अनुक्रम
ऐसी कम्पनियों को अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी या राष्ट्रपारीय कम्पनी को भी कहा जाता है। वर्तमान समय में इसके लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी अधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय शब्द है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी के उदय और प्रसार से उत्पादन और निवेश का भी अन्तर्राष्ट्रीयकरण हुआ है जिसके फलस्वरूप बाजारों में अल्पाधिकार और केन्द्रीयकरण का विकास होता हैं यद्यपि कम्पनियों का उद्भव विगत वर्षों में ही हुआ है। तथापि इनका विस्तार विश्व के अनेक देशों में हो चुका है। इस प्रकार के कम्पनियां विश्व के लगभग सभी देशों में विद्यमान है। संयुक्त राज्य अमेरिका में इनकी संख्या सर्वाधिक है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी की विशेषताएं
1. बहुराष्ट्रीय क्रियाकलाप: बहुराष्ट्रीय कंपनी की पहली विशेषता यह है कि इनकी क्रियाएं किसी एक राष्ट्र में सीमित न होकर अनेक राष्ट्रों तक चलती है। इसके लिए ये अपने देश में मुख्य कम्पनी का हिस्सा 51 प्रतिशत या इससे अधिक होता है। इस प्रकार कम्पनी इन शाखाओं व सहायक कम्पनियों पर नियन्त्रण करती रहती है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी के गुण
बहुराष्ट्रीय कंपनी के द्वारा विकासशील देशों के औद्योगीकरण में सहायता पहुचायी गयी है। जहां विकासशील देश पूंजी व तकनीकी देने में असमर्थ थे, वहाँ इन बहुराष्ट्रीय कंपनी ने भारी मात्रा में पूंजी ही नहीं लगायी है, बल्कि तकीनकी भी प्रदान की है, जिससे कि उन देशां में औद्योगिक उत्पादन की नींव ही नहीं रखी है, बल्कि उसके विकास में भारी योगदान दिया है।
भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनी ने साधानों के बारे में पता लगाकर उनके विदोहन का कार्य प्रारम्भ किया, जिसे भारत उन परिस्थितियों में नहीं कर सकता था। बहुराष्ट्रीय कंपनी ने जब यह पाया कि भारत में श्रम सस्ता है तो उन्होंने उनका लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन तकनीकी में अनेक बार महत्वपूर्ण परिर्वतन किये, जिससे कि उत्पादन आधुनिक व अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से प्रतियोगी बन गया जो देश के हित में ही रहा।
विकसित देशों में जन्मी बहुराष्ट्रीय कंपनी के कार्यक्षेत्र देशों में अपेक्षाकृत अधिक व्यापक हैं इनके क्रियाकलाप में वे सेवाए शामिल हैं, जिनका सम्बन्ध पूंजीगत तकनीकी अन्तरण, उत्पादन के वितरण आदि की जानकारी के लिए शोध और उनके विकास से है। दूसरे स्तर पर वस्तु और उत्पादन आते है इनसे सम्बन्धित कार्यकलाप मुख्य रूप से खनिज ओैर पेट्रोलियम जैसे क्षेत्रों से सम्बन्धित है।
1. शोध एवं विकास
तकनीकी प्रगति के लिए तकनीकी विषयक शोध एवं विकास पर होने वाले व्यय का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है। इस व्यय का एक बड़ा भाग बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा उनके अपने देश के बाहर किया जाता है, यद्यपि यह व्यय भारत सहित अन्य विकासशील देशों में बहुत कम है, फिर भी इस समिति व्यय से कुछ लाभ उठाये जा सकते है।
2. विदेशी पूंजी और तकनीकी की आपूर्ति
किसी भी व्यवसाय को प्रारम्भ करने की पूंजी की आवश्यकता होती है। औद्योगीकरण को जन्म देने के लिए भारत जैसे देश पूंजी की पर्याप्त मात्रा में कमी थी, जिससे हमारे लिए यह आवश्यक हो गया था कि विदेशी सहयोग के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में विदेशी पूंजी प्राप्त करें, क्योंकि जिस प्रकार शरीर को जीवित करने के लिए रक्तसंचार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार किसी व्यवसाय को पुर्नजीवित करने के लिए पंजी की आवश्यकता होती हैं। विश्व के पिछड़े तथा विकासशील राष्ट्रों की आर्थिक विषमता को दूर करने में विदेशी पूंजी की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। भारत को विदेशी पूंजी निम्नलिखित रूप से प्राप्त होती है।
- प्रत्यक्ष निवेश बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा निवेश
- अप्रत्यक्ष निवेश- विदेशियों द्वारा भारतीय कम्पनियों के हिस्से अथवा डिबेंचर (ऋण -पत्र)
- विदेशी पूंजी जिसे विदेशी सहायता अथवा वाह्य सहायता भी कहते है।
- उच्च प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में विदेशी इक्विटी की अधिकतम सीमा को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत कर दिया गया है।
- गैर प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में विदेशी निवेश सम्बन्धी नीति को उदार बनाया गया है। इस कार्य के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त विदेशी निवेश सम्बर्द्धन (एफ0आई0पी0बी0) का गठन किया गया है। यह बोर्ड बहुराष्ट्रीय कंपनी के विदेशी निवेश सम्बन्धी मामलों में शीघ्रता पूर्वक निपटाने का कार्य करता है।
- उच्च प्रौद्योगिकी तथा भारी निवेश प्राथमिकता वाले उद्योगों को विनिर्दिष्ट सूची के लिए फार्मो के कुछ मार्गदश्र्ाी सिद्धान्तों के अन्तर्गत विदेशी प्रौद्योगिकी करार करने की स्व: अनुमति प्राप्त हो गई है।
इसके लिए दी जाने वाली रायल्टी की सीमा घरेलू बिक्री का 5 प्रतिशत तथा निर्यात बिक्री का 8 प्रतिशत रखी गई है। अधिकाधिक विदेशी पूंजी निवेश को भारत में आकर्षित करने के लिए सरकार ने विदेशी संस्थागत निवेशकों पेंशन फण्ड्स, निवेश, न्यास, मैनेजमेंण्ट कम्पनियां, नोमनी कम्पनियां, निगमित व संस्थागत पोर्ट फोलियों प्रबन्धकों आदि को भारतीय पूंजी बाजार में प्रत्यक्ष निवेश करने की छूट प्रदान कर दी है। ये संस्थागत निवेशकर्ता अब सभी प्रकार की प्रतिभूतियों में निवेश करते है, परन्तु ऐसा करने से इन्हें भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (एस0ई0बी0आई0) के तहत पंजीकरण कराना होता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी के माध्यम से तकनीक का अन्तरण भारत सहित विभिन्न देशों में हुआ। इतना ही नहीं, यह बहुराष्ट्रीय कंपनी के विकास में समर्थ हो सकती हैं और रही भी है। इसका कारण यह है कि इनके पास विशाल मात्रा में कौशल और संसाधन उपलब्ध है। इनके प्रयोग से श्रम तकनीक का विकास किया जा सकता है। सरकार ने करारोपण में सुधार हेतु डा0 राजा चेलैया की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए वर्ष 1993-94 के बजट में सीमा शुल्कों में व्यापक राहत प्रदान करने की घोषणा की। अप्रत्याशित कमी से न केवल विदेशों से मशीनरी और नवीन प्रौद्योगिकी देशी में आएगी, बल्कि भारत लौटने वाले प्रवासी भारतीय अब अपने साथ अधिक समान ला सकेंगे।
4. औद्योगिक उत्पादन का व्यापक आधार
भारत में औ़द्योगिक उत्पादन के लिए आवश्यक व्यापार आधार निर्मित हो चुका है तकनीकी एवं प्रबन्ध कुशलता में भी सक्षम है। सारे देश में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही हैं जिसके लिए यह आवश्यक हो गया है। कि उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादन बृहत पैमाने पर किया जाए। बहुराष्ट्रीय कंपनी के माध्यम से उत्पादन बृहत पैमाले पर करके उपभोक्ताओं की मांग को पूरा किया जा सकता है। देश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है और इन सबसे ऊपर तैयार माल की खपत के लिए बहुत बड़ा घरेलू बाजार हैं। ऐसी परिस्थितियों में निजी क्षेत्र के उत्पादक यदि कम कीमत पर उच्च कोटि की वस्तुओं का उत्पादन करने लगता हैं और वे वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा में बाजार में टिक भी जाती है तो खपत के साथ-साथ निर्यात में भी वृद्धि होगी।
श्रम प्रधान तकनीकी के आलवा, उत्पादन का क्षेत्र ऐसा भी हैं, जिनका विकास पूंजी प्रधान तकनीकी के बिना नहीं हो सकता जैसे : पेट्रोलियम, रसायन, उर्वरक खनिज आदि इन क्षेत्रों में तकनीकी का अन्तरण लाभप्रद हो सकता हैं, ऐसी तकनीकी का उत्पादन चाहे, स्थानीय हो या आयात पर निर्भर, इसके लिए बहुत अधिक साधन और समय की आवश्यकता होती है समय की बचत करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी का सहारा लिया जा सकता है, विशेषतया कच्चे तेल जैसी आवश्यक वस्तु के उत्पादन की संभावनाओं की वृद्धि के लिए।
5. विपणन सम्बन्धी सुविधा
बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा वस्तुएं एक देश से दूसरे देश, विशेषत: अल्पविकसित देशों में विकसित देशों को वस्तुओं की आदान-प्रदान होता है, जिससे देश देशों की संस्कृति एवं सभ्यता का विकास होता हैं विपणन एक ऐसी क्रिया है जिसमें विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप सम्मिलित है, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनी अल्पविकसित देशां में अपेक्षाकृत अधिक कुशलता से कर सकती हैं इन क्रियाकलापों में बाजार सम्बन्धी शोध, विज्ञापन, विपणन सूचनाओं का प्रसार, गोदाम, यातायात, पैकिंग की डिजाइन तैयार करना, वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुचाना आदि सम्मिलित हैं यह भी कार्य अल्पविकसित देशों के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ बहुत अधिक कुशलता से करती हैं किन्तु अल्पविकसित देशों में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
6. सेवा क्षेत्र में उपलब्धियाँ
सेवाओं में व्यापार का सामान्य समझौता ( Gendral Agreement of Trade in Service) नाम से गैट समझौता व डंकल प्रस्ताव में एक प्रावधान यह है कि सदस्य देशों की सेवाओं के व्यापार पर लगे प्रतिबन्धों को समाप्त करना। इसके अनुसार बैंक, बीमा, शिक्षा, पर्यटन, संचार, स्वास्थ्य, यातायात, टेलीकम्यूनिकेशन, इंजीनियरिंग, जहाजरानी, वायुसेवा, परामर्श, विज्ञापन, मीडिया, डाटा, प्रोसेसिंग, आदि सेवा क्षेत्रों को प्रतिबन्ध मुक्त करना। और इन क्ष् ोत्रों में विदेशी कम्पनियों को घरेलू कम्पनी का दर्जा देना।
7. भारतीय उद्योगों के प्रतियोगी बनाने की भावना
बहुराष्ट्रीय कम्पनियां को आगमन, उदारीकरण एवं आर्थिक सुधारों की नीतियों में सरकार ने इस बात को स्पष्ट संकेत दे दिए है कि भारतीय उद्योग को भविष्य में सरकारी संरक्षण के बिना ही कार्य करना होगा। विगत 60 वर्षो से भारतीय उद्योगों को संरक्षण पर जीने की आदत हो गई हैं। संरक्षणवादी नीतियों का लाभ उठाकर भारतीय उद्योगो ने न तो गुणवत्ता में सुधार किया और न ही लागत को काम करने का प्रयास किया, परन्तु अब सारे विश्व में जिस प्रकार से तैयार माल की गुणवत्ता व कीमत दोनों ही मामलों में प्रतियोगी बनाना पड़ा।
8. मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध
जब व्यापार के देशों के मध्य होता है तो उसमें अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव एवं सहयोग स्थापित होता है, जिससे आधुनिकतम टेक्नोलाजी, वैज्ञानिकीकरण, भुगतान, संतुलन, विनियम दर, रूपये की पूर्णपरिवर्तनीयता, श्रमशक्ति का उपयोग, मुद्रास्फीति नियंत्रण, पूंजी सहयोग, विदेशी प्रौद्योगिकी तथा इसके साथ-साथ आन्तरिक एवं बाह्य सम्बन्ध मधुर बनते हैं। विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनी की भूमिका को प्रभावशाली बनाने में कतिपय घटकों का महत्वपूर्ण योगदान है। वास्तव में बहुराष्ट्रीय कम्पनी का यह अनुभव करती है कि उनकी विश्वव्यापी गतिविधियों का प्रसार करने में वर्तमान परिवेश प्रोत्साहक है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर वर्चस्व रखने वाली चीन और रूस जैसे देश भी संवृद्धि और विकास सम्बन्धी अभिवृत्तियों में परिवर्तन के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनी में रूचि दर्शा रहे है।
9. रोजगार परक
भारत एक विकासशील देश है और यह विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र है। यहां श्रम की प्रचुरता है, फिर भी कुशल श्रमिकों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। बड़े पैमाने पर बेरोजगारी यहां देखी जा सकती है, इस सस्ते श्रम का उपयोग कर अधिकतम लाभ कमाने की दृष्टि से भी भारतीय श्रमिकों को रोजगार प्रदानप करती है तो उससे उनके आय में वृद्धि तो होगी ही साथ ही प्रति व्यक्ति आय और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी। यदि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग कर उत्पादन करती है तो रोजगार दृष्टि से इसे वांछित माना जा सकता है।
10. अन्य गुण
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियां आर्थिक रूप से बहुत शाक्तिशाली होती है।
- इनके पास व्यापार करने का अनुभव प्राप्त होता।
- अपने पूंजी निवेश के समय ये कम्पनियां बहुत जोखिम उठाती है, क्योंकि जहां ये निवेश करती है वहाँ बिजली, परिवहन, श्रमिकों तथा विपणन की समस्याओं से गुजरना पड़ता है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश-विदेश में नये-नये संस्थानों की स्थापना करते है तथा अपने उत्कृष्ट प्रबन्ध तथा शिक्षण का पूरा-पूरा लाभ उठाने में सफल होती है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी का हस्तान्तरण अपनी अन्य कम्पनियां में करते है तथा खोज और अनुसंधान पर जो खर्च किया जाता है उससे नये-नये उत्पादों का अविष्कार होता है, इससे लोगों का जीवन स्तर सुधारने में सहायता मिलती है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनी का सर्वत्र स्वागत किया जाता है, क्योंकि ये कम्पनियॉ पूॅजी निर्माण तथा रोजगार में वृद्धि करती है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनी के आगमन से हर क्षेत्र में विकास सम्भव हो पाता है चाहे वह पूंजी तकनीकी, अनुसंधान, क्षेत्रीय विकास व रोजगार का क्ष् ोत्र हो सकता है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनी के द्वारा दो या अधिक देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित होता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी के दोष
- अमेरिका आधारित बहुत सी कम्पनियां कई देशों में अपना पूर्ण स्वामित्व स्थापित कर चुकी है। उदाहरण स्वरूप सिंगापुर, मैक्सिको, ब्राजील तथा ताइवान। इन देशों में आयकर दरें कम होने के कारण अमेरिकी कम्पनियों को अत्यधिक लाभ मिल रहा है।
- भारत जैसे देश में साठ से दशक में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां 25 से 40 प्रतिशत का भागीदार बन सकती थीं उनको बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त थे, वे अत्यधिक लाभान्वित हो सकती थी।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने सभी कर्मचारियों को वेतन के रूप में अच्छी राशि प्रदान करती है। जिससे समाज में न केवल असमानता व्याप्त होती है, बल्कि असंतोष भी फैलता है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपनी कम्पनियां बडे़-बड़े शहरों में स्थापित करती है, जहां पर हर प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध रहती है, जिससे क्षेत्रीय असामानता में वृद्धि होती है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियां आम राजनीति तथा अपना मतलब साधने हेतु राजनैतिक को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घूस भी देती है, जिससे भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है। ये निगमें विशेष वर्ग के लोगों को लुभावने अवसर देती है। तथा नौकरी प्राप्त करने वाले लोग आमौतार पर राजनैतिकों के सम्बन्धी होते है।