बौद्धिक संपदा अधिकार क्या हैं बौद्धिक सम्पदा को मुख्य रूप से इन भागों में विभक्त किया जा सकता है

वह कोई भी वस्तु, जो किसी व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज हो जैसे कोई साहित्यिक या कलात्मक कार्य, कोई शब्द, प्रतीक, डिजाइन, संगीत, खोज एवं आविष्कार आदि व्यक्ति की बौद्धिक सम्पदा कहलाती है। शब्द बौद्धिक सम्पदा का उपयोग उन्नीसवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ तथा 20 वीं शताब्दी में यह शब्द संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित हुआ। बौद्धिक संपदा की संवैधानिक सुरक्षा जरूरी है क्योंकि एक व्यक्ति की संपदा किसी और के हाथ जा सकती है जो इसका इस्तेमाल गलत तरीके से कर मुनाफा कमा सकता है। साथ ही, जो किसी देशी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती थी, किसी व्यक्ति अथवा स्थान तक ही सीमित रह जायेगी, उसका प्रचार प्रसार नहीं हो पाएगा।
सामान्यतः विश्व के सभी देशों ने इन बौद्धिक संपदाओं के संरक्षण हेतु कानून बना रखा है जिसे देश का बौद्धिक संपदा संरक्षण कानून कहते है। इस कानून के अन्तर्गत संपत्ति के मालिक को यह अधिकार है कि वह एक निश्चित समय तक अपनी बौद्धिक संपदा का बिक्री कर, पूरा आर्थिक लाभ उठा सके। साथ ही नियम यह भी सुरक्षा करता है कि यह संपदा आम आदमी की जरूरत के अनुसार उस तक पहुँच सके।

भारत में बौद्धिक संपदा का अधिकार 

बौद्धिक संपदा का अधिकार चाहे वह पेटेंट से संबंधित हो, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट या औद्योगिक सभी के द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण में वर्ष 1999 से अन्र्तराष्ट्रीय सहयोग हेतु ट्रिप्स में शामिल हुआ।

  1. पेटेंट (संशोधन) अधिनियम 1999 में संशोधन विपणन को पेटेंट 5 वर्ष है। 
  2. टे्रडमार्क विधेयक 1999 जो वस्तु चिन्ह अधिनियम 1958 3. कॉपीराइट संशोधन 1999 
  3. भौगोलिक संकेत के सामान पंजीयन और संरक्षण विधेयक 1999 को मंजूरी दी गई। 
  4. औद्योगिक डिजाइन विधेयक 1999 की जगह डिजाइन 
  5. पेटेंट संशोधन विधेयक 1999 -पेटेंट अधिनियम 1970 

उपरोक्त वैधानिक परिवर्तन कर भारत सरकार ने मौलिक संपदा के अधिकार को और सुदृढ़ बनाया है। टे्रडमार्क रजिस्ट्री के साथ लागू करने वाइपो/यू.एन.डी.पी. परियोजना को लागू करने हेतू तथा आधुनिकीकरण हेतु पेटेंट कार्यालय में 756 लाख की लागत से विकास किया गया है।

बौद्धिक संपदा का अधिकार के प्रकार 

बौद्धिक सम्पदा को मुख्य रूप से इन भागों में विभक्त किया जा सकता है –
  1. काॅपीराइट
  2. ट्रेडमार्क
  3. पैटेंट
  4. इंडस्ट्रियल डिजाइन
  5. ट्रेड सेक्रेट्स
  6. भौगोलिक संकेत
1. काॅपीराइट – इसमें किसी लेखक या रचनाकर को उसके काम के काॅपी, विवरण एवं उपयोग का पूरा अधिकार प्राप्त है। काॅपीराइट नियम मे सुरक्षित रचना का उपयोग रचनाकार की सहमति के बिना कोई दूसरा नहीं कर सकता है। 
2. ट्रेडमार्क – किसी उत्पाद अथवा सेवा को अन्य किसी उत्पाद या सेवा से अलग करने के लिए उपयोग में लाए जा रहे किसी विशिष्ट संकेत या सूचक को उसका ट्रेडमार्क कहते है। इस संकेत या सूचक द्वारा कंपनी ग्राहकों को अपने उत्पाद की गुणवत्ता तथा अंतर दर्शाती है।
3. पेटेंट – पेटेंट एक प्रकार का एकाधिकार है, जो किसी आविष्कारक को उसके आविष्कार के लिए, सम्बन्धित सरकार के द्वारा, निश्चित समय तक, प्रदान किया जाता है। इसमें, आविष्कारक अथवा उसके प्रतिनिधि को यह अधिकार होता है कि वह अपने आविष्कार से लाभ कमा सके। एक व्यक्ति एक आविष्कार के पीछे अपने जीवन का बहुमूल्य समय और धन लगाता है पैटेंट ऐसे व्यक्ति के लिए सरकार द्वारा निर्धारित एक पुरस्कार है जिसका लाभ उसे 20 वर्षों तक मिलता है। इन 20 वर्षों के बाद, यह पैटेंटिड आविष्कार, पूरे समाज/ देश की सम्पत्ति कहलाता है।
4. औद्योगिक डिजाइन – किसी वास्तविक वस्तु का सौंदर्य मूल्य युक्त, ऐसा कोई भी आकार या ढाँचा, (जो किसी रंग, लाइन अथवा अन्य सामान के मिश्रण से बना हो) जिससे किसी तैयार वस्तु का पूर्णतः पूर्वानुमान लगता हो, इडस्ट्रियल डिजाइन कहलाता है। भारत में यह औद्योगिक डिजाइन सुरक्षा अधिनियम डिजाइन एक्ट 2000 के नाम से जाना जाता है, इस नियम के अन्तर्गत, किसी भी औद्योगिक डिजाइन का पंजीयन करवाया जा सकता है, जो कि 10 वर्षों तक मान्य रहता है। बाद में फिर से 5 वर्षों के लिए इसका नवीनीकरण करवाया जा सकता है।
5. ट्रेड सीक्रेट – ट्रेड सीक्रेट, जैसे कोई तकनीकी डाटा, अंदरूणी, तरीका, प्रक्रिया आदि की सुरक्षा के लिए कोई अलग नियमन नहीं बनाया गया है। इस बनाए रखने के लिए भारत, TRIPS समझौता के सामान्य नियमों का पालन करता है।

6. भौगोलिक संकेत –  किसी-किसी वस्तु की गुणवत्ता उस वस्तु के उत्पादन के जगह पर निर्भर करती है। और उत्पादन की जगह बदलने से उसकी गुणवत्ता भी बदल जाती है। उदाहरण के लिए Champagne एक विशेष प्रकार की wine का नाम है जो वास्तव मे फ्रांस के एक प्रांत का नाम हैं और इसे यही बनाया जाता है, भारत की कश्मीरी शाॅल आदि। अतः भौगोलिक संकेत किसी उत्पाद का नाम या उस पर अंकित किसी एक प्रकार का चिन्ह है जो उसके उत्पादन की जगह के बारें मे बताता है। भारत में वस्तु के भौगोलिक संकेत अधिनियम, 1999 जो सितम्बर 2003 में लागू हुआ, के अन्तर्गत भौगोलिक संकेत का पंजीयन एवं सुरक्षा निश्चित की जा सकती है।

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