रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और कैसे हुई
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 में स्वामी विवेकानंद ने की थी। आगे चलकर इस मिशन ने समाज सेवा के लिए बहुआयामी कार्य किये। । रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय बेलूर मठ (हावड़ा) कलकत्ता पश्चिम बंगाल में स्थित है। रामकृष्ण परमहंस (1836-1886) 19वी शताब्दी के प्रमुख सन्त जाने जाते है, जो रामकृष्ण मिशन के आध्यात्मिक प्रवर्तक माने जाते। रामकृष्ण जी दक्षिणशेवर मंदिर के मुख्य पुजारी रहे। और उन्होंने बहुत से मठ में रहने वाले ग्रहस्थ जीवन/आश्रम में रहने वाले शिष्यों को अपनी और आकर्षित किया।
स्वामी विवेकानन्द बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त जो कि बाद में विवेकानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुये। परमहंस जी ने अपनी मृत्यु (सन् 1886) से ठीक पहले अपने सन्यासी वस्त्र, अपने नौजवान शिष्य विवेकानन्द जी को प्रदान किये और अपनी सन्यास की योजना बनाई।
रामकृष्ण जी को अपने प्रमुख शिष्य ‘‘स्वामी विवेकानन्द’’ जी से अत्यधिक लगाव था और उनकी इच्छा थी कि आगे की जिम्मेदारी विवेकानन्द जी ही संभाले। रामकृष्ण जी की मृत्यु के पश्चात 1886 ई. उनके शिष्यों ने प्रथम मठ की स्थापना बरंगारे (Barengare) में की।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कैसे और कब हुई, किसने इसकी स्थापना की, तथा किस तरह से धीरे.धीरे इसका प्रचार-प्रसार हुआ।
श्री रामकृष्ण, बंगाल के एक गृहस्थ संत थे। उनका जन्म 1836 में कामरपुकुर में हुआ था। 16 अगस्त, 1886 की सुबह उनकी मृत्यु हो गई थी। वे स्वयं, शुरू में दक्षिणेश्वर मंदिर के पुजारी रहे थे, किन्तु वे पुजारी की भूमिका से कहीं आगे निकल गये और एक योगी तथा सन्यासी के लक्षण उनके भीतर प्रतिबिम्बित हुए। यद्यपि शारदा देवी से उनका विवाह हुआ था किन्तु वे दोनों कभी भी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे। रामकृष्ण की नजर में सभी धर्मों का ईश्वर, एक ही था, भले ही उसकी पूजा, उन धर्मों द्वारा स्वयं ही प्रस्तावित, अलग-अलग तरीकों से की जा सकती थी। श्री रामकृष्ण का संदेश यही था र्कि ईश्वर की प्राप्ति ‘‘औरत तथा स्वर्ण ‘‘ का त्याग करके ही संभव हो सकती है। रामकृष्ण के एकतावाद ने अन्य सभी विचारों व मार्गों को सत्य की एकता के अनुभव के रूप में घटाकर रख दिया। श्री रामकृष्ण मिशन ने स्वामी विवेकानन्द को सत्य के अनेक अनुभव प्रदान करके उन्हें अपने विचारों में ढाल दिया।
उनकी मृत्यु के तुरत बाद ही, 1886 में श्री रामकृष्ण के नाम पर एक मठवादी व्यवस्था का गठन किया गया, जो कि कोलकाता के उत्तर में करीब तीन कि.मी. की दूरी पर बारानागौर में है। यह मठवादी व्यवस्था उनके सन्यासी शिष्यों द्वारा स्वामी विवेकानन्द के नेत ृत्व में गठित की गई।
वास्तव में उन्होंने ही इस व्यवस्था की नीव रखी थी। गुरु रामकृष्ण ने स्वयं ही अपनी बीमारी के दौरान इसे स्थापित कर दिया था। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को इस आशय के निर्देश दिये थे कि इस व्यवस्था का गठन एवं संचालन किस तरह से किया जाना है। माँ श्री शारदा देवी, जो कि श्री रामकृष्ण की पत्नी थी, मठ और मिशन स्थापित करने के पीछे महान् आध्यात्मिक प्रेरणा उन्हीं ही की थी।
1899 में, मठ को कोलकाता के उत्तर के लगभग 6 कि.मी. की दूरी पर गंगा के उस पार बेलूर में स्थित मौजूदा स्थल पर ले. जाया गया।
1897 के साल का मई का महीना, भारत में आधुनिक धार्मिक आन्दोलनों के इतिहास में दर्ज रहेगा, जब कि स्वामी विवेकानन्द तथा उनके मुट्ठीभर सहयोगियों ने रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की थी। 4 मई, 1909 को 1860 के अधिनियम, XXI, पंजीकरण संख्या 1917 आफ 1909.10 के साथ रामकृष्ण मिशन के नाम से यह पजीकृत हुआ।
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य
स्वामी विवेकानन्द जी ने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जहां वेदान्त सम्बन्धी शिक्षा का प्रसार करना है। वहीं नि:स्वार्थ होकर हरिजन तथा निर्धनों की सेवा करना भी है। मानव सेवा और मानव कल्याण इसके परम धर्म है। रामकृष्ण मिशन संस्था के मुख्य उद्देश्य है।
- मानव सवेा और मानव कल्याण की भावना का प्रचार करना तथा व्यक्तियों को प्रेरित करना कि वे मानव सवेा कार्य में नि:स्वार्थ भाव से लगें।
- सामाजिक कार्य-कर्ताओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना।
- हरिजन तथा निर्धन व्यक्तिओं की सवेा करना।
- वेदान्त ज्ञान एंव दर्शन का सन्देश घर-घर पहुंचाना।
- सभी धर्मा के व्यक्तिओं में सदंभावना, प्रेम तथा भाईचारे की भावना को बढ़ाना।
- विभिन्न प्रकार की कलाओं को प्रोत्साहन देना।
- निशुल्क शिक्षण-संस्थाओं की स्थापना करना।
- निशुल्क अस्पतालों का प्रबन्ध करना।
- मानवतावादी विचारों का प्रसार व प्रचार करना।
- ‘‘आत्मनों मोक्षर्थ जगत्हितायच्-’’ अर्थात अपनी मुक्ति के साथ जगत कल्याण क े बारे में सोचना।
- सच्चरित्र, त्यागी, तपस्वी व्यक्तियों को समान सेवा हेतु तैयार करना और जनसाधारण की भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति हेतु प्रयत्न करना।
- भारतीय संस्कृति, साहित्य तथा भारतीय शिल्प कला की उन्नति के प्रयास करना।
- संघ के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होने वाले वृतपत्रों और नियतकालिक पत्र पत्रिकाओं तथा पुस्तकों और पत्रकों के मुद्रण और प्रकाशन करवाकर उनका निशुल्क या अन्य प्रकार से वितरण करवाना।
रामकृष्ण परमंहस को केन्द्र बनाकर जो संघ बीज रूप में स्वामी विवेकानन्द जी ने स्थापित किया, अब वह विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है जिसकी शाखायें ससांर के सभी देशों मे स्थापित हो चुकी है तथा सघं का कार्यक्रम एक आन्दोलन का रूप धारण कर आम आदमी के दरवाजे तक पहुंच गया है।
वर्तमान में रामकृष्ण मिशन अनेक धर्मार्थ औषधालय और चिकित्सालय का संचालन कर रहा हैं। रामकृष्ण मिशन में रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानंद के विचारों का समावेश हैं। उन्होंने भारतीयों में व्याप्त सम्प्रदायिक तथा जातिगत् भेदभाव को दूर करने का प्रत्यन किया तथा उन्होंने सत्य की खोज की ओर अग्रसर होने का संदेश दिया। रामकृष्ण परमहंस का प्रमुख उद्देश्य सब धर्मो को मिलकर एक करना था। उनके विचानुसार सभी धर्मो की आंतरिक भावना एक जैसी हैं। इस प्रकार रामकृष्ण की आध्यात्मिक उदारवादी भावना ने हिन्दुओं में आध्यात्मिक एकता को प्रसारित किया। रामकृष्ण परमहंस के व्यक्तित्व एवं शिक्षाओं से मध्यमवर्ग सर्वाधिक प्रभावित हुआ। रामकृष्ण परमहंस के विचारों के पूर्ण समर्थक और भक्त के रूप में नरेन्द्रनाथ दल सामने आये जो कि पाश्चात्य शिक्षित व्यक्ति थे। रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात विवेकानंद पूर्णतः सन्यासी बन गये और उन्होंने रामकृष्ण के विचारों को साधारण भाषा में प्रसारित किया। इस प्रकार वे नवीन हिन्दू धर्म के प्रचारक बन गये। स्वामी विवेकानंद ने 1893 के शिकागो में सर्व धर्म सम्मेलन में अपने इतिहास प्रसिद्ध विद्धता पूर्ण भाषण से सभी को अत्यधिक प्रभावित किया।
इनके भाषण का उद्देश्य भौतिकवाद और आध्यात्यवाद के मध्य एक स्वस्थ संतुलन स्थापित करना था। अमेरिका में इन्होंने वेदान्त समाज की स्थापना की। ’मुझे मत छोड़ो’ हिन्दू धर्म के इस पहलू की स्वामी विवेकानन्द द्वारा आलोचना की गई उन्होंने हिन्दू धर्म में निहित शूद्र जाति के प्रति व्यवहार की भर्त्सना की तथा निर्धनों का धनिको द्वारा शोषण का विरोध किया।
स्वामी विवेकानंद ने मानवता को ईश्वर की पूजा बताया हैं। उन्होंने अपने भाषणों तथा लेखों में इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये गये जिसके द्वारा हिन्दु धर्म तथा भारतीय समाज में एक नवीन आत्म गौरव की भावना का उद्य हुआ जिसका परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति में नये विश्वास का संचार हुआ। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन शीघ्र ही लोक सेवा और समाज सेवा के लिए लोकप्रिय हो गया।