अनुक्रम
बायोमेट्रिक के अनुप्रयोग
बायोमेट्रिक के अंतर्गत ऐसी तकनीकें आती हैं जिनके आधार पर हम व्यक्ति की पहचान स्थापित कर सकते हैं। बायोमेट्रिक का अनुप्रयोग इन क्षेत्रों में किया जाता है अथवा किया जा सकता है :
1. हवाई अड्डों की सुरक्षा में
2. अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा
3. पासपोर्ट एवं यात्रा-दस्तावेज़ों की सुरक्षा
4. चोरी से बचाव
बायोमेट्रिक के उपकरण
बायोमेट्रिक का उपयोग करने के लिए बहुत से उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अंगुलि चिन्ह, आइरिश स्कैन, हस्ताक्षर प्रमाणीकरण, चेहरे के कटाव और आवाज के प्रतिरूप जैसी विशेषताओं (उपकरणों) का प्रयोग किया जाता है।
अंगुलि चिह्न पहचान
बायोमेट्रिक की विभिन्न तकनीकों में अंगुलि चिह्न सबसे लोकप्रिय हैं। अधिकतर बायोमैट्रिक तकनीकों में अंगुलि चिन्हों का इस्तेमाल ही किया जाता है तो इसके पीछे कारण हैं :
- अंगुलि चिन्ह बेहद सरल एवं सुविधाजनक होते हैं
- अपेक्षाकृत काफी सस्ता होता है अंगुलि चिन्हों का मिलान
- अंगुलि चिन्हों को विश्व भर में विधिक मान्यता प्राप्त है
- अंगुलि चिन्ह उपयोग में अत्याधिक सुविधाजनक होते हैं
बायोमेट्रिक में अंगुलि चिन्हों का इस्तेमाल करने के लिए ‘एकल चिन्ह स्कैनर’ का प्रयोग किया जाता है। बायोमेट्रिक में सभी दस अंगुलियों के चिन्ह लेने की आवश्यकता नहीं है। आमतौर पर अंगूठे या तर्जनी अंगुलि को स्कैन करके उसे डाटाबेस में स्टोर करके रख लिया जाता है। जब कोई ऐसा व्यक्ति, जिसका अंगुलि चिन्ह पहले से ही डाटाबेस में है, किसी स्थान तक पहुंचने का प्रयास करता है अथवा किसी कंप्यूटर-तंत्र तक पहुंचने की कोशिश करता है तो सबसे पहले उसे अपनी अंगुलि एक उच्च-आवर्धता वाले स्कैनर पर रखनी होती है। स्कैनर उस व्यक्ति की अंगुलियों की डिजीकृत छवि उतार लेता है। अब कंप्यूटर, इस डिजीकृत छवि का मिलान, डाटाबेस में रखे अंगुलि चिन्ह से करता है। यदि दोनों चिन्ह, एक ही व्यक्ति के होते हैं तो बायोमैट्रिक-तंत्र उस व्यक्ति को आगे बढ़ने की अनुमति दे देता है अन्यथा नहीं। इस प्रकार एक अधिकृत व्यक्ति ही किसी स्थान विशेष में प्रवेश कर सकता है अथवा किसी कंप्यूटर-तंत्र तक पहुंच सकता है।
आइरिस से पहचान
आंख के उस गोल भाग को आइरिस कहते हैं जो आमतौर पर काला या ब्राउन होता है और पुतलियों से सुरक्षित रहता है। आइरिस पर एक विशेष प्रकार का पैटर्न बना होता है। जिस प्रकार दो व्यक्तियों के अंगुलि चिन्ह एक समान नहीं हो सकते, ठीक उसी प्रकार दो व्यक्तियों की आंखों के आइरिस भी एक-समान नहीं होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का आइरिस एक विशिष्ट प्रकार का होता है इसलिए आइरिस के आधार पर भी किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान की जा सकती है।
आइरिस बायोमेट्रिक में सबसे पहले व्यक्ति की आंखों का एक चित्र लिया जाता है। चित्र लेते समय कैमरे को आंखों के बेहद नजदीक रखा जाता है और चित्र लेते समय इंफ्रारेड प्रकाश का प्रयोग किया जाता है ताकि आंखों की छोटी से छोटी विशेषताएं भी चमकने लगें। इस प्रकार एक उच्च रिजोल्यूशन वाला आंखों का चित्र तैयार हो जाता है। इस प्रकार का आइरिस का चित्र खींचने में मात्र दो से तीन सेकेंड का समय ही लगता है। चित्र से आइरिस का जो विवरण प्राप्त होता है उससे आइरिस का एक मानचित्र तैयार कर लिया जाता है जिसमें आइरिस की सभी विशेषताएं उपस्थित रहती हैं।
आइरिस का विशिष्ट प्रतिरूप उसी समय आकार ले लेता है जब शिशु मां के गर्भ में ही होता है। आइरिस की विशिष्टताएं, जन्म से पहले ही निर्धारित हो जाती हैं। आइरिस की विशिष्टताएं व्यक्ति के पूरे जीवनभर एक समान ही रहती हैं और उनमें मृत्युपर्यंत कोई बदलाव नहीं आता है। केवल किसी दुर्घटना आदि के कारण ही आइरिस की विशिष्टताएं परिवर्तित हो सकती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की दायीं और बायीं आंखों के आइरिस भी अलग-अलग होते हैं एक ही व्यक्ति के दोनों आइरिस भी समान नहीं होते हैं।
आइरिस की अद्वितीयता के आधार पर ही व्यक्ति की पहचान की जाती है। आइरिस के आधार पर व्यक्ति की पहचान करने में गलती होने की आशंका लगभग न के बराबर होती है। कई शोधों से यह प्रमाणित हो गया है कि 1.2 मिलियन में से मात्र एक मामले में ही आइरिस स्कैनर व मैचर गलती कर सकता है। सन् 1997 से ही इंग्लैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और जर्मनी में ‘ऑटोमैटिक ट्रेलर मशीन’ (ए.टी.एम.) में आइरिस बायोमेट्रिक का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि कोई अनाधिकृत व्यक्ति, एटीएम का परिचालन न कर सके।
अधिकृत हस्ताक्षर
किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए हस्ताक्षर, बेहद सुगम और सरल साधन हैं और इसीलिए दुनियाभर में हस्तलिखित हस्ताक्षरों का प्रयोग विभिन्न बैंकिंग, विधिक और अन्य कामों के लिए किया जाता है। किसी व्यक्ति के दो हस्ताक्षरों का मिलान करने के लिए हस्ताक्षर की विभिन्न विशिष्टताओं को ध्यान में रखा जाता है। आधुनिक प्रौद्योगिकी ने ऐसी तकनीकें प्रस्तुत कर दी हैं कि किन्हीं दो हस्ताक्षरों का क्षणभर में ही मिलान किया जा सकता है। हस्ताक्षरों का मिलान करने वाले इस अत्याधुनिक उपकरण को ‘डी.एस.वी.टी.’ (डायनामिक सिग्नेचर वैरीफिकेशन टेक्नोलॉजी) का नाम दिया गया है।
हालांकि साधारण हस्ताक्षर मिलान विधियां और ‘डायनामिक सिग्नेचर वैरीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ दोनों को कंप्यूटरीकृत किया जा सकता है लेकिन दोनों में एक मूलभूत अंतर भी होता है। साधारण हस्ताक्षर मिलान विधियों में यह देखा जाता है कि हस्ताक्षर दिखने में कैसे हैं और उनमें क्या अंतर हैं। इसके विपरीत ‘डायनामिक सिग्नेचर वैरीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ में यह देखा जाता है कि हस्ताक्षर किस प्रकार बनाए गए हैं। इस अत्याधुनिक तकनीक में मिलाए जाने वाले हस्तक्षरों के संदर्भ में अग्रलिखित पक्षों का अध्ययन किया जाता है :
- हस्ताक्षर लेखन की गति में परिवर्तन
- हस्ताक्षर लेखन के समय कागज पर लगाया गया दबाव
- हस्ताक्षर करने में लगा कुल समय
‘डायनामिक सिग्नेचर वैरीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ एक प्राकृतिक और मौलिक प्रकार की तकनीक है जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी किया जाता है। यह तकनीक बेहद आसान है और इस पर विश्वास किया जा सकता है। आजकल इस तकनीक का इस्तेमाल काफी अधिक किया जा रहा है जिस कारण फर्जी हस्ताक्षरों के कारण होने वाले फर्जीवाड़ों की रोकथाम करना काफी सरल हो गया है।
चेहरा पहचान तंत्र
आजकल कई ऐसे कंप्यूटरीकृत तंत्र अस्तित्व में आ चुके हैं जो कंप्यूटर प्रोग्राम के द्वारा मानवीय चेहरों के चित्रों का विश्लेषण करते हैं ताकि संबंधित व्यक्तियों को पहचाना जा सके। यह कंप्यूटर प्रोग्राम, सबसे पहले किसी चेहरे के चित्र को लेता है और फिर चेहरे की विभिन्न विशेषताओं (जैसे आंखों के बीच की दूरी, नाक की लंबाई, जबड़े का कोण और ठोडी की बनावट आदि) का विश्लेषण करता है और फिर एक अद्वितीय कंप्यूटर फाइल बनाता है जिसे ‘टेम्पलेट’ कहते हैं। इसके बाद कंप्यूटर सॉफ्टवेयर (प्रोग्राम) दूसरे चेहरों के भी टेम्पलेट तैयार करता है और फिर इन टेम्पलेटों का परस्पर मिलान करके बताता है कि दो चेहरे किस प्रकार एक-दूसरे से समान हैं। इस तंत्र के लिए चेहरे के चित्रों का प्राथमिक स्रोत, वीडियो कैसेट्स में उपलब्ध चित्र और ड्राइविंग लायसेंस व पहचान-पत्रों पर लगे व्यक्ति के चित्र हो सकते हैं।
अन्य बायोमेट्रिक तकनीकों के विपरीत ‘फेशियल रिकोगनिशन टेक्नॉलॉजी’ का प्रयोग साधारण सर्विलांस के लिए सार्वजनिक स्थलों पर भी किया जा सकता है। यदि चेहरा पहचानने के इस तंत्र को सार्वजनिक वीडियो कैमरों (क्लोज सर्किट कैमरे) से जोड़ दिया जाए तो किसी व्यक्ति विशेष (कोई खूंखार अपराधी या आतंकवादी) को भारी भीड़ के बीच से भी पहचानना संभव हो जाएगा।
आजकल चेहरा पहचानने की कई अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग भी किया जा रहा है। ऐसा ही एक नया सिस्टम कुछ हवाई अड्डों पर परीक्षण के तौर पर लगाया गया है। इस सिस्टम के लिए सॉफ्टवेयर बनाते समय फोटो का विश्लेषण करते हुए हजारों चेहरों को 128 अलग-अलग इमेजों में तोड़ दिया जाता है। इन इमेजों को ‘इंजीन फेसेज’ कहते हैं। इन्हें एक साथ मिलाकर फेशियल फिजियोनॉमी की एक पूरी रेंज उभर आती है और फिर सामान्य इमेज का मिलान सभी इंजीन फेसेज से किया जाता है। अब इस सिस्टम के द्वारा वास्तविक व्यक्ति और उसके टेम्पलेट का मिलान किया जा सकता है। इस सिस्टम द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को विमान में चढ़ने से रोका जा सकता है।
आवाज/स्वर पहचान
आजकल ऐसी तकनीकें भी अस्तित्व में आ चुकी हैं जो प्रयोगकर्ता को यह सुविधा प्रदान करती हैं कि प्रयोगकर्ता अपनी आवाज के आधार पर ही किसी स्थान तक पहुंच सके। इस स्वर-पहचान आधारित बायोमैट्रिक तकनीक में सबसे पहले किसी व्यक्ति की आवाज/स्वर को कंप्यूटर में रखा जाता है। कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर इस आवाज की पहचान कर लेता है। बाद में वह केवल उसी व्यक्ति को उस स्थल पर प्रवेश करने की अनुमति देगा, जिसकी आवाज पहले से ही कंप्यूटर में दर्ज होगी।
हाथ एवं अंगुलि पहचान
विभिन्न बायोमैट्रिक तकनीकों की सहायता से किसी व्यक्ति के हाथों और उसकी अंगुलियों को पहचानना भी संभव हो गया है। हाथ व अंगुलि पहचान की इस तकनीक के अंतर्गत हाथों की ज्यामितिय रचना के आधार पर किस व्यक्ति की पहचान स्थापित की जाती है। इस विधि के कार्यान्वयन के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ उपकरण तो हाथ की दो-तीन अंगुलियों का ही विश्लेषण करते हैं जबकि कुछ उपकरण, व्यक्ति के पूरे हाथ का गहराई से विश्लेषण करते हैं। इसी प्रकार कुछ पहचान-तंत्र, हाथों की अंगुलियों की ज्यामितीय के आधार पर भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, कुछ हवाई अड्डों पर ऐसी सुविधा है कि काफी अधिक संख्या में यात्रा करने वाले ग्राहकों को मात्र ‘हैंड स्कैन डिवाइस’ की जांच से ही गुजरना पड़ता है और ऐसे यात्री अन्य सुरक्षा व दस्तावेज़ जांच से बच जाते हैं। इस पहचान तंत्र का उपयोग, अन्य बायोमैट्रिक तंत्रों के साथ सम्मिलित रूप से भी किया जा सकता है। इस विधि का इस्तेमाल, किसी व्यक्ति विशेष को किसी स्थल विशेष में प्रवेश देने या नहीं देने के लिए भी किया जा सकता है।