अनुक्रम
शब्द से अर्थ का बोध होता है। इसमें शब्द बोधक है और अर्थ बोध्य। ‘गाय का दूध पीओ’ में गाय और दूध शब्द हैं, इनसे गाय-पशु और दूध-वस्तु का बोध कराया जाता है। प्रयोग या उपयोग में अर्थ (वस्तु) ही आता है, शब्द नहीं। शब्द अर्थ (वस्तु) का बोध कराकर निवृत्त हो जाता है। इसलिए भाषा में महत्व अर्थ का है। शब्द और अर्थ के संबन्ध को वाच्य-वाचक या बोध्य-बोधक सम्बन्ध कहते हैं। शब्द वाचक या बोधक है, अर्थ वाच्य या बोध्य। संस्कृत के काव्यशास्त्रिायों ने शब्द और अर्थ के संबन्ध में गहन मनन-चिन्तन किया है।
शक्ति या वृत्ति | शब्द | अर्थ | उदाहरण |
---|---|---|---|
अभिघा | वाचक | वाच्य (मुख्य) | गाय, अश्व, मनुष्य |
लक्षणा | लक्षक | लक्ष्य (गौण) | गंगा में घोष (कुटी) |
व्यंजना | व्यंजक | व्यंग्य (प्रतीयमान) | शाम हो गई |
शब्द शक्ति के भेद
शब्द एवं अर्थ के सम्बन्ध के अनुसार शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती है-
- अभिधा
- लक्षणा
- व्यंजना
1. अभिधा शब्द शक्ति
अभिधा शब्द-शक्ति की परिभाषा देते हुए पं. रामदहिन मिश्र ने कहा कि ‘‘साक्षात् संकेतित अर्थ के बोधक व्यापार को अभिधा शब्द शक्ति कहते है।’’ आचार्य मम्मट के अनुसार साक्षात् संकेतित अर्थ जिसे मुख्यार्थ कहा जाता है उसका बोध कराने वाले व्यापार को अभिधा व्यापार कहते हैं। एक रीतिकालीन आचार्य के अनुसार अनेकार्थक हू सबद में, एक अर्थ की भक्ति। तिहि वाच्यारथ को कहै, सज्जन अभिधा शक्ति।।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि किसी शब्द के मुख्यार्थ का, वाच्यार्थ का, संकेतित अर्थ का, सरलार्थ का, शब्दकोशीय अर्थ का, नामवाची अर्थ का, लोक प्रचलित अर्थ या अभिधेय अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति अभिधा शब्द शक्ति होती है। अत: शब्द की जिस शक्ति के कारण किसी शब्द का मुख्य अर्थ समझा जाता है वह अभिधा शब्द शक्ति कहलाती है।
- मोती एक नटखट लड़का है।
- उसके हार के मोती कीमती हैं।
- हरि पुस्तक पढ़ रहा है।
- विष्णु ने नारद को हरि रूप दिया। (बन्दर)
- गाय दूध देती है।
- गधा घास चर रहा है।
- शेर जंगल में रहता है।
2. लक्षणा शब्द शक्ति
मुख्यार्थ बाधेतद्योगे रूढितोSथ प्रयोजनात्। अन्यSर्थो लक्ष्यते (तत्र) लक्षणा रोपिता क्रिया।। जब किसी वक्ता द्वारा कहे गये शब्द के मुख्य अर्थ से अभीष्ट अर्थ का बोध न हो अर्थात् शब्द के मुख्यार्थ में बाधा हो तब किसी रूढ़ि या प्रयोजन के आधार पर मुख्यार्थ से सम्बन्ध रखने वाले अन्य अर्थ या लक्ष्यार्थ या आरोपितार्थ से अभिप्रेत अर्थ यानी इच्छित अर्थ का बोध होता है वहाँ लक्षणा शब्द शक्ति होती है। अत: लक्षणा शब्द शक्ति के लिए निम्न तीन बातें आवश्यक हैं।
- शब्द के मुख्य अर्थ में बाधा पड़े।
- शब्द के मुख्यार्थ से सम्बन्धित कोई अन्य अर्थ लिया जाए।
- उस शब्द के लक्ष्यार्थ को ग्रहण करने का कोई विशेष प्रयोजन हो।
(i) रूढ़ा़ लक्षणा : जब किसी काव्य रूढि या परम्परा को आधार बनाकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है, वहाँ रूढ़ा लक्षiणा शब्द-शक्ति होती है। अर्थात् रूढ़ा लक्षणा शब्द शक्ति में शब्द अपना नियत या मुख्य अर्थ छोड़कर रूढ़ि या परम्परा प्रयोग के कारण भिन्न अर्थ यानी लक्ष्यार्थ का बोध कराता है। हिन्दी के सभी मुहावरे रूढ़ा लक्षणा के अन्तर्गत आते हैं। जैसे –
- वह हवा से बातें कर रहा है।
- बाजार में लाठियाँ चल गई।
- उसने तो मेरी नाक कटा दी।
- पुलिस को देख चोर नौ दो ग्यारह हो गया।
- उसका आश्रम गंगा में है।
- अब सिंह अखाड़े में उतरा।
- लाल पगड़ी आ रही है।
- वह तो निरी गाय है।
- अध्यापक जी ने कहा, मोहन तो गधा है।
3. व्यंजना शब्द शक्ति
जब किसी शब्द के अभिप्रेत अर्थ का बोध न तो मुख्यार्थ से होता है और न ही लक्ष्यार्थ से, अपितु कथन के सन्दर्भ के अनुसार अलग अलग अर्थ से या व्यग्ं यार्थ से हो, वहाँ व्यंजना शब्द-शक्ति होती है। जैसे- प्रधानाचार्य जी ने कहा, ‘‘साढ़े चार बज गये।’’ पुजारी ने कहा, ‘‘अरे ! सन्ध्या हो गई।’’
- शाब्दी व्यंजना
- आर्थी व्यंजना
(i) शाब्दी व्यजना : वाक्य मे प्रयुक्त व्यंग्याथर् जब किसी शब्द विशेष के प्रयोग पर ही निर्भर करता है अर्थात् उस शब्द के हटाने पर या उसके स्थान पर उसके किसी पर्यायवाची शब्द रखने पर व्यंजना नहीं रह पाती, वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है। अत: शाब्दी व्यंजना केवल अनेकार्थ शब्दों में ही होती है जैसे – चिरजीवो जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर। को घटि, ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।
(ii) आर्थी व्यंजना : जब व्यंजना किसी शब्द विशेष पर निर्भर न हो, अर्थात उस शब्द का पर्याय रख देने पर भी बनी रहे, वहाँ आर्थी व्यंजना होती है। आर्थी व्यंजना बोलने वाले, सुनने वाले, शब्द की सन्निधि, प्रकरण, देशकाल, कण्ठस्वर आदि का बोध कराती है। यथा सघन कुंज, छाया सुखद, सीतल मंद समीर। मन ह्वै जात अजौ वहै, वा यमुना के तीर।।
अभिधा एवम् लक्षणा में अन्तर
अभिधा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है जबकि लक्षणा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ के बाधित होने पर किसी रूढ़ि या प्रयोजन से लक्ष्यार्थ द्वारा अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है। जैसे- ‘गाय दूध देती है’ में ‘गाय’ शब्द में अभिधा शब्द शक्ति का बोध होता है जबकि ‘‘उस बुढ़िया को मत सताओ, वह तो निरी गाय है।’’ यहाँ ‘निरीगाय’ में लक्षणा शब्द शक्ति प्रयुक्त हुई है।
लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति में अन्तर
लक्षणा शब्द शक्ति में मुख्यार्थ के बाधित होने पर किसी रूढ़ि या प्रयोजन के आधार पर लक्ष्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है जबकि व्यंजना शब्द शक्ति में न तो मुख्यार्थ से और न ही लक्ष्यार्थ से बल्कि कथन के सन्दर्भ के अनुसार अलग-अलग अर्थ या व्यंजित व्यंग्यार्थ से अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है। उदाहरण – लक्षणा शब्द शक्ति – मैंने उसे नाकों चने चबवा दिये। व्यंजना शब्द शक्ति – बातें करती हुई गृहिणी ने कहा, ‘‘अरे ! सन्ध्या हो गई।’’