शिक्षा को प्रभावित करने वाले शैक्षिक कारक (Educational Factors Affecting Education)

शिक्षा को प्रभावित करने वाले शैक्षिक कारक (Educational Factors Affecting Education)

शिक्षा जगत में प्रचलित पाठ्यक्रम प्रायः दोषपूर्ण हैं। इस पाठ्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं पर कोई बल नही दिया गया है। राजस्थान में राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SCIERT) इस कार्य को करती है। पाठ्यक्रम में पुस्तकीय ज्ञान पर बल दिया गया है। साथ ही सम्पूर्ण राजस्थान में एक जैसा ही पाठ्यक्रम निर्धारित किया गया है। क्षेत्रीय, भिन्नता, स्थानीय परिस्थितियों आदि का कोई ध्यान नही रखा गया है। वर्तमान पाठ्यक्रम न तो जीवन से सम्बन्धित है और न व्यावहारिक ही है। पाठ्यक्रम में न तो सरलता है न आकर्षण ही। रचनात्मक क्रियाओं को इनमें कोई स्थान नही दिया गया है। यदि यह कहा जाए कि पाठ्यक्रम केवल साक्षर बनाने का कार्य करता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

(1) अध्यापकों का अभाव

प्राथमिक पाठशालाओं में शिक्षको की नितांत कमी रहती है। एक अध्यापकीय पाठशालाएँ तों और भी अधिक समस्याग्रस्त होती है। परन्तु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के परिप्रेक्ष्य में “ब्लेक बोर्ड ऑपरेशन” के तहत प्रत्येक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक कार्यरत हैं। अत: शिक्षक समस्त छात्रों को मात्र घेर कर बैठता है और उन्हे भाग्य के भरोसे छोड देता है।

योग्य, अनुभवी तथा शिक्षा के क्षेत्र में रूचि रखने वाले व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में कम ही आ पाते हैं। जो आ भी जाते है देर सवेर अन्य सेवाओं के क्षेत्र में चले जाते है कारण कि शिक्षकों की सेवा स्थिति, वेतनमान अन्य सेवाओं की अपेक्षा कम हैं। अब तो इस क्षेत्र में वही व्यक्ति आते है जिन्हे अन्य क्षेत्रों में स्थान नही मिल पाता। अतः योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए उनकी सेवा शर्तो में सुधार, आकर्षक वेतनमान, पहाड़ी रेगिस्तानी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पृथक से भत्ता देना चाहिए ताकि योग्य, अनुभवी एवं अच्छे व्यक्ति शिक्षा जगत की और आकर्षित हो सकें।

(2) अधिगम (सहायक) सामग्री का अभाव

प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अधिगम सामग्री नाम मात्र की उपलब्ध होती है और वह भी बाबा आदम के जमाने की। परिणामतः शिक्षक विद्यार्थी को मौखिक ज्ञान ही देता है।

व्यावहारिकता के अभाव में छात्रों की रूचि, जिज्ञासा शान्त नही हो पाती और वे विद्यालय से जी चुराने लगते है। आधुनिक तकनीकी आधारित उपकरण यन्त्र व साधनों को प्रयुक्त करना शिक्षण को रूचिकर बनाने के लिए अनिवार्य है।

(3) दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली

वर्तमान परीक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है। इसमें केवल सैद्धान्तिक पक्ष पर जोर दिया जाता है। व्यावहारिक पक्ष शून्य रहता है। मूल्यांकन की अविश्वसनीयता बनी रहती है। एक ही प्रश्न के मूल्यांकन में विविधता आ जाती है।

प्राथमिक विद्यालयों में निरीक्षण एवं मार्गदर्शन हेतु सरकार ने अधिकारियों की लम्बी फौज खड़ी कर रखी है। फिर भी अनेक विद्यालय ऐसे दुर्लभ स्थान पर हैं जहाँ पर पाँच-पाँच वर्ष तक कोई अधिकारी नही जा पाता। मार्गदर्शन एवं निरीक्षण नाम मात्र का होता है।

उपर्युक्त शैक्षिक कारकों के अतिरिक्त अन्य अनेक कारण है जैसे बालक की रूचि, अभिरूचि का ध्यान नहीं रखना, शिक्षा का जीवन से सम्बन्धित न होना, व्यक्तिगत भिन्नता को नजर अन्दाज कर देना आदि।

शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Education)

राजनैतिक कारक

सामाजिक कारक

आर्थिक कारक

शैक्षिक कारक

भौगोलिक कारक

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