ग्रामीण औद्योगीकरण क्या है ?
ग्रामीण औद्योगीकरण वह प्रक्रिया है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के उद्योग का नियमित और क्रमिक विकास होता हो तथा धीरे-धीरे उसमें नवीनता एवं आधुनिकरण का समावेश होता रहता है। संकुचित दृष्टिकोण से ग्रामीण औद्योगीकरण से तात्पर्य एवं आधारभूत उद्योगों की स्थापना क विकास करना हैं मनुष्य की आवष्यकतायें धीरे-धीरे बढ़ती गयी और नये आधुनिक उद्योगों का विकास होता चला गया । नये उद्योग विकसित होने से प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता था। मानवीय श्रम ग्रामीण औद्योगिक प्रक्रिया का प्रमुख आधार था। सीमित संसाधन होते थे और समीप के बाजारों में विकता था।
ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास की परम्परा में कृशि की प्रधानता रहती है। आर्थिक विकास में धीरे-धीरे कुछ उद्योगों का विकास शुरू हो जाता है। और जैसे-जैसे समुचित नवीन औद्योगिक और संसाधन का सहयोग प्राप्त होता है औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों से संबन्धित आर्थिक विकास।
- रोजगार के साधन उपलब्ध करना ।
- छोटे उद्योगों को विषेश प्रोत्साहन।
- ग्रामीण आवश्यकता के वस्तुओं को उत्पादन की प्राथमिकता।
- उन उद्योगों की स्थापना जिसके द्वारा उत्पादित माल को लघु एवं ग्रामीण उद्योगों द्वारा कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
भारत सरकार के नयी औद्योगिक नीति की प्रस्तावना वृहद एवं मध्य वर्ग के उद्योगों के साथ कुटीर ग्राम्य, एवं लघु उद्योगों की भूमिका पर विषेश बल दिया गया है। निश्चित रूप से ये उद्योग कम पूंजी विनियोग में रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करते है इसके लिए कौशल एवं श्रोत को एकत्रित करने में विषेश कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है। ये सामाजिक न्याय की दृष्टि से आय के सामान वितरण को समान दिषा प्रदान करते है। इनसे नगरों की ओर पलायन रूकेगा तथा जनपद के सभी क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर करनें में सहायता मिलेगी । ग्रामीण संतुलन तथा आर्थिक विकेन्द्रीकरण को व्यवस्थित करना नयी औद्योगिक नीति का आधार है। नयी नीति के अन्तर्गत इन सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों को अंगीकृत किया गया है।
- अधिस्थापित क्षमता का इश्टतम उपयोग अधिकतम उत्पादन और उच्च उत्पादकता प्राप्त करना है।
- आर्थिक रोजगार के अवसर प्राप्त करना तथा औद्योगिक दृष्टि से पिछडे हुए क्षेत्रों को वरीयता देकर क्षेत्रीय रोजगार असंतुलन को जोडता है।
- कृशि एवं खनिजों पर आधारित उद्योगो को वरीयता देना और इश्टटम अन्र्तक्षेत्रीय सम्बन्धों को बढ़ावा देते हुए खनिज व कृशि कार्यों को सूदृढ करना।
- निर्यात एवं आयात कम करने वाले उद्योगों का तीव्र गति से विकास।
- ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तृत विकासमान इकाइयों में पूंजी निवेश और फल प्राप्ति के लाभ को न्यायोचित वितरण के माध्यम से आर्थिक संघीयतन का विकास करना तथा अधिक मूल्यों और खराब किस्म की वस्तुओं से उपभोक्ता को बचाना।
- सार्वजनिक क्षेत्र में आस्था विश्वास उत्पन्न करना तथा उपक्रमों को प्रभावी क्रियात्मक प्रबन्ध का सूत्रपात करना । सार्वजनिक औद्योगिक प्रणाली का व्यापक रूप से पुन: निर्माण करके गतिशील तथा सक्षम प्रबन्ध प्राप्त करना।