- द्रवो में अणुओ के माध्य प्रयप्ति आकर्षण बल होता है।
- द्रवों के अणु अपेक्षाकृत एक-दूसरे के अधिक निकट होते है।
- द्रवों के अणुओ में भी लगातार यादृच्छिक गति होती है।
- द्रव के किसी प्रतिदर्श के लिए उसके अणुओ की औसत गतिज ऊर्जा प्रतिदर्श के परमताप के समानुपाती होती है।
द्रव्य अवस्था के गुण
अब हम द्रव के गतिक सिद्धांत मॉडल के आधार पर उसके प्रेक्षित गुणों की व्याख्या करेंगे।
‘‘जिस ताप पर द्रव का वाष्प दाब मानक वायुमंडल दाब या 760 टॉर के बराबर होता है उसे द्रव का सामान्य क्वथनांक कहते हैं।’’
किसी द्रव का क्वथनांक उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है। अधिक वाष्पशील द्रव, कम वाष्पशील द्रव की तुलना में कम ताप पर क्वथन करेगा। जल की तुलना में डाइइथाइल ईथर बहुत कम ताप पर क्वथन करता है क्योंकि वह बहुत वाष्पशील द्रव हैं। एथनोल का क्वथनांक डाइइथाइड ईथर और जल के क्वथनांक के बीच में होता है। वाष्प दाब अथवा क्वथनांक द्रव के अणुओं के बीच आकर्षण बल का अनुपान देते हैं। कम क्वथनांक के बीच में होता है। वाष्प दाब अथवा क्वथनांक द्रव के अणुओं के बीच आकर्षण बल का अनुमान देते हैं। कम क्वथनांक वाले द्रवों में अधिक क्वथनांक वाले द्रवों की अपेक्षा दुर्बल आकर्षण बल होते हैं।
आप किसी द्रव का उसके सामान्य क्वथनांक के अलावा अन्य किसी ताप भी क्वथन कर सकते हैं। कैसे? सिर्फ द्रव के ऊपर दाब को बदल कर ऐसा किया जा सकता है। यदि आप दाब बढ़ाते हैं तो आप क्वथनांक बढ़ाते हैं और यदि आप दाब घटाते हैं तो आप क्वथनांक कम करते हैं। पहाड़ों पर वायुमंडलीय दाब कम होता है अत: जल का क्वथनांक भी कम हो जाता है। पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को खाना पकाते समय इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इसलिए वे प्रेशर कुकर का प्रयोग करते है।। पे्रषर कुकर में खाना जल्दी क्यों पक जाता है? प्रेशर कुकर का ढक्कन जल वाष्पों को बाहर जाने नहीं देता है। गरम करने पर जल वाष्प प्रेशर कुकर के अन्दर जमा हो जाती है और कुकर के अन्दर का दाब बढ़ जाता है। इससे जल अधिक ताप पर उबलता है और खाना जल्दी बन जाता है।
वाष्पन | क्वथन |
---|---|
1. यह सब तापो पर होता है। | 1. यह एक विशिष्ट ताप पर होता है। |
2. यह धीमा प्रक्रम है। | 2. यह तेज प्रक्रम है। |
3. यह केवल द्रव के पृष्ठ पर होता है | 3. यह पूरे द्रव पर होता है। |
10. पृष्ठ तनाव (Surface Tension) – अंतराण्विक बलों का एक नाटकीय प्रभाव द्रव एक अन्य गुणधर्म के रूप में दिखाते हैं, उसका नाम है पृष्ठ तनाव। द्रव के अंदर का कोई भी अणु, पडोसी अणुओं के साथ चारों ओर से बराबर का आकर्षण बल लगने के कारण, नेट कोई बल महसूस नहीं करता। दूसरी ओर द्रव के पृष्ठ का अणु, पृष्ठ के अन्य अणुओं अथवा पृष्ठ के नीचे के अणुओं द्वारा अदं र की ओर खिचाव महमसू करते है। परिणामत: पृष्ठ पर तनाव हो जाता है जैसे कि द्रव को खिंची त्वचा (अथवा खिंची झिल्ली) से ढका गया हो। यह परिघटना पृष्ठ तनाव कहलाती हैं।
‘‘पृष्ठ तनाव उस कार्य का माप है जो द्रव के पृष्ठ क्षेत्रफल में वृद्धि के लिए आवश्यक है।’’ मात्रात्मक दृष्टि से पृष्ठ तनाव बल है जो द्रव के पृष्ठ पर खिंची एक काल्पनिक रेखा की इकाई लम्बाई पर लम्बवत् और द्रव की ओर लगता है। जैसे कि चित्र में दिखाया गया है, इसे ग्रीक अक्षर ‘गामा’ y से निरूपित किया जाता है। इसका SI मात्रक है न्यूटन प्रति मीटर (N m-1) और CGS मात्रक है डाइन प्रति सेमी. (डाइन सेमी-1)। दोनो मात्रको का संबंध इस प्रकार है : 1 N m-1 =103 dyne cm-1
किसी द्रव के पृष्ठ अणु पर स्थिर अंतरमुखी बल का अनुभव करते हैं इसलिए इन अणुओं की उर्जा द्रव के अंदर उपस्थित अणुओं से अधिक होती है। इस कारण से द्रव अपने पृष्ठ पर कम से कम अणु रखते हैं। ऐसा वे अपने पृष्ठ क्षेत्रफल को अल्पतम रख कर करते हैं। पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए पृष्ठ पर अणुओं को बढ़ाना पड़ेगा, ऐसा केवल ऊर्जा देने या कार्य करने से हो सकता है। इकाई मात्रा में पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए दी गई ऊर्जा (या किया गया कार्य) पृष्ठ ऊर्जा कहलाती है। इसका मात्रक जूल प्रति वर्ग मीटर, Jm-2 अथवा N m-1 है (क्योंकि 1J = 1N)। अत: विमा के अनुसार, पृष्ठ तनाव और पृष्ठ ऊर्जा समान मात्राएँ और इनका सांख्यकि मान भी समान होता है।
11. ताप का प्रभाव – ताप बढ़ाने से द्रव का पृष्ठ तनाव कम होता है। क्रांतिक ताप पर बिलकुल गायब हो जाता है। ऐसा निम्नलिखित दो कारणों से होता है : –
- गर्म करने पर द्रव फैल जाता है, इससे अंतराण्विक दूरियाँ बढ़ जाती हैं।
- गर्म करने पर, अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा अर्थात उनका अव्यवस्थित गतिक्रम बढ़ जाता है।
इन दोनों कारणों से अंतराण्विक बल कमजोर हो जाता हैं और पृष्ठ तनाव कम हो जाता है।
- द्रव की बूंदों का गोलत: आकार आप पढ़ चुके हैं कि द्रव अल्पतप पृष्ठ क्षेत्रफल रखते है। दिए गए आयतन के लिए अल्पतम पृष्ठ क्षेत्रफल वाला ज्यामितीय आकार गोलत: होता हैं । अत: यदि कोई बाहरी बल कार्य नहीं कर रहा हो तो द्रव स्वत: ही गोलत: बूंद बनाते है। बारिश की बूंदे हवा के घर्षण के कारण विकृत गोलत: आकार की हो जाती हैं।
- आद्रन और अनाद्रन गुणधर्म- जब एक द्रव की बूंद ठोस सतह पर रखी जाती है तो वह गुरूत्वाकर्षण बल के कारण फैल कर एक पतली परत बना लेती है (चित्र )। ऐसा द्रव आद्रन द्रव कहलाता है। ज्यादातर दव्र इसी प्रकार के होते है उदाहरण के लिए पानी अथवा एल्कोहल की बूॅदें शीशे की सतह पर फैल जाती है कुछ द्रव अलग तरह से व्यवहार करते है शीशे की सतह पर मरकरी की बूँद नही फैलती (चित्र )ऐसे द्रव अनाद्रन द्रव कहलाते है द्रव की आद्रन या अनाद्रन प्रकृति दो तरह के बलो पर निर्भर करती है। द्रव के अणुओ के बीच अंतराण्विक बल कोहीसिव बल कहलाता है जबकी द्रव और ठोस (जिसकी सतह पर द्रव बिंदु है )के अणुओ के बीच अंतराण्विक बल एडहीसिव बल कहलाता है यदि एडहीसिव बल कोहीसिव बल की तुलना में प्रबल है तब द्रव उस विशिष्ट ठोस सतह के प्रति अनाद्रन प्रकृति का होगा।
- केशिका क्रिया – केशिका में द्रव चढ़ने या गिरने की परिघटना को केशिका क्रिया कहते है। पानी केशिका में आद्रन प्रकृति के कारण चढे़गा क्योकी यहा कोहीसिव बल से एडहीसिव बल प्रबल है। पानी केषीका में चढकर शीशे की दीवार के साथ स्पर्श क्षेत्रफल बढ़ाता है। मरकरी शीशे के सापेक्ष अनार्द्रन है इसका कोहीसिव बल एडहिसिव बल से प्रबल है इसलिए स्पर्श क्षेत्रफल अल्पतम करने के लिए यह केशिका में अवसादित हो जाता है
14. श्यानता (विस्कासिता) – हर द्रव में प्रवाह की क्षमता होती है ऐसा इसलिए क्योकि द्रव के अणुओ में गति होती है, किन्तु एक सीमित स्थान में ही होती है। पानी पहाड़ी से नीचे जाता है गुरूत्वाकर्षण बल के कारण अथवा पम्प किए जाने पर पाइप से बहता है। द्रव के प्रवाह के लिए किसी बाहरी बल की आवश्यकता होती है। कुछ द्रव जैसे ग्लिसोरल या शहद धीेरे प्रवाह करते है क्योकि वे अधिक विस्कस होते है। जल अैार एल्कोहल तेजी से प्रवाह करते है। यह अंतर प्रवाह के प्रति आंतरिक घर्षण के कारण होता है इसे “यानता कहते है अधिक श्यानता वाले द्रव जैसे ग्लिसरोल या शहद धीरे प्रवाह करते है क्योंकि वे अधिक विस्कस होते है। जल अैार ऐल्केाहल की विस्कासिता कम होती है अैार वे कम विस्कास होते है वे तेजी से प्रवाह करते है ।
‘‘द्रव में बहाव या प्रवहन में प्रतिरोध केा शयानता करते है ।’’
विस्कासिता अंतराण्विक बल से संबंधित होती है। प्रबल अंतराण्विक बल वाले द्रव अधिक विस्कस होते हैं। आइए, इसे चित्र की सहायता से समझें। जब एक द्रव अपरिवर्तित रूप से प्रवाहित हो रहा हो, तो वह परतो में प्रवाह करता है, एक परत दूसरी परत पर फिसलती जाती है। इसे स्तरीय प्रवाह कहते हैं। जब एक स्थिर क्षैतिज तल पर से एक द्रव अपरिवर्तित रूप से प्रवाहित हो रहा हो, तो सतह के बिलकुल साथ संलग्न परत एडहीसिच बल के कारण स्थिर होती है। जैसे-जैसे स्थिर सतह से दूरी बढ़ती है, परतों का वेग बढ़ता जाता है। अत: अलग-अलग परतें अलग वेग से प्रवाह करती हैं। अंताराण्विक बलों (कोहीसिव बल) के कारण प्रत्येक परत साथ वाली परत से संघर्श बल अनुभव करती है। दो परतों के बीच यह घर्षण बल, निम्नलिखित पर निर्भर करता है।
- दोनो के बीच स्पर्श क्षेत्रफल ।
- परतों के बीच दूरी, dx
- परतों के बीच वेग का अंतर, du
ये आपस में संबंधित है: f = n A du / dx
यह n (ग्रीक शब्द ‘ईटा’) को “यानता गुणांक कहा जाता है और du / dx परतों के बीच वेग प्रवणता है।
यदि A=1cm2 , du = 1 cm s-1और dx = 1 cm,
तब f=n
अत: “यानता गुणांक, दो समानांतर द्रवो की परतों के बीच संघर्श बल है जिसका स्पर्ष क्षेत्रफल 1cm2, आपस की दूरी 1cm और दोनों का वेग अंतर 1cm s-1 हो। यह भी कह सकते हैं कि f वह बाह्रय बल हैं जो दो परतों, जिनका स्पर्ष क्षेत्रफल A है, dx की दूरी पर है और उनका वेग अन्तर कन है, के बीच घर्षण बल को पराभूत करके अपरिवर्तित प्रवाह जारी रखता है।