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रवीन्द्रनाथ टैगोर |
का नाम शारदा देवी था। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान एवं उत्साही समाज सुधारक थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम 1863 ई0 में बोलपुर के पास अपनी साधना के लिए एक आश्रम की स्थापना की। यहीं पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन, विश्वभारती, श्रीनिकेतन जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं की स्थापना की।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से वे 1878 में इंग्लैंड गये। वहाँ भी वे कुछ ही दिन तक बाइटन स्कूल के विद्याथ्री के रूप में रह पाये। वे भारत लौट आये। पुन: 1881 ई0 मे कानून की पढ़ाई के विचार से वे विलायत गये। पर वहाँ पहुंचने के उपरांत वकालत की पढाई का विचार उन्होंने त्याग दिया, और वे स्वदेश वापस आ गये। इस प्रकार उन्होंने औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं की, पर पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला। दोनों ही संस्कृतियों का सर्वश्रेष्ठ तत्व रवीन्द्रनाथ टैगोर के व्यिक्त्व का हिस्सा बन गया।
1901 में बोलपुर के समीप रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम के नाम से एक विद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में शान्तिनिकेतन के नाम से पुकारा गया। उन्होंने अपने को पूर्णत: शिक्षा साहित्य एवं समाज की सेवा में अर्पित कर दिया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को सक्रिय राजनीति मे रूचि नहीं थी, पर जब अंग्रेजों ने अन्याय पूर्वक बंगाल का विभाजन किया तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसके विरूद्ध चलने वाले स्वदेशी आन्दोलन का नेतृत्व किया। वे कलकत्ता की गलियों में एकता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व का गीत गाते हुए निकल पड़े। बंगाल का विभाजन रद्द हुआ।
कवि, साहित्यकार, अध्यापक एवं समाजसेवी के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर की ख्याति बढ़ती गयी। 1913 में उन्हें ‘गीतांजली’ नामक काव्य पुस्तक पर साहित्य का विश्वप्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार मिला। वे एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें यह विश्व प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था। अब पूरा विश्व उन्हें विश्वकवि के रूप में देखने लगा। उन्होंने अमेरिका, एशिया एवं यूरोप के अनेक देशों का भ्रमण किया। 1915 में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि प्रदान की।
1919 में जब जालियाँवाला बाग में हजारों निहत्थे भारतीयों की औपनिवेशिक सरकार द्वारा हत्या की गई, तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी और वे पीड़ित भारतीयों के साथ खड़े हो गये। इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने देश को राजनीतिक नेतृत्व भी प्रदान किया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएँ
शिक्षा से संबंधित उनकी चार महत्वपूर्ण पुस्तकें है। सबसे अधिक प्रसिद्ध पुस्तक ‘शिक्षा’ है जो प्रथम बार 1908 में प्रकाशित हुई। प्रारंभ में इसमें सात निबंध थे, बाद में इसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित 16 अन्य निबंधों को भी संकलित किया गया।
शिक्षा से संबंधित रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनांए शिक्षा के विभिन्न स्तरों एवं पक्षों- ‘प्राथमिक-उच्च’, ‘ग्रामीण-शहरी’, ‘व्यक्ति-समुदाय’ का चित्रण करते है। उनकी कई कवितांए शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लिपिका में संग्रहित ‘तोता कहानी’ वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सर्वाधिक तीखा व्यंग है। यह दर्शाता है कि विभिन्न स्तरों पर शिक्षा की व्यवहारिक समस्याओं की उनको कितनी गहरी समझ थी।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक विचार
- सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य आत्मबोध होना चाहिए।
- शिक्षा के साथ आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक अभिवृत्तियों को संश्लेषित कर शिक्षा का लक्ष्य निर्मित किया।
- सृजनशील विद्यार्थियों को विकसित करने हेतु, बच्चे को आत्म अभिव्यक्ति के लिए अवसर प्रदान करना चाहिए।
- वह शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक तथा धार्मिक विकास के साथ मानव शक्ति के समेिकत विकास का समर्थन करते थे।
- वह व्यक्ति द्वारा रह रहे वातावरण के साथ समायोजन तथा अन्य व्यक्तियों के रहने वाले वातावरण में समायोजन के समर्थक थे।
- बच्चों को पुस्तकों के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति के लिए दबाव नहीं देना चाहिए।
- शिक्षा का लक्ष्य बच्चे को आत्मसंतुष्ट बनाना तथा जीविकोपार्जन करना है।
- शिक्षा को बच्चों को राष्ट्रीय संस्कृति के विचारों एवं मूल्यों के अभ्यास हेतु योग्य बनाना चाहिए।
- शिक्षा को बच्चों को संपूर्ण मानव बनने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।
पाठ्यचर्या तथा शिक्षण विधियाँ
विद्यालय, शिक्षक तथा अनुशासन की अवधारणा
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित संस्थाएं
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अनेक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना की, जो है-