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दुर्भीति जिसे अंग्रेजी के फोबिया Fobia शब्द से जाना जाता है, वस्तुत: चिंता विकृति के प्रमुख प्रकारों में गिना जाता है। चिंता एक संवेग है जिसमें अविवेकपूर्ण नकारात्मक विचारों की श्रृंखला चलती है, तथा व्यक्ति अपने साथ कुछ बुरा होने की नकारात्मक भययुक्त आशंका से ग्रस्त रहता है। जब तक यह अविवेकपूर्ण डर व्यक्ति के नियंत्रण में बना रहता है तब तक सामान्य चिंता के रूप में परिभाषित होता है। यही जब नियंत्रण से बाहर हो जाता है तक चिंता विकृति का रूप ले लेता है जिसकी एक विशेष परिणति फोबिया के रूप में होती है।
- फोबिया चिंता विकृति का एक प्रकार है।
- फोबिया में तीव्र अतार्किक भय सतत् बना रहता है।
- फोबिया में विक्षुब्धता की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि पीड़ित दिन प्रतिदिन के कार्यों को ठीक प्रकार से निष्पादित करने में असमर्थता महसूस करता है क्योंकि अतार्किक भय उसकी हिम्मत का ह्रास कर देता है।
- फोबिया किसी भी वस्तु, व्यक्ति, घटना व परिस्थिति के विरूद्ध उत्पन्न हो सकती है।
- साररूप में किसी भी वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति अथवा के घटना के कारण व्यक्ति में उत्पन्न अतार्किक सतत् भय का आवश्यकता से परे की उस सीमा में पहुॅंच जाना जिसके कारण कि उसका दुश्चिंता उत्पन्न हो जाये तथा उसके दैनिक जीवन के क्रियाकलापों का निष्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगे तो इस प्रकार का भय ही फोबिया है।
फोबिया के लक्षण
अमेरिकन साइकियेट्रिक एसोशियेसन (American psychiatric association) ने फोबिया के लक्षणों को स्पष्ट किया है।
- किसी विशिष्ट वस्तु अथवा परिस्थिति से इतना अधिक सतत् भय जो वास्तविक खतरे के अनुपात से कहीं अधिक होता है।
- व्यक्ति को उस विशिष्ट परिस्थिति या वस्तु से सामना होने पर अत्यधिक चिंता या विभीषिका आघात (panic attack) लगना।
- व्यक्ति में यह समझ बनी रहती है कि उसे आवश्यकता से अधिक भय हो रहा है। उसे अवास्तविकता का भी प्राय: बोध रहता है।
- व्यक्ति दुर्भीति उत्पन्न करने वाली वस्तु या परिस्थिति से दूर रहना पसंद करता है।
- अगर उपर्युक्त लक्षण किसी अन्य विशेष रोग से उत्पन्न न हुए हों।
फोबिया के प्रकार
- विशिष्ट फोबिया
- एगोराफोबिया
- सामाजिक फोबिया
1. विशिष्ट फोबिया
विशिष्ट फोबिया को ही फोबिया के प्रारंभिक अध्ययनों में सामान्य फोबिया के रूप में वर्णित किया गया है। विशिष्ट फोबिया किसी एक विशिष्ट जीव, वस्तु अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है। इससे पीड़ित व्यक्ति में किसी एक विशिष्ट जीव, वस्तु अथवा परिस्थिति की उपस्थिति या उसके अनुमान मात्र से उत्पन्न होती है।
- पशु फोबिया प्रकार
- वास्तविक वातावरण फोबिया प्रकार
- रोग एवं चोट से संबंधित फोबिया प्रकार,
- रक्तफोबिया प्रकार।
- कुत्ता से भय साइनोफोबिया (Cynophobia)
- बिल्ली से भय एलूरोफोबिया (Ailurophobia)
- कीटों से भय इन्सेक्टोफोबिया (Insectophobia)
- मकड़ी से भय एरेकनोफोबिया (Arachnophobia)
- घोड़ों से भय इक्यूनोफोबिया (Equinophobia)
- चिड़यों से भय एबिसोफोबिया (Avisophobia)
- कृन्तकों से भय रोडेन्टोफोबिया (Rodentophobia)
- जीवाणुओं से भय माइसोफोबिया (Mysophobia)
- सॉंपों से भय ओफिडियोफोबि (Ophidiophobia)
- ऑंधी-तूफान से भय ब्रौनटोफोबिया (Brontophobia)
- ऊॅंचाई से भय एक्रोफोबिया (Acrophobia)
- अॅंधेरा से भय नाइक्टोफोबिया (Nyctophobia)
- बंद जगहों से भय क्लाऊस्ट्रोफोबिया (Claustrophobia)
- अकेलापन से भय मोनोफोबिया (Monophobia)
- आग से भय पायरोफोबिया (Pyrophobia)
- भीड़ से भय ऑकलोफोबिया (Ochlophobia)
- हवाई जहाज में यात्रा से भय एवियाफोबिया (Aviaophobia)
2. एगोराफोबिया
एगोराफोबिया फोबिया का एक प्रमुख प्रकार है यह विशेष प्रकार की फोबिया है जिसका संबंध ऐसे सार्वजनिक स्थानों से होता है जहॉं भीड़-भाड़ होती है अथवा बहुत से अजनबी लोग होते हैं एवं रोगी को यह यकीन होता है कि यदि वह अकेला उन जगहों पर गया तो उसके साथ दुर्घटना घट जाने पर ऐसी जगह पर उसका बचाव संभव नहीं होगा एवं ना ही उसे कोई जल्दी बचाने ही आ पायेगा। ऐसे सार्वजनिक स्थानों में अथवा आम-जगहों में भीड़ भरे बाजार, मेला, यात्री बस, प्लेन अथवा रेल में सफर, आदि प्रमुख हैं।
एगारोफोबिया का सीधा संबंध विभीशिका दौरा (पैनिक अटैक, panic attack) जिसे आतंक का हमला भी कहा जा सकता हैनामक चिंता विकृति से है। प्राय: किसी सार्वजनिक स्थान पर विभीशिका दौरे के बार-बार होने पर तथा किसी प्रकार की मदद उपलब्ध नहीं होने पर व्यक्ति में इस प्रकार के सार्वजनिक स्थानों पर जाने की कल्पना मात्र से डर उत्पन्न होने लगता है तथा यह डर फोबिया के रूप में बदल जाता है। इसके परिणामस्वरूप वह ऐसे किसी भी स्थान पर जाने से बचने की कोशिश करता है।
3. सामाजिक फोबिया
बहुत से व्यक्तियों में दूसरों से बातचीत करने, अथवा लोगों का सामना करने की परिस्थिति के बारे में सोचने से ही चिंता उत्पन्न होने लगती है। मनोरंजन जगत की प्रसिद्ध गायिका बारबरा स्ट्रीसेन्ड, अभिनेता सर लॉरेन्स ओलीवर, तथा फुटबाल खिलाड़ी रिकी विलियम इन सभी ने कई साक्षात्कारों में यह खुलासा किया कि दर्शकों के समक्ष परफार्मेंस देने से पूर्व उनमें तीव्र चिंता उत्पन्न हो जाती थी। प्रसिद्ध अभिनेता टॉम हैंक एवं शो-होस्ट डेविड लिटरमैन ने भी जीवन में विभिन्न अवसरों पर जनता के समक्ष होनेपर दर्दभरी चिंतायुक्त शर्म का अनुभव होने की बात बतायी है। लोगों के समक्ष उपस्थित होने पर इस प्रकार की चिंता उत्पन्न होने पर इस प्रकार के लोग इनका सामना करने में प्राय: सक्षम साबित होते हैं। परन्तु इसके विपरीत सामाजिक फोबिया के रोग की स्थिति में इसका उलट परिणाम देखने में आता है। इसमें सामाजिक परिस्थिति जिसमें अपरिचित लोग सम्मिलित हों या दूसरों के द्वारा मूल्यॉंकन किये जाने की संभावना हो आलोचना की संभावना हो, सामाजिक फोबिया उत्पन्न हो जाती है।
सामाजिक फोबिया चिंता विकृति का ही एक प्रमुख प्रकार है इसकी शुरूआत प्राय: किशोरावस्था में होती है क्योंकि किशोरावस्था ही वह अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति अपनी परिवार से अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है तथा इसमें प्राय: उसमें परिवारजनों से अलग चलने की प्रवृत्ति होती है। इस तरह इसी अवस्था में वह समाज के अन्य लोगों से अंत:क्रिया का सामना करता है। यह विकृति पुरूशों एवं महिलाओं में समान रूप से पायी जाती है। यह चिंता विकृति अन्य अनेक चिंता विकृतियों के साथ होते पायी जाती है।
फोबिया के कारण
- फोबिया के मनोविश्लेशणात्मक सिद्धान्त आधारित कारण
- फोबिया के संज्ञानात्मक सिद्धान्त आधारित कारण
- फोबिया के जैविक सिद्धान्त आधारित कारण
- फोबिया के व्यवहार सिद्धान्त पर आधारित कारण
1. फोबिया के मनोविश्लेशणात्मक सिद्धान्त आधारित कारण- मनोविश्लेशणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम सिगमण्ड फ्रायड द्वारा किया गया था। तथा फ्रायड ही वह पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने फोबिया के कारणों की मनोगत्यात्मक दृष्टि से व्याख्या की। फ्रायड ने चेतना के विभिन्न स्तरों पर इड (उपाहं), ईगो (अहॅं) एवं सुपर ईगो (पराहं) के बीच होने वाली अंत:क्रिया के परिणामों के आधार पर फोबिया उत्पत्ति की व्याख्या की। उनके अनुसार जब व्यक्ति में किन्हीं कारणों से चिंता उत्पन्न होती है तब वह उस चिंता को दूर करने के लिए एक विशेष प्रकार का सुरक्षा प्रक्रम (डिफेंस मेकेनिज्म) अपना लेता है। फोबिया भी एक प्रकार का सुरक्षा प्रक्रम है। व्यक्ति के मन में उत्पन्न होने वाली चिन्ताओं के मूल में प्राय: इड की अनैतिक इच्छायें होती हैं। अनैतिक इच्छायें वे होती हैं जिन्हें समाज की दृष्टि में घृणित माना जाता है।
फ्रायड के अनुसार छोटे बच्चों में बहुधा पायी जाने वाली पशु फोबिया बंधियाकरण के अचेतन के डर से संबंधित होती है। बंधियाकरण के बारे में फ्रायड के मनोविश्लेशणात्मक सिद्धान्त का अध्ययन कर इसके बारे में आप विस्तृत जानकारी हासिल कर सकते हैं। इनका मत था कि जब अचेतन लैंगिक इच्छाएॅं चेतन में प्रवेश करने की कोशिश करती हैं, तो ईगों इन अनैतिक इच्छाओं के वजह से उत्पन्न चिंता को किसी दूसरे वस्तु या उद्दीपक पर स्थानान्तरित कर देता है जो फिर बाद में वास्तव में खतरनाक जैसा प्रतीत होता है। तथा व्यक्ति में फोबिया उत्पन्न हो जाती है। फोबिया पर संज्ञानात्मक विचारधारा को मानने वाले मनोवैज्ञानिकों ने भी अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। आइये संज्ञानात्मक दृष्टि से फोबिया के कारणों को समझें।
संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में सूचना संसाधन की प्रक्रिया एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो कि निर्णय लेने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि फोबिया विकृति से ग्रस्त व्यक्ति परिस्थितियों को या उनसे मिलने वाली सूचनाओं को इस ढंग से संसाधित करते हैं कि उससे उनकी फोबिया और भी अधिक मजबूत हो जाती है। निश्चय ही यह संसाधित करने का ढंग नकारात्मक होता है तथा व्यक्ति को उसके विघटन की दिशा में अग्रसारित कर देता है।
जो स्पष्ट रूप से प्रमाणित करते हैं कि फोबिया होने की संभावना उन व्यक्तियों में अधिक होती है जिनके माता-पिता तथा तुल्य संबंधियों में इस तरह की विकृति पूर्व में उत्पन्न हो चुकी हो। हैरिस एवं उनके सहयोगियों (1983) के द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार ऐसे व्यक्ति जिनको एगारोफोबिया हो चुका है उनके आनुवांशिक रूप से अति निकट संबंधियों में आनुवांशिक रूप से दूर के संबंधियों की अपेक्षा एगारोफोबिया के होने की संभावना सार्थक रूप से अधिक पायी जाती है। वैज्ञानिक टौरग्रेसन (1983) ने भी अपने अध्ययन में यह स्पष्ट किया है कि एकांगी जुड़वॉं बच्चों में भ्रातीय जुड़वॉं बच्चों की तुलना में एगोराफोबिया की सुसंगतता दर अधिक होती है। उपरोक्त अध्ययन हमें इस निष्कर्ष पर पहुॅंचने पर मजबूर करते हैं कि फोबिया के अध्ययन में जैविक कारकों की भी अहम् भूमिका होती है।
उपरोक्त सभी विचारधारायें एवं सिद्धान्त फोबिया की व्याख्या अपने अपने तरीके से करते हैं परन्तु वैज्ञानिक अध्ययनो के द्वारा सर्वाधिक समर्थन फोबिया की व्यवहारवादी व्याख्या को मिला है जिसका वर्णन है।
उपरोक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति में फोबिया उत्पन्न होने का मुख्य कारण दोशपूर्ण सीखना होता है। इस दोशपूर्ण सीखना की व्याख्या निम्नांकित है – मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस बात के कई प्रमाण हैं कि क्लासिकी अनुबंधन के द्वारा किसी भी व्यक्ति को डरना एवं उसी प्रकार नहीं डरना सिखलाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक वाटसन एवं रेनर ने अपने एक प्रसिद्ध प्रयोग में एक छोटे बच्चे एलबर्ट को सफेद चूहों से डरना सिखलाया। इस प्रयोग में वाटसन ने पहले तो कुछ सप्ताह तक एलबर्ट को सफेद चूहे के साथ खेलने एवं खुशी मनाने का मौका दिया। परन्तु उसके बाद प्रयोग के तौर पर जब एलबर्ट चूहे के पास गया तो उसके पीछे स्टील की छड़ से जोर की भय उत्पन्न करने वाली आवाज की गयी। इससे एलबर्ट घबराकर डर गया। इसके बाद यही प्रयोग एलबर्ट के साथ बार बार दोहराया गया एवं परिणामस्वरूप एलबर्ट ने सीखने के युग्म सिद्धान्त के तहत सफेद चूहे की उपस्थिति में उससे डरना सीख लिया। बाद में उसका यह डर सामान्यीकरण की प्रक्रिया के तहत अन्य अनेक सफेद चीजों जैसे कि फर, रूई, खरगोश आदि से भी उत्पन्न होने लगा।
अनुबंधन के अलावा व्यवहार सीखने के एक प्रमुख सिद्धान्त ‘मॉडलिंग’ के द्वारा भी भय को सीखने की व्याख्या की गयी है। मॉडलिंग के सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक एलबर्ट बन्डूरा (1966) द्वारा किया गया है। इसके अनुसार अन्य लोगों को किसी विशेष प्रकार की वस्तु, परिस्थिति अथवा घटना से डरता देखकर अन्य व्यक्ति भी डरना सीख जाते हैं बशर्ते वह वस्तु, परिस्थिति, घटना अथवा डरने वाले व्यक्ति का उनके लिए मूल्य हो अथवा उनसे वे प्रभावित होते हों।
भले ही व्यवहारात्मक सिद्धान्तों एवं आधारित अध्ययनों को फोबिया की मुकम्मल व्याख्या के लिए सर्वाधिक समर्थन प्राप्त हुआ हो परन्तु उपरोक्त प्रयोगों की वैधता हेतु किए गए कुछ प्रयोगों में क्लासिकी अनुबंधन के तहत अथवा मॉडलिंग के द्वारा भय उत्पन्न नहीं किया जा सका है जिससे इन व्याख्याओं के निर्दोश होने की संभावना कम हो जाती है। अभी तक आपने फोबिया की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या द्वारा फोबिया की उत्पत्ति के कारणों को समझा है आइये अब इससे निपटने के तरीकों की चर्चा करें।
फोबिया का उपचार
प्रत्येक सैद्धान्तिक मॉडल अपने अपने तरीके से फोबिया के उपचार की विधियों का वर्णन एवं व्याख्या करता है तथा इनकी प्रभावशीलता के समर्थन पर जोर देता है। किन्तु इन सभी सैद्धान्तिक मॉडलों में जिस मॉडल की विधियों सर्वाधिक सफल एवं प्रभावशाली सिद्ध हुयी हैं वह फोबिया के उपचार का व्यावहारिक मॉडल है। वस्तुत: फोबिया के विभिन्न प्रकारों में भी विशिष्ट फोबिया के उपचार में इसकी सफलता का दायरा अन्य सैद्धान्तिक मॉडल आधारित प्रविधियों की तुलना में कहीं अधिक व्यापक पाया गया है।
विशिष्ट फोबिया के उपचार में एक्सपोजर तकनीकें सर्वाधिक सफल साबित हुई हैं। इन एक्सपोजर तकनीकों में असंवेदीकरण (डीसेन्सिटाइजेशन), फ्लडिंग एवं मॉडलिंग प्रमुख हैं। चूॅंकि इन सभी तकनीकों में व्यक्ति को डर उत्पन्न करने वाले उद्दीपक के सम्मुख एक्सपोज किया जाता है अतएव इन्हें सम्मिलित रूप से एक्सपोजर तकनीक के अन्तर्गत रखा जाता है।
क्रमबद्ध असंवेदीकरण की यह प्रविधि दो प्रकार से उपयोग में लायी जा सकती है। प्रथम इन विवो डीसेन्सिटाइजेशन के रूप में एवं द्वितीय कोवर्ट डीसेन्सिटाइजेशन के रूप में। इन विवो डीसेन्सिटाइजेशन में व्यक्ति को चिंता-भय उत्पन्न करने वाली वास्तविक परिस्थिति अथवा उद्दीपक का सामना करना पड़ता है, तथा कोवर्ट डीसेन्सिटाइजेशन में यह प्रक्रिया कल्पना के माध्यम से पूरी की जाती है। इसके अन्तर्गत चिकित्सक द्वारा चिंता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति का काल्पनिक चित्रण किया जाता है तथा भय उत्पन्न होने पर रोगी को पेशीय शिथिलीकरण का अभ्यास करने को कहा जाता है। दोनों ही प्रकार की विधियों में व्यक्ति क्रमबद्ध रूप से भय उत्पन्न करने वाली प्रत्येक परिस्थिति से भय मुक्त होना सीखता है तथा असंवेदीकरण के कई सत्र होने के उपरान्त वह फोबिया से पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
एगारोफोबिया के उपचार हेतु उपयोग की जाने वाली एक्सपोजर तकनीक के साथ कुछ अन्य विशेष युक्तियों को भी समावेशित किया जाता है, इनमें सपोर्ट गु्रप एवं होम बेस्ड सेल्फ-हेल्प प्रोग्राम का उपयोग रोगी को स्वयं के उपचार हेतु हरसंभव प्रयास करने हेतु अभिप्रेरित करने के लिए किया जाता है।
1. सपोर्ट ग्रुप एप्रोच की विधि में एगारोफोबिया से ग्रस्त लोगों का एक छोटा समूह एक साथ एक्सपोजर सत्र हेतु घर से बाहर निकलता है यह सत्र कई घंटों तक चलता है। इस दौरान समूह के सदस्य एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं एवं अंतत: उनके एक दूसरे साथ दो दो के समूह बन जाते हैं जो कि अब समूह की सुरक्षा से बाहर निकलकर एक्सपोजर टास्क को अपने आप परफार्म करते हैं।
2. होम बेस्ड सेल्फ-हेल्प प्रोग्राम में क्लीनिशियन रोगी एवं उसके परिवार वालों को एक्सपोजर थेरेपी को स्वयं निश्पादित करने हेतु निर्देश देता है। तकरीबन 60 से लेकर 80 प्रतिशत तक एगारोफोबिया के रोगी इन चिकित्सा विधियों के माध्यम से घर से बाहर सार्वजनिक स्थल तक जा पाने में समर्थ होते हैं एवं उनकी यह सुधरी दशा काफी लम्बे समय तक कायम रहती है। वस्तुत: यह पाया गया है कि इन चिकित्सा विधियों के प्रभाव पूर्णता को प्राप्त नहीं होता है बल्कि आंशिक होता है। अतएव दुर्भाग्य से एगारोफोबिया के पुन: प्रभावी हो जाने की संभावना सदैव बनी रहती है। एवं बहुत से रोगी इससे पुन: पीड़ित हो जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक रविन्द्रन एवं स्टीन के अनुसार सामाजिक फोबिया को कम करने में एन्टी-एन्जाइटी ड्रग्स एवं बेन्जाडाइएजोपीन की तुलना में एन्टी-डिप्रेसेन्ट ड्रग्स काफी कारगर साबित होती हैं। इसके अलावा साइकोथेरेपी की कई विधियॉं भी इन ड्रग्स के समान ही कारगर सिद्ध हुई हैं। शोध मनोवैज्ञानिक अबरामोविट्ज के अनुसार उन रोगियों में जिन्हें एन्टी-डिप्रेसेन्ट ड्रग्स साइकोथेरेपी के साथ प्रदान की जाती है उनमें इस सामाजिक फोबिया से पुन: पीड़ित होने की संभावना केवल ड्रग्स लेने वाले रोगियों की तुलना में न के बराबर होती है। सामाजिक फोबिया के इलाज के लिए जिन साइकोथेरेपी प्रविधियों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है उनमें एक्सपोजर थेरेपी एवं कॉग्निटिव थेरेपी प्रमुख हैं। एक्सपोजर थेरेपी के अन्तर्गत सिस्टमेटिक डीसेन्सिटाइजेशन तकनीक का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। एवं कॉग्निटिव थेरेपी में व्यक्ति के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से प्रतिस्थापित कर उसके विश्वासों को मजबूत बनाने पर जोर दिया जाता है। प्रसिद्ध संज्ञानात्मक चिकित्सक एलबर्ट एलिस ने सोशियल फोबिया के उपचार में रेशनल-इमोटिव थेरेपी का सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया है।
सामाजिक फोबिया को पूरी तरह दूर करने के लिए चिकित्सकों द्वारा व्यावहारिक कुशलताओं के प्रशिक्षण पर जोर दिया जाता है। इस हेतु कई तकनीकों का उपयोग किया जाता हैं। इनमें मॉडलिंग, रिहर्सल, पुनर्बलन, फीडबैक एवं एसर्टिवनेस ट्रेनिंग प्रमुख है।