शिक्षा को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक (Geographical Factors Affecting Education)

शिक्षा को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक (Geographical Factors Affecting Education)

भौगोलिक कारक

भारत एक विशाल देश है जिसमें दुर्गम रेगिस्तान, अगम्य पर्वतमालाएँ तथा भीषण जंगल है। इस भौगोलिक विविधता के परिणामस्वरूप ही शिक्षा को अनिवार्य नही बनाया जा सका। पर्वतीय क्षेत्र में आवागमन के कारण बालक एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिक्षा ग्रहण करने नही जा सकता है। विशाल मरूस्थल में गाँव और आबादी छितरी हुई है। प्रत्येक ढाणी में विद्यालय नही है। अतः मरूस्थलीय प्रदेश में विशेषतः ग्रीष्मकाल में जब अंधड चलते हैं, बालकों का शिक्षा ग्रहण करने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना सम्भव नही है। असम नागालैण्ड आदि ऐसे प्रदेश है जहाँ जंगलो, नालों आदि की बहुतायत है और जंगली पशु विचरण करते है। ऐसी परिस्थितियों में बचे का विद्यालय जाना टेढ़ी खीर है।

शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Education)

सारांश

शिक्षा की स्थिति को विकसित करने में अनेक कारकों का योगदान है, जैसी राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा भौगोलिक आदि।

समाज में रहकर व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आता है। उसके साथ विचारों का आदान-प्रदान करता है। यह तभी सम्भव है जब शिक्षा के उद्देश्य सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल हो।

अधिकांश बालकों के अभिभावक स्वयं अशिक्षित है। फलतः वे शिक्षा के महत्व से अपरिचित हैं। वे अपने बालकों को शिक्षा दिलाने में रूचि नहीं रखते और साथ में भाग्यवादिता का सहारा लेते हैं। अशिक्षित अभिभावक बालको की शिक्षा के लिए अभिशाप सिद्ध होते है और वे सम्पन्न होते हुए भी बालकों की शिक्षा की और ध्यान नहीं देतें।

शिक्षा के उद्देश्य निर्माण में आर्थिक परिस्थितियाँ विशेष योग देती हैं। भारत एक विकासोन्मुख राष्ट्र हैं। आर्थिक उन्नति एवं प्रत्येक नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु हमारी सरकार प्रयत्नशील है और इसकी पूर्ति हेतु व्यावसायिक विद्यालयों का समस्त देश में जाल बिछा दिया गया हैं।

अत: आर्थिक परिस्थितियाँ शिक्षा के उद्देश्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कोई भी देश, तब तक आत्मनिर्भर नहीं हो सकता तब तक कि उसके प्रत्येक नागरिक को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध नही हों। अतः शिक्षा के उद्देश्य निर्धारण में आर्थिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।

शिक्षा का वर्तमान पाठ्यक्रम भी न तो जीवन से सम्बन्धित है और न व्यावहारिक ही। रचनात्मक क्रियाओं को इनमें कोई स्थान नहीं दिया गया है। यदि यह कहा जाए कि पाठ्यक्रम केवल साक्षर बनाने का कार्य करता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अत: अध्यापकों का अभाव, सहायक सामग्री का अभाव, आदि ऐसे कारक हैं जो शिक्षा की प्रगति को बाधित दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली करते रहते है।

राजनैतिक कारक

सामाजिक कारक

आर्थिक कारक

शैक्षिक कारक

भौगोलिक कारक

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