अनुक्रम
शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background of Education)
उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप –
– प्राचीन कालीन शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों को परिभाषित कर सकेगें।
– प्राचीन काल की शिक्षा के स्वरूप को समझ सकेगें।
– प्राचीन कालीन शिक्षा के प्रशासन तथा वित्त के बारे में बता सकेगें।
– प्राचीन कालीन शिक्षा के विभिन्न पक्षों जैसे शिक्षण संस्थाएँ पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, अनुशासन, गुरू-शिष्य सम्बन्ध, शिक्षा का माध्यम, स्त्री शिक्षा, जन शिक्षा आदि की व्याख्या कर सकेगें।
– प्राचीन कालीन शिक्षा का मूल्यांकन कर सकेगें।
– मध्य कालीन शिक्षा के उद्देश्यों को परिभाषित कर सकेगें।
– मध्य कालीन शिक्षा के स्वरूप को समझ सकेगें।
– मध्य कालीन शिक्षा के प्रशासन तथा वित्त के बारे में बता सकेगें।
– मध्य कालीन शिक्षा के विभिन्न पक्षों की व्याख्या कर सकेगें।
– मध्य कालीन शिक्षा का मूल्यांकन कर सकेगें।
– आधुनिक युग में प्राचीन कालीन मध्य कालीन शिक्षा की उपादेयता ज्ञात कर सकेगें।
प्रस्तावना
अतीत की वास्तविकता वर्तमान में दर्शाना ही इतिहास है। किसी भी देश का इतिहास उस देश की समस्त घटनाओं तथा सम्पूर्ण जीवन दर्शन का चित्रण करता है। अत: वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए भारतीय शिक्षा के इतिहास का अवलोकन करना आवश्यक है। शिक्षा के बदलते स्वरूप तथा तत्कालीन परिस्थितियों के विश्लेषण की सहायता से शिक्षा-व्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न व्यक्ति, समिति तथा सरकारें अतीत की उत्तम तथा वर्तमान समय में उपयोगी बातों को अपनाये रखने का प्रयास कर सकते हैं।
शिक्षा के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संक्षिप्त विवरण पर दृष्टिपात करना वर्तमान भारतीय शिक्षा का अध्ययन करने के लिए अत्यावश्यक है। इससे आधुनिक युग में प्राचीन एवं मध्यकालीन शिक्षा की उपादेयता एवं प्रासंगिकता को भी निर्धारित किया जा सकता है। आज के समय में देश की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था के लिए भी शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उपयोगी है।
भारतीय शिक्षा के इतिहास को मुख्यत: तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है
(1) प्राचीन काल
(2) मध्य काल तथा
(3) आधुनिक काल।
- 1200 ईसवी अर्थात बारहवीं शताब्दी से पूर्व का काल प्राचीन काल माना गया है।
- 1200 ईसवी से 1800 ईसवी तक के काल को मध्य काल कहा गया है।
- 1800 ईसवी से आज तक के समय को आधुनिक काल की संज्ञा दी गई है।
प्राचीन भारतीय शिक्षा में वेदों की रचना तथा अध्ययन को महत्वपूर्ण माना गया है। इसी कारण प्राचीन शिक्षा को वैदिक शिक्षा भी कहा जाता है।
मध्यकाल में भारत पर मुस्लिम शासकों का शासन था तथा शिक्षा-व्यवस्था भी मुस्लिम संस्कृति पर ही आधारित थी। इसी कारण मध्यकाल को मुस्लिम काल के नाम से भी जाना जाता है।
अठारहवीं शताब्दी अर्थात् 1800 ईसवीं से 1947 ईसवीं तक के समय में भारत पर अंग्रेजों का राज्य था, तथा शिक्षा व्यवस्था भी अंग्रेजी भाषा, पाश्चात्य संस्कृति, तथा पाश्चात्य प्रणाली पर आधारित थी। इस कारण 1800 ईसवीं से 1947 ईसवी तक का आधुनिक काल ब्रिटिश काल भी कहलाता है।
सन् 1947 के पश्चात् के समय को स्वातंत्र्योत्तर काल कहा जाता है, क्योंकि सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तथा शिक्षा प्रणाली भी स्वतन्त्र भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप निर्मित हुई।
आधुनिक भारतीय शिक्षा की आधारशिला तो ब्रिटिश शासन के दौरान ही रखी गई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली की आलोचना की गई तथा उसे भारत की तत्कालीन एवं नवीन परिस्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास किया गया। भारतीय संस्कृति को उत्थान की ओर ले जाने में असक्षम होने के कारण इससे संस्कृति के विकास की आशा नहीं की जा सकेगी। यह शिक्षा अति सैद्धांतिक होने के कारण भारत को औद्योगिक आत्मनिर्भरता प्रदान करने में असफल थी। यह प्रणाली सीमित वर्गों को ही शिक्षित कर पाई। जनसाधारण की उपेक्षा होने से निरक्षरता में वृद्धि होती रही। इसी कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की आवश्यकता तथा जनसाधारण की शैक्षिक आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक पुनर्गठन पर बल दिया गया।