भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी एलन आक्टोवियन ह्यमू द्वारा सन् 1885 ई0 में की गयी थी। ए ओ ह्यूम का पूरा नाम एलन आक्टोवियन ह्यमू था। 1907 ई0 तक कांग्रेस का उद्देश्य भारतीयों को औपनिवेषिक स्वायत्तता दिलाने के लिए विदेशी शासन पर दबाव डालना मात्र था। 1907 से 1919 तक कांग्रेस दो विरोधी विचारधाराओं (उदारवादियों एवं उग्रवादियों) में विभक्त रही। 1920 ई0 से 1947 ई0 तक कांग्रेस महात्मा गाधीं के नेतृत्व में और उन्हीं की अनुगामी रही।
कांग्रेस कार्यकारिणी समिति में अध्यक्ष के अतिरिक्त बीस अन्य सदस्य होते है। कार्यकारिणी समिति के दस सदस्य अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा निर्वाचित किये जाते है और दस सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किये जाते है और कार्यकारिणी समिति में ही कांग्रेस की सर्वोच्च शक्ति निहित है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में तीन प्रकार के सदस्य होते है- निर्वाचित, पदने और सम्बद्ध संस्थाओं के प्रतिनिधि। कांग्रेस के संसदीय कार्यों के नियंत्रण और समन्वय के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी समिति एक संसदीय बोर्ड की स्थापना करती है जिसमें कांग्रेस के अध्यक्ष और पांच अन्य सदस्य होते हे। कांग्रेस संगठन के परिप्रेक्ष्य में ‘हाईकमान’ शब्द अत्यधिक प्रचलित हो गया है। यह हाईकमान यथार्थ में कांग्रेस दल की सर्वोच्च निर्णय और आदेश दने े वाली एक लघु संस्था के सम्बन्ध में किया जाता है। इसमें वे ही व्यक्ति सम्मिलित रहते है जो दल मे सर्वोच्च स्थान रखते है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य
कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य उसके संविधान में स्पष्ट करते हुए लिखा गया है कि ‘‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य भारत के लोगों की भलाई और उन्नति है तथा शांतिपूर्ण और संवैधानिक उपायों से भारत में समाजवादी राज्य कायम करना है जो कि संसदीय जनतंत्र पर आधारित हो जिसमें अवसर और राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों की समानता हो तथा जिसका लक्ष्य विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व हो’’ कांग्रेस का उद्देश्य अधिकतम लोगों को अधिकतम सुविधाएं प्रदान करने का है। कांग्रेस उचित सीमा से अधिक निजी सम्पत्ति और आर्थिक शक्ति व धन-सम्पदा का केन्द्रीयकरण न होने देने के लिए कृत संकल्प है। उसका इरादा सम्पत्ति को समाप्त करने का नहीं अपितु यह सम्पित्त के प्रश्न पर आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में नियंत्रण चाहती है। भूमिहीन और छोटे किसानों को ऋण सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। बटाई पर खेती की व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए।
कांग्रेस पार्टी सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा करने को कटिबद्ध है। कांग्रेस चाहती है कि भाशायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाशा में ही शिक्षा देने की समुचित सुविधाएं प्रदान की जाय। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के साथ-साथ पिछड़ों, दलितों, बच्चों एवं महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा की गारण्टी देती है। कांग्रेस पार्टी पक्षपात तथा सैनिक गुटों से दूर रहने की नीति का अनुसरण करती है। कांग्रेस चीन से सामान्य सम्बन्ध चाहता तथा पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण पड़ोसी के रूप में रहने की इच्छुक है।
कांग्रेस के बंगलौर अधिवेशन 1969 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष निज लिंगप्पा तथा संगठन के मुखियों में खुली टक्कर हुई। यह टक्कर सत्ता पर अधिकार के लिए था, जिसका अंत कांग्रेस विभाजन के रूप में सामने आया। कांग्रेस दो गुटों में बटी, एक थी सत्ता कांग्रेस तो दूसरी संगठन कांग्रेस। कांग्रेस के विघटन के बाद 1969 में ही सत्ता कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन मुम्बई मे जगजीवन राम के सभापतित्व में हुआ। सत्ता कांग्रेस के द्वारा सदस्यता और संगठन के सम्बन्ध में 1968 तक कांग्रेस की जो स्थिति थी उसे बनाये रखा गया।
1977 के लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस को जनता द्वारा अस्वीकार किया गया। उसे मात्र 189 सीटें ही मिल पायी। उत्तर भारत में तो कांग्रेस को पूर्ण पराजय की स्थिति प्राप्त हुयी और इन चुनाव परिणामों के सामने आते ही कांग्रेस में आंतरिक द्वन्द्व पैदा हो गया। आरोप प्रत्यारोप की इस श्रृंखला में अप्रैल 1977 के प्रारम्भिक दिनों में ही श्री बरूआ के स्थान पर सरदार स्वर्ण सिंह केा सर्व सम्मति से अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया। मई 1977 ई0 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन दिल्ली में आयोजित किया गया और इस अधिवेशन में श्रीमती गांधी के समर्थन से ब्रह्मानन्द रेड्डी अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। गांधी यह सोचती थी कि रेड्डी अध्यक्ष के रूप मे उनके निर्देशों का पालन करेंगे लेकिन ऐसा नहीं होने पर गांधी कांग्रेस के पुन: विभाजन के लिए तैयार हो गयी। श्रीमती द्वारा अपने समर्थकों का दिल्ली में एक सम्मेलन जनवरी 1978 में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में एक अलग राजनीतिक दल की स्थापना की गयी जिसे आगे चलकर इन्दिरा कांग्रेस नाम दिया गया।
दिसम्बर 1984 में कांग्रेस ने कुल 517 स्थानों पर अपने प्रत्याशी उतार े और उसे 48.2 प्रतिषत मतो के साथ 415 सीटे प्राप्त हुयी। नवम्बर 1989 के लोकसभा चुनाव मे उसे 232 सीटे मिली। 12वीं लोकसभा 1996 में 141 तथा 13वीं लोकसभा 1999 में 113 सीटें मिली। 14वीं लोकसभा 2004 में कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व मे 145 सीटें प्राप्त किया और संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के रूप में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनायी। 15वीं लोक सभा 2009 में कांग्रेस को कुल 37.94 प्रतिषत मतों के साथ 206 सीटे मिली और यू0पी0ए0 द्वितीय के रूप में मनमोहन सिंह सत्ता में आये।
16वीं लोकसभा 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनाव वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस भ्रष्टाचार एवं महंगाई के मुद्दे पर कमजोर साबित हुयी और उसे मात्र 44 सीटें ही प्राप्त हो सकी।
- कांग्रेस पार्टी का संविधान, धारा -5 (क) (अ) (1).
- द टाइम्स ऑफ इण्डिया, 8 फरवरी 1974, पृ0 18.