अनुक्रम
भारतवर्ष प्राचीन देश है। अपनी भौगोलिक स्थिति और सांस्कृतिक इकाई के रूप में भारतीय संस्कृति का समस्त मानवीय उपलब्धियों के अध्ययन में प्रमुख स्थान है। इसकी संस्कृति में राष्ट्रीय जीवन का उत्थान-पतन तो स्वभावतः: है ही इसकी विविधता के स्वरूप में समन्वयवादी चतेना भी व्याप्त है। प्राचीनता के आधार से भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। भारतीय संस्कृति मिस्र, यूनान, रोम, सुमेर आदि से प्राचीन ही है।
भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
भारतीय संस्कृति उत्तम संस्कृति मानी जाती है भारतीय संस्कृति की विशेषताएं हैं-
1. आध्यात्मिकता
2. प्राचीनता एवं अविच्छिन्नता
भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से है। डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने लिखा है – ‘भारतीय सभ्यता संसार की अन्य सभ्यताओं से अधिक प्राचीन और प्राणवान है। यह तथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण है इसलिए कि बहुत से देशों ने विदेशी जातियों की चढ़ाइयो और विजयों को सहा है। इससे भी देषों में प्राकृतिक दशाओं, रीति-रिवाजो और भाषाओं का इतना वैविध्य है। भारतीय सभ्यता की अविच्छिन्नता के कारण है। एक कारण है कल्पना आरै यथार्थ का स्वरूप आदर्श तथा दूसरा कारण पाँच हजार से भी अधिक वर्शों के संघर्ष और क्रमिक विकास एवं समन्वय के बल पर विकसित सामाजिक व्यवस्था।
डॉŒ विजयेन्द्र स्नातक लिखते हैं – ‘सर्यू की आलाके प्रदायिनी किरणों से पौधे को चाह े जितनी जीवनी शक्ति मिले किन्तु जमीन और जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता है।’ इससे तात्पर्य यह है कि भारतीयता संस्कृति यहाँ के जन-जन की भावनाओं में सदियों से जमा है जो बाहरी दिखावे या आकर्शण से बदलती नहीं।
3. साम्प्रदायिकता एकता और सहिष्णुता
‘‘भारतीय संस्कृति में धर्म की स्वीकृति है, किन्तु धर्म किसी संकीणर्ता या अंधविश्वास का पर्याय नहीं है।’’ वर्तमान समय ही नहीं बल्कि प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का आधार धार्मिक एकता व सहिश्णुता रहा है। राम, कृष्ण, शिव तथा बुद्ध, महावीर इत्यादि की मान्यताओं के अलावा भारत में देवी-देवताओं की संख्या अनगिनत है। फिर भी इनकी विचारधाराओं में एकता का मलू है, क्योंकि विभिन्न रूप स्वीकार करने पर भी एक-ईश्वर में भारतीय मानस का विश्वास सुदृढ़ है।
4. वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्णाश्रम व्यवस्था भारतीय समाज की निजी विशेषता है। यह व्यवस्था भारतीय संस्कृति मे एकता बनाए रखने वाला मौलिक गुण है जो वैदिक काल से ही चली आ रही है। इस व्यवस्था ने भारत के विभिन्न मानव-समहूों और जातियों को एक सूत्र में पिरोये रखने का सफल प्रयत्न किया है। जीविका की प्राप्ति आरै उचित अवसर का जो समाज में सहज क्रम दिखता है अर्थात् पिता के पेशों को पुत्रों द्वारा आगे ले चलना, उसकी सामाजिक व्यवस्था भारतीय संस्कृति की अद्भुत विशेषता है। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर भी विलक्षण संस्कृति की विलक्षणता के बारे में अपनी पुस्तक ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में लिखते हैं कि वैदिक धर्म चार वर्णों में विश्वास करता है।
5. खुली दृष्टि और ग्रहणषीलता
खुली दृष्टि और ग्रहणषीलता भारतीय संस्कृति का एक मन्त्र है। बाह्य संस्कृतियों और जातियों से आदान-प्रदान प्रभावों को आत्मसात करना, नए लक्ष्य की प्राप्ति आदि उसी विचारधारा के अंग है। सामाजिक व्यवस्था की उदारता और ग्रहण क्षमता उसके लक्षण है। डॉ विजयेन्द्र स्नातक लिखते हैं कि भारतीय संस्कृति का मलूाधार – ‘‘जीyo और जीने दो है। हमारी संस्कृति की यही खुली विचारधारा है। समय-समय पर अनेक जातियाँ भारतवर्ष में आकर यही घुल-मिल गई। राजनीतिक विजय के बावजूद भी ये भारत की संस्कृति पर विजय नहीं पा सकी। इनकी अच्छी विचारधारा को भारतीय संस्कृति ने अपने अन्दर समाहित कर लिया।
भारत भूमि अनेक आविष्कार, खोज और भौतिक उपलब्धियों की जननी रही है। उदाहरण के लिए अंकगणित, शून्य, कथा, कहनी, शतरंज का खेल, कपास के वस्त्र, अद्वैत दर्शन, बौद्ध धर्म आदि भारतीय देन है जिससे विश्व समय-समय पर लाभान्वित हुआ। चिकित्सा और कला के क्षत्रे में अनेक प्रभाव भारत के बाहर गए। विद्या के क्षत्रे में इस प्रकार सिरमौर होने पर भी मुक्त रूप से विदेषी उपलब्धियों को स्वीकार किया जैसे – यूनानी ज्योतिष। इस प्रकार विश्व के अनेक देशों पर भारतीय संस्कृति की अमिट छाप व्यापक रूप से पड़ी है।
6. विविधता में एकता
भारतवर्ष में भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधता होते हुए भी यह देश अपनी एकता के लिए विख्यात है। इस देश को ’संसार का संक्षिप्त प्रतिरूप’ कहा गया है। यह धरती अनेक जनो वाली विविध भाषा, अनेक धर्म और यथेच्छ घरो वाली है। भाषा और धर्म देश में विविधता के आज भी लक्षण है। किन्तु वे एक सूत्रबद्ध है। भारतीय संस्कृति की ‘विविधता में एकता’ की विचारधारा पर रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं – ‘‘भारतवर्ष मे सभी जाति मिलकर एक अलग समाज का निर्माण करती हैं जैसे – कई प्रकार की औशधियों को कड़ाही में डालकर जब काढ़ा बनाते हैं तब उस काढ़ा का स्वाद दूर एक औषधि के अलग स्वाद से सर्वथा भिन्न हो जाता है। असल में उस काढ़ा का स्वाद सभी औषधियों के स्वादों के मिश्रण का परिणाम होता है।
7. समानता व कल्याणकारी
भारतीय संस्कृति की सार्थक उपलब्धि उसकी समानता है। समय की कसौटी पर उसका इतिहास खरा उतरता है। संसार की इस प्राचीन सभ्यता के उदय का वैदिक साहित्य साक्षी है। सिंधु घाटी से मिले अवशेष पाँच हजार वर्ष पूर्व भारतीय उपलब्धियों और जीवन-निधि का प्रमाण देते हैं। उस संस्कृति के अनेक तथ्य और बाते आज के समय तक जीवित हैं। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति एसेी है जिसका पतन नहीं हुआ है। निःसंदेह इस अमरता का रहस्य समन्वयवाद, सहिष्णुता और विश्व कल्याण की भावना के सिद्धान्तो में छिपा है।
8. संयुक्त परिवार प्रणाली
भारतीय समाज में संयुक्त परिवार प्रथा सदियों से चली आ रही है। यह इसकी प्रमुख विशेषता है। इसके इस गुण को तो विश्व के अन्य देश भी अनुसरण कर रहे हैं। ‘अपने हैं तो आसरा है’ शीर्षक से मधुरिमा का अंक प्रकाशित है। यह ‘अन्तर्राश्ट्रीय परिवार दिवस’ के उपलक्ष्य में छपा है जिसमें संयुक्त परिवार के विषय में लिखा है – ‘संयुक्त परिवार भारत की पहचान है। इसके दायरे मे बुजुर्ग माँ-बाप, भाई-बंधु आते हैं। सभी लोग एक ही छत के नीचे रहकर आपस में एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं।’ संयुक्त परिवार मे प्रत्येक सदस्य सुख, शान्ति व सामाजिक सुरक्षा में रहता है। यह प्रथा समाज में आज भी व्याप्त है।
9. प्रकृति प्रेम
भारतीय जनमानुश प्रकृति से भी अगाध प्रेम रखता आया है। इस प्रकार प्रकृति प्रेम भी भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है। भारत वर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा रही है। यहाँ पर सभी ऋतुएँ समय पर आती है और अपने अनुकूल फल-फूलों का सृजन करती है। प्रकृति प्रेम का चित्रण करते हुए गुलाबराय ने लिखा है – ‘‘यहाँ का नगाधिराज हिमालय कवियों को सदा पे्ररणा देता रहा है आरै यहाँ की नदियाँ मोक्षदायिनी समझी जाती हैं। यहाँ कृत्रिम धूप और रोशनी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। भारतीय मनीशी जंगल में रहना पसंद करते थे। प्रकृति प्रेम के कारण ही यहाँ के लागे पत्तों में खाना पसंद करते हैं। वृक्षों में पानी देना एक धार्मिक कार्य समझते हैं। सूर्य और चन्द्र दर्शन नैमितिक कार्यों में शुभ माना जाता है।
इस प्रकार भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ सागर की लहरों की तरह अनगिनत उपवन के फलों की तरह रंग बिरंगी हैं। इसके मूल अंगों पर पक्राष डाला गया है। भारत में विभिन्न जातियों के पारस्परिक सम्पर्क मे आने से संस्कृति की समस्या कुछ जटिल हो गई है। विभिन्न संस्कृतियों के गुणों का समन्वय हमने किया है। दूसरों की संस्कृतियों में सब बाते बुरी भी नहीं है। हमारी संस्कृति धार्मिक कार्यों में एकांत साधना पर बल देती है। परन्तु मुसलमानी और अंग्रेजी सभ्यता में सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया गया है। हमारे कीर्तन, सत्संग आदि तथा महात्मा गांधी द्वारा परिचालित प्रार्थना सभाएँ धर्म में एकता की भावना को बढ़ावा देती हैं। वस्तुतः हमारी संस्कृति प्रकृति प्रेम की दृष्टि से भी श्रेष्ठ संस्कृति है।
भारतीय संस्कृति की संस्कृति विभिन्न व्याख्यायें
डाॅ. हरिनारायण दुबे ने भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, कि ‘‘भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व आध्यात्मिक है। इसमें ऐहिक एवं भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में धर्मान्धता का कोई स्थान नहीं है। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है।‘‘ ’’भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विरासत इसमें अंतर्निहित सहिष्णुता की भावना मानी जा सकती है। यद्यपि प्राचीन काल से ही भारत में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय रहे हैं किंतु इतिहास साक्षी है कि धर्म के नाम पर अत्याचार और रक्तपात प्राचीन भारत में नहीं हुआ। इस प्रकार भारत भूमि का यह सतत् सौभाग्य रहा है कि यहां अनादिकाल से मानवमात्र को ही नहीं वरन प्राणिमात्र को एकता एवं भाईचारे की भावना में जोड़ने की प्रबल संस्कृति प्रवाहमान है।‘‘
महान् साहित्यकार कवि और विद्वान् श्री रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार ‘‘भारतीय संस्कृति की आध्यात्म और मानवता की भावना अनुकरणीय है। भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण उदार और विशाल है क्योंकि मूलतः उसका विकास प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में और उसके साथ सहयोग करते हुए हुआ है। इसी कारण भारतीय संस्कृति में सहयोग समन्वय, उदारता तथा समझौते की प्रवृत्ति मूलरूप से विद्यमान है।‘‘डाॅ. एल. पी. शर्मा ने भारतीय संस्कृति की व्याख्या करते हुए उसकी निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है।
- भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम् संस्कृति है।
- भारतीय संस्कृति में विविधता होते हुए भी एकता विद्यमान है।
- भारतीय संस्कृति में धार्मिक सहिष्णुता सदैव रही है।
- भारतीय संस्कृति एक धर्म प्रधान संस्कृति है।
- भारतीय संस्कृति सदैव प्रगतिशील रही है।
- भारतीय संस्कृति में भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति का मिश्रण है।
- भारतीय संस्कृति में विश्व बंधुत्व की भावना निहित है।
- भारतीय संस्कृति की प्रकृति सहयोगात्मक है।
इस प्रकार भारतीय संस्कृति की अपनी विभिन्न विशेषतायें हैं जो उसे विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति बनाती हैं।