अनुक्रम
कृषि उत्पादकता से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में प्रति हेक्टेयर उत्पादन से है। कृषि उत्पादकता में मिट्टी, जलवायु, कृषि तकनीक, पूंजी एवं उर्वरकों का विशेष महत्व होता है। कुछ क्षेत्रों में अधिक उर्वरकों के प्रयोग से भी अनूकूल उत्पादन नहीं प्राप्त हो पाता है। यहाँ मिट्टी की जाँच आवश्यक होती है जिससे मृदा में जिस अनुपात में सिंचाई और उर्वरकों की आवश्यकता हो उसी अनुपात में उनका प्रयोग किया जा सके। कृषि उत्पादकता को बनाये रखने के लिए फसलों में अन्तराल तथा मिट्टी में विद्यमान पोषक तत्वों की नियमित जाँच आवश्यक होती है।
कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक
कृषि उत्पादकता किसी क्षेत्र की प्रति इकाई उत्पादन की मात्रा को प्रदर्शित करता है। किसी भी क्षेत्र के अलग-अलग भागों में अलग-अलग कृषि उत्पादकता पायी जाती है जिसके लिए भौतिक तथा मानवीय कारक उत्तरदायी होते हैं। भौतिक कारकों में जलवायु, मिट्टी एवं उच्चावच सर्वाधिक प्रभाव डालते हैं। मानवीय कारकों में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और तकनीकी कारक महत्वपूर्ण है।
1. जलवायुविक कारक
किसी भी प्रदेश के विकास के लिए जलवायु सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। जलवायु के तापमान, वर्षा, आदर््रता, वायुदाब, पवनों की दिशा एवं गति आदि तत्व प्रत्यक्ष रूप से र्पभाव डालते हैं। कृषि, कृषि उत्पादकता, कृषि गहनता, शस्य प्रतिरूप आदि जलवायु से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। जलवायु में वर्षा ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जो फसल उत्पादन को निर्धारित करता है। खरीफ की फसलें पूर्णतया वर्षा आधारित होती हैं। जिस वर्ष वर्षा अच्छी होती है धान, मक्का आदि की फसलें अच्छी होती है और साथ ही साथ रबी की फसलों के लिए भी पर्याप्त नमी उपलबध होती है। लेकिन जिस वर्ष वर्षा अच्छी नहीं होती है पैदावार घट जाती है।
2. उच्चावच एवं कृषि उत्पादकता
उच्चावच कृषि उत्पादकता के निर्धारक तत्वों में दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है। स्थल की बनावट, ऊबड़-खाबड़ भूमि, पर्वत, पठार, मैदान एवं पहाड़ी भाग प्रत्यक्षत: उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। पर्वतीय ढालों के सहारे पानी तेजी से नीचे आ जाता है जिससे मिट्टी में अधिक समय तक नमी नहीं रह पाती है। साथ ही साथ मिट्टी के उर्वर तत्व जल में घुलकर पानी के साथ नीचे तलहटी में पहुँच जाते हैं। पहाड़ी भागों में तो पत्थरीली भूमि होने के कारण कृषि उत्पादकता कम पायी जाती है। मैदानी भाग समतल एवं जलोढ़ मिट्टी से निर्मित होते हैं यहाँ मन्द ढाल होने के कारण मिट्टी में विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व संग्रहीत रहते हैं। यही कारण है कि सर्वाधिक कृषि उत्पादकता मैदानी क्षेत्रों में पायी जाती है। रबी, खरीफ एवं जायद की तीन-तीन फसलें मैदानी भागों में उगायी जाती हैं। भरपूर फसल उत्पादन के कारण मैदानी भागों में जनसंख्या का बसाव भी अधिक पाया जाता है।
3. मिट्टी एवं कृषि उत्पादकता
कृषि का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भौतिक कारक मिट्टी है। मिट्टी की बनावट, रंग, कणों का आकार और उर्वरक तत्वों की उपलब्धता कृषि उत्पादकता को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। मिट्टी में जैविक एवं अजैविक दोनों तत्व पाये जाते हैं जो उत्पादन की मात्रा को निर्धारित करते हैं। अध्ययन क्षेत्र सुलतानपुर जनपद में मुख्य रूप से दोमट, बलुई दोमट, चिकनी और बलुई मिट्टी पायी जाती है। इनकी अलग-अलग विशेषताओं के कारण कृषि उत्पादकता में अन्तर पाया जाता है।
4. सामाजिक कारक
कृषि उत्पादकता भौतिक कारकों के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से भी प्रभावित होती है जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव कृषि पर देखा जाता है। स्टैम्प महोदय ने कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों में सामाजिक, आर्थिक कारकों को बहुत महत्वपूर्ण माना है। इसके अतिरिक्त पी.एल. वेगनर महोदय ने अपनी पुस्तक “The Human Use of the Earth, 1964” में मानवीय कारकों को कृषि के लिए महत्वपूर्ण माना है। जार्ज (George, P., 1956) ने कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों में क्रमश: प्रकृति, जनसंख्या एवं ऐतिहासिक कारकों को महत्वपूर्ण बताया है।
सामाजिक कारकों में जनसंख्या की मांग और कृषकों की अभिरूचि कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है। किसान अपनी जरूरत और क्षमता के अनुसार खेतों में लागत लगाता है। यह भी देखा गया है कि जब किसान स्वयं अपने खेत में फसलें उत्पादित करते हैं तो उत्पादन अधिक और यदि बँटाई या लीज पर खेती करते हैं तो उत्पादन कम होता है। खेतों का आकार, सामाजिक संरचना किसानों की अभिरूचि आदि कारक भी कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। गाँवों में मध्य वर्गीय परिवारों के खेतों की उत्पादकता अन्य वर्गों की अपेक्षा अधिक पायी जाती है।
5. आर्थिक कारक
कृषि उत्पादकता में आर्थिक कारक बह ुत महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए हैं। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के साधनों, कृषि यन्त्रों, उन्नत किस्म के बीजों, रासायनिक खादों, कीटनाशकों आदि का प्रयोग अति आवश्यक है लेकिन इन सबके लिए पूँजी का होना अनिवार्य है। परम्परागत ढंग से खेती से केवल जीविकोपार्जन हो सकता है लेकिन किसानों की स्थिति जैसी की तैसी ही बनी रहती है। विकसित और विकासशील देशों में भी कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त पूँजी में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है।
6. राजनैतिक कारक
7. अन्य कारक
उत्पाकदता निर्धारण के अन्य कारकों में विद्युत, श्रमशक्ति, उन्नतशील बीजों, कृषि यन्त्रों, रासायनिक उर्वरकों, तकनीकी विकास, सिंचाई सुविधाओं आदि का बड़ा महत्व है। स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि क्षेत्र में जैसे-जैसे कृषि यन्त्रों का विकास, उन्नत किस्म के बीजों, रासायनिक खादों का प्रयोग आदि बढ़ने लगा है उत्पादकता में वृद्धि हुई है। ट्यूबेल सिंचाई के द्वारा बहुफसली कृषि पर जोर दिया गया है। ट्रैक्टर, हार्वेस्टर एवं परिष्करण आदि के माध्यम से कृषि करना आसान हो गया है। तकनीकी विकास के कारण श्रम, पूंजी और समय की बचत होती है और उत्पादन तथा उत्पादकता में सुधार होता है। कृषि में सतत् तकनीकी विकास की आवश्यकता होती है।
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