एडलर द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धांत का विवेचन

एडलर का व्यक्तित्व सिद्धान्त ‘‘नवमनी विश्लेषणात्मक उपागम’’ पर आधारित है। एडलर यद्यपि फ्रायड के काफी नजदीक थे, किन्तु वे व्यक्तित्व के सम्बन्ध में फ्रायड के कुछ विचारों से सहमत नहीं थे। इसलिये उन्होंने फ्रायड से पृथक होकर एक नये व्यक्तित्व सिद्धान्त को जन्म दिया, जिसका नाम रखा – ‘‘वैयक्तित्व मनोविज्ञान का सिद्धान्त’’ इस सिद्धान्त की खास बात यह है कि इसमें एडलर ने प्रत्येक व्यक्ति की मौलिकता एवं अनूठेपन को पर्याप्त महत्व प्रदान किया है। इसीलिये इसका नाम वैयक्तिक मनोविज्ञान का सिद्धान्त है। 

एडलर ने फ्रायड की तरह जैविक कारकों पर बल न देकर वैयक्तिक सामाजिक वातावरण एवं उनकी अन्त:क्रिया को व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण निर्धारक माना, क्योंकि मनुष्य मूल रूप से एक सामाजिक प्राणी है न कि जैविक। 

एडलर का व्यक्तित्व सिद्धांत

एडलर द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धांत का विवेचन निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है। (1) व्यक्तित्व की एकता (2) प्रत्यक्षण की आत्मनिष्ठता (3) सफलता चापूर्णता का प्रयास (4) सामाजिक अभिरूचि (5) जीवनशैली (6) सर्जनात्मक शक्ति।

1. व्यक्तित्व की एकता – एडलर ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की मौलिक एकता पर बल डाला है। उनका मानना है कि हम चेतन तथा अचेतन मन, शरीर तथा मन एवं इसी प्रकार तर्क एवं संवेग को अलग-अलग करके नहीं समझ सकते। ये सभी हमारे व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम हैं, जिनमें स्पष्ट विभाजन रेखा खींचना संभव नहीं है। 
इन सभी का उद्देश्य व्यक्ति को सफलता दिलाना होता है। अत: इस सफलता रूपी अन्तिम लक्ष्य के सन्दर्भ में ही हम मनुष्य के व्यवहार को ठीक प्रकार से समझ सकते हैं।
2. प्रत्यक्षण की आत्मनिष्ठता- एडलर का मत है कि व्यक्तित्व का निर्धारत बाºय कारकों से नहीं बल्कि व्यक्ति के आत्मनिष्ठ विचारों से होता है। वास्तवकता को जानने के लिये व्यक्ति जो आत्मनिष्ठ प्रत्यक्षण करता है वहीं उसके व्यक्तित्व के ढांचे को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही इन्होंने यह भी माना कि व्यक्ति व्यवहार करते समय अपने अतीत की अनुभूतियों से नहीं वरन् भावी जीवन को लेकर की गई कल्पनाओं एवं आशाओं से प्रेरित होता है। एडलर ने निम्न तीन आत्मनिष्ठ कारक बताये हैं – 
  1. कतिपत लक्ष्य 
  2. हीनता भाव एवं क्षतिपूर्ति 
  3. जन्मक्रम

3. सफलता या पूर्णता का प्रयास- एडलर ने अपने सिद्धान्त में एक गत्यात्म शक्ति पर बल दिया है, जो सभी अभिप्रेरकों के पीछे काम करती है। इस गत्यात्मक बल को एडलर ने नाम दिया – ‘‘सफलता या पूर्णता का प्रयास’’ पूर्णता को प्राप्त करने की मौलिक अभिप्रेरणा को ही एडलर ने सफलता या पूर्णता का प्रयास कहा है। 

यदि व्यक्ति के अन्दर ऐसा अभिप्रेरक मौजूद न हो तो जीवन में उन्नति की बात तो बहुत दूर, जीवन के अस्तित्व की भी कल्पना नहीं की जा सकती।  सफलता या पूर्णता के प्रयास की विशेषतायें है –
  1. एडलर के अनुसार ‘‘पूर्णता का प्रयास’’ एक जन्मजात प्रक्रिया है।
  2. ‘‘पूर्णता के प्रयास’’ का विकास पर्यावरणी कारकों द्वारा प्रभावित निर्धारित एवं विकसित होता है। 
  3. पूर्णता का प्रयास उनके अभिप्रेरकों का मिश्रण न होकर अपने आप में एक अकेला अभिप्रेरक है। 
  4. यह अभिप्रेरक सामान्य व्यक्तियों तथा स्नायुरोगियों दोनों में सामान्य रूप से पाया जाता है। 
  5. पूर्णता के प्रयास में व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिये इससे तनाव कम न होकर तनाव बढ़ जाता है। 
  6. एडलर के अनुसार पूर्णता का प्रयास व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से करने के साथ-साथ समाज की एक इकाईया सदस्य के रूप में भी करता है जिससे कि समाज की प्रगति हो सके।

सामाजिक अभिरूचि- एडलर के अनुसार सामाजिक अभिरूचि भी एक जन्मजात प्रक्रिया है, जो कम या अधिक मात्रा में सामान्य तथा स्नायुरोगियों दोनों में ही पायी जाती है सामाजिक अभिरूचि से तात्पर्य है दूसरों का सहयोग करने की प्रवृति। ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का बैरोमीटर’ कहा है अर्थात जो व्यक्ति जितना अधिक दूसरों की भलाई करता है, यह मानसिक रूप से भी उतना ही स्वस्थ रहता है। यद्यपि यह एक जन्मजात प्रक्रिया है फिर भी एडलर के अनुसार इसका विकास सामाजिक वातावरण में जैसे माँ’बाप के साथ अन्त:क्रियाओं इत्यादि के द्वारा होता है


जीवन शैली-  एडलर के व्यक्तित्व सिद्धान्त का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संप्रत्यय ‘‘जीवन शैली’’ है, जो फ्रायड द्वारा दिये गये अहं के समान है, क्योंकि अहं के समान एडलर ने जीवनशैली को व्यक्तित्व का प्रमुख नियंत्रक बल माना है। आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि जीवन शैली से एडलर का क्या आशय है, इस सम्बन्ध में एडलर का विचार है कि जीवन शैली में एक व्यक्ति के वे सभी व्यवहार, आदतें, शीलगुण आते हैं, जिनका सामूहिक रूप से उपयोग करते हुए व्यक्ति पूर्णता या सफलता को प्राप्त करने की कोशिश करता है। इसके साथ ही उस व्यक्ति का स्वयं अपने प्रति अन्य व्यक्तियों के प्रति एवं वातावरण के प्रति क्या दृष्टिकोण है – ये सब भी उसकी जीवनशैली में ही आते हैं। 
एडलर के अनुसार किसी भी व्यक्ति की जीवनशैली का निर्माण 4-5 साल की उम्र तक क हो चुका होता है और एक बार जीवन शैली निर्धारित हो जाने के बाद इसकी मौलिक सरंचना में प्राय: परिवर्तन नहीं होता है।

एडलर का व्यक्तित्व सिद्धांत के गुण 

एडलर के सिद्धान्त के महत्व का विवेचन निम्नानुसार है – 
(1) चेतन एवं तार्किक प्रक्रियाओं पर अधिक बल – 
  1. एडलर ने अचेतन की तुलना में चेतन एवं तर्कपूर्ण प्रक्रियाओं को अधिक महत्व दिया है। 
  2. एडलर के सिद्धान्त से इरिक्सन का मनोसामायिक सिद्धान्त धनात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। 
(2) सामाजिक कारकों पर बल – एडलर ने जैविक कारकों की तुलना में व्यक्तित्व निर्धारण में सामाजिक कारकों की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण माना। इस आधार पर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक इरिकक्रोम तथा कैरेन हार्नी ने उनके सिद्धान्त का अत्यधिक समर्थन किया है। 
(3) सर्जनात्म व्यक्ति को महत्व देना – एडलर के अनुसार व्यक्ति की जीवन शैली के निर्धारण में उसकी सर्जनात्मक शकित का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस आधार पर भी एब्राहम मैस्लो जैसे वि़द्वानों ने उनके सिद्धान्त की अत्यधिक प्रशंसा की है। 
(4) भविष्य की प्रत्याशाओं पर बल- एडलर के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार उसकी गत अनुभूतियों की तुलना में भविष्य की प्रत्याशाओं द्वारा अधिक निर्देशित होता हैं। इस प्रकार उन्होंने मानव प्रकृति की आशावादी छवि पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है।

एडलर का व्यक्तित्व सिद्धांत के दोष

एडलर के सिद्धान्त की प्रमुख कमियां निम्न हैं – 
(1) आवश्यकता से अधिक सरल सिद्धान्त- फ्रायड ने एडलर के सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि इनका सिद्धान्त जरूरत से कुछ ज्यादा ही सरल है। इसमें अचेतन की जटिल प्रकृति, यौन अभिप्रेरण इत्यादि को महत्व नहीं दिया गया है। इसके कारण यह सिद्धान्त न होकर एडलर का अपना सामान्य बोध ज्यादा लगता है। 
(2) क्रमबद्ध चिन्तन का अभाव –आलोचकों का मत है कि एडलर के चिन्तन में क्रमबद्धता का अभाव दिखलाई देता है। इनके सिद्धान्त में कुछ ऐसी असंगतायें विद्यमान है, जिनका संतोषजनक समाधान नहीं मिल पाता है। जैसा कि क्या प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में केवल पूर्णता को प्राप्त करने के लिये ही प्रयत्न करते हैं? क्या व्यक्ति के जीवन में एकमात्र समस्या हीनता की ही है। अन्य समस्यायें नहीं है, जिनको वह दूर करना चाहता है इत्यादि। 
(3) कुछ संप्रत्ययों का प्रयोगात्मक सत्यापन संभव नहीं – आलोचकों का यह भी मत है कि कतिपत लक्ष्य, सर्जनात्म शक्ति इत्यादि संप्रत्ययों को प्रयोग करके सत्य सिद्ध नहीं किया जा सकता है। अतः प्रयोगात्मक सत्यापन के अभाव में इस प्रकार के संप्रत्ययों को आधार बनाकर व्यक्तित्व के संबंध में किसी प्रकार का सामान्यीकरण करना उचित प्रतीत नहीं होता है। 
(4) जन्मक्रम के संप्रत्यय का वैज्ञानिक अध्ययन संभव नहीं – प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक किस्ट के अनुसार एडलर द्वारा दिये गये जन्मक्रम के संप्रत्यय का वैज्ञानिक विधि द्वारा अध्ययन संभव नहीं है। जन्म के क्रम के साथ शीलगुणों को जोड़ना अत्यन्त कठिन है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। 
उपर्युक्त विवेचन से आप भली-भांति जान गये होंगे कि एडलर का ‘‘वैयक्तिक मनोविज्ञान का सिद्धान्त’’ कया है तथा यह किन-किन मूल आवश्यकताओं पर आधारित है। अनेक प्रकार की आलोचनाओं के बावजूद भी इस सिद्धान्त का भरसक प्रयास किया है।

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