प्रकार संचलित होती है। श्रवण प्रक्रिया कई चरणों में होकर सम्पन्न होती है जो कि है –
श्रवण प्रक्रिया में कान के द्वारा आवाज को ग्रहण करना और संदेश को केन्द्रीय तांत्रिका तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) में भेजना सम्मिलित है। श्रवण प्रक्रिया से लोग अपने आस-पास के वातावरण से संबंध रखते हैं। जो भाषा को सीखने का एक प्रमुख मार्ग हे। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमें वातावरण पर नियंत्रण करने के लिए सहयता करती हैं।
श्रवण प्रक्रिया कई चरणों से होकर सम्पन्न होती है। इसमें सर्वप्रािम बाह्य वातावरण की ध्वनि कर्ण से टकराकर वाह्य कर्ण नलिका में प्रवेश करती है, जो कान के पर्दे के सम्पर्क में आकर विशेष प्रकार के तंतुओं से जुड़ी मध्य मर्ण की अस्थियों से टकराती है और आगे बढ़ती हुई, वहीं ध्वनि फेनेस्ट्रो ओवलिस में पहुंचती है। इससे स्कैला बेस्टीबुला में कम्पन्न होने लगता है।
इस कम्पन्न के फलस्वरूप कण। के अन्त: भाग के रिनर्स झिल्ली से होते हुए ध्वनि टेक्टोरियस झिल्ली मे पहुंचती है, जिससे हलचल उत्पन्न होती है। यह झिल्ली हलचल को समायोजित करके ध्वनि को आगे की तरफ प्रेषित करती है। इसे काटांई नामक अंग ग्रहण करके 8वीं श्रवण तंत्रिका में भेज देता है। श्रवण तंत्रिका उपयुक्त ध्वनि को मस्तिष्क में भेज देती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को ध्वनि का प्रत्यक्षण होता है। इस सम्पूर्ण श्रवण प्रक्रिया को दिये गये निम्नलिखित सूत्र एवं चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।
श्रवण दोष बच्चे की वाक् उत्तेजना में बाधा डालता है। जबकि भाषा – विकास के लिए सामान्य श्रवण का होना आवश्यक होता है। श्रवण दोष का अंश जो एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में समस्या नहीं उत्पन्न करता, वहीं मानसिक मंद बच्चे में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। डाउन सिड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों में श्रवण दोष और कान के संक्रामक रोग देखे गये हैं।
सुनना
श्रवण प्रक्रिया और सुनना एक ही प्रक्रियाएं नहीं है। सुनना एक श्रवण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य अर्थ निकलना है या शब्दों के अर्थ देने के उद्देश्य से शब्द ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्य रूप से सम्मिलित प्रक्रिया है। इसकी तुलना में श्रवण प्रक्रिया एक शारीरिक क्रिया है।
श्रवण दोष
श्रवण दोष के तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। श्रवण दोष व्यक्ति में दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुनने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण
बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारण हैं –
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण
जन्म से पूर्व, जन्म के समय | जन्म के पश्चात् |
---|---|
जाननिक कारण | बीमारी |
जर्मन खसरा | दुर्घटना |
गर्भावस्था में श्रवण शक्ति | उच्च ध्वनि |
असामयिक प्रसव | आयु |
असुरक्षित प्रसव | असंतुलित आहार |
1. जाननिक कारण – आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालाकों के माता-पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यंत निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की संभावना रहती है। जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी सकता है जब माता-पिता और अन्य भाई बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहां श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की विशेषताओं के कारण होती है :
- माता और पिता दोनों में विद्यमान एक अपगामी जीन्स
- माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स
- लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है।
2. जर्मन खसरा – 1980 में जर्मन खसरा एक महामारी के रूप में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्तानें श्रवण क्षतियुक्त हुई। तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का एक कारण है।
- माँ कोई जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले।
- शराब का सवेन करें।
- असंतुलित भोजन ग्रहण करें।
- दूषित भोजन करें।
- बीमार रहे।
4. असामयिक प्रसव – असामयिक प्रसव की श्रवण दोष उत्पन्न करता है हालांकि यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। कभी-कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखाई पड़ता है।
- कमफड़ा
- खसरा,
- चेचक,
- मोतीझरा
- कुकर खांसी
- कान में मवाद।
7. दुर्घटना – कोई दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन के काम का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुंचा देते है। जिससे कभी-कभी श्रवण दोष हो सकता है।
श्रवण बाधिता की पहचान
श्रवण बाधिता की पहचान सामान्यत: माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों द्वारा ही हो जाती है। जिसका सत्यापन भले ही चिकित्सक (Doctors) द्वारा जांच के उपरांत किया जाये।
- बाह्य कान का जन्म से न बना होना इसका “एट्रीशिया” भी कहते हैं।
- “वार्डन वर्ग सिन्ड्रोम” सिर पर मध्य अग्र बालों का सफेद होना।
इस प्रकार की स्थितियां एक प्रतिशत से भी कम बच्चों के बहरेपन के लिए उत्तरदायी हो सकती है और आमतौर पर बहरेपन को देखकर पहचान करना मुश्किल हो जाता है।
- कान के पीछे हाथ लगाकर सुनने का प्रयास करना।
- बहुत जोर से बोलना।
- बात सुनते हुए आंखों पर सामान्य से अधिक निर्भर होना।
- वाचक के चेहरे और होठों पर ज्यादा ध्यान देना।
- बोलने में कुछ विशेष उच्चारण दोष के कारण उच्च आवाजें, जैसे- अ,ई,ऊ, श, स,म,च आदि ।
- असंगत रूप से अपने आप में खोये रहना।
- चेहरे के हाव-भाव एवं मुद्रा द्वारा भी आवाज दोष को पहचाना जा सकता है।
- पैरों से आवाज करते हएु चलने से भी इसकी पहचान की जा सकती है।
3. श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ संकेत – श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ अन्य संकेत हैं –
- गले में तथा कान में घाव रहता हैं।
- इनमें वाणी दोष पाया जाता है।
- सीमित शब्दावली पायी जाती है।
- यह चिड़चिड़े होते हैं।
- भाषा का सही विकास नहीं होता है।
श्रवण बाधित बालकों की पहचान जितना जल्द से जल्द हो सके, कर लेना चाहिए। यदि ‘शीघ्र ही बच्चे की पहचान कर ली जाये, तो उनमें वाणी व भाषा का विकास किया जा सकता है तथा श्रवण दोष के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। सामान्यत: विशेषज्ञों का मानना है कि श्रवण-दोष की पहचान जन्म के समय ही कर लेनी चाहिए। जिनती जल्दी इसकी पहचान की जोयगी, उतनी ही जल्दी इन्हें सामान्य समाज से जोड़ा जा सकता है तथा इन बच्चों में होने वाली बहुत सी- मनोवैज्ञानिक कठिनाईयों को कम किया जा सकता है।
श्रवण बाधित की पहचान हेतु परीक्षण
श्रवण बाधित बालकों की पहचान उनके बोलने से ही हो जाती है, परंतु इन्हें पहचानने के लिए कई चिकित्सकीय परीक्षण करने पड़ते हैं, क्योंकि कक्षा में श्रवण बाधित बालक आसानी से शिक्षकों की दृष्टि में नहीं आते हैं, अत: इन्हें पहचानने हेतु कई प्रकार की अन्त: क्रियाएं करनी पड़ती है, जबकि बड़ी कक्षा में ऐसा होना संभव नहीं हो पाता है, अत: बालकों के प्रवेश के समय ही उनका परीक्षण करवा लेना उचित रहता है। बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाने समय उन्हें अध्यापक को बालकों की श्रवण शक्ति के बारे में बता देना चाहिए।
- बालक यदि सिर एक तरफ मोड़कर सुने तो वह बाधितों की श्रेणी में आते हैं।
- वह अनुदेशन अनुसरण नहीं कर पाते हैं।
- इन बालकों की दृष्टि अक्सर बोलने वाले बालकों के या शिक्षकों के मुंह की तरह होती है।
- यह वाणी बाधित भी हो सकते हैं