अनुक्रम
मानव अधिकार का अर्थ सब जीवों में मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम कृति है। अत: मानव द्वारा ही बनाए गए इस समाज में, उसे मानवीय मूल्यों और संबंधों को प्राथमिकता देने का अधिकार दिया जाना चाहिए। मानव अधिकार वस्तुतः वो मूल या नैसर्गिक अधिकार हैं, जो हर मनुष्य को प्रकृति द्वारा प्रदत्त है।
मानव अधिकार की परिभाषा
डी0 डी0 बसु के अनुसार-’’मानव अधिकार को उन न्यूनतम अधिकारों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी अन्य विचारण के, मानव परिवार का सदस्य होने के फलस्वरूप राज्य या अन्य लोक प्राधिकारी के विरूद्ध धारण करना चाहिये।’’
हैराल्ड लास्की के अनुसार-’’अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनके बिना सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।’’
डेविड सेल्वी के अनुसार-’’विश्व में प्रत्येक व्यक्ति मानव होने के नाते मानव अधिकारों का उपयोग करता है। मानव अधिकार कमाए नहीं जाते, और न ही किसी के द्वारा किसी को दिए जा सकते हैं, और न ही किसी समझौते द्वारा इनका निर्माण किया जा सकता है। ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित होते हैं।’’
होलैण्ड के मतानुसार-’’अन्य व्यक्ति के कार्यों को अपनी शक्ति के स्थान पर समाज के बल द्वारा प्रभावित करने की व्यक्तिगत क्षमता को अधिकार कहते हैं।’’
ए.ए. सईद के अनुसार-’’मानव अधिकार व्यक्ति की गरिमा से संबंधित हैं। व्यक्तिगत पहचान का स्तर आत्म-सम्मान को संरक्षित करता है, और मानवीय समुदाय को बढ़ावा देता है।’’ इस परिप्रेक्ष्य में जान जैक्स़स़ रूसो ने 200 वर्श पहले कहा था कि ‘‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है, पर हर जगह वह जंजीरों से जकड़ा हुआ है।’’
स्कॉट डेविडसन के अनुसार-’’मानव अधिकार की अवधारणा राज्य द्वारा व्यक्ति की सुरक्षा के लिए किए गए कार्य से निकटता से जुड़ी हुई है। यह राज्य द्वारा निर्मित उन सामाजिक परिस्थितियों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की ओर भी संकेत करती है, जिनके अंतर्गत व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके।’’
मैकने के अनुसार-’’अधिकार मानव के सामाजिक हित की वे लाभदायक परिस्थितियां हैं, जो उसके सच्चे विकास के लिए आवश्यक हैं।’’
एम. फ्रीडमैन के अनुसार-’’मानव अधिकार एक वैचारिक युक्ति है, जिसकी अभिव्यक्ति भाषागत रूपरेखा में होती है। यह निश्चित मानवीय या सामाजिक विशेषताओं को प्राथमिकता देते हुए व्यक्ति के पर्याप्त कार्यों के लिए आवश्यकता के रूप में महत्व प्रदान करती है। साथ ही इन विशेषताओं की रक्षा के संक्षिप्त योजना बनाने के लिए उसे प्रोत्साहित करके इस प्रकार के संरक्षण की पुष्टि के विचार विमर्श के कार्यों की अपील करती है।’’
मानव अधिकार के प्रकार
भारत में मूल अधिकारों की व्याख्या व संदर्भित प्रावधानों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से 35) में किया गया है। मूल अधिकारों की कुल संख्या पूर्व में सात थी, जो कि वर्तमान में 6 है।
- समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
1. समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)
- विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण का अधिकार (अनुच्छेद-14)
- धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म का स्थान, के आधार पर विभेद का प्रतिशेध (अनुच्छेद-15)
- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता (अनुच्छेद-16)
- अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद-17)
- उपाधियों का अंत अनुच्छेद-18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
- वाक् स्वातंत्र्य विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद-19)
- अपराधों के लिए दोशसिद्ध के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद-20)
- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद-21)
- कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध से संरक्षण (अनुच्छेद-22)
3. शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
- मानव के दुव्र्यापार और बलात श्रम पर रोक (अनुच्छेद-23)
- कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिशेध (अनुच्छेद-24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
- अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप में मानने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-25)
- धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-26)
- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद-27)
- कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-28)
5. सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 31)
- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (अनुच्छेद-29)
- अल्पसंख्यकों को षिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार (अनुच्छेद-30)
- 1978 में संपत्ति के अधिकार का विलोपन कर दिया गया है (अनुच्छेद-31)
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
- मौलिक अधिकारों को न्यायालय में प्रवर्तित कराने का अधिकार है। इसके तहत न्यायालय 5 प्रकार का रिट जारी कर सकता है (अनुच्छेद-32)
- संसद द्वारा मूल अधिकारों के उपांतरण की शक्ति (अनुच्छेद-33)
- संसद विधि द्वारा मार्शल लॉ के प्रवर्तन के दौरान मूल अधिकारों के उल्लंघन की क्षतिपूर्ति (अनुच्छेद-34)
मानव अधिकार का वर्गीकरण
- प्राकृतिक अधिकार
- नैतिक अधिकार
- वैधानिक अधिकार
- मूलभूत अधिकार
- नागरिक अधिकार
- राजनैतिक अधिकार
- आर्थिक अधिकार
- सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकार
1. प्राकृतिक अधिकार
2. नैतिक अधिकार
3. वैधानिक अधिकार
- मूलभूत अधिकार
- राजनीतिक अधिकार
- सामाजिक अधिकार