अनुक्रम
लाभांश नीति का अर्थ है कि वितरण और बकाया कोष रखने के लिए एक नियमित पहुंच को अपनाना कि वर्ष दर वर्ष किसी अस्था्ई निर्णय को लेना। यह लाभांश की अदायगी के समय और मूल्य पर भी ध्यान देती है । उपयुक्त लाभांश नीति बनाना प्रबन्ध् के लिए बड़ा सोच विचार का कार्य है क्योंकि इससे कम्पंनी की उन्नति और अंश के बाजारी मूल्य पर प्रभाव पड़ता है । कम्पंनी के वित्तीय प्रबन्धि में लाभांश नीति निर्णय तीन अन्तर सम्बन्धित नियमों में से एक है: दूसरे दो विनियोग और वित्त हैं । विनियोग निर्णय कम्पनी के लिए सम्पत्तियों के चयन (दोनों स्थाई व अस्था्ई) से सम्बधन्धित है । वित्तीय निर्णय में कम्पनी के लिए उपयुक्त। पूंजी ढांचे और वित्तीय मिक्स का चयन करना होता है। यह उस निर्णय से सम्बन्धित है जिसमें यह निर्णय लेना होता है कि कम्पनी की कुल वित्तीय जरूरतों में विभिन्न वित्तीय स्त्रोतों का अनुपात क्या होगा।
लाभांश नीति बहुत ही व्यापक एवं लोचपूर्ण शब्द है। लाभांश से तात्पर्य कम्पनी द्वारा अर्जित आय में से अंशधारियों को मिलने वाले हिस्से से है। व्यवहार में ’तरीके’ या ’कार्य करने के सिद्धान्तों’ को नीति कहा जाता है। अतः संचालक मण्डल द्वारा लाभांश हेतु अपनायी जाने वाली नीति को लाभांश नीति कहा जाता है। इस प्रकार लाभांश की दर के निर्धारण एवं वितरण हेतु जिन सिद्धान्तों, नियमों व योजनाओं का पालन किया जाता है, लाभांश नीति कहलाती है।
साधारण अर्थ में लाभांश नीति का आशय उस नीति से है, जो संचालक मण्डल लाभांश वितरण हेतु अपनाते हैं। व्यापक अर्थ में लाभांश नीति का आशय उस नीति से है जिसमें लाभांश वितरण के सिद्धान्तों के नियमों के आधार पर कार्य प्रणाली निश्चित कर लाभांश वितरित करने हेतु कार्य योजना बनायी जानी है। इस प्रकार लाभांश नीति संचालकों द्वारा अपनायी वह योजना है जो लाभांश वितरण हेतु निर्धारित की जाती है। यह नीति केवल समता अंशों को लाभांश वितरण हेतु ही निर्धारित होती है, पूर्वाधिकार अंशों के लिए नहीं।
लाभांश नीति को परिभाषित करते हुए वैस्टन एवं ब्रिंघम ने लिखा है, ’’लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान एवं प्रतिधारित अर्जनों में विभाजन निश्चित करती है।’’ अतः लाभांश वितरण के सम्बन्ध में संचालकों द्वारा अपनायी गई कार्यकारी योजना को लाभांश नीति कहा जाता है। लाभांश नीति समता अंश पूँजी से सम्बन्धित नीति है। पूर्वाधिकार अंश पूँजी पर लाभांश की घोषणा एवं दर पूर्व निर्धारित होने के कारण ये अंश लाभांश नीति से सम्बन्धित नहीं होते हैं।
लाभांश नीति का अर्थ
लाभांश नीति की परिभाषा
लाभांश नीति के प्रकार
लाभांश नीति के निर्धारण के लिए कोई सामान्य या सर्वमान्य सूत्र नहीं दिया जा सकता है जो प्रत्येक स्थिति में लागू होता हो। लाभांश नीति प्रबन्धकीय नीति एवं कम्पनी की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। प्रबन्धकों द्वारा प्राय: वर्णित तीन प्रकार की लाभांश नीतियाँ अपनायी जा सकती है-
1. कठोर लाभांश नीति
कठोर या अनुदार लाभांश नीति अपनाने पर प्रबन्धकगण कम्पनी की वित्त्ाीय सुदृढ़ता एव ंव्यवसाय को सर्वोपरि रखते हैं तथा अंशधारियों की वर्तमान आशाओ ंको गौण स्थान देते हैं। इस नीति में प्रबन्धक लाभ का अधिकांश भाग व्यवसाय में पुनर्विनियोजित करना चाहते हैं तथा सदस्यों को लाभांश कम से कम देते हैं। इसलिए इस नीति को अनुदार या कठोर लाभांश नीति के नाम से जाना जाता है। इस नीति में भुगतान अनुपात (Payout Ratio) बहुत कम या कभी-कभी शून्य होता है। एक विकासशील कम्पनी जिसको सुधार एवं विस्तार के लिए पर्याप्त अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता हो, इस प्रकार की लाभांश नीति बुद्धिमतापूर्ण मानी जाती है’ क्योंकि दीर्घकाल में अंशधारियों को इससे लाभ होता है। किन्तु ऐसी नीति अपनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह नीति कहीं अंशधारियों की धैर्य-सीमा को पार न कर जाये।
2. उदार लाभांश नीति
लाभांश की इस नीति मे प्रबन्धक लाभ के अधिकांश भाग का वितरण सदस्यों मे लाभांश के रूप में कर देते हैं। कम्पनी द्वारा लाभ का केवल उतना ही भाग प्रतिधारित किया जाता है जितना अत्यन्त आवश्यक समझा जाये। इस नीति में भुगतान अनुपात (Payout Ratio) उच्च होता है जैसे 90 प्रतिशत या 95 प्रतिशत – अर्थात् प्रति सौ रुपये की आय में 90 या 95 रुपये लाभांश के रूप में वितरित कर दिये जाते हैं तथा व्यवसाय में केवल 10 या 5 रुपये ही रखे जाते हैं। इस नीति में सदस्यों के दीर्घकालीन हितों की अपेक्षा वर्तमान हितों को अधिक महत्व दिया जाता है। इस नीति का पालन करने पर कम्पनी में विकास व प्रतिस्थापना के लिए कोषों की कमी आ सकती है तथा अंशों के मूल्य में सट्टा बढ़ जाता है जिससे कम्पनी की वित्तीय सुदृढ़ता को हानि पहुँच सकती है। कभी-कभी प्रबन्धक अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए या प्रबन्ध-दक्षता प्रदर्शित करने के लिए अधिक लाभांश बाँटने के जोश में अनुचित तरीकों का भी प्रयोग करते हैं। अत: उदार लाभांश नीति अपनाते समय प्रबन्धकों को कम्पनी के हितों तथ सदस्यों की अपेक्षाओ में ताल-मेल बैठाना चाहिए।
3. सुस्थिर लाभांश नीति
लाभांश भुगतान की यह नीति दीर्घकालीन होती है तथा इसमें साधारणतया लम्बी अवधि तक कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किये जाते है। इस नीति में कम्पनी की भावी आवश्यकताओं व सदस्यों की वर्तमान अपेक्षाओं को समान महत्व दिया जाता है। साधारणतया जितना लाभ लाभांश के रूप में वितरित किया जाता है, लगभग उतना ही लाभ व्यवसाय में पुनर्विनियोजित भी किया जता है। सम्पन्न वर्षों में भी साधारणतया उतना ही लाभांश दिया जाता है जितना कि सामान्य अथवा प्रतिकूल वर्षों में । सम्पन्नता या अधिक लाभ वाले वर्षों में पर्याप्त कोषों का निर्माण कर लिया जाता है जिनका प्रयोग कम लाभ वाले वर्षों में लाभांश दर को स्थिर बनाये रखने मे किया जाता है। अत: यह एक मध्यमार्गी नीति है। निश्चित एवं अनिश्चत सभी सम्भावनाओं के लिए पर्याप्त आयोजन कर लिये जाते हैं। अत: यह नीति कम्पनी को साख एवं प्रतिष्ठा बनाये रखने में सहायक होती है।
सुस्थिर लाभांश नीति (Stable Dividend Policy) में प्रबन्धकों द्वारा यह प्रयत्न किया जाता है कि सदस्यों को दिये जाने वाले लाभांश की दर में यथासम्भव परिवर्तन नहीं हो। इसके लिए विभिन्न वर्षों में आय तथा कर रहित लाभों में उतार-चढ़ाव होते रहने पर भी लाभांश दर मे परिवर्तन नहीं किया जाता है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि कम्पनी के संचालक मण्डल को सुरक्षित भुगतान अनुपात (Stable Payout Ratio) की अपेक्षा सुस्थिर लाभांश दर (Stable Dividend Rate) की नीति अपनानी चाहिए। इसका प्रमुख कारण यह है कि अंशधारी नियमित एवं स्थायी रूप से मिलने वाले लाभांश को अधिक अच्छा समझते है।
- अंशधारियों के मन में विश्वास (Confidence among Shareholders)- नियमित एवं स्थायी लाभांश मिलते रहने से अंशधारियों के मन में अंशों के प्रति विश्वास जम जाता है। किसी वर्ष लाभ कम होने पर भी संस्था लाभांश में कटौती नहीं करती और कोषों में से नियोजन करके लाभांश वितरित कर देती है तो पूँजी बाजार में इन अंशों की साख अच्छी रहती हे।
- अंशधारियों में सन्तोष (Satisfaction among Shareholders)- कुछ अंशधारी आय के प्रति बहुत ही सतर्क एवं जागरूक होते हैं और वे नियमित दर से प्रति वर्ष मिलने वाले लाभों को अधिक महत्व देते है। अत: एक नियमित लाभांश नीति अपना कर अंशधारियों को सन्तुष्ट रखा जा सकता है।
- अंशों के बाजार मूल्यों में स्थिरता (Comparative Stability in Market Price of such Shares) – जिन अंशों पर नियमित दर से लाभांश मिलता है उनके बाजार मूल्यों में अपेक्षाकृत कम उतार-चढ़ाव आते हैं तथा ऐसे अंशों में सट्टेबाजी की सम्भावनाएँ कम रहती है।
- साख में वृद्धि (Strengthens Goodwill) – संस्था की साख बढ़ जाने से संस्था सफलतापूर्वक ऋण प्राप्त कर सकती है।
- दीर्घकालीन नियोजन में सहायक (Helpful in Long-term Planning) – संस्था के विकास के लिए दीर्घकालीन योजना बना सकते हैं, क्योंकि इस नीति के अन्तर्गत वित्त्ाीय आवश्यकताओं तथा उनकी पूर्ति के साधनों का मूल्यांकन किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय आय में स्थायित्व (Stability in National Income) – यदि राष्ट्र की अधिकांश संस्थाएँ सुस्थिर लाभांश नीति का पालन करती हैं तो इससे राष्ट्रीय आय में भी स्थायित्व आता है जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्थायित्व का सूचक है। अत: उपर्युक्त लाभों को देखते हुए कुशल एवं अनुभवी प्रबन्धक सदैव इस बात का प्रयत्न करते है कि उकने द्वारा सुस्थिर लाभांश नीति का पालन किया जाए।
सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण – प्रत्येक संस्था के लिए एक सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण करना एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है जिस पर प्रबन्धकों को सबसे ध्यान देना चाहिए। संस्था की भावी प्रगति तथा बाजार में उसकी साख एवं प्रतिष्ठा के लिए सुस्थिर लाभांश नीति अनिवार्य है। सुस्थिर लाभांश नीति का निर्माण करते है समय इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-
- लाभांश की स्थिरता एवं नियमितता।
- कम्पनी की नकद स्थिति।
- केवल अर्जित लाभ अथवा अधिशेष में से ही लाभांश का भुगतान किया जाना चाहिए।
- अधिक लाभ के वर्षों मे नियमित लाभांश की दर में अचानक वृद्धि करने की अपेक्षा अतिरिक्त लाभांश दिया जाना चाहिए।
- स्कन्ध लाभांश का वितरण उचित सीमा के अन्दर ही रखा जाना चाहिए, अन्यथा आये दिन स्कन्ध लाभांश देने से अति-पूँजीकरण की स्थिति आ सकती है।
- प्रारम्भिक वर्षों में कुछ समय मामूली लाभांश दिया जा सकता है। बाद में संस्था की प्रगति के साथ-साथ इसमें वृद्धि की जा सकती है।
- यदि लाभ-हानि खाते में पहले से हानि की रकम चली आ रही है तो जब तक वह अपलिखित न हो जाए तब तक लाभांश की घोषणा नहीं करनी चाहिए।
- स्थायित्व को बनाये रखने के लिए लाभांश समानीकरण कोष (Dividend Equalisation Fund) की स्थापना की जानी चाहिए जिससे कम लाभ के वर्षों में उसमें से लाभांश दिया जा सके।
किसी संस्था द्वारा पिछले वर्षों में दिये लाभांश का लेख संस्था की सही स्थिति का मूल्यांकन करने का एक उचित आधार माना जाता है। लाभांश दर तथा संस्था के चिट्ठे के आधार पर संस्था की वित्त्ाीय स्थिति एवं सफलता का सही अनुमान लगाया जा सकता है। सुस्थिर लाभांश की नीति को बनाये रखने के लिए कम्पनी के स्वामित्व के ढाँचे एवं प्रबन्ध में भी स्थायित्व रहना आवश्यक है। जिस संस्था में प्रबन्धक, आये दिन बदलते रहते हैं, उसमें स्थायी लाभांश नीति का पालन किया जाना सम्भव नहीं होता। ऐसी संस्था विनियोजकों का विश्वास खो देती है, जिसे पुन: प्राप्त करना कठिन होता है।
लाभांश नीति के उद्देश्य
एक अच्छी लाभांश नीति अंशधारियों के धन को बढ़ाने का उद्देश्य रखती है। इसे अंशधारियों और कम्पनी दोनों के स्वार्थों को ध्यान में रखते हुए बनाना चाहिए । सभी कम्पनियों के लिए एक जैसी लाभांश नीति नहीं बनाई जा सकती क्योंकि सभी कम्पनियां एक समान नहीं होती। इसका अर्थ है कि हर एक कम्पनी को अपने उत्पादनों, बिक्री, उत्पादन के स्वभाव, लाभ, तरलता स्थिति, वित्तीय नीति और विनियोग मौकों की उपलब्धता के देखते हुए लाभांश नीति बनानी चाहिए । हालांकि कुछ सामान्य बातें बताई जा सकती हैं, जो लाभांश नीति बनाते हुए ध्याान में रखनी चाहिए ।
1. कम्पनी के मूल्य में बढ़ौतरी – लाभांश नीति का उद्देश्य कम्पनी के मूल्य़ में बढ़त होनी चाहिए जो कि अंशधारियों के धन पर निर्भर करता है । इसलिए विभिन्न् प्रस्तावित नीतियों के अंतिम चयन से पहले कम्पनी के अंशों पर उनके प्रभाव का अवश्य मूल्यांकन कर लेना चाहिए।
2. अंशधारियों और कम्पनी की आवश्यकता के बीच समतलता – लाभांश नीति को अंशधारियों की लाभांश आशा और कम्पनी की वित्तीय आवश्यकताओं के बीच समतलता बैठानी पड़ेगी। अगर कम्पनी के पास कोई लाभवन्य विनियोग मौका है, तो ऐसे मौके का मूल्यांकन उचित प्रत्याय और मौके की लागत की तुलना कर लगाया जा सकता है । बकाया आय के विनियोग की मौका लागत का अर्थ है कि वह आय जो अंशधारी लाभांश को किसी समान खतरे वाली कम्पनी में लगा कर पाते और जो इस मौके के लिए उन्होनें छोड़ दी है ।
3. लम्बी अवधि उद्देश्य – लाभांश नीति का उद्देश्य थोड़े समय के लिए शेष निर्णय लेना नहीं होना चाहिए बल्कि लम्बे समय के लिए लम्बी योजना बनानी चाहिए ।
4. कलिप्त व्यवसाय को कम करना – कम्पनी की लाभांश नीति का उद्देश्य उसके अंशों के व्यवसाय को कम करना भी होना चाहिए ताकि बाजार में अंशों को सम्मान मिल सके ।
5. शीघ्र बदलावों से बचना – लाभांश नीति को इस बात की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए कि लाभांश में शीघ्र बदलाव आए। अगर लाभांश का दर बढ़ता है तो अंशधारियों की आशाएं भी बढ़ती हैं । और अगर अगले वर्ष उसे कम कर दिया जाता है तो अंशधारियों के लिए यह सहना कठिन हो जाता है । इसका अर्थ यह है कि अगर लाभांश दर बढ़ाना है तो यह काम बहुत समझदारी पूर्व कम्पनी को भविष्य में होने वाले लाभों को देखते हुए करना चाहिए ।
6. लाभांश न देने से बचना – कम्पनी को तब तक लाभांश न देने का निर्णय नहीं लेना चाहिए जब तक कम्पनी की आय स्थिति गंभीर नहीं होती और तरलता स्थिति ऐसी नहीं होती कि कई और वित्तीय कठिनाईयां आ जाएं। लाभांश न मिलने की स्थिति उन अंशधारियों के लिए बहुत कष्टदायक है जो आय के लिए अधिकतर लाभांश पर निर्भर करते हैं । इससे अंशों के बाजारी मूल्य में भी गिरावट आ सकती है ।
7. अंशधारियों से बातचीत – एक बार जब कम्पनी ने लाभांश नीति बना ली तो यह आवश्यक हो जाता है कि अंशधारियों व अन्य विनियोक्ताओं को यह बता दे । इससे विनियोक्ताओं को यह निर्णय लेने में मदद हो जाएगी कि कम्पनी के अंशों में विनियोग करना उन्हें माफिक आता है या नहीं । अगर किसी भी स्थिति के कारण कम्पनी की सुगठित लाभांश नीति में बदलाव आता है तो यह भी अंशधारियों को जरूर बताना चाहिए।
लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व
1. लाभों की स्थिति – लाभांश का वितरण लाभों में से ही किया जाता है। अत: कम्पनी को यह देखना चाहिए कि उस वर्ष का लाभ पर्याप्त है या नहीं। लाभ की मात्रा पिछले वर्षों के लाभों की तुलना में कम है या ज्यादा, तथा वह लाभ उसी तरह की व्यावसायिक संस्थाओं की तुलना में कैसा है? साथ ही कम्पनी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगले वर्षों में लाभ की इस राशि के कम व अधिक होने की क्या सम्भावनाएँ है।
एक सुदृढ़ लाभांश नीति के आवश्यक तत्व
1. स्थायित्व –स्थिरता का आशय लाभांश के वितरण में नियमितता बनाये रखने से है। यदि कोई संस्था एक वर्ष तो बहुत अच्छा लाभांश घोषित कर देती है लेकिन अगले ही वर्ष लाभांश नहीं बाँट पाती तो इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत यदि कोई संस्था मध्यम दर से ही प्रतिवर्ष लाभांश देती रहती है तो उससे अंशधारी सन्तुष्ट रहते हैं और अंशों के मूल्यों में सट्ठा नहीं होता हे।
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