अनुक्रम
अनुशासन का अर्थ
अनुशासन की परिभाषा
1. रायबर्न के अनुसार- ‘‘अनुशासन का अर्थ सामान्यत: व्यवस्था तथा कार्यों के सम्पादन में विधि नियमितता तथा आदेशों का अनुपालन होता है।’’ यह परिभाषा अनुशासन के बाह्य स्वरूप को ही व्याख्यायित करती है।
अनुशासन के सिद्धांत
- दमनात्मक सिद्धांत
- प्रभावात्मक सिद्धांत
- मुक्त्यात्मक सिद्धांत
1. दमनात्मक सिद्धांत
इसका तात्पर्य है कि अनुशासन स्थापित करने के लिये अध्यापक को पिटा एवं शारीरिक दण्ड तथा बल आदि का प्रयोग करना चाहिये। इस सिद्धांत के मानने वाले यह मानते हैं कि डण्डा हटाने पर बच्चा बिगड़ता है। अत: वे बच्चों पर अध्यापक को सब अधिकार देते हैं। इसमें कठोर व निर्मम दण्ड भी सम्मिलित है।
2. प्रभावात्मक सिद्धांत
इस सिद्धांत को शिक्षक के व्यक्तित्व के पभ््र ााव पर आधारित किया है। अध्यापक एवं विद्यार्थियों के मध्य एक आदर्श नैतिक सम्बंध स्थापित किया जाता है। इसमें शिक्षकों से उच्च कोटि का आचरण एवं व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। हमारे देश में वैदिकालीन शिक्षा में शिक्षक (गुरू) अपने आचरण एवं क्रियकलापों से ही छात्रों केा अनुशासित रखकर अनुकरण करवाते थे। इससे गुरू-शिष्य के मध्य मधुर सम्बंध स्थापित हेाते थे।
3. मुक्त्यात्मक सिद्धांत
इस सिद्धांत आधार बालक की स्वतत्रं पकृति है। प्रकृतिवादी शिक्षाशास्त्री इसके प्रबल समर्थक है। रूसो बर्डस्वर्थ, हक्सले, माण्डेसरी और फ्राबेल भी इसके प्रयोग के लिये समर्थन देते हैं। बर्डस्वर्थ ने माना है कि बालक में अपने पर नियंत्रण रखने के सभी गुण है और हमें उसको स्वाभाविक वातावरण में प्रतिक्रिया करने के लिये अभिप्रेरित करना चाहिये।
- स्वतत्रंता बालक को स्वाभाविक उन्नति का अवसर देती है।
- स्वतंत्रता संवेगों एवं भावनाओं को सुदृढ़ बनाकर मानसिक विकृति को रोकता है।
- स्वतंत्रता से बच्चों को संतुलित मानसिक स्वास्थ्य मिलता है।
- यह बच्चों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता उत्पन्न करता है।
- यह बच्चों में सही एंव गलत का अन्तर देखने का दृष्टिकोण उत्पन्न करता है, क्येांकि गलत उसे कष्ट देता है, जिससे वह सीख जाता है।
इस सिद्धांत से कुछ कमियां आयी जैसे- अधिक स्वतंतत्रा से स्वच्छन्दता, स्वेच्छाचारिता एवं नियम उल्लंघन को अभिवृत्ति अनुभव की कमी, अपरिपक्वता से उचित आदर्शों के निर्माण में कठिना देखने को मिली।
इन तीनों आर्दशों का अपना – अपना महत्व परिलक्षित होता है। अति से बात बिगड़ती हैं। हम केा मध्यम भाग निकाले जिससे कि उसमें अनुशासन के साथ स्वतंत्रता के उचित प्रयोग की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सके।
अनुशासनहीनता के कारण
अनुपयुक्त वातावरण
वातावरण भी अनुशासनहीनता का प्रमुख कारक है।
- शिक्षा प्रणाली का उद्देश्यपरक न होना।
- विद्यालयों/महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों की शिथिलता व उदासीनता।
- अध्यापकों की उदासीनता व रूचि व प्रेरणा में कमी।
- शिक्षण विधियों का स्तरानुकुल, रोचक, उपयोगी व प्रभावी न होना।
- कक्षाओं में अत्यधिक छात्रों की संख्या के कारण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का प्रभावी न होना।
- विभिन्न शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर उचित निर्देशन न दिया जाना।
- समय-सारिणी के निर्धारण में आवश्यकता, रूचि थकान एवं मनोरंजन जैसे तथ्यों को ध्यान न दिया जाना।
- परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण उचित मूल्यांकन न कर पाने के कारण छात्रों में असन्तोष।
- शिक्षण संस्थाओं में सामुदायिक क्रियाकलापों को महत्व नहीं दिये जाने से विद्यार्थियों का समाज से अलगाव।
- नैतिक शिक्षा का अभाव होने के कारण उचित नैतिकता का अभाव।
दूषित सामाजिक वातावरण
सामाजिक वातावरण बालक के सम्पूर्ण क्रियाकलाप को प्रभावित करते हैं और यह भी विद्यार्थियो में अनुशासन की भावना को प्रभावित करते हैं।
- समाज में व्याप्त दोष (जातिगत भेदभाव, धार्मिक कट्टरता एवं क्षेत्रवाद)।
- अश्लील साहित्य एंव चित्र का प्रचार-प्रसार।
- बढ़ती जनसंख्या के कारण बिलगाव।
- सामाजिक आदर्शों के प्रति विरक्तता।
- आदर्श, पड़ोस, साथियों का अभाव।
अनुपयुक्त पारिवारिक वातावरण
बच्चे अपने परिवार से वंशानुक्रम के गुण तथा पारिवारिक वातावरण के प्रभाव की उपज हेाते हैं। परिवार का वातावरण अनुपयुक्त हो तो उनका सम्पूर्ण जीवन प्रभावित होता है। परिवार के निम्न कारण अनुशासनहीनता को जन्म देता है।
- पारिवारिक कलह (माता-पिता, दादा-दादी, बच्चों एवं अन्य) सम्बन्धों के मध्यम मधुर सम्बधं का अभाव।
- माता-पिता के द्वारा अपने बच्चों को पूरा ध्यान न दिया जाना, उपेक्षा करना।
- परिवार की आर्थिक व सामाजिक स्थिति सम्मान जनक न होना।
- विद्यार्थियों के प्रत्येक व्यवहार के प्रति अधिक उदारता का नकारात्मक प्रभाव।
- बच्चों पर अनावश्यक नियंत्रण से कुण्ठा की उपज।
- परिवार में लैंगिक भेदभाव।
- घर में स्थान की उचित व्यवस्था की कमी।
शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण
विशिष्ठ आयु में निम्न शारीरिक व मनोवैज्ञानिक स्थितिया अनुशासनहीनता का कारण हेाती है।
- किशोरावस्था का असंतुलित विकास।
- शारीरिक कमजोरी (लम्बी बिमारी, जन्मजात)।
- जन्मजात गलत व्यवहार की आदत।
- व्यवहार के शोधन एवं मागान्र्तीकरण एवं परिमार्जन हेतु उपयुक्त परिस्थितियों का अभाव।
- भावनाओं एवं विचारों को उचित प्रश्रय न मिलने से कुण्ठा की उत्पत्ति।