अनुक्रम
बेरोजगारी एक ऐसी अवस्था से लेते हैं जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है परन्तु उन्हें काम नहीं मिलता। किसी देश में बेरोजगारी की अवस्था वह अवस्था है जिसमें देश में बहुत से काम करने योग्य व्यक्ति हैं तथा वे वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार हैं परन्तु उन्हें कई कारणों से काम नहीं मिल रहा है। बेरोजगारी का अनुमान लगाते समय केवल उन्हीं व्यक्तियों की गणना की जाती है जो
- काम करने के योग्य हैं।
- काम करने के इच्छुक हैं तथा
- वर्तमान मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं।
उन व्यक्तियों को जो काम करने के योग्य नहीं है जैसे-बीमार, बूढ़े, बच्चे, विद्यार्थी आदि को बेरोजगारों में शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार जो लोग काम करना ही पसन्द नहीं करते उनकी गणना भी बेरोजगारों में नहीं की जाती है।
बेरोजगारी की परिभाषा
- प्रो. पीगू के अनुसार, ‘‘एक व्यक्ति को उस समय ही बेरोजगार कहा जाएगा जब उसके पास कोई रोजगार का साधन नहीं है परन्तु वह रोजगार प्राप्त करना चाहता है।
- बायरस तथा स्टोन के अनुसार, ‘‘बेरोजगारी तब होती है जब लोग काम करने के योग्य होते हैं तथा अपनी योग्यता वाले लोगों को दी जाने वाली वर्तमान मजदूरी की दर को इच्छापूर्वक स्वीकार करने को तैयार होते हैं परन्तु उन्हें रोजगार नहीं मिल जाता।
- राफिन तथा ग्रेगोरी के अनुसार, ‘‘एक बेरोजगार व्यक्ति वह व्यक्ति है जो (i) वर्तमान समय में काम नहीं कर रहा। (ii) जो सक्रिय ढंग से कार्य की तलाश में है। (iii) जो वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिये उपलब्ध है।’’
बेरोजगारी के प्रकार
- ऐच्छिक बेरोजगारी-
- अनैच्छिक बेरोजगारी-
- घर्षात्मक बेरोजगारी-
- सरंचनात्मक बेरोजगारी-
- चक्रीय बेरोजगारी-
- मौसमी बेरोजगारी-
- तकनीकी बेरोजगारी-
- खुली बेरोजगारी-
- छिपी बेरोजगारी-
- शिक्षित बेरोजगारी-
1. ऐच्छिक बेरोजगारी-
2. अनैच्छिक बेरोजगारी-
3. घर्षात्मक बेरोजगारी-
4. सरंचनात्मक बेरोजगारी-
5. चक्रीय बेरोजगारी-
6. मौसमी बेरोजगारी-
7. तकनीकी बेरोजगारी-
8. खुली बेरोजगारी-
9. छिपी बेरोजगारी-
10. शिक्षित बेरोजगारी-
भारत में बेरोजगारी के प्रभाव
भारत में बेरोजगारी के प्रभाव बेरोजगारी की समस्या एक अत्यन्त गम्भीर समस्या है। इसके बुरे प्रभाव हो सकते हैं –
- मानवीय साधनों की हानि – बेरोजगारी के फलस्वरूप देश के मानवीय साधनों की हानि होती है। देश की श्रम शक्ति का समय, रोजगार के अभाव में, व्यर्थ चला जाता है। उसका कोई रचनात्मक लाभ नहीं उठाया जाता यदि मानवीय साधनों का उचित उपयोग किया जाएगा तो देश में आर्थिक विकास की दर में वृठ्ठि हो सकेगी।
- निधर्नता मे वृद्धि – बेरोजगारी की अवस्था में मनुष्य की आय का कोई साधन नहीं होता। वे निर्धन होते हैं। बेरोजगारी के बढ़ने पर निर्धनता भी बढ़ती है। लोग कर्जदार हो जाते हैं उनकी आर्थिक समस्याएं बढ़ती हैं।
- सामाजिक समस्याएँ – बेरोजगारी के फलस्वरूप कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं जैसे – बेईमानी, अनैतिकता, शराबखोरी, जुएबाजी, चोरी-डकैती उत्पन्न होती है। इसके फलस्वरूप सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाता है। देश में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। सरकार को शान्ति और व्यवस्था कायम रखने पर काफी धन खर्च करना पड़ता है।
- राजनीतिक अस्थिरता – बेरोजगारी के फलस्वरूप देश में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। बेरोजगार व्यक्ति तोड़-फोड़ तथा अन्य आतंकवादी कार्य करने लगते हैं। उनका प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों तथा शान्तिपूर्ण उपायों पर से विश्वास खत्म हो जाता है। वे उस सरकार को निकम्मी समझने लगते हैं जो उन्हें रोजगार प्रदान न करा सके। वे उसे बदलने का प्रयत्न करने लगते हैं। राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश का आर्थिक विकास कठिन हो जाता है।
- औद्योगिक संघर्ष – संघर्षात्मक बेरोजगारी तथा इसी प्रकार की अन्य बेरोजगारियों के कारण औद्योगिक संघर्ष उत्पन्न होते हैं इसका श्रमिकों व मालिकों के सम्बन्धों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। औद्योगिक झगड़ों के कारण बेरोजगारी कम होने के स्थान पर और बढ़ जाती है। देश में वस्तुओं का उत्पादन कम होता है तथा कीमतों में वृद्धि होती है।
- मजदूरों का शोषण – बेरोजगारी के कारण सभी श्रमिकों का शोषण होता है जिन श्रमिकों को रोजगार मिलता भी है उन्हें भी कम मजदूरी व प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण काम करना पड़ता है इनका श्रमिकों की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
संक्षेप में, बेरोजगारी आर्थिक शोषण, सामाजिक अव्यवस्था तथा राजनीतिक अस्थिरता का कारण है प्रत्येक सरकार का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि वह बेरोजगारों को कम करके अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करायें।