अनुक्रम
अम्लीय वर्षा किसे कहते हैं?
अम्लीय वर्षा का निर्माण
प्रदूषण इकाई के अंतर्गत तापीय ऊर्जा संयंत्र, उर्वरक, रासायनिक एवं कोयला खनन उद्योग के कारण वायु में CO2, SO2, NOX हाइड्रोकार्बन मुक्त होती है। यह गैसें वायुमण्डल की वायु में उपस्थित जलवाष्प से अभिक्रिया कर H2 CO3, H2 SO4, HNO3 का निर्माण करती हैं। इन अम्लों से संदूषित वर्षा, पृथ्वी पर आती है। जिससे मिट्टी का संगठन एवं उर्वरता नष्ट हो जाती है। मिट्टी के सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, भूमि बंजर हो जाती है एवं जलीय जीवन को नष्ट करती है। पौधों के ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता को कम करती है। पौधों की वृद्धि, प्रजनन क्षमता को नष्ट करती है और अन्त में वनस्पति को पूर्णत: समाप्त करती है। प्राणी समूह भी इससे प्रभावित होता है।
अम्ल वर्षा का प्रमुख कारण है SO2 एवं NO2 गैसों को माना जाता है। अम्लीय वर्षा के अतिरिक्त, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, हाइड्रोकार्बन्स के साथ अभिक्रिया कर ओजोन (Ozone) को उत्पन्न करते हैं जो कि एक दीर्घ प्रदूषक है।
अम्लीय वर्षा के कारण
- सल्फ्यूरिक अम्ल (H2 SO4) 60-70 प्रतिषत
- नाइट्रिक अम्ल (HNO3) 30-40 प्रतिषत
- हाइड्रोक्लोरीन अम्ल (HCl)
अम्लीय वर्षा के प्रकार
- शुष्क अम्लीय वर्षा- सल्फेट व नाइट्रेट जब धूल के कणों पर जमकर पृथ्वी सतह पर जम जाते हैं तो इसे शुष्क अम्लीय वर्षा कहते हैं।
- नम अम्लीय वर्षा- जब वर्षा के पानी में सल्फ्यूरिक, नाइट्रिक व हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मिलकर उसे अधिक अम्लीय बनाते हैं तो इसे नम अम्लीय वर्षा कहते हैं।
अम्लीय वर्षा के प्रभाव
- अम्लीय वर्षा का अधिकतम प्रभाव वनस्पतियों पर दिखाई देता है। वनस्पति नष्ट हो जाती हैं, पत्तों के रंग में परिवर्तन, वृक्षों के शिखर की सीमित वृद्धि, वनस्पति, वृक्षों की वृद्धि एवं प्रजनन में कमी, असमय फूलों, पत्तों एवं कलियों का गिरना।
- अनेक देशों में वनों का क्षेत्र नष्ट होता जा रहा है।
- अम्लीय वर्षा के प्रभाव से जलीय जीव जात मछलियाँ, शैवाल एवं अन्य जलीय प्राणी नष्ट हो रहे हैं। मछलियाँ अपने शरीर में लवण के स्तर को संतुलित नहीं रख पाती हैं तथा हानिकारक विषाक्त तत्व जैसे – जस्ता, सीसा, कैडमियम, मैगनीज, निकल, एल्यूमीनियम की सान्द्रता मछलियों के शरीर में अधिक हो जाती है जिसके कारण मछलियाँ एवं जीव जात की मृत्यु हो जाती है। इन मछलियों के खाने से मनुष्य प्रभावित होता है।
- जलीयकाय अनुपयोगी हो जाते हैं। झीलों, तालाब में उद्योगों से निकली SO2, NO2 अन्य हाइड्रोकार्बन्स के मिल जाने से इनकी जैविक सम्पदा नष्ट हो जाती है, इस कारण इन झीलों को जैविक सम्पदा की दृष्टि से मृत झीलें (Dead Lakes) कहा जाता है।
- अम्लीय वर्षा के कारण मिट्टी अम्लीय हो जाती है, इस कारण मृदा की उर्वरता, उत्पादकता समाप्त हो जाती है या कम हो जाती है।
- अम्लीय वर्षा के कारण प्राचीन ऐतिहासिक भवनों/पुरातत्वीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भवनों को क्षति पहुँचती है। उदाहरण: भारतवर्ष का ताजमहल, लाल किला, मोती मस्जिद, आगरा एवं ग्वालियर का किला, यूनान की एक्रियोपोलिस, अमेरिका का लिंकन स्मारक आदि की सुंदरता समाप्त हो रही है।
अम्लीय वर्षा का नियंत्रण
- पर्यावरण को स्वच्छ रखने की तकनीक का उपयोग, उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाली सल्फर डाई ऑक्साइड गैस को कम करने वाली तकनीक का उपयोग करना चाहिए।
- उद्योगों की चिमनियों की ऊंचाई 200 मीटर एवं चिमनियों से निकलने वाली गैस की गति 80 किमी प्रतिघंटा रखी जाए जिससे 600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर गैस वायुमण्डल में जाकर अधिक से अधिक क्षेत्र में विसर्जित हो सके।
- सभी परिष्कृत शालाओं के द्वारा डीजल का उत्पादन किया जावे उसमें गंधक की मात्रा 0.25 प्रतिशत होना चाहिए। शहर में सभी टैक्सी, मोटरयान, दुपहिया वाहन एवं बसें गैस का उपयोग कर परिचालित करें।
- शासन द्वारा सर्वप्रथम विभिन्न क्षेत्रों में अम्लीय वर्षा के भार को निर्धारित किया जावे एवं अम्लीय वर्षा का प्रादर्श तैयार कराया जावे जो कि अम्लीय वर्षा में प्रदूषकों की मात्रा के बारे में एक निश्चित क्षेत्र में भविष्यवाणी कर सके। इसके आधार पर यह संभव हो सकेगा कि मनुष्य एवं भूमि को कितनी क्षति होती होगी। अम्लीय वर्षा से होने वाली क्षति को चरणानुसार विभिन्न तकनीकी के द्वारा नियंत्रित किया जा सके।
- समस्याओं के नियंत्रण के लिए आधुनिक नीति को क्रियान्वयन कर सकें-
- ऊर्जा दक्षता में मूलभूत सुधार करना।
- निम्न गन्धक युक्त ईधन या गन्धक रहित ईधन-प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जावे।
- नवीनीकरण संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग।
- डीजल एवं ईधन तक के शोधन कारखानों में से गन्धक को पूर्णतया दूर कर दिया जावे।
- आर्थिक क्षेत्र की विभिन्न तकनीकी के द्वारा प्रदूषण नियंत्रण विधियों का उपयोग किया जावे।
- वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग करना। भारत में अम्लीय वर्षा का प्रभाव नगण्य है, क्योंकि उष्ण कटिबन्धीय जलवायु एवं देश में क्षारीय मिट्टी में प्रदूषकों को उदासीन करने की क्षमता है। भारतवर्ष में धूल के कण क्षारीय स्वभाव के होते हैं, अम्लीय वर्षा को करने वाली गैस- SO2 एवं NOX को उदासीन कर देते हैं, लेकिन यदि सावधानी नहीं उपयोग में लाई गई तो भारतवर्ष में भी संकट हो सकता है।