शिक्षा को प्रभावित करने वाले राजनैतिक कारक (Political Factors Affecting Education)

राजनैतिक कारक

कहावत है “यथा राजा तथा प्रजा’ अर्थात् जैसा शासन होगा वैसी ही प्रजा भी होगी। इतिहास इस कथन का साक्षी है।

कम्युनिस्ट, फासिस्ट, लोकतान्त्रिक, तानाशाही जिस प्रकार की सरकार होगी, वह अपने ध्येय प्राप्ति हेतु शिक्षा के उद्देश्यों का तदनुसार ही निर्माण करेगी। ब्राउन के निम्नलिखित कथन से ही यह तथ्य स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है। “किसी भी देश की शिक्षा सदैव शासन वर्ग की विशेषताओं को व्यक्त करती है।”

“Education in any country and at all times reflects values of rulling class ” -J.D. Brown

देश में लोकतन्त्र को सुदृढ़ करने हेतु भावी नागरिकों को अपने कर्तव्य एवं अधिकार के प्रति जाग्रत कर उनमें सद्भावना, प्रेम, सहयोग, आदर, सेवाभाव, त्याग, निष्ठा, आदि की भावनाओं का विकास करते है ताकि नागरिक लोकतान्त्रिक जीवन शैली अपना कर देश के प्रशासन में अपना महत्वपूर्ण योगदान कर सके।

वर्तमान में भारत एक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है। फलत: शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण व्यक्ति और समाज दोनों के का हितों को ध्यान में रख कर किया गया है। अत: उद्देश्यों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।

(अ) व्यक्ति की दृष्टि में शिक्षा के उद्देश्य अर्थात् वैयक्तिक उद्देश्य।
(ब) समाज की दृष्टि से शिक्षा के उद्देश्य अर्थात् सामाजिक उद्देश्य।

तानाशाही शासन व्यवस्था में वैयक्तिक पक्ष की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। वही राजनैतिक पक्ष प्रमुख होता है। वर्तमान युग में कम्युनिस्ट देश इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में वैयक्तिक उद्देश्यों पर बल दिया गया है। राजनैतिक और सामाजिक उद्देश्यों पर केवल उतना ही ध्यान दिया गया है जितना सामाजिक एकता के लिए आवश्यक है।

शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Education)

भारत में शिक्षा का दायित्व केन्द्र और राज्यों के प्रशासन पर हैं। ये दोनो प्रशासन अपनी सुविधानुसार शिक्षा व्यवस्था का कार्य करते हैं। इन दोनो प्रशासनों में सह-सम्बन्ध का भी अभाव है। स्थानीय प्रशासन को चलाने वाले लोग राजनैतिक ध्येय को ध्यान में रखते हुए सारे कार्य करते है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि सरकार शिक्षा की स्पष्ट नीति का निर्माण करे और अपनी नीति को निश्चित ढंग से क्रियान्वित करने का संकल्प लें। इसके लिए उपयुक्त प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करायी जानी चाहिए।

भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 45 में सार्वभौम शिक्षा के लिए स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि –

यह राज्य उस संविधान के क्रियान्वित किए जाने के समय से 10 वर्ष के अन्तर्गत जब तक सभी बच्चे 14 वर्ष की आयु को पूरा नही कर लेते, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।

सामाजिक कारक

आर्थिक कारक

शैक्षिक कारक

भौगोलिक कारक

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