अनुक्रम
लागत लेखांकन मे किसी वस्तु की प्रति इकाई लागत तथा कुल लागत ज्ञात की जाती है तथा लागत विश्लेषण किया जाता है और उत्पादन की कई अवस्थाओं में लागत ज्ञात की जाती है। सबसे पहले प्रत्यक्ष लागतों का योग करके मूल लागत ज्ञात की जाती है। बाद मे अप्रत्यक्ष लागतों का क्रम से योग करके कारखाना लागत, उत्पादन लागत, विक्रय लागत तथा कुल लागत ज्ञात की जाती है। कुल लागत में अपेक्षित लाभ जोड़कर विक्रय मूल्य ज्ञात की जाती है। कुल लागत में उत्पादित इकाइयों का भाग देकर प्रति इकाई लागत ज्ञात की जाती है। लागत लेखांकन में न केवल वस्तुओं की लागत ज्ञात की जाती है बल्कि सेवाओं की लागत ज्ञात की जाती है। परिचालन लागत विधि द्वारा सेवाओं की लागत ज्ञात की जाती है। प्रमाप लागत लेखांकन द्वारा मितव्ययिताओं को प्राप्त किया जाता है। प्रक्रिया लागत विधि द्वारा प्रत्येक प्रक्रिया पर मितव्यता प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है तथा लागत नियन्त्रण किया जाता है। ठेका लागत विधि द्वारा प्रत्येक ठेके के लागत व लाभ का पता लगाया जाता है।
लागत लेखांकन की परिभाषा
लागत लेखांकन का भारत में विकास
लागत लेखांकन की प्रकृति
लागत लेखांकन की प्रकृति जानने के लिए इन्स्टीटयूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वक्र्स एकाउण्टेण्टस, इंग्लैण्ड द्वारा लागत लेखाशास्त्र (Cost Accountancy) की दी गई परिभाषा का अध्ययन करना होगा। इस संस्था ने लागत लेखाशास्त्र की परिभाषा देने के अतिरिक्त इसकी प्रकृति की व्याख्या करते हुए कहा है कि लागत लेखाशास्त्र, लागत लेखापाल का विज्ञान कला एंव व्यवहार कहा जाता है। लागत लेखापाल ही व्यवहार मे लेखाशास्त्र की वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग अपनी कुशलता से करता है। ज्ञान के व्यवस्थित एंव संगठित समूह को ही विज्ञान कहा जाता है। लागत लेखाशास्त्र के भी अन्य विज्ञानों की भांति कुछ मूलभूत सिद्धान्त एंव नियम है और यह लागत लेखांकन लागत निर्धारण तथा लागत नियन्त्रण आदि का संगठित ज्ञान है। इस आधार पर लागत पर लागत लेखाशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में रखा गया है।
लगत लेखाशास्त्र कला भी है, क्योंकि इसमें विशिष्ट रीतियॉ एंव प्राविधियां निहित हैं, जिनका उचित प्रयोग लेखापाल की कुशलता पर ही निर्भर करता है। अत: एक कुशल लागत लेखापाल को लागत के आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान होने के अतिरिक्त आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करना भी आवश्यक है। लागत लेखाशास्त्र व्यवहार भी है, क्योंकि लागत लेखापाल अपने कर्तव्य पालन के सम्बन्ध मे सतत प्रयास करता रहेगां। इसके लिए उसे सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान, प्रशिक्षण एंव अभ्यास भी आवश्यक है, जिससे वह लागत निर्धारण, लागत लेखांकन एंव लागत नियन्त्रण सम्बन्धी जटिलताओं को सुलझा सकेगा।
विल्मट (Wilmot) ने लागत लेखाशास्त्र की प्रकृति का वर्णन करते हुए इसके कार्यो को सम्मिलित किया है: लागत का विश्लेषण, प्रमाप निर्धारण,पूर्वानुमान लगाना, तुलना करना, मत अभिव्यक्ति तथा आवश्यक परामर्श देना आदि। लागत लेखापाल की भूमिका एक इतिहासकार, समाचारदाता एंव भविष्यवक्ता के तौर पर होती है। उसे इतिहासकार की तरह सतर्क सही परिश्रमी एंव निष्पक्ष होना चाहिए । संवाददाता की भांति सजग, चयनशील एंव सारगर्भित तथा भविष्य-वक्ता की तरह उसको ज्ञान व अनुभव के साथ-साथ दूरदश्र्ाी एंव साहसी होना आवश्यक है।
लागत लेखांकन का क्षेत्र
लागत लेखाशास्त्र का क्षेत्र अधिक विस्तृत हो जाने के कारण ही लागत लेखांकन का क्षेत्र भी अधिक व्यापक हो गया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि लागत एंव लाभ या आय सम्बन्धी संमक किसी न किसी रूप में सभी व्यावसायिक उपक्रमों, तथा निर्माणी, व्यापारिक खनन परिवहन उपक्रम सार्वजनिक उपयोगिताएं वितीय संस्थाएं तथा गैर व्यापारिक संगठनों तथा म्युनिसिपल बोर्ड अस्पताल व विश्वविधालयों में एकत्र किये जाते हैं जिसके आधार पर न केवल निर्मित वस्तुओं तथा प्रदान की जाने वाली सेवाइों की लागतो एंव लाभो को अनुमानित एंव ज्ञात किया जाता हैं और विभिन्न विकल्पों मे से उचित विकल्पों के चुनाव के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं।
लागत लेखांकन के क्रमिक विकास का इतिहास भी इसके क्षेत्र के क्रमिक विस्तार को स्पष्ट करता है। लागत लेखांकन के उदभव के पूर्व शताब्दियों तक (443 बी.सी. से ही) निजी सार्वजनिक एंव निगम व्यवसायों में प्रबन्धकीय नियन्त्रण हेतु वितीय लेखाकन को ही पर्याप्त समझा जाता था। परन्तु व्यवसाय का निरन्तर विकास होने पर लेखांकन के नये उपायों उन प्रविधियों एंव विस्तृत सहायक अभिलेखों के बावजुद भी वितीय लेंखाकन प्रबन्ध को आवश्यक सूचनाएं प्रदान करने में सीमित एंव अपर्याप्त सिद्ध होता गया। इन डदेंश्यों की पूर्ति करने के लिए ही पिछले पांच या छ: दशको से व्यावसायियों एंव प्रबन्धको ने सहायक एंव पूरक लेंखाकन विधियों, जिन्हे लेखाकन कहा जाता है, अपनाना प्रारम्भ कर दिया।
लागत लेखांकन के उदभव एंव उसके क्षेत्र के विकास का कारण यह भी रहा है कि वितीय लेखांकन एक व्यावसायिक उपक्रम के प्रमुख कायोर्ं (वितीय, प्रशासनिक उत्पादन एंव वितरण सम्बन्धी) से सम्बन्धीत केवल ऐसी सूचनाएँ प्रदान करता है जो इन कार्यों के सामान्य नियन्त्रण में सहायक तो होती है, परन्तु उनमें इन विभागों के परिचालन कुशलता सम्बन्धी विस्तृत विवरण का अभाव पाया जाता है। लागत लेंखाकन का विकास वितीय लेखांकन की इस सीमा को दूर करने के लिए ही हुआ है। आज यह एक सामान्य धारणा बन चुकी है कि एक व्यवसाय के स्वस्थ तथा कुशल प्रबन्ध के एक अभिन्न अंग के रूप में लागत लेखांकन उस समय तक किसी व्यवसाय में स्थान प्राप्त करने मे सक्षम प्राप्त करने मे सक्षम नहीं हो सकता, जब तक की उसका प्रबन्ध उसके कर्मचारी बैकिगं संस्थाएं एंव अन्य लेनदार तथा सामान्य जनता, सभी उससे लाभान्वित नहीं होगें।
जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, लागत लेखांकन का विकास प्रबन्ध के एक अभिन्न एंव उसके एक प्रभावकारी उपकरण के रूप् में हुआ है। इसका प्रमुख उदेश्य प्रत्येक वस्तु या सेवा की लागत और उनका विक्रय मूल्य निर्धारित करना है। जब व्यवसाय एवं समाज के व्यापक हितो को दृष्टिगत रखकर इसके विकास के कारणो की गहराई से जांच की जाती है तो यह ज्ञात होता है कि इसका एक प्रमुख कारण व्यावसायिक उपक्रमों की परिचालन कुशलता में अभिवृद्धि करना भी रहा है। इसके अन्तर्गत एक निश्चित समय पर देश में तथा प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम के उपलब्ध साधनों का अनुकूलता उपयोग भी किया जा सकता है। इन उदेंश्यों को प्राप्त करने के निमित ही इसके कार्यो में लागत-विश्लेषण लागत-नियन्त्रण सूचना-प्रस्तुतीकरण, लागत-लाभ संमको का स्पष्टीकरण तथा उनके आधार पर उचित निर्णयन को अब विशेष महत्व दिया जाने लगा है।
लागत लेखांकन की प्रविधियॉं
लागत ज्ञात करने की उपर्युक्त विधियों के अतिरिक्त प्रबन्ध्को द्वारा लागत लेखांकन की प्रविधियॉं भी लागत नियन्त्रण करने तथा कुछ प्रबन्धकीय निर्णय लेने हेतु प्रयोग में लाई जाती है। ये लागत ज्ञात करने की स्वतन्त्र पद्धतियॉं नहीं है, बल्कि मूलत: लागत प्रविधियॉं है, जो लागत ज्ञात करने की विधियों मे से किसी के भी साथ प्रबन्धको के द्वारा निर्णय लेने मे उपयोग की जा सकती है।
लागत लेखांकन की सीमाएं
2. अनुमानों पर आधारित लागत लेखों में अप्रत्यक्ष व्यय अनुमान पर ही आधारित होते है।
लागत लेखांकन व प्रबन्ध लेखांकन में अन्तर
आधार | लागत लेखांकन | प्रबन्ध लेखांकन |
---|---|---|
1. क्षेत्र | लागत लेखांकन का क्षेत्र सीमित है। | प्रबन्ध लेखांकन का क्षेत्र व्यापक है, क्योंकि इसमें वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन व वित्तीय प्रबन्ध आदि के सभी पहलू आ जाते है। |
2. आंकड़ों के श्रोत | लागत लेखांकन के लिए आंकड़े वित्तीय लेखों से लिए जाते है। | प्रबन्ध लेखांकन के लिए आकड़े वित्तीय लेखों तथा लागत लेखों से लिये जाते है। |
3. आकड़ों की प्रकृति | लागत लेखांकन के आकड़े वस्तु की लागत से सम्बन्धित होते है। | प्रबन्ध लेखांकन के आकड़े लागत व आगम दोनों से सम्बन्धित होते है। |
4. बल | लागत लेखांकन का उद्देश्य वस्तु या सेवा की प्रति इकाई लागत का निर्धारण करना है। | प्रबन्ध लेखांकन प्रबन्धकीय क्रियाओं के सफल संचालन हेतु लागत संमको के प्रस्तुतीकरण पर बल देता है। |
5. कानूनी अनिवार्यता | कुल निर्माणी संस्थाओं में लागत लेखे रखना कानूनी रूप से अनिवार्य है। | प्रबन्ध लेखांकन कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। |
6. नियोजन लागत | लेखांकन मुख्यतः अल्पकालीन नियोजन से सम्बन्धित है। | प्रबन्ध लेखांकन अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन नियोजन से सम्बन्धित है। |
5. |