मीडिया का अर्थ वह तकनीक है जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर दर्शकों तक संदेश पहुंचाना है। यह आम जनता के विशाल बहुमत तक पहुंचने के लिए संचार का प्राथमिक साधन है। वहीं सामूहिक मीडिया के लिए सबसे सामान्य साधन समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट हैं। ‘‘मीडिया का कुछ विषयों पर जनता की राय बनाने में एक बड़ा प्रभाव होता है। कई मामलों में, मीडिया एकमात्र स्रोत है जिस पर आम जनता समाचारों के लिए निर्भर है। जब नील आर्मस्ट्रांग 1969 में चंद्रमा पर उतरा, तो जन मीडिया ने इस ऐतिहासिक घटना को जनता के लिए देखना संभव बनाया।’’
मीडिया का अर्थ एवं परिभाषा
मीडिया शब्द की उत्पत्ति
मीडिया शब्द की उत्पत्ति 16वीं शताब्दी के अंत में लैटिन भाषा से मानी गई है। मीडिया को अधिकतर डिजिटल मीडिया या माध्यम के रूप में भी जाना जाता है। एक फ्लॉपी डिस्क, सीडी, और यूएसबी डेटा भंडार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सभी भौतिक साधन मीडिया के उदाहरण हैं।
मीडिया की अवधारणा को किसी विचार या संदेश प्रेषित करने के माध्यम के तौर पर व्याख्यित किया जा सकता है, लेकिन यह परिभाषा आज के दृष्टिकोण से संकुचित हो गई है। मीडिया का मुख्य उद्देश्य संवाद स्थापित करना है, लेकिन मीडिया लोगों को सूचित, शिक्षित, मनोरंजन प्रदान करने के साथ ही साथ लोगों की आम राय बनाने, उनको सिखाने, मॉनिटर करने आदि में भी विशेषज्ञ हो सकता है। जनता को शिक्षित करने में भी मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी कारण आज टीवी चैनलों पर कई शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा रहा है। टीवी के साथ ही साथ आम जनता को शिक्षित करने में आज इंटरनेट भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इंटरनेट पर जानकारी के साथ, कोई भी व्यक्ति कुछ से कुछ सीख सकता है। वहीं बीसवीं सदी की डिजिटल तकनीक ने नवीन डिजिटल मीडिया को जन्म दिया है। इस प्रकार देखा जाए तो पिछली सदी में, दूरसंचार के क्षेत्र में एक क्रांति ने लम्बी दूरी के संचार के लिए नए मीडिया माध्यम प्रदान करके संचार प्रक्रिया को बहुत बदल दिया है।
वर्तमान में इलैक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग निरंतर बढ़ रहा है, हालांकि इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी चिंता पैदा हुई है। प्रौद्योगिकी ने पिछले दशक के दौरान उच्च रिकॉर्ड दर्ज किए हैं। इस प्रकार संचार की गतिशीलता बदल रही है। इलैक्ट्रॉनिक माध्यम समय बीतने के साथ और आधुनिक हो गए हैं। हालांकि, इंटरनेट संचार उपकरण जैसे ई-मेल, स्काइप, फेसबुक आदि के लिए मीडिया सबसे प्रभावी साधनों में से एक है, जो लोगों को करीब और एक साथ लाया है और कई नए ऑनलाइन समुदायों का निर्माण भी किया है।
मीडिया का वर्तमान स्वरूप देखें तो पिछले कुछ वर्षों में यह मूल रूप से बदल गया है। ‘इंटरनेट’ नामक नवीन मीडिया आज हमारा सबसे ज्यादा ध्यान खींचने में कामयाब हो रहा है। विशेषकर युवा इसके सबसे बड़े ग्राहक के तौर पर उभर रहे हैं। क्योंकि यह उनको एक मंच पर कोई भी सामग्री ढूंढने के साथ ही साथ देखने, सुनने और बोलने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। इसी कारण आज भारतीय इंटरनेट के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गए हैं। इसे इंटरनेट का आकर्षण और प्रभाव ही कहा जा सकता है। ‘‘भारतीय युवा इंटरनेट का सबसे अधिक उपयोग ईमेल और इसके बाद चैटिंग के लिए करते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग, गेमिंग, डेटिंग, जीवन साथी ढूंढने और यात्रा की प्लानिंग उनकी वरीयता सूची में निचले स्तर पर है।’’
मीडिया को सामाजिक परिवर्तन का अग्रदूत भी माना जाता है। मीडिया ने ही समाज की कई पुरातनपंथी सोच, आडम्बरों पर प्रहार करके इसके बारे में सोचने और इसके दुष्परिणामों की ओर सबका ध्यान आकर्षित करने के साथ ही उन्हें उद्धेलित करने का काम भी किया है। मीडिया ने समाज में प्रचलित कई कुप्रथाओं जैसे- सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बहु-विवाह प्रथा, जाति प्रथा व कई प्रकार के धार्मिक अविश्वासों, आडम्बरों के प्रति हमारी धारणाओं व दृष्टिकोण को बदलने का काम भी किया है। समाज के आधुनिकीकरण में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। खासकर परम्परागत समाजों को आधुनिक बनने की ओर अग्रसर करने में। आज के मीडिया पर्यावरण की एक विशेषता इसकी परिवर्तनशीलता है, जहां नई तकनीक मीडिया के खपत के नए रूपों को सक्षम करती है। मीडिया में परिवर्तन व्यक्ति की मानसिकता के साथ ही साथ संस्कृति और समाज को भी प्रभावित करता है।
दूसरी ओर, कई विद्वानों द्वारा मीडिया के महत्व के साथ-साथ उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर भी चर्चा की जा रही हैं। कोई इसे परिवर्तन का कारक मानते हैं तो कोई इसके मानव व्यवहार पर पड़़ने वाले प्रभावों की नकारात्मक व्याख्या भी करता है। कई लोगों का मानना है कि मीडिया ने हमारे सामाजिक दायरे को संकुचित करके उसे एकाकी बनाने का काम किया है, जिसके मनोवैज्ञानिक तौर पर कई नकारात्मक प्रभाव भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। साथ ही इसे पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों में दूरी लाने का एक कारण भी समझा जा रहा है।
- परिहार, कालूराम, (2008), मीडिया के सामाजिक सरोकार, नई दिल्ली, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दरियागंज, प्रथम संस्करण, पृष्ठ 22।
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