अनुक्रम
केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय
केदारनाथ सिंह की एक बहन थी, जिनका नाम रमा देवी था। वो केदारनाथ सिंह से बहुत प्यार करती थी। केदारनाथ सिंह के पिता उनके बाबा के अकेले वारिश थे, खुद केदार अपने पिता के अकेले वारिश हैं।
केदारनाथ सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा
केदारनाथ सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव से शुरू हुई। उन दिनों आजकल की तरह आधुनिक साधन उपलब्ध नही थे। प्रकृति की पाठशाला ने उनके व्यक्तित्व निर्माण में निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया। गाँव में प्रत्येक साल बाढ़ आती थी। और गाँव टापू जैसा लगने लगता था। साँप, बिच्छू, घड़ियाल आदि जीव-जन्तु इस टापू पर आश्रय लेने के लिए आ जाते थे। इन सब कष्टों से होकर कवि को स्कूल जाना होता था। उस समय आजकल की तरह स्कूल और ब्लैकबोर्ड नही होता था। जंगल में खुले आसमान के नीचे पेड़ों की छाया में गुरुजन अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। उस समय नंगे-पाँव स्कूल जाना होता था।
प्रारम्भिक स्कूल के बाद केदारनाथ सिंह पढ़ने के लिए बनारस आये। उन दिनों बनारस में पढ़ने जाना एक परम्परा सी थी। उनका प्रवेश उदय प्रताप कॉलेज में हुआ, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान था। वहाँ उनका दाखिला चौथी क्लास में हुआ। उस संस्था में हिन्दी के अनेक महान कवियों का आना-जाना लगा रहता था। संस्था में हर साल नवम्बर में कवि सम्मेलन होता था, जिसमें हरिवंशराय बच्चन, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जैसे प्रभावशाली कवि सस्वर काव्यपाठ करते थे। स्कूल के दिनों ने उनके मन पर जो स्मृतियाँ छोड़ी हैं, उन्हें वे आज तक भी नही भुला पाये हैं।
केदारनाथ सिंह का विवाह
केदारनाथ सिंह की शादी बाल्यावस्था में ही करा दी गयी थी। शादी के समय केदारनाथ सिंह की उम्र केवल 15 वर्ष थी। वे उस समय हाईस्कूल के छात्र थे। संस्कारित होने के कारण वे इसका विरोध भी न कर सके। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा-
‘‘शादी तो हमारी हाईस्कूल में ही हो गयी थी। सन् उनचायस में। अकेला था, माँ-बाप ने कहा, शादी होनी चाहिए। उन्हें प्रसé करने के लिए शादी की- दूसरा चारा भी नही था। असल में मैं विरोध न कर सका। मैं अक्सर बाहर रहता, वो घर पर रहती। साथ रहने से ही प्रेम विकसित होता है।’’
शादी के करीब दस-बारह वर्षों के बाद ही केदारनाथ सिंह ने सही अर्थों में दाम्पत्य जीवन आरम्भ किया। हाईस्कूल से एम0ए0 तक और फिर शोध कार्य करने के लिए केदारनाथ सिंह को अकेले हास्टल की जिन्दगी जीनी पड़ी। शोध कार्य के दो वर्ष बाद तक कवि को आर्थिक तंगी के चलते माँ बाप परिवार से दूर रहना पड़ा। यह संघर्षों के दिन थे और यहÈ कवि के व्यक्तित्व के निखरने के भी दिन थे। केदारनाथ सिंह अपने जीवन को इस अस्थिरता से तब तक जूझते रहे जब तक कि उनको पडरौना में स्थायी पद प्राप्त न हुआ। इस समय केदारनाथ सिंह के पास अपना पूरा परिवार है, जिसमें उनकी पाँच बेटियाँ व एक बेटा भी है। केदारनाथ सिंह अपने बेटियों से अत्यधिक स्नेह करते हैं।
केदारनाथ सिंह की रचनाएं
केदारनाथ सिंह का काव्य संसार व्यापक व बहुआयामी है। वे समूचे युगीन संदर्भों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए साहित्यकार हैं। उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं- ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहाँ से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’, ‘बाघ’ आदि।
केदारनाथ सिंह की कविताओं को अध्ययन की दृष्टि से तीन कोटियों में बाँटा जा सकता है- प्रथम, ग्राम्य-प्रकृति से सम्बद्ध कविताएँ, द्वितीय काल सापेक्षता के प्रश्न से सम्बद्ध कविताएँ तथा तृतीय प्रेम कविताएँ।
- सिंह केदारनाथ, सुई और तागे के बीच, यहाँ से देखो, पृ0 61
- यायावर भारत, कवि केदारनाथ सिंह, पृ0 44
- सिंह केदानाथ, अकाल में सारस, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी आवृत्ति, 2003, पृ0 19
- पचौरी सुधीस, उत्तर केदार, प्रवीण प्रकाशन, नई दिल्ली, 1997, पृ0 35
- सिंह केदारनाथ, सं0 अज्ञेय, कमरे का दानव, तीसरा सप्तक, पृ0 142
- सचदेवा पद्मा, उत्तर केदार, सं0 सुधीस पचौरी, पृ0 22
- सिंह केदारनाथ, विपक्ष, पृ0 46
- सचदेवा पद्मा, उत्तर केदार, सं0 सुधीस पचौरी, पृ0 27
- सिंह केदारनाथ, आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्ब विधान, प्राक्कथन से
- सचदेवा पद्मा, उत्तर केदार, सं0 सुधीस पचौरी, पृ0 28
- पचौरी सुधीस, उत्तर केदार, पृ0 41