अनुक्रम
चयन का अर्थ
चयन की परिभाषा
चयन प्रक्रिया की विशेषताएं
चयन प्रक्रिया की जो विशेषताएं सामने आती हैं, उनमें से कुछ प्रमुख का वर्णन है:
- चयन प्रक्रिया, एक निर्णायक चरण होता है।
- चयन प्रक्रिया के द्वारा वे लोग जो आवेदन करते हैं, उनके सम्पूर्ण समूह में से, किसी कार्य में सफलता की अत्यधिक सम्भावना से युक्त लोगों की पहचान की जाती है।
- चयन प्रक्रिया के द्वारा कुल अभ्यर्थियों में से ‘सर्वाधिक उपयुक्त’ को चुना जाता है।
- चयन एक नकारात्मक दृष्टिकोण है, क्योंकि इसके द्वारा अयोग्य अभ्यार्थियों को अस्वीकार कर दिया जाता है।
- चयन प्रक्रिया में वे अभ्यर्थी, जो इसके विभिन्न चरणों को पार करते हुए अन्त तक पहुँच जाते हैं, वे चुन लिये जाते हैं तथा शेष अभ्यर्थी चयन की दौड़ से बाहर हो जाते हैं।
चयन का महत्व
योग्य कर्मचारियों के चयन का महत्व निम्नलिखित कारणों से भी बढ़ जाता है:
- चयन प्रक्रिया के माध्यम से योग्य कर्मचारियों को चुनना सम्भव होता है।
- चयन प्रक्रिया के द्वारा यदि उपयुक्त कर्मचारियों का चयन कर लिया जाता है।
- उचित ढंग से किये गये योग्य लोगों के चयन से कर्मचारी-परिवर्तन में कमी होती है।
- एक श्रेष्ठ चयन प्रक्रिया का अनुसरण करने से कर्मचारियों की संगठन के प्रति कर्तव्य-निष्ठा, अपनत्व तथा सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
- समुचित चयन प्रक्रिया के अपनाये जाने से संगठन के अन्तर्गत सेवायोजक एवं कर्मचारियों के मध्य मधुर सम्बन्धों की स्थापना होती है।
- योग्य कर्मचारियों का चयन करने से संगठन की उत्पादन लागत एवं अपव्यय में कमी होती है तथा साथ ही कार्यों की निष्पादन कुशलतापूर्वक होता है।
चयन प्रक्रिया के चरण
एक चयन प्रक्रिया के चरण निम्न होते हैं:-
- भर्ती प्रक्रिया से आवेदन पत्रो की प्राप्ति
- आवेदन पत्रो की जाॅच
- चयन परीक्षण
- चयन साक्षात्कार
- संदर्भो की जाॅच
- शारीरिक शिक्षा
- उपयुक्त अधिकारी द्वारा अनुमोदन
- अन्तिम चयन
1. आवेदन पत्र – आवेदन-पत्र चयन प्रक्रिया का मूल आधार होते हैं, क्योंकि इनके द्वारा अभ्यार्थियों के विषय में सामान्य जानकारी प्राप्त की जाती है।
इस आवेदन-पत्र के द्वारा अभ्यर्थियों की आयु, शैक्षिक योग्यता, प्रशिक्षण, अनुभव, पृष्ठभूमि तथा अपेक्षित वेतन आदि की जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि कुछ संगठनों द्वारा स्वयं तैयार किया गया आवेदन-पत्र का प्रारूप ही स्वीकृत किया जाता है। कि वे जिस रूप से चाहें अपना आवेदन कर सकते हैं इस हेतु प्राय: आवेदन-पत्र के रूप में एक सह-पत्र के साथ बायोडेटा अथवा रिज्यूम का उपयोग किया जाता है।
प्रारम्भिक साक्षात्कार के अन्र्तगत अभ्यार्थियों को कार्य की प्रकृति, कार्य के घंटों, कार्य-दशाओं तथा वेतन आदि की जानकाी प्रदान की जाती है। साथ हीे, उनकी शैक्षिक योग्यताओं, प्रशिक्षणों, अनुभवों, वर्तमान कार्यों तथा रूचियों आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है।
- बुद्धि परीक्षण: इन परीक्षणों के माध्यम से अभ्यर्थियों की ग्रहण शक्ति, गणितीय प्रवृत्ति, स्मरण-शक्ति तथा तर्क-शक्ति की जाँच की जाती है।
- यान्त्रिक योग्यता परीक्षण: इन परीक्षणों के माध्यम से अभ्यर्थियों की यन्त्रों को पहचानने तथा उन्हें सुचारू रूप से प्रयोग करने की क्षमता का मापन किया जाता है।
- लिपिकीय योग्यता परीक्षण: इन परीक्षणों के माध्यम से कार्यालय की क्रियाओं की निष्पादन क्षमता का मापन किया जाता है।
ii. उपलब्धि अथवा निष्पादन परीक्षण – इन परीक्षणों का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि अभ्यर्थियों द्वारा विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त किये जाने का दावा किया जाता है। इनके माध्यम से यह ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है कि अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त प्रशिक्षणों में से कितनी बातें वे सीख पाया है। ये परीक्षण दो प्रकार से किये जा सकते है:
- कार्य ज्ञान : इस परीक्षण के अन्तर्गत एक कार्य विशेष के सम्बन्ध से अभ्यर्थियों के ज्ञान का पता लगाया जाता है।
- कार्य-नमूना परीक्षण: इस परीक्षण के अन्तर्गत अभ्यर्थियों को एक वास्तविक कार्य के भाग को सम्पन्न करने के लिए कहा जाता है तथा उनके निष्पादन के स्तर के आधार पर उनके विषय में निर्णय किया जाता है।
iii. स्थितिपरक परीक्षण – इस परीक्षण के माध्यम से अभ्यर्थियों का वास्तविक जीवन से मिलती-जुलती एक परिस्थिति में मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षण में अभ्यर्थियों को या तो किसी परिस्थिति का सामना करने के लिए, या फिर कार्य के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण परिस्थितियों को समाधान करने के लिए कहा जाता है।
v. समूह परिचर्चा- समूह परिचर्चा में अभ्यर्थियों को समूह में विभाजित करके उन्हें कोई चर्चित अथवा सामयिक विषय दे दिया जाता है, जिस पर उन्हें तर्क-वितर्क करना होता है। इस परिचर्चा में अभ्यर्थियों के ज्ञान की गहनता, विचारों की गुणवत्ता, स्तर एवं मौलिकता, कम शब्दों में अपनी बात समझाने की योग्यता तथा उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कोई अभ्यर्थी अपने समूह में कितनी पहल करता है तथा दूसरे सदस्यों को किस हद तक प्रभावित कर पाता है, इसका विशेष महत्व होता हे। समूह में चर्चा के समय अभ्यर्थियों की सहनशीलता एवं दूसरे की बात सुनने की क्षमता को भी ध्यानपूर्वक मापा जाता है। अनेक व्यावसायिक संगठनों द्वारा आज कल समूह परिचर्चा के बाद समूह कार्य भी करवाया जाता है।