अनुक्रम
अश्वगंधा की पहचान कैसे करे?
अश्वगंधा के पौधे 1 से 4 फीट तक ऊँचे होते है। इसके ताजे पत्तों तथा इसकी जड़ को मसल कर सूँघने से उनमें घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है। संभवत: इसी वजह से इसका नाम अश्वगंधा पड़ा होगा। इसकी जड़ मूली जैसी परन्तु उससे काफी पतली (पेन्सिल की मोटाई से लेकर 2.5 से 3.75 अश्वगंधा के पौधे से0मी0 मोटी) होती है तथा 30 से 45 से0मी0 तक लम्बी होती है। यद्यपि यह जंगली रूप में भी मिलती है परन्तु उगाई गई अश्वगंधा ज्यादा अच्छी होती है।
अश्वगंधा में विथेनिन और सोमेनीफेरीन एल्केलाईड्स पाए जाते हैं जिनका उपयोग आयुर्वेद तथा यूनानी दवाइयों के निर्माण में किया जाता है। इसके बीज, फल, छाल एवं पत्तियों को विभिन्न शारीरिक व्याधियों के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है।
अश्वगंधा की प्रमुख किस्में
अश्वगंधा की मुख्यतया दो किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं जिन्हें ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्में माना जाता है ये किस्में हैं- जवाहर असगंध-20, जवाहर असगंध-134 तथा डब्ल्यू. एस.-90-100, वैसे वर्तमान में अधिकांशत: जवाहर असगंध-20 किस्म किसानों में ज्यादा लोकप्रिय है।
अश्वगंधा की रासायनिक संरचना
अश्वगंधा में अनेकों प्रकार के एल्केलाइड्स पाए जाते हैं जिनमें मुख्य हैं- विथानिन तथा सोमनीफेरेन। इनके अतिरिक्त इनके पत्तों में पांच एलकेलाइड्स (कुल मात्रा 0.09 प्रतिशत) भी पाए जाने की पुष्टि हुई है, हालांकि अभी उनकी सही पहचान नहीं हो पाई है। इनके साथ-साथ विदानोलाइड्स, ग्लायकोसाइड्स, ग्लूकोज तथा कई अमीनों एसिड्स भी इनमें पाए गए हैं। क्लोनोजेनिक एसिड, कन्डेन्स्ड टैनिन तथा फ्लेवेलनायड्स की उपस्थिति भी इसमें देखी गई है। अश्वगंधा का मुख्य उपयोगी भाग इसकी जड़ें होती हैं।
- कोलीन, ट्रोपनोल
- सूडोट्रोपनोल
- कुसोकाइज्रीन
- ट्रिगलोज़ाइट्रोपाना
- आइसोपैलीटरीन
- एनाफ्रीन
- एनाहाइग्रीन
- विदासोमनाइन
- स्ट्रायोयडल लैक्टोन्स।
एल्केलाइड्स के अतिरिक्त इसकी जड़ों में स्टॉर्च, रीड्यूसिंग सुगर्म, हैन्ट्रियाकोन्टेन, ग्लाइकोसाइड्स, डुल्सिटॉल, विदानिसिल, एक अम्ल तथा एक उदासीन कम्पाउन्ड भी पाया जाता ह