अनुक्रम
खाद्य जाल
खाद्य श्रृंखला
जैसे- उत्पादक→ शाकाहारी→ मांसाहारी।
- चराई खाद्य श्रृंखला पौधें (उत्पादक) से आरम्भ होकर मांसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर है। हर स्तर पर ऊर्जा का हृास होता हे जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएं सम्मिलित है।
- अपरद खाद्य श्रृंखला चराई खाद्य श्रृंखला से प्राप्त मृत पदाथोर् पर निर्भर हे और इसमें कार्बनिक पदार्थ का अपघटन सम्मिलित है।
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पोषी स्तर |
- उत्पादक हरे पौधे प्रथम पोषण स्तर।
- प्राथमिक उपभोक्ता शाकाहारी प्राणी जो कि प्रथम पोषण स्तर का उपभोग करते है इसे द्वितीय पोषण स्तर कहते है।
- द्वितीय उपभोक्ता मांसाहारी जो कि द्वितीय पोषण स्तर का उपभोग करते है इसे तृतीय पोषण स्तर कहते है।
- मांसाहारी या पोषण स्तर :- इसके अन्तर्गत मनुष्य को सम्मिलित किया जाता है मनुष्य अपने पोषण के लिए उपरोक्त तीनों पोषण स्तर पर निर्भर रहता है। मनुष्य पेड़ पौधों से भोजन प्राप्त करता है, और शाकाहारी जीवों से भोजन व दूध तथा मांसाहारी से भोजन प्राप्त करता है। इसलिए मानव सर्वाहारी (Omni – Vorous) कहलाता है। उदाहरण घास के मैदान में घास -टिड्डी – मेढ़क – बाज।
खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर या कड़ी अथवा जीव की पोषण स्तर या ऊर्जा स्तर कहते है। इस श्रृंखला के एक किनारे पर हरे पौधे अर्थात् उत्पादक, जबक दूसरे अपघटक होते है।
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आहार श्रृंखला |
घास के मैदान के परिस्थितिक तंत्र की आहार श्रृंखला
घास के मैदान का परिस्थितिक तंत्र में उत्पादक हरी घास होती है। इस प्रथम पोषण तल या पोषण स्तर (Tropic level or food level) कहते हैं इसका उपभोग शाकाहारी जैसे खरगोश कर लेता है तो इसे द्वितीय पोषण स्तर कहते है। ये शाकाहारी होता है। इसके पश्चात इसका उपभोग मांसाहारी शाकाहारी होता है। इसके पश्चात इसका उपभोग मांसाहारी जैसे लोमड़ी कर लेती हैं इसे तृतीय पोषण स्तर कहते है। लोमड़ी का उपभोग शेर कर लेता है। जो कि चतुर्थ पोषण स्तर कहलाता है।
जलीय तालाब का पारिस्थितिक तंत्र की आहार श्रृंखला
जलीय तालाब एक पूर्ण परिस्थितिक तंत्र होता है इसमें चार प्रकार के घटक (Component) पाये जाते है :-
1. अजैविक घटक (Abiotic component) – तालाब के जल में विभिन्न खनिज पदार्थ ऑक्सीजन, कार्बनडाइआक्साइड घुले हुए रहते है।
2. जैविक घटक (Biotic component) – तालाब के जल में कमल, हाइड्रिला, बोल्फिया, स्पाइरोगाइरा आदि जलीय पौधे पाये जाते है। इनमें क्लोरोफिल पाया जाता है इसलिए ये सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन स्वयं बनाते है अर्थात् प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते है।
पारिस्थितिक तंत्र में एक से अधिक खाद्य श्रृंखलाए आड़ी – तिरछी जुड़कर एक जाल के समान रचना बना लेती हैं, इसे खाद्य जाल कहते हैं अथवा खाद्य ऊर्जा का प्रवाह विभिन्न दिशाओं में होता है जिससे एक खाद्य श्रृंखला के जीव का सम्बन्ध दूसरी खाद्य श्रृंखला के जीव से हो जाता है तो इसे खाद्य जाल (Food Web) कहते है। इस प्रकार से कोई भी जीव एक से अधिक पोषण स्तरों से अपना भोजन प्राप्त कर सकता है। जैसे घास के पारिस्थितिक तंत्र में खरगोश के स्थान पर चूहे द्वारा घास का भक्षण कर लिया जाता है और चूहे का भक्षण सीधे बाज द्वारा भी हो सकता है तथा ऐसा भी हो जाता है कि पहले सांप चूहे को खाये और फिर सांप बाज के द्वारा खा लिया जाये तथा घास को टिड्डा खाए ओर इसे छिपकली, बाज सीधे छिपकली को खा जाए जिसके परिणामस्वरूप सभी खाद्य श्रृंखलाएं मिलकर एक जाल बना लेती हैं यही खाद्य जल (Food web) होता है।
- घास – खरगोश – बाज
- घास – टिडडा – बाज
- घास – टिडडा – छिपकली – बाज
- घास – चूहा – बाज
- घास – चूहा – सांप – बाज
खाद्य जाल के द्वारा पारिस्थितिक तंत्र में स्थिरता और संतुलन बना रहता है।