अनुक्रम
जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याएं
- पर्यावरण प्रदूषण
- ओजोनपरत को हानि
- पारितंत्रीय समस्या
- ब्रम्हांडीय तापमान का बढना
- प्राकृतिक संसाधनो का दोहन
- स्वास्थ्य संबंधीं समस्याएं
- गरीबी तथा बेकारी
- नैतिक मूल्यो का पतन तथा अपराध में वृद्धि
1. पर्यावरण प्रदूषण
जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ मनुष्य की आवश्यक्ताएं भी बढती गई जिससे मनुष्य ने प्रकृति का दोहन करना आरंभ कर दिया। जिससे पर्यावरण के घटक जैसे जल, वायु, मृदा आदि में प्रदूषण बढा। वाहनो के आवागमन ने तथा कल कारखानो से निकलने वाले धुँओ के कारण जल प्रदूषण होने लगा। पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न स्वरूप तथा कारण है-
2. ओजोनपरत को हानि
ओजोन स्वत: उत्पन्न होने वाली गसै है जो पृथ्वी के चारो ओर सुरक्षा कवच के समान है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणेा को धरती तक आने से रोकता है। माना गया है । कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन ही संभव नही है। उससे जीव जंतुओ तथा वनस्पतियों पर बुरा प्रभाव नहीं पडता । क्लोरोफलोरो कार्बन जैसी रासायनिक गैंसे ओजोन से क्रिया करके उसे नष्ट करने लगी है। जिससे ओजोन परत में छेद हो रहा है और सूर्य की पराबैंगनी किरणे सीधे पृथ्वी पर पहुँचकर जनजीवन को प्रभावित करने लगी है।
3. पारितंत्रीय समस्या
पारितंत्र समूचे वातावरण को कहते है जिसमें सभी जीवधारी आपसी सहयोग से रहते है। पारितंत्र के अंतर्गत पेड पौधे नदी तालाब पर्वत घाटी खेत तथा जीव जंतु आते है। जनसंख्या वृद्धि के कारण पारितंत्र संबंधी समसयाएं उत्पन्न हो गई है। पेड पौधो की कटाई से वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। पेड़ पौधो की कटाई से हरियाली कम होने के कारण वातावरण गरम रहता है। जिससे वर्षा कम होती है। वनस्पतियाँ नष्ट हो रही है। कहीं कहीं वर्षा अधिक होती है जिससे बाढ की स्थिति निर्मित हो जाती है इस प्रकार पारितंत्रीय समस्या आज की सबसे बडी समस्या बनती जा रही है।
4. ब्रम्हांडीय तापमान का बढना
कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मिथेन, क्लोरो फलोरो कार्बन तथा ओजोन इन पाँचो गैसो को ग्रीन हाउस गैसे कहते है। ये गैसे पृथ्वी की सतह के तापमान को संतुलित करती है। जिससे कृषि उत्पादन तथा पेड पौधो के विकास में सहायता मिलती है। वाहनो के अधिक उपयोग, कल कारखानेा से निकलने वाले रासायनिक धुएँ इन गैसो की मात्रा में वृद्धि करते है। जिससे ब्रम्हांडीय तापमान में वृद्धि हो रही है।
5. प्राकृतिक संसाधनो का दोहन
जनसंख्या वृद्धि के साथ ही लोगो की आवश्यक्ताओ की पूर्ति के लिए मनुष्यो ने प्राकृतिक संसाधनेा का दोहन करना आरंभ कर दिया। जिसमें जंगलो का कटना, उर्जा के लिए कोयले लकडी की खपत, पानी की कमी , कृषि योग्य भूमि की कमी होने लगी। जिससे अनेक समस्याएं पैदा होने लगी।
6. स्वास्थ्य संबंधीं समस्याएं
जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगो के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होने लगा। पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेक गंभीर बीमारियों से लोग ग्रसित होने लगें। पोषण की कमी के कारण बच्चे कुपोषण, अपंग, तथा कमजोर हड्डियों वाले तथा विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते है। रासायनिक व घरेलू कूडे कचरो से उत्पन्न मच्छरो के काटने से डेंगू, मलेरिया जैसे बीमारियाँ फैलती है। जो जानलेवा साबित होती है।
7. गरीबी तथा बेकारी
हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में आर्थिक विकास नही हो पा रहा है। कृषि योग्य भूमि की कमी के कारण देश में खाद्यान्न की कमी हो रही है। जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर कम है। जिससे बेकारी और गरीबी की समस्या बढ रही है। हमारे देश में आज भी 52.2 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे है।
8. नैतिक मूल्यो का पतन तथा अपराध में वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि से घनी आबादी होने के कारण लोगो में वैमनस्यता तथा द्वैष की भावना बढ रही है। लोगो का नैतिक पतन हो रहा है। गरीबी तथा रोजगार के अवसर कम होने के कारण लोगो में अपराध की प्रवृत्ति बढ रही है। चोरी डकैती की घटनाएं आए दिन होती रहती है।
जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव
- जनसंख्या में अधिक वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी आती है।
- जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी सुविधाओं में कमी आती है।
- जनसंख्या बढ़ने से श्रम-शक्ति में वृद्धि होती है परन्तु रोजगार के अवसर उस अनुपात में न बढ़ पाने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।
- अति जनसंख्या से अपराध जैसी विभिन्न समस्याओं का उदय होता है।
- जनसंख्या वृद्धि से उत्पादक जनसंख्या पर आश्रितों का भार बढ़ता है।
- अधिक जनसंख्या से होने वाली समस्याओं के कारण कुशल जनसंख्या अन्य देशों में प्रवास कर जाती है।
आर्थिक विकास का जनसंख्या वृद्धि पर प्रभाव
- आर्थिक विकास होने से जन्मदर में कमी आती है।
- विकास के कारण शिक्षा एवं चिकित्सा सुविधाएं बढ़ने से मृत्युदर में कमी आती है।
- विकास के कारण लोगों की आय में वृद्धि तथा जीवन स्तर में सुधार होता है जिससे वे छोटे परिवार की ओर आकृषित होते हैं।
- शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं के विकास होने से लड़का एवं लड़की का भेद कम होता है जिससे लोग कम सन्तानोत्पत्ति करते हैं।
- आर्थिक विकास के प्रभाव से जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी आती है।