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विद्यालय का कार्य परंपरागत रूप से ज्ञान देने हेतु ही किया जाता रहा है । वास्तव में, समाज के इस संस्था का निर्माण ही व्यक्ति तथा समाज की जरूरतों की पूर्ति हेतु किया गया है । यहाँ शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है ।
विद्यालय का अर्थ
संस्कृत में विद्या + आलय अर्थात् विद्या का स्थान। इस रूप में विद्यालय का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी के स्कूल शब्द की व्युत्पति ग्रीक शब्द SKHOLe स्कौले से हुई है। जिसका अर्थ है ‘अवकाश’। प्राचीन यूनान में इन अवकाश के स्थलों को ‘स्कूल’ कहा जाता था और अवकाश को ‘आत्म विकास’ करने के स्थान के रूप में माना जाता था। ग्रीक देशों में ऐसे स्थानों को विद्यालय कहा जाता था जहां अवकाश के समय में विचार-विमर्श अथवा वाद-विवाद होता था, लेकिन बाद में यही स्थान सुनियोजित ढंग से शिक्षा प्रदान करने वाले केन्द्र के रूप में परिवर्तित हो गये।
विद्यालय की परिभाषा
रॉस के अनुसार : ‘‘विद्यालय वे संस्थाएं है जिन्हें सभ्य मनुष्य द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सहायता के लिए बालकों की तैयारी में सहायता मिले।
विद्यालय के प्रकार
विद्यालय भी विभिन्न प्रकार के होते है यह विभिन्नता उनके स्वरूप, ढांचे, प्रशासन, विचारधाराएं, उद्देश्य, भौतिक संसाधन के आधार पर होती है।
1. केन्द्रीय विद्यालय
2. नवोदय विद्यालय
3. निजी विद्यालय
4. संस्कृत विद्यालय
5. मिशनरीज स्कूल
6. आर्मी वेलफेयर सोसायटी द्वारा संचालित विद्यालय
7. मिलट्री स्कूल
8. मदरसे
9. आदर्श विद्या मंदिर
10. सरकारी विद्यालय
11. अन्य विद्यालय
विद्यालय के कार्य
विद्यालय के कार्यों का ब्रवेकर, थामसन और नैन्सी कैरी विद्वानों ने अपने-अपने अनुसार वर्गीकरण किया है जो इस प्रकार है-
1. विद्यालय के औपचारिक कार्य
2. विद्यालय के अनौपचारिक कार्य
1. शारीरिक कार्य : शारीरिक विकास भी अतिमहत्वपूर्ण है। अत: कहा जाता है कि शरीरमाघं खलु धर्म साधनम्। विद्यालयों का एक कार्य बालकों को शारीरिक विकास के अवसर प्रदान करता है जिससे वे स्वस्थ और शक्तिशाली बनकर समाज के स्वस्थ एवं सुखी नागरिक बन सके।
विद्यालयों में शिक्षा के गुणात्मक स्तर को प्रभावित करने वाले कारक
एक अच्छा विद्यालय वही माना जायेगा जहां के विद्यार्थियों में शिक्षा का उच्च गुणात्मक स्तर पाया जाता है। उच्च गुणात्मक स्तर का कोई निश्चित मापदण्ड नहीं बनाया जा सकता परन्तु कुछ मूलभूत आवश्यकताएं है जिन्हें पूर्ण करके विद्यालय विद्यार्थियों में शिक्षा का गुणात्मक स्तर प्राप्त कर सकता है। ये आवश्यकताएं है-
- विद्यालय स्वस्थ नागरिकों के निर्माण में सहायक हो।
- विद्यालय शैक्षिक प्रक्रियाओं में समयानुकूल परिवर्तन करते हुए समाज की आर्थिक राजनैतिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में पूर्ण सहयोग करें।
- विद्यालय समाज की संस्कृति का संरक्षण करें और उसे भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करें।
- विद्यालय समुदाय की समस्याओं को सुलझाने के योग्य ज्ञान प्राप्त करें जिससे बालक इन समस्याओं को सुलझाकर समुदाय की उन्नति में सहयोगी बन सके।
- विद्यालय व्यावसायिक ओर औद्योगिक प्रगति में सहायक सिद्ध हो, इसके लिए उनसे अपेक्षा है कि वे पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक विषय सम्मिलित करें।
- विद्यालय आदर्शों, मूल्यों, आचारों, विचारों, परम्परा आदि का अपने छात्रों के जीवन का अंग बनाने का प्रयास करें।
- विद्यालय समाज में व्याप्त कुरीतियां, अन्धविश्वासों, अनुपयोगी रूढ़ियों, परम्पराओं आदि की स्पष्ट रूप से आलोचना करके परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार विद्यार्थियों में नवीन आदशोर्ं की स्थापना करें।
- विद्यालय सामाजिक और मानवीय मूल्यों का विकास कर बालकों को भविष्य की चुनौतियों से मुकाबला करने योग्य बनाने का प्रयास करें।
यदि कोई भी विद्यालय उपर्युक्त वर्णित अपेक्षाओं को पूर्ण करता है तो निश्चित ही उस विद्यालय के विद्यार्थियों में शिक्षा का उच्च गुणात्मक स्तर पाया जायेगा। इन अपेक्षाओं को पूर्ण करने में कुछ साधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है जो विद्यालय में शिक्षित के गुणात्मक स्तर को प्रभावित भी करते है।
विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व
समाज में विद्यालय के स्थान, महत्व और आवश्यकताओं पर प्रकाश डालते हुए ‘एस. बालकृष्ण जोशी’ ने लिखा है ‘‘किसी भी राष्ट्र की प्रगति का निर्णय विधान-सभाओं, न्यायालयों और फैक्ट्रियों में नहीं, वरन् विद्यालयों में होता है।’’
विद्यालयों को यह महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित कारणों से दिया जाता है-
- अभिभावकों की व्यवस्ताओं के चलते विद्यालय विद्यार्थियों का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व निभा रहे है।
- विद्यालय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं हस्तांतरण में सहायक है।
- विद्यालय परिवार और वाह्य जीवन को जोड़ने वाली कड़ी है।
- विद्यालय को विद्यार्थियों के बहुमुखी प्रतिभा विकास का महत्वपूर्ण साधन समझा जाता है।
- राज्य के आदर्शों और विचारधाराओं को फैलाने के लिए विद्यालय को अति महत्वपूर्ण साधन माना गया है।
इसीलिए हम कह सकते है कि ‘‘एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के अंग हैं, जिनका विशेष कार्य है, उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाये रखना, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखना और उसके भविष्य को आश्वस्त करना।’’